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जरा नम्र हो जा मजा आयेगा
By फ़ुरसतिया on February 17, 2009
आज से नहीं जी हमेशा से देखा गया है कि जब कोई आदमी काम नहीं करता तो बहानेबाजी करने लगता है। कम शब्दों में कहा जाये तो -कामचोर व्यक्ति बहानेबाज होता है । अगर आप अपने मन की मनवाना चाहते हैं तो इस तरह कह लें कि बहानेबाज व्यक्ति कामचोर हो जाता है।अब जब व्यक्ति के बारे में सही है तो ब्लागर के बारे में भी सही ही होगा।
ब्लाग जगत के बहानेबाजों मेंजीतेंन्द्र चौधरी का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। कानपुर में अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में वे गंजों को कंघे बेचने की महारत हासिल कर चुके हैं। ब्लागजगत के कई ऐसे काम रहे जो जब सुबह उनको थमाये गये तो शाम तक उसमें कुछ और काम जोड़कर जीतेंन्द्र ने वापस थमाने वाले को थमा दिया यह झांसा देकर कि यार तुम इसे बढ़िया कर लोगे। पानी पर चढ़ाकर काम की सूली पर चढ़ा देने में जीतेंन्द्र को महारात हासिल है।
तो ऐसे बहाना शिरोमणि जी ने पिछले दिनों जब ब्लॉग ना लिखने के बहाने बताये तो हमने उनकी जांच की तो सबके सब बहाने फ़र्जी पाये। आप भी देखिये उनके बहाने और हमारे सवाल। बताइये आप क्या अब भी ब्लाग न लिखने के बहानों से संतुष्ट हैं। फ़िलहाल आधे बहानों की पड़ताल की गयी है।
1. आजकल काफी व्यस्त चल रहे है।
क्यों कॊई काम-धाम नहीं है क्या जी जो व्यस्त हो गये?
2. कुछ दिनो के लिए बाहर चला गया था।
अब क्या अंदर हो गये? क्या जुर्म किया था?
3. बच्चों के इम्तिहान चल रहे है।
तो ब्लागिंग छोड़कर उनको पढ़ाओगे? फ़ेल करवाओगे?
4. घर का कम्प्यूटर/इंटरनैट कनैक्शन खराब हो गया था।
बगल के मिर्जाजी से आजकल पट नहीं रही है क्या? उनके यहां काहे नहीं गये?
5. एक प्रोजेक्ट की डैडलाइन है, उसके बाद ब्लॉगिंग करेंगे।
मतलब न प्रोजेक्ट करोगे ठीक न ब्लागिंग! दोनो एक साथ डेड!
6. अगले हफ़्ते से जरुर करेंगे।
दस हफ़्ते से यही सुन रहे हैं!
7. अगले महीने से जरुर करेंगे।
प्रियंकर ये बात तो साल भर से कह रहे हैं।
8. अरे यार! कल्लू मामा अपना कुकुर हमारे हवाले कर गए है, उसकी सेवा मे टाइम निकल जाता है।
ज्ञानजी की कुकुर नर्सरी में भेज दो। कालीन पे बैठेगा ऐश करेगा!
9. लच्छो ताई अपनी बिल्ली……
चली गई क्या वो भी दिल्ली!
10. घर बदल रहे है!
तो क्या ब्लाग भी बदलोगे? नया घर, नया ब्लाग?
11. ब्लॉगिंग करते करते ऑफिस मे धर लिए गए थे, इसलिए आजकल नयी नौकरी ढूंढ रहे है।
क्या ब्लागिंग छोड़ने से बेसी काबिल हो जाओगे और नौकरी मिल जायेगी?
12. यार बहुत ब्लॉगिंग हो गयी थी, थोड़ा आराम कर लें।
ब्लागिंग में कौन दंड-बैठक करना पड़ता है। ये भी तो आराम का मामला है!
13. अब रोज रोज क्या वही बकवास लिखे। कुछ क्लासिक सा घटित हो तब लिखेंगे।
ये भी तो बकवासै लिखे हो। अब कौन से क्लास में पढ़ोगे जो क्लासिक लिखोगे?
14. अरे यार जिस दिन वो (क्लासिक) घटना हुई ना, उस दिन हम ……..(ऊपर के कोई बहाने तलाश लें)
बहानेबाजी से क्लासिक बनने लगे तो हो चुका।
15. लोगों से झूठी तारीफ सुनते सुनते थक गए थे, इसलिए थोड़ा ब्रेक लिया है।
ब्रेक के बाद क्या लोग सच में तारीफ़ करने लगेंगे?
16. आत्मचिंतन चल रहा है।
ई कौंची होता है जी?
17. लोगों की आलोचनाओं से दु:खी हो गए थे।
सच को आलोचना समझोगे तो दुख लाजिमी है।
18. कोई पढता तो था नही, लिखकर भी क्या तीर मार लेते।
लिखना बंद करने से ही कौन सी तोप चल जायेगी?
19. विषयों का टोटा है।
लिखने के लिये विषय भी चाहिये होता है क्या?
20. आने वाली टिप्पणी और ब्लॉगिंग मे लगने वाले समय का अनुपात ठीक नही बैठ रहा था।
तो खुद टिप्पणियां करके अनुपात ठीक करो न!
21. बहुत दिनो से मिर्जा से मिलना नही हुआ।
मिर्जा से मिलने को डाक्टर ने मना किया है क्या?
22. इतने सारे विषय है, सोच नही पा रहे किस पर लिखे।
सबसे पहले विषय की लिस्ट बनाकर पोस्ट करो!
23. लोग बाग हमारे आइडिया चोरी कर ले गए है।
तुम भी कहीं से चुरा के ही लाये थे। आइडिये जैसे आये थे वैसे चले गये।
आगे के बहानों की पड़ताल मौका,मूड और मांग के मुताबिक की जायेगी।
ये ऊंचाई कोई छू न पायेगा।
जो किस्मत में चलना लिखा है तो चल
ये मत देख चलकर कहां जायेगा।
अगर उसके जुल्मों का एहसास है
समझ ले वो तुझको भी तड़पायेगा।
अगर ख्वाब देखा तो तामीर कर
ये जज़्बा बुलंदी पर पहुंचायेगा।
जिसे बदगुमानी पे भी नाज है,
उसे दिल दिखा करके क्या पायेगा।
हैं आंखों में आंसू उसी के लिये
न देखेगा वो, तो तू पछतायेगा।
बड़ा बनना है तो हुनर सीख ले-
कि अपनो से बचकर निकल जायेगा।
डा.कन्हैयालाल नंदन
ब्लाग जगत के बहानेबाजों मेंजीतेंन्द्र चौधरी का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। कानपुर में अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में वे गंजों को कंघे बेचने की महारत हासिल कर चुके हैं। ब्लागजगत के कई ऐसे काम रहे जो जब सुबह उनको थमाये गये तो शाम तक उसमें कुछ और काम जोड़कर जीतेंन्द्र ने वापस थमाने वाले को थमा दिया यह झांसा देकर कि यार तुम इसे बढ़िया कर लोगे। पानी पर चढ़ाकर काम की सूली पर चढ़ा देने में जीतेंन्द्र को महारात हासिल है।
तो ऐसे बहाना शिरोमणि जी ने पिछले दिनों जब ब्लॉग ना लिखने के बहाने बताये तो हमने उनकी जांच की तो सबके सब बहाने फ़र्जी पाये। आप भी देखिये उनके बहाने और हमारे सवाल। बताइये आप क्या अब भी ब्लाग न लिखने के बहानों से संतुष्ट हैं। फ़िलहाल आधे बहानों की पड़ताल की गयी है।
1. आजकल काफी व्यस्त चल रहे है।
क्यों कॊई काम-धाम नहीं है क्या जी जो व्यस्त हो गये?
2. कुछ दिनो के लिए बाहर चला गया था।
अब क्या अंदर हो गये? क्या जुर्म किया था?
3. बच्चों के इम्तिहान चल रहे है।
तो ब्लागिंग छोड़कर उनको पढ़ाओगे? फ़ेल करवाओगे?
4. घर का कम्प्यूटर/इंटरनैट कनैक्शन खराब हो गया था।
बगल के मिर्जाजी से आजकल पट नहीं रही है क्या? उनके यहां काहे नहीं गये?
5. एक प्रोजेक्ट की डैडलाइन है, उसके बाद ब्लॉगिंग करेंगे।
मतलब न प्रोजेक्ट करोगे ठीक न ब्लागिंग! दोनो एक साथ डेड!
6. अगले हफ़्ते से जरुर करेंगे।
दस हफ़्ते से यही सुन रहे हैं!
7. अगले महीने से जरुर करेंगे।
प्रियंकर ये बात तो साल भर से कह रहे हैं।
8. अरे यार! कल्लू मामा अपना कुकुर हमारे हवाले कर गए है, उसकी सेवा मे टाइम निकल जाता है।
ज्ञानजी की कुकुर नर्सरी में भेज दो। कालीन पे बैठेगा ऐश करेगा!
9. लच्छो ताई अपनी बिल्ली……
चली गई क्या वो भी दिल्ली!
10. घर बदल रहे है!
तो क्या ब्लाग भी बदलोगे? नया घर, नया ब्लाग?
11. ब्लॉगिंग करते करते ऑफिस मे धर लिए गए थे, इसलिए आजकल नयी नौकरी ढूंढ रहे है।
क्या ब्लागिंग छोड़ने से बेसी काबिल हो जाओगे और नौकरी मिल जायेगी?
12. यार बहुत ब्लॉगिंग हो गयी थी, थोड़ा आराम कर लें।
ब्लागिंग में कौन दंड-बैठक करना पड़ता है। ये भी तो आराम का मामला है!
13. अब रोज रोज क्या वही बकवास लिखे। कुछ क्लासिक सा घटित हो तब लिखेंगे।
ये भी तो बकवासै लिखे हो। अब कौन से क्लास में पढ़ोगे जो क्लासिक लिखोगे?
14. अरे यार जिस दिन वो (क्लासिक) घटना हुई ना, उस दिन हम ……..(ऊपर के कोई बहाने तलाश लें)
बहानेबाजी से क्लासिक बनने लगे तो हो चुका।
15. लोगों से झूठी तारीफ सुनते सुनते थक गए थे, इसलिए थोड़ा ब्रेक लिया है।
ब्रेक के बाद क्या लोग सच में तारीफ़ करने लगेंगे?
16. आत्मचिंतन चल रहा है।
ई कौंची होता है जी?
17. लोगों की आलोचनाओं से दु:खी हो गए थे।
सच को आलोचना समझोगे तो दुख लाजिमी है।
18. कोई पढता तो था नही, लिखकर भी क्या तीर मार लेते।
लिखना बंद करने से ही कौन सी तोप चल जायेगी?
19. विषयों का टोटा है।
लिखने के लिये विषय भी चाहिये होता है क्या?
20. आने वाली टिप्पणी और ब्लॉगिंग मे लगने वाले समय का अनुपात ठीक नही बैठ रहा था।
तो खुद टिप्पणियां करके अनुपात ठीक करो न!
21. बहुत दिनो से मिर्जा से मिलना नही हुआ।
मिर्जा से मिलने को डाक्टर ने मना किया है क्या?
22. इतने सारे विषय है, सोच नही पा रहे किस पर लिखे।
सबसे पहले विषय की लिस्ट बनाकर पोस्ट करो!
23. लोग बाग हमारे आइडिया चोरी कर ले गए है।
तुम भी कहीं से चुरा के ही लाये थे। आइडिये जैसे आये थे वैसे चले गये।
आगे के बहानों की पड़ताल मौका,मूड और मांग के मुताबिक की जायेगी।
मेरी पसंद
जरा नम्र हो जा मजा आयेगाये ऊंचाई कोई छू न पायेगा।
जो किस्मत में चलना लिखा है तो चल
ये मत देख चलकर कहां जायेगा।
अगर उसके जुल्मों का एहसास है
समझ ले वो तुझको भी तड़पायेगा।
अगर ख्वाब देखा तो तामीर कर
ये जज़्बा बुलंदी पर पहुंचायेगा।
जिसे बदगुमानी पे भी नाज है,
उसे दिल दिखा करके क्या पायेगा।
हैं आंखों में आंसू उसी के लिये
न देखेगा वो, तो तू पछतायेगा।
बड़ा बनना है तो हुनर सीख ले-
कि अपनो से बचकर निकल जायेगा।
डा.कन्हैयालाल नंदन
ब्रेक के बाद क्या लोग सच में तारीफ़ करने लगेंगे?” हा हा हा हा हा हा बात में दम है गारंटी किसी बात की नाही ….
और आपकी पसंद की इ दुई लाइना हमका भी भा गयी ……
जिसे बदगुमानी पे भी नाज है,
उसे दिल दिखा करके क्या पायेगा।
regards
ये ऊंचाई कोई छू न पायेगा।
bahoot achi post
जब आप नाराजगी जताओगे तो इनका रटा रटाया जवाब है, “हम तो मौज ले रहे थे।” अब आप ही बताओ, सुकुल की मौज मे अगले का तो जलूस निकल गया, है कि नही?
खैर पोस्ट सही लिखे हो, बाकी हिस्सा भी लिखो, हम मिर्जा के विचारों को भी पेश करने की कोशिश करते है।
वैसे आपने लिखा है “कम शब्दों में कहा जाये तो “……. ऊड़ी बाबा आप कब से कम शब्दो में कहने लगे???
रामराम.
अब आप समझ ही रहे थे कि बहाना झूठा है तो उसको लोगों के सामने लाने की क्या जरुरत थी
कहीं जीतू जी ने आपको भी तो कभी चूना नही लगाया था ?
ये ऊंचाई कोई छू न पायेगा।
हा हा नन्दन साहब की आड़ लेकर क्या गुल खिलाया ? फ़ुरसतिया साहब आप भी ना! हा हा हा। हँसा देते हो एकदम से।
इस चक्कर एक शेर बन गया है फ़ौरन जा कर पोस्ट कर रहा हूँ नहीं तो भूल जाऊँगा। आप ज़रूर पढ़ना। धन्यवाद।
नीरज
आपकी पसंद आज कुछ संदेश दे रही है…..
नंदन जी की कविता पसंद आई।
बहाने हजार है और शुक्लजी धोने में एक है…
‘मतलब न प्रोजेक्ट करोगे ठीक न ब्लागिंग! दोनो एक साथ डेड!’ दोनों नहीं चारो-पांचो सब एक साथ डेड
अभी तो यमुना तट के ‘बोट क्लब’ पर सोनू निगम नाइट देखने सपरिवार जा रहे हैं।
Q. आजकल कुछ लिख नहीं रहे..
A. क्या करें, फ़ुरसतिया का वैलेन्टाइन ब्लाग
किश्तों में पढ़ रहे हैं.. वह छोड़ें, तब न कुछ लिखेंगे ।
टिप्पणी तक तो कर न पाये !
कारण गंभीर हो सकते हैं -अब अविनाश भाई को देखिये ! क्या अब जल्दी वे उसी ठाठ बाट से मुहल्ला में हल्ला कर पायेंगे ? झन्झट में फस गए बिचारे -अब कुछ काल तक ब्लॉग न लिखने का असली कारण थोड़े ही बता पायेंगे ? तो बहानेबाजी की बात छोडिये आईये इन मामलों के असली कारणों की तलाश करें !
हम प्रेरित हो गये हैं नया पोस्ट लगाने को
जरा नम्र हो जा मजा आयेगा
ये ऊंचाई कोई छू न पायेगा।
-अति सुन्दर पंक्तियाँ मामा जी की.