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पुष्प की गंध से कुछ खटक सी गई
By फ़ुरसतिया on September 25, 2009
पुष्प की गंध से कुछ खटक सी गई,
नैंन-सैन चुंबन की ले-दे फ़टाफ़ट हुई।
हवायें बेचारी सब गुमसुमा सी गईं
शाम मारे शरम के हो गई सुरमई
भौंरें भागे सभी सर पे धरे अपने पंख
तितलियां फ़ूल में बस दुबक सी गयीं।
कली जो सकुचाई खिल रही थी उधर
वो बेचारी सहमकर झटक सी गयी।
फ़िर तितलियां भौंरों से फ़ुसफ़ुसाने लगीं
फ़ुस- फ़ुसाकर आपस में बतियाने लगीं
फ़िर मुस्कराने लगीं, खिलखिलाने लगीं
पुष्प और गंध से करने लगीं दिल्लगी । फ़ूल बेचैन था खुशबू के भी बारह बजे
चैन उड़ा खुशी हाथ से रपट सी गयी।
मौका ताड़कर गंध ने पुष्प को छू लिया
फ़ूल बादशाहों सा अकड़ा कहा- तखलिया
हवाओं ने उनके लिये एक परदा लगाया
क्या कहें उनने कैसे-क्या गुल खिलाया।
कली अधखिली उठ के मानों नींद से जगी
खिलने को सरपट वो फ़ौरन भगी सी गयी।
तितलियां अब भौंरे के पास आने लगीं
हमें भी प्यार का हक चिल्लाने लगीं
भौंरे बेचारे मजनूं ही तो बन सकते थे
तितलियों को लैला-लैला बताने लगे।
पुष्प ने गंध से फ़िर कुछ इशारा किया
मुस्कराकर कुछ किया बस लाइन कट गयी।
पुष्प की गंध से कुछ खटक सी गई,
नैंन-सैंन चुंबन की ले दे फ़टाफ़ट हुई।
नैंन-सैन चुंबन की ले-दे फ़टाफ़ट हुई।
हवायें बेचारी सब गुमसुमा सी गईं
शाम मारे शरम के हो गई सुरमई
भौंरें भागे सभी सर पे धरे अपने पंख
तितलियां फ़ूल में बस दुबक सी गयीं।
कली जो सकुचाई खिल रही थी उधर
वो बेचारी सहमकर झटक सी गयी।
फ़ुस- फ़ुसाकर आपस में बतियाने लगीं
फ़िर मुस्कराने लगीं, खिलखिलाने लगीं
पुष्प और गंध से करने लगीं दिल्लगी । फ़ूल बेचैन था खुशबू के भी बारह बजे
चैन उड़ा खुशी हाथ से रपट सी गयी।
फ़ूल बादशाहों सा अकड़ा कहा- तखलिया
हवाओं ने उनके लिये एक परदा लगाया
क्या कहें उनने कैसे-क्या गुल खिलाया।
कली अधखिली उठ के मानों नींद से जगी
खिलने को सरपट वो फ़ौरन भगी सी गयी।
तितलियां अब भौंरे के पास आने लगीं
हमें भी प्यार का हक चिल्लाने लगीं
भौंरे बेचारे मजनूं ही तो बन सकते थे
तितलियों को लैला-लैला बताने लगे।
पुष्प ने गंध से फ़िर कुछ इशारा किया
मुस्कराकर कुछ किया बस लाइन कट गयी।
पुष्प की गंध से कुछ खटक सी गई,
नैंन-सैंन चुंबन की ले दे फ़टाफ़ट हुई।
कुश: हर चीज में लफ़ड़ा ही देखते हो। पूरे ब्लागर हो। कभी हसीन मेल-मिलाप के बारे में भी सोचा करो।
संजय बेंगाणी: कित्ता हसीन है न!
घुघूती बासूती
फ़ूल बादशाहों सा अकड़ा कहा- तखलिया
धीरे-धीरे कवि बनते जा रहे हैं आप. मज़ा आ गया.
मुस्कराकर कुछ किया बस लाइन कट गयी।
बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
बी . एस . एन . एल . की थी क्या ??
यहाँ भी आपको लफ़ड़े के नाम पर उकसाया जा रहा है। लेकिन हम जानते हैं कि आप केवल मौज ले रहे हैं। अन्तर यह है कि इस बार फूल, कलिया, भौंरे, खुशबू आदि आपकी मौज के पात्र हैं।
मनुष्य से कुछ डर गये हैं क्या?:)
जुकाम का इलाज़ कराया क्या ?
पहले करवा तो लीजिये, फिर गँध बताइयेगा ।
अपुन की खोपड़ी 360 डिग्री घूम रैली है, माईबाप !
कित्ते गहरे भाव हैं
कित्ते गहरे भाव हैं
पुष्प की गंध से कुछ खटक सी गयी , क्या खटक गयी या गया… वह भी पुष्प गंध ,
विवेक सिंह ही सही हैं आपकी इस फुरसत से निपटने के लिए !
सुबह सुबह कविता पढ़ा कर सिर दर्द देने के लिए शुक्रिया , खासियत आपकी यह है की आपको पढना पूरा पढता है बाद में महसूस होता की हमारे साथ क्या हुआ
बड़ी लटाफ़ट [लताफ़त!] वाली कविता ठेल दी आज तो:) बधाई।
regards
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मुस्कराकर कुछ किया बस लाइन कट गयी।nice