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सुनि प्राब्लम चेलाराज की , गुरुवर भये फ़ौरन ही हलकान
By फ़ुरसतिया on September 5, 2009
आज शिक्षक दिवस है। लोग कहते हैं कि शिक्षा का स्तर गिर गया है। पतित हो गयी है शिक्षा व्यवस्था। हर तरफ़ ट्यूशन का बोलबाला है। जितने मुंह उससे चार गुनी बातें!
हर जागरूक व्यक्ति का हर मामले में कुछ न कुछ “मेरा तो यह मानना है” रहता है । जागरुक चाहे एक बार भले न हो लेकिन “मेरा तो यह मानना है” हरेक के पास होता है। हमारे पास भी है। तो इस मामलें में मेरा तो यह मानना है कि ट्यूशन का प्रचलन आज से नहीं है। यह तो सतयुग से चला आ रहा है। रामचन्द्रजी तक ट्यूशन पढ़ते थे। गोस्वामीजी ने लिखा भी है:
गुरु गृह गये पढ़न रघुराई। अल्पकाल विद्या सब पाई।
मतलब उस समय भी महीने भर में अंग्रेजी बोलना सीखें या हफ़्ते भर में झुर्रियां हटायें टाइप कोई अल्पकाल शिक्षा पैकेज चलता होगा। दशरथजी ने रामचन्द्रजी और अन्य भाइयों के लिये ले लिया होगा -एक के साथ तीन को फ़्री वाले पैकज में!
बहरहाल आज शिक्षा के गिरते स्तर पर रोने की कवायद अब क्या करें? तमाम प्राइवेट स्कूलों के गुरुजन को अकुशल श्रमिकों के न्यूनतम वेतनमान से भी कम पैसे मिलते हैं! बेचारे मन मार के स्कूल में रोते-गाते पढ़ाते होंगे तो उसमें स्तर कहां से लायें।
बहरहाल शिक्षा पर बहस तो शिक्षाविद करेंगे। हमारी तो औकात मेरा तो यह मानना है तक ही है। हम तो अपने गुरुजीको याद करते हुये कुछ उलटी-पुलटी चौपाई-दोहे टाइप आइटम आपके सामने पेश करने का प्रयास करता हूं। दोहे पुराने हैं चौपाईयां अभी-अभी लिख रहे हैं! जिगर थामकर मुलाहिजा फ़र्मायें। मात्रादोष की तरफ़ करने का मन करे तो जरूर करें लेकिन हमारा जबाब भी वही शायराना रहेगा- अब स्कूलों में इस्पेलिंग पर नम्बर नहीं कटते।
इस्कूल पढ़न गये मुन्नाभाई। उसका हाल लिखौं का भाई॥
दिन भर खेलैं गुल्ली डंडा । नित-नित पावैं जीरो अंडा ॥
होमवर्क नहि कबहूं करहीं। जब देखो तब करत बतकही॥
फ़िरि इम्तहान के दिन आये। मुन्ना-सर्किट के होश उड़ाये॥
अपन हाल डैडिहिं बतलावा। डैडी ने गुरुको काल कराया॥
सी द केस मोरे बेटवा केरा। करहु नीडफ़ुल फ़ौरन सेरा॥
नहिं विलंबु केहु कारण कीजै। करके फ़ौरन निज सेलरी लीजै॥
जौ रिजल्ट कुछ होय खराबा। सेलरी फ़िरि न मिलिहै बाबा॥
दिन भर खेलैं गुल्ली डंडा । नित-नित पावैं जीरो अंडा ॥
होमवर्क नहि कबहूं करहीं। जब देखो तब करत बतकही॥
फ़िरि इम्तहान के दिन आये। मुन्ना-सर्किट के होश उड़ाये॥
अपन हाल डैडिहिं बतलावा। डैडी ने गुरुको काल कराया॥
सी द केस मोरे बेटवा केरा। करहु नीडफ़ुल फ़ौरन सेरा॥
नहिं विलंबु केहु कारण कीजै। करके फ़ौरन निज सेलरी लीजै॥
जौ रिजल्ट कुछ होय खराबा। सेलरी फ़िरि न मिलिहै बाबा॥
सुनि प्राब्लम चेलाराज की , गुरुवर भये फ़ौरन ही हलकान।
दूध मंगाया पाव भर, पिया बिद चम्मच भर कम्प्लान॥
दूध मंगाया पाव भर, पिया बिद चम्मच भर कम्प्लान॥
कम्प्लान बाद कान्फ़िडेंस आवा। उसके साथ आइडिया आवा॥
दोनों से फ़िर गुरुजी बतियाये । कैसे लौंडे को पास करावैं॥
चर्चा करत करत दिन बीता। लंच डिनर का लगा पलीता॥
सब शार्टकट गुरुवर सोचा । सबमें मिला कछु न कछु लोचा॥
सोचा मोबाइल एक दिलवावैं। इम्तहान में नकल करवावैं॥
कीन्हा डेमो औ मिली निराशा। न मिला कनेक्शन न कोई आशा।
चिट जौ उनका कौनौ दिलवैहैं। लिखि-लिखि कविता पुनि-पुनि गैंहैं।
गुरुजी चर्चा दिन करके हारे। थक हारि के चिंतन कक्ष पधारे॥
दोनों से फ़िर गुरुजी बतियाये । कैसे लौंडे को पास करावैं॥
चर्चा करत करत दिन बीता। लंच डिनर का लगा पलीता॥
सब शार्टकट गुरुवर सोचा । सबमें मिला कछु न कछु लोचा॥
सोचा मोबाइल एक दिलवावैं। इम्तहान में नकल करवावैं॥
कीन्हा डेमो औ मिली निराशा। न मिला कनेक्शन न कोई आशा।
चिट जौ उनका कौनौ दिलवैहैं। लिखि-लिखि कविता पुनि-पुनि गैंहैं।
गुरुजी चर्चा दिन करके हारे। थक हारि के चिंतन कक्ष पधारे॥
इसके बाद जो हुआ वह निजता और गोपनीयता के उल्लंघन के डर से लिख नहीं रहा हूं। लेकिन फ़िर एक नयी पृथा शुरू हुई जिसे दुनिया आजकल ट्यूशन और कोचिंग के नाम से जानती है। इस विधा की एक ही खासियत होती है कि इसकी फ़ीस स्कूल की फ़ीस से अधिक होती है और इसमें पास होने की गारंटी होती है। अगर गारंटी पूरी हो गयी तो पैसे वसूल और न हो पायी तो कहा जाता है-फ़ैशन के दौर में गारंटी की अपेक्षा न करें।
बहरहाल आप परेशान न हों। आप ये दोहे पढ़िये। दो साल पहले लिखे गये थे लेकिन मजा बरकरार है अभी भी। पढ़ लीजिये। मजा न आये तो वापस कर दीजिये। हम चेंज कर देंगे।
- सतगुरु हमसे रीझिकर, एक कह्या प्रसंग,
पढ़ना तो फ़िर होयगा, चलो सनीमा संग। - गुरु कुम्हार शिष कुम्भ है, गढ़-गढ़ काढै खोट,
नोट लाऒ ट्यूशन पढ़ो, मिट जायें सब खोट। - गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांव,
नये जमाने का चलन, अब हेलो, टेक केयर, बाय। - सब धरती कागद करूं,लेखन सब बनराय,
सब जग के लफ़ड़े जोड़ लूं, गुरु गुन लिखा न जाये। - क्लास खत्म, घंटा बजा, गुरु प्रकट भे धरे मोबाइल कान,
सचिन संचुरी पीटि ले , तब शुरू किया जाये व्याख्यान। - चेले बहुत पढ़ा लिये अब चेली भी लाओ साथ,
मटुकनाथ सुनि चहक गये, थामा शिष्या(जूली) का हाथ। - डांटत-डांटत सुन री सखी, गुरुवर बहुत गये गरमाय,
चेहरा भट्टी सा लाल है, क्या चाय चढ़ायी जाये। - गुरुवर ऐसा चाहिये, जो हरदम होय सहाय,
बिनु आये हाजिर करे, और फिरि नकलौ देय कराय। - पढ़त-पढ़ावत दिन गया, गया न मनका फ़ेर,
अब तो परचा आउट करो, गुरुजी काहे करत हो देर। - राम-राम कर सब दिन गया, हम रटा राम का नाम,
गुरुजी ने झांसा दे दिया, पूछा- कौन गली गये श्याम! - गुरुवर ऐंठ-ऐंठे फ़िरत , मारत चेले को कंटाप,
चेला शिक्षामंत्री भवा, गुरुजी बोले-क्या लेंगे साहब आप! - पानी बरसत देखकर, गुरु का मन बहुत गया हरषाय,
‘रेनी डे’ कर क्लास में, गरम पकौड़ी रहे छ्नवाय। - गुरुवर आवत देखि के, लड़िकन करी पुकार,
लगता है अब पिट जायेंगे, है गई इंडिया हार। - काल्ह करे सो आजकर, आज करे सो अब
सरजी, परचा आउट करो, बहुरि करोगे कब? - चेले ऐसे चाहिये, जिससे गुरुवर को हो आराम,
राशन, सब्जी लाता रहे, करे सबरे घर के काम। - सतगुरु की महिमा अनत, अनत किया उपकार,
हमें बचाइन प्रेम से, खुद पैर में लिहिन(वही)कुल्हाड़ी मार। - गुरुवर पहुंचे बोर्ड पर, लगे सिखावन ज्ञान,
अटक गये अधबीच में, मुस्काकर बोले-चलो खिलायें पान! - राष्ट्रनिर्माता बन-बैठि के, गुरुवर बमचक दिहिन मचाय,
राजनीति में पैठि के, नारन ते आसमानौ दिहिनि गुंजाय। - गुरु-चेलन की चक्की देखकर, दिये ‘फुरसतिया’ रोय,
दो पाटन के बीच में, अब ज्ञान बचा न कोय।
हिन्दुस्तानी मास्टरी की लीला अपरम्पार
अब स्कूलों में इस्पेलिंग पर नम्बर नहीं कटते
चेले बहुत पढ़ा लिये अब चेली भी लाओ साथ,
मटुकनाथ सुनि चहक गये, थामा शिष्या(जूली) का हाथ
नीरज
लेकिन सच्ची और मनोरन्जक पोस्ट. नीरज जी ने तो आपको तुलसीदास की उपमा दे ही दी है, तो क्यों न एक आधुनिक रामायण भी छपवा ही लें? शानदार पोस्ट. सभी गुरुओं को पढाने लायक.
गुरूजी कि जय हो !:)
दूध मंगाया पाव भर, पिया बिद चम्मच भर कम्प्लान॥
बिन असिस्टेण्ट और बिना सीधा-पिसान के क्या पढाई?
हम अईसेहि आपको गुरु थोड़े ही बनाये हैं !
गुरु-दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
( देर से सही )
कहे क पड़ी ,’ गुरु जी वही ,जो पंडित जी दिलवांय” .
मजा आ गया पढ़ कर
“हो चुकी एमएससी, अब क्यों ये सब ?” मुझसे मेरी एक जूनियर ने पूछा।
“अभी पीएचडी तो यहीं से करनी है… ” मैने कह दिया… उस छोटी सोच वाली प्राणी को भला कैसे समझाती कि जब मै टीचर्स के पैरो में झुकी और उन्होंने मेरे सर पे हाथ रख के जो अमुल्य शब्द कहे वो मेरे लिये सफ़लता के रहस्यमयी फ़ोर्मुले के महत्वपूर्ण तत्व हैं।
Thank you.
दोहे-चौपाई पढ़कर मन हरियर हो गया…
सतीश चंद्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..जेएनयू दही आंदोलन
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..नन्दी की पीठ का कूबड़ (बाल कहानी)- दामोदर धर्मानंद कोसाम्बी
वैसे चौपाई से दोहे ही बढिया हैं।
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..नन्दी की पीठ का कूबड़ (बाल कहानी)- दामोदर धर्मानंद कोसाम्बी
प्राइवेट स्कूलों के अध्यापकों का खूब शोषण होता है. ये बात बिलकुल सच है.
aradhana की हालिया प्रविष्टी..Freshly Pressed: Editors’ Picks for August 2012
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..अजनबी, तुम जाने पहचाने से लगते हो !!!
नया चलन बनाओ , इस कलयुग में , गुरु उन्नीसा , न टूटी परंपरा ,न गुरु का उपहास