Friday, September 25, 2009

पुष्प की गंध से कुछ खटक सी गई

http://web.archive.org/web/20140419215919/http://hindini.com/fursatiya/archives/676

33 responses to “पुष्प की गंध से कुछ खटक सी गई”

  1. कुश ' पैदायशी विनम्र '
    ये क्या लफडा है..?
    कुश: हर चीज में लफ़ड़ा ही देखते हो। पूरे ब्लागर हो। कभी हसीन मेल-मिलाप के बारे में भी सोचा करो। :)
  2. संजय बेंगाणी
    ईयाँ भी लफड़ा…
    संजय बेंगाणी: कित्ता हसीन है न! :)
  3. Pankaj
    शुक्ला जी बहुत ही सुन्दर शब्दों की प्रयोग और एक और फुर्सत से किया हुआ पोस्ट
  4. विनोद कुमार पांडेय
    खूबसूरत कविता..
  5. Anonymous
    फूल, भौंरों, तितलियों की खाप नहीं होती क्या? थोडा डरकर संभल कर रहने को कहिए इन सबको.
    घुघूती बासूती
  6. वन्दना अवस्थी दुबे
    मौका ताड़कर गंध ने पुष्प को छू लिया
    फ़ूल बादशाहों सा अकड़ा कहा- तखलिया
    धीरे-धीरे कवि बनते जा रहे हैं आप. मज़ा आ गया.
  7. ताऊ रामपुरिया
    पुष्प ने गंध से फ़िर कुछ इशारा किया
    मुस्कराकर कुछ किया बस लाइन कट गयी।
    बहुत शुभकामनाएं.
    रामराम.
  8. Abhishek Ojha
    आप तो छायावादी कवि हो लिए :)
  9. shefali pande
    मुस्कराकर कुछ किया बस लाइन कट गयी।
    बी . एस . एन . एल . की थी क्या ??
  10. om arya
    aapki rachana bemishal hai ………….isase jyad kuchhnahi kah paunga
  11. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    कवि हृदय फुरसतिया जी को सलाम।
    यहाँ भी आपको लफ़ड़े के नाम पर उकसाया जा रहा है। लेकिन हम जानते हैं कि आप केवल मौज ले रहे हैं। अन्तर यह है कि इस बार फूल, कलिया, भौंरे, खुशबू आदि आपकी मौज के पात्र हैं।
    मनुष्य से कुछ डर गये हैं क्या?:)
  12. chandan
    बहुत सुन्दर कविता । आभार ।
  13. मारतण्ड वैद्य ’ हथकँडॆ वाले’

    जुकाम का इलाज़ कराया क्या ?
    पहले करवा तो लीजिये, फिर गँध बताइयेगा ।
    अपुन की खोपड़ी 360 डिग्री घूम रैली है, माईबाप !

  14. समीर लाल ’उड़न तश्तरी’ वाले
    कविश्रेष्ट का हार्दिक अभिनन्दन!!
    कित्ते गहरे भाव हैं :)
  15. Ghost Buster
    कविता जी अच्छी लगीं.
  16. दिनेशराय द्विवेदी
    वाह! क्या कथा है!
  17. satish saxena
    कविश्रेष्ट का हार्दिक अभिनन्दन!!
    कित्ते गहरे भाव हैं
  18. satish saxena
    क्यों टाइम खोटा करते हो यार !डॉ अमर कुमार को बोलना चाहिए कुछ इस पोस्ट पर !
    पुष्प की गंध से कुछ खटक सी गयी , क्या खटक गयी या गया… वह भी पुष्प गंध ,
    विवेक सिंह ही सही हैं आपकी इस फुरसत से निपटने के लिए !
    सुबह सुबह कविता पढ़ा कर सिर दर्द देने के लिए शुक्रिया , खासियत आपकी यह है की आपको पढना पूरा पढता है बाद में महसूस होता की हमारे साथ क्या हुआ
  19. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    कौन वादी कविता है यह? मौज वादी?!
  20. Anonymous
    भाई आपकी कविता में कमाल की रवानगी है. खासकर – फ़िर तितलियां भौंरों से फ़ुसफ़ुसाने लगीं. यों आपके ब्लॉग पर टिप्पणी के जवाब पढ़ना भी रोचक लगता है.
  21. चंद्र मौलेश्वर
    “नैंन-सैन चुंबन की ले-दे फ़टाफ़ट हुई।”
    बड़ी लटाफ़ट [लताफ़त!] वाली कविता ठेल दी आज तो:) बधाई।
  22. ताऊ रामपुरिया
    इष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.
  23. Manoshi
    आप और कवि…? चलिये कवि भी ठीक है, मगर ऐसी फूल और भौंरे, तितली और खुश्बू की कविता???? सब ठीक है न?
  24. seema gupta
    हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हमने तो आज ही पढ़ी …..क्या चित्र खींचा है फुल तितली हवा और न जाने क्या क्या क्या…..आपही ने लिखी है न हा हा हा हा
    regards
  25. Anonymous
    wah kya laazwab rachana ,aapki vyang shaily ki tarif jitni ki jaai utni kam hai .kamaal ka likhte hai .kal , vandana ji jo meri aziz mitr hai unke blog dwara baatchit ke dauraan aapka namaskar bhi mila aur aapki rachana bhi padhi ,padhne ke baad urja ka sanchar hone laga ho ,wo taazgi mahsoos hui .anup ji aapko phir namaskaar .
  26. kavita
    सुंदर अभिव्यक्ति।
    ———-
    डिस्कस लगाएं, सुरक्षित कमेंट पाएँ
  27. SHUAIB
    बड़े जवान अंदाज़ हैं आपके, पहले बताओ ये आईडिया कैसे आगया अचानक?
  28. randhirsinghsuman
    पुष्प ने गंध से फ़िर कुछ इशारा किया
    मुस्कराकर कुछ किया बस लाइन कट गयी।nice
  29. rajni bhargava
    क्या कहने । कहाँ-कहाँ भटक रहे हैं ?
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