http://web.archive.org/web/20140419215933/http://hindini.com/fursatiya/archives/483
अगर एक आदमी एक काम को दो दिन में करता है तो तीन आदमी मिलकर उसी काम को मिलकर कितने दिन में कर लेंगे।
इसी तर्ज पर इस साल कुछ और सवाल कोर्स में शामिल होने के लिये तैयार हैं। आप मुलाहिजा फ़र्मायेंग क्या जरा सा!
देखिये। देख लीजिये जहां मन ऊब जाये वहां बहुत सही, बहुत अच्छा करके निकल लीजियेगा।
१. अगर एक सांसद को खरीदने के लिये एक करोड़ रुपये चाहिये तो पचीस सांसद खरीदने के लिये कितने रुपये चाहिये?
२. सांसद की खरीद का मूल्य २५ करोड़ रुपया है। अगर किसी सांसद को बिकने के लिये केवल एक करोड़ मिलते हैं तो बिकने में होने वाली हानि की प्रतिशत में गणना करें।
३. एक सांसद एक बार में एक करोड़ रुपये उठाकर संसद में जा सकता है। पच्चीस करोड़ उठाने के लिये कित्ते सांसद चाहिये?
४. एक पढ़ा लिखा दूल्हा पन्द्रह लाख में बिकता है। एक सांसद एक करोड़ में बिकता है। एक सांसद के बदले में कितने दूल्हे खरीदे जा सकते हैं और बचे हुये रुपयों में कितने रुपये और मिलाकर एक दूल्हा खरीदा जा सकता है।
५.एक दफ़्तर का बाबू औसतन घूस से पांच सौ रुपये कमाता है। कितने दिन की कमाई को जोड़कर वह एक सांसद खरीद सकता है?
६. न्यूनतम मजदूरी कानून के अनुसार एक मजूर को दिन भर की मजूरी के १२० रुपये मिलने चाहिये। मान लीजिये वह लड़-झगड़कर सौ रुपये झटकने में कामयाब होता है तो उसे एक सांसद के बराबर पैसा कमाने के लिये कितने जनम लेने पड़ेंगे। एक मजदूर की काम करने की औसत आयु पचास साल है। गणना के लिये सांसद का बाजार भाव १५ करोड़ ले सकते हैं।
आखिरी वाला सवाल हल करके उदाहरण के रूप में पेश किया जा सकता है।
एक मजूर की एक दिन की घोषित आमदनी 120 रुपये।
मजदूर को मिलने वाले रुपये = 100 रुपये
साल भर में औसत कार्य दिवस= 300 दिन
एक मजदूर की साल भर की औसत मजदूरी= 100 x 300 = 30000 रुपये।
मजदूर की औसत काम करने की आयु = 50 साल।
मजदूर की जिंदगी भर की मेहनत की कमाई= 50 X 30000 = 1500000 रुपये।
एक सांसद की एक बार बिक्री की कीमत 15 करोड़
एक मजदूर को एक सांसद के एक बार बिकने के बराबर कमाई में लगा समय= 15 करोड़/ 15 लाख = 100 जन्म
गणित का अभ्यास छूट जाने के कारण सवाल और अच्छी तरह से बन नहीं पाये लेकिन आप अपने स्तर से प्रयास कर सकते हैं। सांसद की कीमत में मतभेद हो सकता है लेकिन सवाल लगाने के लिये कीमत का अनुमान लगाया गया है। एक अच्छा खासा सांसद अभी हाल फ़िलहाल तो बिकता नहीं दिखा (बिका होगा भी तो एकान्त में बिका होगा) लेकिन दागी सांसदों के बिकने की खबरें तो आयीं ही थीं। बाजार खुलने के पहले सासंदों के बिकने की खबर पचीस करोड़ की थी लेकिन फ़िर शायद बहुत सांसद बिकने के लिये तैयार हो गये होंगे इसलिये मांग और आपूर्ति के नियम के तहत कीमतें गिर गयीं। और लोगों ने बिकने से इंकार कर दिया। सड़ जायेंगे लेकिन बिकेंगे नहीं। इसी भावना की तहत उन्होंने सड़ा हुआ सा काम किया और दुनिया भर में दिखाया कि हमें खरीदने के लिये एक करोड़ दिये हये लेकिन हम बिके नहीं।
अगर वे अकेले में बिकने से मना कर देते तो कौन जानता कि वे कित्ती बड़ी सेवा कर रहे हैं देश की। कैसे बताते वे हमने पैसे ठुकरा दिये। पैसे ठुकरा दिये लेकिन दुनिया भर में गाना गा दिया कि यहां सांसद खरीदे जा सकते हैं।
अगर वे बिकने से सीधे मना कर देते तो दुनिया को कैसे पता चलता कि भारत में सांसद खरीदे जा सकते हैं अगर ठीक पैसा लगाया जा सके। बड़ी-बड़ी कंपनियां यहां पैसा लगाने की सोच सकती हैं।
अभी यह एक करोड़ का मामला कित्ती दूर तक जायेगा।
तमाम चुटकुले बनेगें इस पर। इस कंपनी की औकात इत्ती है कि दस सांसद तो रोज खरीद ले।
हास्य कवितायें बनेगी -बेटा पढ़ाई-लिखाई से अच्छा है तू गुंडा बन। संसद में जा। फ़िर करोंड लेके बिक जा।
लाफ़्टर चैलेंज में राजू श्रीवास्तव के गजोधर कहेंगे- अरे गुरू क्या चीज है वो हीरोइन। एक डायरेक्टर साहब उनको अपनी पिक्चर में लेने के लिये एक करोड़ रुपये आफ़र किहिन तो भड़क गयी। बोली हमको क्या सांसद समझ रखा है। हम फ़िर समझाये कि बहिनी तुम्हारे जैसे पचासों इसके लिये काम करें का खातिर तैयार हैं। ज्यादा भाव न दिखाऒ। तब एक रुपुया और जोड़कर एक करोड़ एक रुपया मां बात पक्की भई।
कवि सम्मेलन में भी वीर रस के कवि सांस फ़ुला के चीखें के – माता का अपमान हुआ है। तीनो को गोली से उड़ा देना चाहिये।
क्या-क्या गिनायें आपको। कुछ आप भी गिनो अपने आप।
एकिक नियम की बात चली तो आपके दिमाग में ये सवाल भी जरूर उठा होगा-
अगर एक ब्लागर एक दिन में पन्द्रह मक्खियां मारता है तो हिंदी ब्लाग जगत के सारे ब्लागर मिलाकर दिन भर में कित्ती मक्खियां मार सकते हैं।
नोट निकले हैं तो दूर तलक जायेंगे…
By फ़ुरसतिया on July 26, 2008
नोट
एकिक नियम और समानुपात के नियम बचपन की कक्षाओं में पढ़ाये जाते हैं।अगर एक आदमी एक काम को दो दिन में करता है तो तीन आदमी मिलकर उसी काम को मिलकर कितने दिन में कर लेंगे।
इसी तर्ज पर इस साल कुछ और सवाल कोर्स में शामिल होने के लिये तैयार हैं। आप मुलाहिजा फ़र्मायेंग क्या जरा सा!
देखिये। देख लीजिये जहां मन ऊब जाये वहां बहुत सही, बहुत अच्छा करके निकल लीजियेगा।
१. अगर एक सांसद को खरीदने के लिये एक करोड़ रुपये चाहिये तो पचीस सांसद खरीदने के लिये कितने रुपये चाहिये?
२. सांसद की खरीद का मूल्य २५ करोड़ रुपया है। अगर किसी सांसद को बिकने के लिये केवल एक करोड़ मिलते हैं तो बिकने में होने वाली हानि की प्रतिशत में गणना करें।
३. एक सांसद एक बार में एक करोड़ रुपये उठाकर संसद में जा सकता है। पच्चीस करोड़ उठाने के लिये कित्ते सांसद चाहिये?
४. एक पढ़ा लिखा दूल्हा पन्द्रह लाख में बिकता है। एक सांसद एक करोड़ में बिकता है। एक सांसद के बदले में कितने दूल्हे खरीदे जा सकते हैं और बचे हुये रुपयों में कितने रुपये और मिलाकर एक दूल्हा खरीदा जा सकता है।
५.एक दफ़्तर का बाबू औसतन घूस से पांच सौ रुपये कमाता है। कितने दिन की कमाई को जोड़कर वह एक सांसद खरीद सकता है?
६. न्यूनतम मजदूरी कानून के अनुसार एक मजूर को दिन भर की मजूरी के १२० रुपये मिलने चाहिये। मान लीजिये वह लड़-झगड़कर सौ रुपये झटकने में कामयाब होता है तो उसे एक सांसद के बराबर पैसा कमाने के लिये कितने जनम लेने पड़ेंगे। एक मजदूर की काम करने की औसत आयु पचास साल है। गणना के लिये सांसद का बाजार भाव १५ करोड़ ले सकते हैं।
आखिरी वाला सवाल हल करके उदाहरण के रूप में पेश किया जा सकता है।
एक मजूर की एक दिन की घोषित आमदनी 120 रुपये।
मजदूर को मिलने वाले रुपये = 100 रुपये
साल भर में औसत कार्य दिवस= 300 दिन
एक मजदूर की साल भर की औसत मजदूरी= 100 x 300 = 30000 रुपये।
मजदूर की औसत काम करने की आयु = 50 साल।
मजदूर की जिंदगी भर की मेहनत की कमाई= 50 X 30000 = 1500000 रुपये।
एक सांसद की एक बार बिक्री की कीमत 15 करोड़
एक मजदूर को एक सांसद के एक बार बिकने के बराबर कमाई में लगा समय= 15 करोड़/ 15 लाख = 100 जन्म
गणित का अभ्यास छूट जाने के कारण सवाल और अच्छी तरह से बन नहीं पाये लेकिन आप अपने स्तर से प्रयास कर सकते हैं। सांसद की कीमत में मतभेद हो सकता है लेकिन सवाल लगाने के लिये कीमत का अनुमान लगाया गया है। एक अच्छा खासा सांसद अभी हाल फ़िलहाल तो बिकता नहीं दिखा (बिका होगा भी तो एकान्त में बिका होगा) लेकिन दागी सांसदों के बिकने की खबरें तो आयीं ही थीं। बाजार खुलने के पहले सासंदों के बिकने की खबर पचीस करोड़ की थी लेकिन फ़िर शायद बहुत सांसद बिकने के लिये तैयार हो गये होंगे इसलिये मांग और आपूर्ति के नियम के तहत कीमतें गिर गयीं। और लोगों ने बिकने से इंकार कर दिया। सड़ जायेंगे लेकिन बिकेंगे नहीं। इसी भावना की तहत उन्होंने सड़ा हुआ सा काम किया और दुनिया भर में दिखाया कि हमें खरीदने के लिये एक करोड़ दिये हये लेकिन हम बिके नहीं।
अगर वे अकेले में बिकने से मना कर देते तो कौन जानता कि वे कित्ती बड़ी सेवा कर रहे हैं देश की। कैसे बताते वे हमने पैसे ठुकरा दिये। पैसे ठुकरा दिये लेकिन दुनिया भर में गाना गा दिया कि यहां सांसद खरीदे जा सकते हैं।
अगर वे बिकने से सीधे मना कर देते तो दुनिया को कैसे पता चलता कि भारत में सांसद खरीदे जा सकते हैं अगर ठीक पैसा लगाया जा सके। बड़ी-बड़ी कंपनियां यहां पैसा लगाने की सोच सकती हैं।
अभी यह एक करोड़ का मामला कित्ती दूर तक जायेगा।
तमाम चुटकुले बनेगें इस पर। इस कंपनी की औकात इत्ती है कि दस सांसद तो रोज खरीद ले।
हास्य कवितायें बनेगी -बेटा पढ़ाई-लिखाई से अच्छा है तू गुंडा बन। संसद में जा। फ़िर करोंड लेके बिक जा।
लाफ़्टर चैलेंज में राजू श्रीवास्तव के गजोधर कहेंगे- अरे गुरू क्या चीज है वो हीरोइन। एक डायरेक्टर साहब उनको अपनी पिक्चर में लेने के लिये एक करोड़ रुपये आफ़र किहिन तो भड़क गयी। बोली हमको क्या सांसद समझ रखा है। हम फ़िर समझाये कि बहिनी तुम्हारे जैसे पचासों इसके लिये काम करें का खातिर तैयार हैं। ज्यादा भाव न दिखाऒ। तब एक रुपुया और जोड़कर एक करोड़ एक रुपया मां बात पक्की भई।
कवि सम्मेलन में भी वीर रस के कवि सांस फ़ुला के चीखें के – माता का अपमान हुआ है। तीनो को गोली से उड़ा देना चाहिये।
क्या-क्या गिनायें आपको। कुछ आप भी गिनो अपने आप।
एकिक नियम की बात चली तो आपके दिमाग में ये सवाल भी जरूर उठा होगा-
अगर एक ब्लागर एक दिन में पन्द्रह मक्खियां मारता है तो हिंदी ब्लाग जगत के सारे ब्लागर मिलाकर दिन भर में कित्ती मक्खियां मार सकते हैं।
ये प्रश्न भले परीक्षाओं में न पूछे जाएँ पर ये समाज की, जीवन की कड़वी सच्चाई व्यक्त करनेवाले प्रश्न हैं। जैसे कहा जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है वैसे ही ये प्रश्न भी आधुनिक समाज के दर्पण हैं।
रोचकता के साथ आपने सटीक शैली में इन कथित भारत के कर्णधारों की कलई खोल दी है। कभी-कभी सोचता हूँ कि कैसे भी करके मैं भी नेता बन जाऊँ (पर भगवान न करें की इन नेताओं की लत मुझे भी लगे) और एक दिन पूरी दुनिया को दिखा दूँ इंकलाब फिल्म में अमिताभजी के चरित्र का सजीव चित्रण और जैसे फिल्म का अंत वैसे ही नेताओं की नेतागीरी का अंत। जय हिन्द, जय भारत।
एक ट्रक के पीछे लिखा हुआ था- सौ में नब्बे बेइमान, फिर भी मेरा भारत महान।
वैसे सवाल हैं सोचने वाले , अगला कैरियर नेतागरी को चुनें
१५ मख्खी इसलिये मारी कि उतनी ही थी..सारे ब्लॉगर मिलकर मारें तो भी १५ ही मरेंगी और मारने वाले वो ही ब्लॉगर होंगे बाकी तो हम और आपकी की तरह हवा में पेपर लहराते नजर आयेंगे-नजर क्या आयेंगे, लहरा ही रहे हैं. शायद कभी एकाध बचे और हमसे झटके में लह जाये इस उम्मीद में.
अच्छा गणित.
सवा सौ करोड़ जनता में से एक बार में ५४५ सांसद चुने जाते है। इनमें से १२ सांसद ०५ साल में एक बार बिकने का अवसर पाते है। कुल तय कीमत का १०% ही अग्रिम मिल पाता है। शेष धनराशि विवाद में फँस जाती है।
-गणना करके यह बताइए कि ‘एक औसत भारतीय नागरिक को इस रेट पर बिकने के अवसर की प्रतिवर्ष प्रायिकता (provability) क्या होगी?’
-यदि उत्तर दशमलव के चार स्थान पर आये तो यह भी बताएं कि ‘ऐसा दुर्लभ अवसर मिलने पर कौन नहीं डोल जाएगा?’
-इस सौदे को ठुकराने वाले तीन सांसदों के महान त्याग को देखते हुए क्यों न ‘भारतरत्न’ के लिए नाम प्रस्तावित कर दिया जाय?
अच्छा जी, तो यह बात है…
बहुत पेट दर्द हो रहा है, हम सबको ?
नारायण..नारायण, जनता और नेता का रिश्ता इतना अटूट ऎसे ही नहीं है,
पिट कर भी मज़ूर-किसान गा रहा होता है..
सौ बार जनम लेंगे…सौ बार फ़ना होंगे, पर ज़ा्न-ए-वफ़ा फिर भी… हमतुम न ज़ुदा होंगेऽऽ
काहे परेशान हो गुरु ?
नेता है..तो रेट करोड़ का है, जनता है.. तो रेट कुछ अद्धे पौव्वे और खँस्सी कलिया का है ,
इन दोनऊ के बीच में फँसे बड़ेबाबू बोनस , अंतरिम राहत वगैरह लेकर ही गदगद हैं ।
काहे परेशान हो गुरु ?
जाओ, हाथ मुँह धोके ख़ाना खाओ, अउर तनिक काम वाम लगा के चुप्पे सो जाओ,
आजकल दफ़्तर रोज़ही देर से पहुँच रहे हो ।
काहे परेशान हो गुरु ?
मन तो कर रहा है कि इन सवालों को संसद पटल पर रखा जाए और सांसदों से इनका हल करवाया जाए …..
एक मध्यम दर्जे के लालची इंसान के औरा मे बाहरी तरफ से भूरा रंग १ cm तक दिखता है। फिर सांसद के औरा मे कितना दिखेगा?
१०० मे से ९५% लोग अपने औरा मे पहला रंग हरा कराते हैं (लक्ष्मी जी के लिये) पर क्या अब लोग भूरा रंग चाहेंगे, सांसदो की तरह?
अब तक के मानक सुंदर औरा मे अब क्या फेरबदल होनी चाहिये?
अपने लिये औरा चुनना हो तो आप किसका चुनना पसंद करेंगे?
और भी कई सवाल बन रहे हैं.. पर अभी नही फिर कभी
Bahut badhiya se samajhule bani raunaa ke.
Keep is up…
अरुण गौतम
akgautam@indiatimes.com
aapka such sarahna yogye hai!!!