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होली के रंग-फ़ुरसतिया के संग
By फ़ुरसतिया on March 22, 2008
आज अभी नेट पर बैठे तो हमें अपने ब्लाग जगत के महारथियों के हसीन नजारे देखने को मिले। ये तरकशिये बहुत मुरहा हैं। कैसे तो कैसे बदन उघाडू बनाया है जीतेंन्द्र चौधरी को, अमित गुप्ता को। सिनेमा जगत की न जाने कित्ती हीरोइनों ने अहमदाबाद की फ़्लाइट पकड़ ली। जाकर बेंगाणी बंधुओं के चरणों में गिर गयीं। बोली भाई जी, ये तस्वीरे और न बनाओ । और बनाओगे तो हमको कौन पूछेगा? यह भी कहा कि मोटा भाई, हमारी भी ऐसी ही तस्वीरें बनाओ न!
और तो और ये नटखट बेंगाणियों ने हमसे फ़ुरसतिया की तस्वीर भी मांगी। हमने फ़ुरसतिया की फोटो छिपा लीं और अनूप शुक्ल की तस्वीर थमा दी। जिसे इन्होंने सलवार कुर्ता पहना दिया। कित्ते शैतान हैं ये लड़के। वैसे ज्ञानजी इसी बात किलकित च प्रमुदित हैं कि उनका चंदन सा बदन कम उद्घाटित हुआ।
कोई कह रहा है ये सब ब्लागिंग के मठाधीश हैं। अब मट्ठराधीश बनना चाहते हैं। सो सुन्दर-सुन्दर कपड़े के फोटो खिचाने लगे। अब देखो जीतेंन्द्र को! क्या सुन्दरता जुगाड़ी है। मन करता है किलकते हुये क्लिकै कर दें। न जाने कित्ते निर्माता-निर्देशक सबका मोबाइल मांग रहे हैं। सब इनको साइन करना चाहते हैं। ब्लागिंग से इनका लेना-देना वही है नेता को अपने चुनाव क्षेत्र से लेना होता है। देने की बात तो मत ही करिये जी।
कोई कह रहा है यहां हमेशा पटखनी खाये पड़े रहने वाले हसीन मुखी अजदक जी की फोटो क्यों नहीं ? वे पतनशील साहित्य -फ़ाहित्य जैसा कुछ लिखते हैं। इत्ता पतित हो लेते हैं। हमेशा पतित होते हैं लेकिन फिर भी जमीन पर नहीं आ पाते। इसके बावजूद उनकी फोटो क्यों नहीं है? एक प्रतिभाशाली के साथ कित्ता अन्याय।
हमने यही सोचते हुये ब्लाग जगत के सभी प्रतिभा शालियों के सम्मान में कुछ न कुछ लिखा। ये कुछ न कुछ समथिंग बेटर दैन नथिंग या कहें छूंछे से थोड़ा भला टाइप का है। जो लोग सम्मानित होने से छूट गये याद दिला दें उनका हिसाब किताब बाद में कर दिया जायेगा।
सो मुलाहिजा फ़र्मायें।
अजदक उर्फ़ महाराज अबूझमाड़ :
खाये पटकनी पड़े हैं, बड़का पतनशील कहलात।
गद्य-फ़द्य, कविता लिखें, काहू से नहीं बुझात॥
खाये पटकनी पड़े हैं, बड़का पतनशील कहलात।
गद्य-फ़द्य, कविता लिखें, काहू से नहीं बुझात॥
अब पाडकास्टिंग पर पिले पड़े हैं।
आलोक पुराणिक उर्फ़ आर्कुटिये च चिरकुटिये द ग्रेट:
राखी ,सहरावत जोड़ के, धांसू किया निवेश।
राह तकें आलोक की, आयेंगे स्वामी किस वेश।
राखी ,सहरावत जोड़ के, धांसू किया निवेश।
राह तकें आलोक की, आयेंगे स्वामी किस वेश।
अगड़म-बगड़म टैक्स लगेगा जी।
अविनाश उर्फ़ सनसनी किंग :
बड़े रागिया जीव हैं, नित-नये छेड़ते राग।
जहां विराजती शान्ति है, वहां लगा दें आग॥
बड़े रागिया जीव हैं, नित-नये छेड़ते राग।
जहां विराजती शान्ति है, वहां लगा दें आग॥
अब तो चैट हटा दो जी!
ये भडा़स की टीम है या शंकर जी की बरात।
हरेक को गरियात हैं, बेवजह फ़ेंकते लात॥
हरेक को गरियात हैं, बेवजह फ़ेंकते लात॥
गाली का पाड़कास्ट बनाओ जी!
समीरलाल उर्फ़ टिप्पणी किंग
पोस्ट चढी न ब्लाग पर , गिरी टिप्पणी आय।
साधुवादी वायरस, सब ओर रहे है फ़ैलाय ॥
पोस्ट चढी न ब्लाग पर , गिरी टिप्पणी आय।
साधुवादी वायरस, सब ओर रहे है फ़ैलाय ॥
ज्ञानजी की ब्लागिंग छुड़वा दी।
ज्ञानजी की मानसिक हलचल एक्सप्रेस
ज्ञानबीड़ी बुझती देखकर, सभी हुये हलकान।
ये अड्डा भी बंद है, अब कहां पे झाड़ें ज्ञान॥
ज्ञानबीड़ी बुझती देखकर, सभी हुये हलकान।
ये अड्डा भी बंद है, अब कहां पे झाड़ें ज्ञान॥
लिखते रहिये जी आपको पुराणिक की राखी कसम।
जीतेंद्र चौधरी उर्फ़ कनपुरिया रंगबाज
गंजो को कंघा बेचता, करता जाने कौन जुगाड़।
नारद के पीछे आज भी फिरता कपडे़ फ़ाड़॥
कुवैत सुन्दरी क्या क्यूट लग रही जी।
गंजो को कंघा बेचता, करता जाने कौन जुगाड़।
नारद के पीछे आज भी फिरता कपडे़ फ़ाड़॥
कुवैत सुन्दरी क्या क्यूट लग रही जी।
देबाशीष उर्फ़ नुक्ते में चीनी कम
हो ब्लागिंग के भीष्म पितामह, मठाधीश भी आप।
इंडीब्लागिंग छोड़े बैठे, सोचो बहुत पड़ेगा पाप॥
हो ब्लागिंग के भीष्म पितामह, मठाधीश भी आप।
इंडीब्लागिंग छोड़े बैठे, सोचो बहुत पड़ेगा पाप॥
अब तो ब्लागिंग दंगल करवा दो जी।
अभय तिवारी उर्फ़ स्वामी निर्मलानंद
होली आई देखकर, भये निर्मलानंद हलकान।
भौजी दिहिन जबाब न पत्र का, माथा है भन्नान॥
होली आई देखकर, भये निर्मलानंद हलकान।
भौजी दिहिन जबाब न पत्र का, माथा है भन्नान॥
भौजी के संग क्या खूब जमेगी देवर की।
बोधिसत्व उर्फ़ चेला-चिरकीन
फ़ालोवर हैं चिरकीन के, कैसा डाला सब पर रंग
अब तो मुझको चाह लो वर्ना हम पी लेंगे भंग॥
फ़ालोवर हैं चिरकीन के, कैसा डाला सब पर रंग
अब तो मुझको चाह लो वर्ना हम पी लेंगे भंग॥
इतने से हम खुश हो जायेंगे, दिल की आग बुझेगी जी।
मसिजीवी बनाम माउसजीवी
अध्यापक दिल्ली में हुये, नित करत नयी खुराफ़ात।
ब्लागिंग में जो न कर सकें, वो टिप्पणी में कहि जात॥
अध्यापक दिल्ली में हुये, नित करत नयी खुराफ़ात।
ब्लागिंग में जो न कर सकें, वो टिप्पणी में कहि जात॥
मुखौटे क्या खूब बने हैं जी।
जिनके टाइटिल नहीं मिले वे हलकान न हों। आप अपनी बारी की प्रतीक्षा करें। आप कतार में हैं मन करे तो आप टाइटिल सुझा भी सकते हैं।
Posted in बस यूं ही | 20 Responses
फिर आएंगे दुबारकम्
होली के ये रंग थे फुरसतिया के संग
फुरसतिया के संग लिखें सबपर ही दोहे
अज़दक जी हों, उड़नतश्तरी, सब पे सोहे
कह फुरसतिया मज़ा आ गया रंग का ऐसा
रंग लग गया बिना खर्च के एक भी पैसा
आपको भी होली मुबारक!!
जिंदा रहने के पीछे
अगर सही तर्क नहीं है
तो रामनामी बेचकर
या रंडियों की दलाली करके
रोजी कमाने में
कोई फर्क नहीं है।
——–
दूध फट गया
अब सब दही है
केवल रथी का नम्बर कब आयेगा….?
तथा सभी पर आपके होली की फुहार से छींटे ..
बहुत बधाई आपके समस्त परिवार को –
पोस्ट पढ़ी जो आपकी हो गए मदमस्त !