http://web.archive.org/web/20140419213536/http://hindini.com/fursatiya/archives/678
rowse: Home / पुरालेख / मुझको बड़ा आदमी बनना है
rowse: Home / पुरालेख / मुझको बड़ा आदमी बनना है
मुझको बड़ा आदमी बनना है
By फ़ुरसतिया on September 3, 2009
लड़की वैसाखियों के सहारे धीरे-धीरे चलती है। आहिस्ता, आहिस्ता सीढ़ियां
उतरती है। पहले एक पैर नीचे रखती है फ़िर आहिस्ते से दूसरा। सीढ़ियां उतर कर
छुटकी सी लड़की उचक-उचककर बैसाखियों के सहारे सड़क पर चलती चली जाती है।
लड़की एक दिन कारीडोर में दिख जाती है। बतियाते हुये उसे अपने कमरे में ले आता हूं। वह कुर्सी पर बैठती है। एक वैसाखी को एक तरफ़ और दूसरी को दूसरी तरफ़ से निकालती है फ़िर दोनों बैसाखियां एक तरफ़ रख लेती है। कुर्सी के सहारे।
बताती है- “मैं घर में सबसे छोटी थी। घर में सब लोग मुझे खूब प्यार करते हैं। एक बार बीमार पड़ी तो दवा रिएक्ट कर गई। उसके बाद से एक पैर जांघ के नीचे से सुन्न है। डाक्टर ने कहा था कि कुछ दिन पैर में कैलीपर पहने रहोगी तो ठीक हो जायेगा। कैलीपर पहनने में दर्द करते थे तो मैं रोने लगती थी। घर वाले मुझे बहुत प्यार करते थे। रोने पर कैलीपर निकाल देते थे। डाक्टर कहते हैं कि अगर मैं कैलीपर लगातार पहने रहती तो शायद पैर अब तक ठीक हो जाते।”
ज्यादा प्यार के साइड इफ़ेक्ट ऐसे भी होते हैं!
वह कम्प्यूटर सांइस में डिप्लोमा करके एक साल की ट्रेनिंग के लिये आई है फ़ैक्ट्री में। उसकी यूपीटीयू में अच्छी रैंक आई है। अब सीधे बीटेक के दूसरे साल में उसका एडमिशन होना है। कुछ दिन में चली जायेगी। आगे पढ़ने!
बच्ची का नाम है सोनी पाण्डेय! उमर करीब उन्नीस साल! कद पांच फ़ुट के करीब! हौसले आसमान छूते हैं! तमन्ना है- बहुत बड़ा आदमी बनना।
बड़ा आदमी बनके क्या करोगी?- मैं पूछता हूं!
विदेश में जाकर अपना इलाज में करवाऊंगी। मुझे लगता है कि वहीं मेरा इलाज हो सकता है। पढ़ लिखकर मैं विदेश जाऊंगी और अपना इलाज करवाऊंगी।
यूपीटीयू में उसकी रैंक 59 वीं है। पिछली रैंकिंग के अनुसार उसको कोई न कोई सरकारी इंजीनियरिंग कालेज मिल जाना चाहिये। बस कुछ दिन की ही ट्रेनिंग बाकी है। फ़िर तो उसको चले जाना है आगे पढ़ाई के लिये। उसको बड़ा आदमी बनना है।
बताती है कि उसकी ट्रेनिंग कम्प्यूटर की है लेकिन यहां उसको कम्प्यूटर मिल नहीं पाता । न प्रोग्रामिंग का शौक पूरा कर पाती है न नेट-सर्फ़िंग कर पाती है। दिन भर बोर हो जाती है। शाम को घर में अपने लैपटाप पर ही कुछ करने का मौका मिलता है।
जिसको बड़ा आदमी बनना है उसका बोर होना ठीक नहीं।
मैं अपने सहायक से कहता हूं- गुप्ताजी, ये सोनी को जब कम्प्यूटर पर जब मन चाहे काम कर लेने दिया करिये।
सोनी से कहता हूं- तुमको जब मन आये यहां आया करो। नेट पर भी जो काम करना करना हो कर लिया करो। लेकिन जब बड़ा आदमी बन जाना तो हमको भी याद रखना।
सोनी अपना सर दांये-बायें हिलाती है। सर के बाल इधर-उधर हिलते हैं। मुस्कराती हुये कहती है- क्यों नहीं याद करेंगे। जरूर याद करेंगे।
सोनी अब लगभग रोज आती है। पता चलता है कि पिताजी जौनपुर में रहते हैं। यहां एक घर में किराये पर रहती है। टेम्पो से आती-जाती है। अक्सर सिंह साहब उसके घर से उसको ले आते हैं और वापस छोड़ देते हैं। सिंह साहब भी उसको पहले से नहीं जानते। यहीं परिचय हुआ। शायद अपनी तरफ़ की बच्ची होने के चलते उसे अपने-आप घर से लाने-ले जाने लगे। पिछले माह रिटायर होने के बाद भी सोनी को लाने छोड़ने का उनका क्रम बना रहा।
सोनी चाय-काफ़ी नहीं पीती। अच्छी बच्ची है। उसको चाकलेट बहुत पसंद है। उसको चाकलेट खिलाने का वायदा किया जाता है। वह मुस्कराती है। एडवांस में थैंक्यू सर कहती है।
गाने का शौक है बच्ची को। पुराने गाने गुनगुनाती है कभी-कभी। उसके माध्यम से पता चलता है ये वाली मैम भी गाती हैं, वो वाली बहुत अच्छा गाती हैं।
उसको ब्लाग के बारे में बताया जाता है। कंचन के बारे में लिखी पोस्ट दिखायी जाती है। वह कमेंट लिखती है:
मुझे पता ही नहीं था कि कंचन अच्छी दीदी हैं! हौसला भीं बंधाती हैं! लोग तो उनको हड़काऊ भी कहते हैं!
अब सोनी का अपना ब्लाग बनता है। ब्लाग बना कर कुछ लिखती नहीं। कमेंट का इंतजार करती है। दो दिन बाद शिकायत भी- सर, अभी तक कोई कमेंट नहीं आया मेरे ब्लाग पर।
मैं बताता हूं- अरे बेटा, कुछ लिखोगी तब तो आयेगा कमेंट।
अगले दिन वह कुछ लिखती है। मैं उसी के सामने कमेंट करता हूं। वह खुश हो जाती है। सर दायें-बायें हिलता है। सर के बाल दायें-बायें हिलते हैं।
सोनी की कौन्सेलिंग होती है। न जाने क्या हुआ इस बार 59 वीं रैंक पर भी कोई सरकारी कालेज नहीं मिलता। दुखी है बच्ची। रुमाल से आंखे पोंछती है।
अरे दुखी क्यों होती हो? तुमको तो बड़ा आदमी बनना है। इत्ती सी बात से परेशान काहे होती हो भाई! बड़े आदमी कहीं ऐसे रोते हैं!- मैं कहता हूं!
सर, अब मैं बड़ा आदमी नहीं बन पाउंगी! मैं आगे पढ़ नहीं पाऊंगी- सोनी दुखी होते हुये कहती है।
अरे कैसे नहीं बनोगी! तुमको बनना है। बड़ा आदमी नहीं बनोगी तो हमको कौन पूछेगा। एडमिशन यहां नहीं हुआ तो कहीं और होगा! -हम हौसला बंधाते हैं।
सोनी को विश्वास था कि उसे सरकारी कालेज में एडमिशन मिल जायेगा। इसीलिये प्राइवेट कालेज के नाम नहीं भरे। अब वह उदास है कि वह ओवरकान्फ़िडेन्ट क्यों हो गयी? अब प्राइवेट कालेज भी सब भर गये होंगे।
मैं अपने दोस्त इलाहाबाद के प्रोफ़ेसर तिवारी से अच्छे प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेजों के बारे के नाम पता करता हूं! उसको बताता हूं! उन कालेजों के बारे में नेट पर देखा जाता है।
सोनी को बड़ा आदमी बनना ही है।
अगले दिन कौन्सेलिंग होनी है। सोनी अपने जीजा जी के साथ कौन्सलिंग के लिये गयी है। दोपहर को दफ़्तर की ही मिसेज कपूर का फ़ोन आता है- सर, सोनी का फ़ोन नम्बर आपके पास है क्या? आज उसकी कौन्सिलिंग होनी है। यादव मैडम उसे वहां खोज रही हैं। वो वहां दिखी नही। कई लोगों को सोनी की चिंता है। सब उससे यहीं पिछले एक माह में मिले हैं!
पता करते हैं तो सोनी कौन्सेलिंग कराकर घर जा चुकी है। रिजल्ट अगले दिन आयेगा!
अगले दिन पता है चलता है सोनी का एडमिशन गाजियाबाद के एक अच्छे माने जाने वाले कालेज में हो गया है। वो सबसे मिलने आई है। थोड़ा दुखी है कि सरकारी कालेज में एडमिशन नहीं हुआ लेकिन संतोष है कि आगे की पढ़ाई पूरी होगी।
यहां कैसा लगा इत्ते दिन ? मैं सवाल पूछता हूं!
बहुत अच्छा लगा। सब लोग बहुत अच्छे हैं! सबने मुझे बहुत सहयोग किया। मैं सबको मिस करूंगी। सबसे ज्यादा आपको मिस करूंगी।
मुझे सबसे ज्यादा क्यों मिस करोगी?- मैं मुस्कराता हूं!
आपने मुझे इत्ता हौसला दिया। इत्ता मोरल बूस्ट अप किया। आप बहुत अच्छे हैं इसलिये आपको सबसे ज्यादा मिस करूंगी।
जब बड़ा आदमी बन जाओगी तब भी मिस करोगी? -मैं पूछता हूं!
हां, हमेशा! आप जब कहीं दूसरी जगह जाइयेगा तो अपना पता मुझे जरूर बताइयेगा।
मुझे याद आता है कि मैंने उससे वायदा किया था कि उसे फ़िर से एक बार हड्डी के डाक्टर को दिखाना है। पिछले दस-पन्द्रह साल में विज्ञान ने जाने कित्ती तरक्की की होगी। शायद कोई इलाज निकल आया हो उसको वैसाखियों से निजात दिलाने के लिये। अपनी काहिली पर शर्मिंदगी होती है।
सोनी के लिये तुरंत उसकी पसंदीदा चाकलेट मंगवाई जाती है। जो चीज उसके लिये पिछले महीने भर में न आ पाई वो दो मिनट में आ जाती है। एक के बदले दो चाकलेट। एक शायद देरी के कारण ब्याज के रूप में मिली है।
दो दिन बाद सोनी को अपने नये कालेज में एडमिशन लेना है। उसे बड़ा आदमी बनना है।
मुझे लगता है कि खुदा ने अगर दुखों की कोई जीरोक्स मशीन बनाई भी है तो इंसान भी कम नहीं है। अपने जुगाड़ से हौसलों की रेजोग्राफ़ मशीन बना लेता है।
हौसलों की रेजोग्राफ़ मशीन के सामने दुखों की जीराक्स मशीन को कौन पूछता है!
इस घने पेड़ के नीचे, सांझ ढले,
कोई प्यारा सा गीत गुनगुनायें
सन्नाटा कुछ टूटे कुछ मन बहले।
गीतों की ये स्वर-ताल मयी लड़ियां,
जुड़ती हैं जिनसे हृदयों की कड़ियां,
कोसों की वे दूरियां सिमटती हैं,
हंसते-गाते कटती दुख की घड़ियां।
भीतर का सोया वृंदावन जागे,
वंशी से ऐसा वेधक स्वर निकले।
माना जीवन में बहुत-बहुत तम है,
पर उससे ज्यादा तम का मातम है,
दुख हैं, तो दुख हरने वाले भी हैं,
चोटें हैं, तो चोटों का मरहम है,
काली-काली रातों में अक्सर,
देखे जग ने सपने उजले-उजले।
इस उपवन में बहार तब आती है,
पीड़ा ही जब गायन बन जाती है,
कविता अभाव के काटों में खिलती,
सुविधा की सेजों पर मुरझाती है;
हमसे पहले भी कितने लोग हुये,
जो अंधियारों के बनकर दीप जले।
आओ युग के संत्रासों से उबरें,
मन की अभिशप्त उसासों से उबरें,
रागों की मीठी छुवनों से शीतल
सुधियों की लहरों में डूबे-उछरें;
फिर चाहें प्राणों में बिजली कौंधे,
फिर चाहे नयनों में सावन मचले।
-उपेंद्र, कानपुर।
लड़की एक दिन कारीडोर में दिख जाती है। बतियाते हुये उसे अपने कमरे में ले आता हूं। वह कुर्सी पर बैठती है। एक वैसाखी को एक तरफ़ और दूसरी को दूसरी तरफ़ से निकालती है फ़िर दोनों बैसाखियां एक तरफ़ रख लेती है। कुर्सी के सहारे।
बताती है- “मैं घर में सबसे छोटी थी। घर में सब लोग मुझे खूब प्यार करते हैं। एक बार बीमार पड़ी तो दवा रिएक्ट कर गई। उसके बाद से एक पैर जांघ के नीचे से सुन्न है। डाक्टर ने कहा था कि कुछ दिन पैर में कैलीपर पहने रहोगी तो ठीक हो जायेगा। कैलीपर पहनने में दर्द करते थे तो मैं रोने लगती थी। घर वाले मुझे बहुत प्यार करते थे। रोने पर कैलीपर निकाल देते थे। डाक्टर कहते हैं कि अगर मैं कैलीपर लगातार पहने रहती तो शायद पैर अब तक ठीक हो जाते।”
ज्यादा प्यार के साइड इफ़ेक्ट ऐसे भी होते हैं!
वह कम्प्यूटर सांइस में डिप्लोमा करके एक साल की ट्रेनिंग के लिये आई है फ़ैक्ट्री में। उसकी यूपीटीयू में अच्छी रैंक आई है। अब सीधे बीटेक के दूसरे साल में उसका एडमिशन होना है। कुछ दिन में चली जायेगी। आगे पढ़ने!
बच्ची का नाम है सोनी पाण्डेय! उमर करीब उन्नीस साल! कद पांच फ़ुट के करीब! हौसले आसमान छूते हैं! तमन्ना है- बहुत बड़ा आदमी बनना।
बड़ा आदमी बनके क्या करोगी?- मैं पूछता हूं!
विदेश में जाकर अपना इलाज में करवाऊंगी। मुझे लगता है कि वहीं मेरा इलाज हो सकता है। पढ़ लिखकर मैं विदेश जाऊंगी और अपना इलाज करवाऊंगी।
यूपीटीयू में उसकी रैंक 59 वीं है। पिछली रैंकिंग के अनुसार उसको कोई न कोई सरकारी इंजीनियरिंग कालेज मिल जाना चाहिये। बस कुछ दिन की ही ट्रेनिंग बाकी है। फ़िर तो उसको चले जाना है आगे पढ़ाई के लिये। उसको बड़ा आदमी बनना है।
बताती है कि उसकी ट्रेनिंग कम्प्यूटर की है लेकिन यहां उसको कम्प्यूटर मिल नहीं पाता । न प्रोग्रामिंग का शौक पूरा कर पाती है न नेट-सर्फ़िंग कर पाती है। दिन भर बोर हो जाती है। शाम को घर में अपने लैपटाप पर ही कुछ करने का मौका मिलता है।
जिसको बड़ा आदमी बनना है उसका बोर होना ठीक नहीं।
मैं अपने सहायक से कहता हूं- गुप्ताजी, ये सोनी को जब कम्प्यूटर पर जब मन चाहे काम कर लेने दिया करिये।
सोनी से कहता हूं- तुमको जब मन आये यहां आया करो। नेट पर भी जो काम करना करना हो कर लिया करो। लेकिन जब बड़ा आदमी बन जाना तो हमको भी याद रखना।
सोनी अपना सर दांये-बायें हिलाती है। सर के बाल इधर-उधर हिलते हैं। मुस्कराती हुये कहती है- क्यों नहीं याद करेंगे। जरूर याद करेंगे।
सोनी अब लगभग रोज आती है। पता चलता है कि पिताजी जौनपुर में रहते हैं। यहां एक घर में किराये पर रहती है। टेम्पो से आती-जाती है। अक्सर सिंह साहब उसके घर से उसको ले आते हैं और वापस छोड़ देते हैं। सिंह साहब भी उसको पहले से नहीं जानते। यहीं परिचय हुआ। शायद अपनी तरफ़ की बच्ची होने के चलते उसे अपने-आप घर से लाने-ले जाने लगे। पिछले माह रिटायर होने के बाद भी सोनी को लाने छोड़ने का उनका क्रम बना रहा।
सोनी चाय-काफ़ी नहीं पीती। अच्छी बच्ची है। उसको चाकलेट बहुत पसंद है। उसको चाकलेट खिलाने का वायदा किया जाता है। वह मुस्कराती है। एडवांस में थैंक्यू सर कहती है।
गाने का शौक है बच्ची को। पुराने गाने गुनगुनाती है कभी-कभी। उसके माध्यम से पता चलता है ये वाली मैम भी गाती हैं, वो वाली बहुत अच्छा गाती हैं।
उसको ब्लाग के बारे में बताया जाता है। कंचन के बारे में लिखी पोस्ट दिखायी जाती है। वह कमेंट लिखती है:
kanchan di k jivan k bare me pad kar hume yeh sikh mili ki, hume kathinaiyo se darna nahi chahiye balki uska dat kr mukabla karna chahiye. shukla sir, aapne bahut hi sahaj language me likha hai aapne kanchn di k bae me.kanchan di hum sab ko ashirwad dijiyeकंचन का फोन नम्बर लेकर उससे बतियाती है। बताती है- दीदी बहुत अच्छी हैं! हमको खूब हौसला बंधाया।
मुझे पता ही नहीं था कि कंचन अच्छी दीदी हैं! हौसला भीं बंधाती हैं! लोग तो उनको हड़काऊ भी कहते हैं!
अब सोनी का अपना ब्लाग बनता है। ब्लाग बना कर कुछ लिखती नहीं। कमेंट का इंतजार करती है। दो दिन बाद शिकायत भी- सर, अभी तक कोई कमेंट नहीं आया मेरे ब्लाग पर।
मैं बताता हूं- अरे बेटा, कुछ लिखोगी तब तो आयेगा कमेंट।
अगले दिन वह कुछ लिखती है। मैं उसी के सामने कमेंट करता हूं। वह खुश हो जाती है। सर दायें-बायें हिलता है। सर के बाल दायें-बायें हिलते हैं।
सोनी की कौन्सेलिंग होती है। न जाने क्या हुआ इस बार 59 वीं रैंक पर भी कोई सरकारी कालेज नहीं मिलता। दुखी है बच्ची। रुमाल से आंखे पोंछती है।
अरे दुखी क्यों होती हो? तुमको तो बड़ा आदमी बनना है। इत्ती सी बात से परेशान काहे होती हो भाई! बड़े आदमी कहीं ऐसे रोते हैं!- मैं कहता हूं!
सर, अब मैं बड़ा आदमी नहीं बन पाउंगी! मैं आगे पढ़ नहीं पाऊंगी- सोनी दुखी होते हुये कहती है।
अरे कैसे नहीं बनोगी! तुमको बनना है। बड़ा आदमी नहीं बनोगी तो हमको कौन पूछेगा। एडमिशन यहां नहीं हुआ तो कहीं और होगा! -हम हौसला बंधाते हैं।
सोनी को विश्वास था कि उसे सरकारी कालेज में एडमिशन मिल जायेगा। इसीलिये प्राइवेट कालेज के नाम नहीं भरे। अब वह उदास है कि वह ओवरकान्फ़िडेन्ट क्यों हो गयी? अब प्राइवेट कालेज भी सब भर गये होंगे।
मैं अपने दोस्त इलाहाबाद के प्रोफ़ेसर तिवारी से अच्छे प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेजों के बारे के नाम पता करता हूं! उसको बताता हूं! उन कालेजों के बारे में नेट पर देखा जाता है।
सोनी को बड़ा आदमी बनना ही है।
अगले दिन कौन्सेलिंग होनी है। सोनी अपने जीजा जी के साथ कौन्सलिंग के लिये गयी है। दोपहर को दफ़्तर की ही मिसेज कपूर का फ़ोन आता है- सर, सोनी का फ़ोन नम्बर आपके पास है क्या? आज उसकी कौन्सिलिंग होनी है। यादव मैडम उसे वहां खोज रही हैं। वो वहां दिखी नही। कई लोगों को सोनी की चिंता है। सब उससे यहीं पिछले एक माह में मिले हैं!
पता करते हैं तो सोनी कौन्सेलिंग कराकर घर जा चुकी है। रिजल्ट अगले दिन आयेगा!
अगले दिन पता है चलता है सोनी का एडमिशन गाजियाबाद के एक अच्छे माने जाने वाले कालेज में हो गया है। वो सबसे मिलने आई है। थोड़ा दुखी है कि सरकारी कालेज में एडमिशन नहीं हुआ लेकिन संतोष है कि आगे की पढ़ाई पूरी होगी।
यहां कैसा लगा इत्ते दिन ? मैं सवाल पूछता हूं!
बहुत अच्छा लगा। सब लोग बहुत अच्छे हैं! सबने मुझे बहुत सहयोग किया। मैं सबको मिस करूंगी। सबसे ज्यादा आपको मिस करूंगी।
मुझे सबसे ज्यादा क्यों मिस करोगी?- मैं मुस्कराता हूं!
आपने मुझे इत्ता हौसला दिया। इत्ता मोरल बूस्ट अप किया। आप बहुत अच्छे हैं इसलिये आपको सबसे ज्यादा मिस करूंगी।
जब बड़ा आदमी बन जाओगी तब भी मिस करोगी? -मैं पूछता हूं!
हां, हमेशा! आप जब कहीं दूसरी जगह जाइयेगा तो अपना पता मुझे जरूर बताइयेगा।
मुझे याद आता है कि मैंने उससे वायदा किया था कि उसे फ़िर से एक बार हड्डी के डाक्टर को दिखाना है। पिछले दस-पन्द्रह साल में विज्ञान ने जाने कित्ती तरक्की की होगी। शायद कोई इलाज निकल आया हो उसको वैसाखियों से निजात दिलाने के लिये। अपनी काहिली पर शर्मिंदगी होती है।
सोनी के लिये तुरंत उसकी पसंदीदा चाकलेट मंगवाई जाती है। जो चीज उसके लिये पिछले महीने भर में न आ पाई वो दो मिनट में आ जाती है। एक के बदले दो चाकलेट। एक शायद देरी के कारण ब्याज के रूप में मिली है।
दो दिन बाद सोनी को अपने नये कालेज में एडमिशन लेना है। उसे बड़ा आदमी बनना है।
मुझे लगता है कि खुदा ने अगर दुखों की कोई जीरोक्स मशीन बनाई भी है तो इंसान भी कम नहीं है। अपने जुगाड़ से हौसलों की रेजोग्राफ़ मशीन बना लेता है।
हौसलों की रेजोग्राफ़ मशीन के सामने दुखों की जीराक्स मशीन को कौन पूछता है!
मेरी पसन्द
साथी आओ कुछ देर ठहर जायें,इस घने पेड़ के नीचे, सांझ ढले,
कोई प्यारा सा गीत गुनगुनायें
सन्नाटा कुछ टूटे कुछ मन बहले।
गीतों की ये स्वर-ताल मयी लड़ियां,
जुड़ती हैं जिनसे हृदयों की कड़ियां,
कोसों की वे दूरियां सिमटती हैं,
हंसते-गाते कटती दुख की घड़ियां।
भीतर का सोया वृंदावन जागे,
वंशी से ऐसा वेधक स्वर निकले।
माना जीवन में बहुत-बहुत तम है,
पर उससे ज्यादा तम का मातम है,
दुख हैं, तो दुख हरने वाले भी हैं,
चोटें हैं, तो चोटों का मरहम है,
काली-काली रातों में अक्सर,
देखे जग ने सपने उजले-उजले।
इस उपवन में बहार तब आती है,
पीड़ा ही जब गायन बन जाती है,
कविता अभाव के काटों में खिलती,
सुविधा की सेजों पर मुरझाती है;
हमसे पहले भी कितने लोग हुये,
जो अंधियारों के बनकर दीप जले।
आओ युग के संत्रासों से उबरें,
मन की अभिशप्त उसासों से उबरें,
रागों की मीठी छुवनों से शीतल
सुधियों की लहरों में डूबे-उछरें;
फिर चाहें प्राणों में बिजली कौंधे,
फिर चाहे नयनों में सावन मचले।
-उपेंद्र, कानपुर।
शिब कुमार मिश्र: शुक्रिया। लिख तो रहे हैं! अऊर लिखें का?
स्वप्नादर्शी: आपकी प्रतिक्रिया के लिये शुक्रिया।
regards
सीमाजी: शुक्रिया। आपकी दुआयें और शुभकामनायें उसके जरूर काम आयेंगी!
सोनी को हमारी भी शुभकामनाएं,
हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि अब जो हो गया सो हो गया, पर अब सोनी को बड़ा आदमी अवश्य बनाएं,
आप सोनी से कहना हमें भी याद करे बड़ा आदमी बनकर !
विवेक: इसमें साहित्य कहां से दिख गया भैये। सोनी से तुम्हारा संदेशा बता दिया है। उसने कहा है कि पक्का याद रखेगी लेकिन बतौर निशानी चाकलेट खिलानी पड़ेगी !
इसी विषय पर आपकी और अमर जी की प्रतिक्रिया में कितना अंतर है ..डाक्टर साहब सुन रहे हैं न ?:-)
लवली: शुक्रिया।
वन्दनाजी: शुक्रिया। सोनी का हौसला तो बढ़ा हुआ ही है। आपके आशीर्वाद से इरादे और बुलंद होंगे।
प्यारी पोस्ट.
घोस्ट बस्टर: शुक्रिया।
दरभंगिया: शुक्रिया!
निदा साहब ठीक ही ना कहते हैं…
” जितना बीते आप पर उतना ही सच मान.”
आप एक अच्छे इंसान भी हैं… यह साबित होता है और थोडा रो कर दिल साफ़ भी हो जाता है… वो क्या है ना की हमने भी ट्रेजिक एंड ही ज्यादा देखे है वो ऐसे किस्से ड्रामाटिक रूप से भावुक कर जाते हैं और दिल में लगान का गीत बजने लगता है..
सागर भाई! शुक्रिया। आपकी संवेदनशीलता को सलाम! !
सोनी जो सोणी है…खूब बड़ी मानव बने….
संजय बेंगाणी: शुक्रिया। छप तो गयी न! दुनिया भर में पढ़ भी ली लोगों ने। और का चईये!
द्विवेदीजी: शुक्रिया। सोनी खुश होगी आपका आशीष पाकर
इनकी ख्वाहिशें पूरी हों |
जानकर ख़ुशी हुई की आप सिर्फ अच्छा लिखते ही नहीं नेक कार्य भी करते रहते हैं |
अर्कजेशजी: शुक्रिया। नेक काम अगर कोई है तो हम सब अपनी खुशी के लिये करते हैं! किसी का हौसला बढ़ाने से खुद का हौसला बढ़ता है।
. कभी हमने भी अपनी पोस्ट आदमी में मगर जिंदा शिकायते रही में यूँ लिखा था ……
इस वक़्त हर आदमी के पास शिकायतों का एक पुलंदा है ….सिलेवार लगाई गयी तकलीफों सहेज कर रखी है ..ये तकलीफे मगर इस “टेक्नोलोजी सक्षम” समाज को धीरे धीरे अंधेरे गलियारे की ओर धकेल रही है ,ऐसा गलियारा जिसके दोनों ओर सजे गमलों में केक्टस लगे है ..नकारात्मकता के केक्टस …..
एक वाक्य मुझे आज भी याद है …..
लकड़ी की कुछ खपच्चियों को जोड़कर बनायी हुई जुगाड़ की एक नाव को चलाकर ८-१० साल की कुछ लड़किया रोजाना एक नदी को पार कर स्कूल जाती है ,राजिस्थान के इस गाँव में केवल दो लड़किया ही दसवी पास है…..NDTV की पत्रकार जब उनमे से एक बच्ची से पूछती है की वो क्या बनना चाहती है तो वो शर्माते हुए जवाब देती है “टीचर ”
शुक्र है हौसलों की कोई उम्र नही होती ……..
पर कमीना दिल …..कई बार उन दुखो को भी सूंघ लेता है जो दिखते नहीं ….या दुनिया जिन्हें दुःख नहीं मानती ….
दुखो की जीरोक्स मशीन भी कुछ लोगो के हिस्से आती है …कुछ के नहीं….हमारी यही दुआ है ये किसी के हिस्से न आये ….
वन्दनाजी: शुक्रिया। प्रमेंद्रजी कानपुर के बहुत अच्छे गीतकार हैं। उनकी कई कवितायें बहुत अच्छी हैं। एक है:
विजय गौड़: शुक्रिया!
अभिषेक: नोट कर लिया और सोनी को बता भी दिया। कह रही थी इत्ते सारे लोगों का आशीर्वाद है तो अब तो सफ़ल होना ही है।
बेहतरीन पोस्ट!
नितिन बागला: शुक्रिया।
पर उससे ज्यादा तम का मातम है,
दुख हैं, तो दुख हरने वाले भी हैं,
चोटें हैं, तो चोटों का मरहम है,
कविता की इन्ही पंक्तियों को दुहराना चाहती हूँ…..
मैंने तो आजतक अपने जीवन में यही देखा है कि ईश्वर यदि किसी के कोई सामर्थ्य छींटे हैं तो उसके बदले उससे पता नहीं कई गुना बड़ा कोई दूसरा ऐसा सामर्थ्य दे देते हैं,जो सामान्य स्वस्थ शरीर वाले मनुष्य के पास नहीं होते…
कद शरीर की होती कहाँ है,कद तो हौसलों की होती है …
रंजनाजी: आपकी बात सच है-कद तो हौसलों की होती है …। हौसले से बहुत कुछ कर लेता है व्यक्ति।
और इस लड़की – सोनी को बहुत शुभकामनायें!
ज्ञानजी: बच्ची के लिये आपकी शुभकामनायें बहुत हैं! प्रशंसा तो आप हमारी सदैव करते रहते हैं!
मिसिरजी, कोई अपेक्षा नहीं है। किसी के प्रति सहज सदाशयता प्रदर्शित करना कोई फ़्यूचर इन्वेस्टमेंट नहीं है। जैसे ही आप कोई अच्छा माना जाने वाला आचरण करते हैं आपको तुरन्त अच्छा लगता है। आप खुद की नजरों में बेहतर हो जाते हैं। वैस तो सब कुछ हम अपने सुख के लिये ही करते हैं (आत्मनस्तु वै कामाय सर्वम प्रियम भवति)! इससे ज्यादा और क्या अपेक्षा करना!
शेफ़ाली जी: आपकी शुभकामनाओं का शुक्रिया।
उपेन्द्र जी की रचना मन मोह गई..प्रमोद तिवारी जी वाली हमारी डिमांड अब तक जिन्दा है-वो राहों में भी रिश्ते फेम वाले प्रमोद तिवारी.
आज आलेख पढ़कर उन्हीं की पंक्ति याद हो आई:
मुश्किलों से जब मिलो आसान होकर ही मिलो,
देखना,आसान होकर मुश्किलें रह जायेंगीं।
-प्रमोद तिवारी
पर उससे ज्यादा तम का मातम है,
दुख हैं, तो दुख हरने वाले भी हैं,
चोटें हैं, तो चोटों का मरहम है,
काली-काली रातों में अक्सर,
देखे जग ने सपने उजले-उजले।
यूं तो पूरी कविता ही बड़िया है, पर जो पंक्तियां दिल को छू जाएं वो सबसे अच्छी होती हैं। कानपुर निवासी कवि और लिख्खाड़ एक से बड़ कर एक हैं जरूर गंगा मैया का पर ताप…:) होगा। दूसरों को ब्लोगिंग करने के लिए उकसाने में आप का कोई सानी नहीं…आप ने ये जो सब की टिपण्णियों पर व्यक्तिगत रूप से जवाब देना शुरु किया है अपने आप में मास्टर स्ट्रोक है। सोनी बिटिया को आप का आशिर्वाद मिला है तो उसका भविष्य तो उज्जवल होना ही है, इस लिये उसे क्या कहें
ऐसा ही हाल तब भी हुआ था जब आपकी वो पोस्ट पढ़ी ठ जिसमे आपने अपने भाई साहब के बारे में लिखा था
सेंटी कर दिया आपने
वीनस केसरी
हौसला है तो सब कुछ है…।आभार ..।
‘आखिर उसे बड़ा आदमी बनना है !’
सोनी के साथ शुभकामनाएं और सर, आपको धन्यवाद और बधाई.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
ऐसे एक बार आपने बोअर्ड्स के तोपर्स के बारे में लिखा था .
सर , इन पोस्टो को पड़कर हमें भी हिम्मत मिलती है की होसले और मेहनत से आगे बड़ा जा सकता है .
इसी प्यार ने सभी कानपुर वासियों को ‘अच्छे लोग’ का सर्टिफ़िकेट मिला है। बधाई:)
सोनी पाण्डेय को सफ़लता का चरम चूमे और वो इत्ती बड़ी बने कि उस ऊंचाई पर सब बौने तो लगे पर सभी अपने लगे:)
is post ke lie shukriya
वैसे सोनी का ब्लॉग बढ़िया है.. हम भी टिपियाये
सोनी को शुभकामनायें ।
सोनी बड़ी प्यारी बच्ची है… मैने बात की उससे…! she is very confident…!
मैने मन से दुआ की उसकी खुशियो के लिये….! वो तो यूँ भी बड़ी आदमी बन चुकी है।
मगर एक बात और कहना चाहूँगी यहा… कि सोनी और तरन्नुम दो अलग अलग केस हैं। बिलकुल वैसे ही जैसे मैं और अनुराग जी की टिप्पणी पर जिनका ज़िक्र किया गया वो दीदी…!
कुछ लोगो से कहा जाता है कि यूँ हमेशा गंभीर क्यों रहती हो मस्त रहो और कुछ लोगो से कहा जाता है कि यूँ हमेशा मस्त क्यों रहती हो गंभीर बनो…! यही मूल अंतर है, जो किसी को तरन्नुम और किसी को सोनी बनाता है।
सोनी के जीवन के लिये अनंत शुभकामनाएं…! और हाँ बड़ा आदमी बनना तो थोड़ी बहुत कृपा दृष्टि इधर भी करती रहना…