http://web.archive.org/web/20140419212530/http://hindini.com/fursatiya/archives/415
सम्मान का एरियर
By फ़ुरसतिया on March 28, 2008
कल मामाजी को फोन किया तो पता चला वे मुम्बई में थे। पता यह भी चला कि उनको सन २००६ का महाराष्ट्र हिन्दी सेवा सम्मान दिये जाने की घोषणा हुई है। उसी सिलसिले में वे मुम्बई आये हुये थे। वहीं बान्द्रा इलाके के किसी गेस्ट हाउस में ठहरे हुये हैं।
हमने उनसे कहा भी-आपको सम्मान भी एरियर की तरह मिल रहा है। सही है।बधाई।
पिछ्ले तीन सालों के सम्मान एक साथ किये जा रहे हैं। सम्मान समारोह २९ मार्च को पटकर सभागार में होगा।
मैंने रेडियोवाणी के युनुस जी को मामा जी का फोन नम्बर दे दिया है। उनसे यह भी कहा है कि संभव हो सके तो उनका विस्तृत इंटरव्यू लेकर अपने ब्लाग पर पढ़वायें। और भी मुम्बईकर अगर हो सकें तो उनसे ब्लागर मीट टाइप का कुछ करें।
मामाजी के संघर्षों के शुरुआती दिन इलाहाबाद में गुजरे हैं। मुम्बई में नौकरी का लम्बा समय गुजरा जब वे धर्मवीर भारती जी के बुलावे पर धर्मयुग में गये। अपनी आत्मकथा गुजरा कहां कहां से मैं में उन्होंने मुम्बई पहुंचने तक के दिनों का जिक्र किया है।
पिछले दिनों इलाहाबाद से जुड़े तमाम लोगों के बारे में पढ़ा-सुना। इरफ़ानजी के ब्लाग पर पंकज श्रीवास्तव कापाडकास्ट, फिर अजित जी के ब्लाग पर विमल वर्मा की आपबीती इसके अलावा और भी बहुत कुछ।
दो दिन से ज्ञानरंजन जी की किताब कबाड़खाना बांच रहा हूं। उनके जीवन का भी बहुत बड़ा हिस्सा इलाहाबाद में गुजरा। हिंदी लेखकों में लोग कहते हैं उनके जैसा गद्य लिखने वाले विरले हैं। उनके बारे में विस्तार से फ़िर कभी। सिर्फ़ दो उद्धरण दे रहा हूं-
१. एक अत्युत्तम सर्वोत्कृष्ट की रचना करने से ज्यादा जरूरी है कि आप सामान्य जनता को मानव- स्पर्श और जीवन के रहस्यों से ज्ञात कराते चलें।
१. एक अत्युत्तम सर्वोत्कृष्ट की रचना करने से ज्यादा जरूरी है कि आप सामान्य जनता को मानव- स्पर्श और जीवन के रहस्यों से ज्ञात कराते चलें।
२.भाषा गहरे संस्कार, सरोकार और फ़क्कड़ी से मिलती है। विपुल सहचर वृत्ति और आवारगी से वह समद्ध होती है। जीवन को देखना ही नहीं होता, पकड़ना भी पड़ता है अन्यथा उसे जाने में देर नहीं लगती। दूर और पार और अनन्त और अतल में भाषा होती है, वह मनुष्य के भीतर भी होती है। उसे बटोरना पड़ता है।
फिलहास बस्स!
फिलहास बस्स!
संबंधित कड़िया-
१.मेरे बम्बई वाले मामा
२.कन्हैयालाल नन्दन की कवितायें
३.बुझाने के लिये पागल हवायें रोज़ आती हैं
४.मैं ब्लॉग पढ़ने के पैसे लेता हूँ…सुनिये एक और भूतपूर्व रंगकर्मी का बयान
५.विमल वर्मा की आपबीती
२.कन्हैयालाल नन्दन की कवितायें
३.बुझाने के लिये पागल हवायें रोज़ आती हैं
४.मैं ब्लॉग पढ़ने के पैसे लेता हूँ…सुनिये एक और भूतपूर्व रंगकर्मी का बयान
५.विमल वर्मा की आपबीती
Posted in बस यूं ही | 15 Responses
कन्हैयालाल नन्दन जी के विषय में बम्बई वालों के लिखे की प्रतीक्षा करते हैं!
और आपको भी बधाई।
महाराष्ट्र को गौरवान्वित होनाही चाहिये उन्हेम सम्मान प्रदान कर राज्य अपने आपको ही तो सम्मानित कर रहा है. समाचार बाँटने के लिये धन्यवाद
आपने याद दिला दिया
पराग से धर्मयुग तक का मेरा सफ़र
साहित्यिक चाव उत्पन्न करने में नंदन जी की परोक्ष प्रोत्साहन
मेरे जीवन की उपलब्धि है,वह आरंभिक दिग्भ्रमित दिन,सदैव स्मरण रहेगा
वह सम्मानित हो रहे हैं, याकि उनसे स्वयं सम्मान ही गौरवान्वित हो रहा है
बधाई के परे का व्यक्तित्व, फिर भी मेरी बधाई तो क्या चरणस्पर्श प्रेषित कर दें