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……भये छियालिस के फ़ुरसतिया, ठेलत अपना ब्लाग जबरिया।
By फ़ुरसतिया on September 21, 2009
पिछले हफ़्ते हम छियालिस साल के हो गये। जैसे मेहमानों के आने की खबर सुनकर खाना बनाने वाली बाई बीमार हो जाती है वैसे ही हमारा ब्लाग दो दिन पहले बैठ गया। ब्लाग को पता था कि जन्मदिन के बहाने एकाध पोस्ट ठेली जायेंगी फ़िर बधाईयां आयेंगी। सबसे घबराकर वह बैठ गया। आज जब वापस आया तो हम सोचे कि जिस बात से डर के भागा था वही काम करवाया जाये इससे पहले।
पन्द्रह की रात के बारह बजने के कुछ पहले से ही फ़ोन घनघनाने लगे। हैप्पी बड्डे और थैंक्यू वगैरह हुआ। शुभकामनाओं का लेन-देन करके सूत गये। अगले दिन सुबह से ही फ़िर टेलीफोन आपरेटर की तरह फ़ोन फ़ान पर हैप्पी बर्थ डे बटोरने लगे। आफ़िस के लिये राजा बेटा बनकर निकले। श्रीमती जी ने नयी ड्रेस इशू की। धारण करके निकलने ही वाले थे कि यादवजी आ गये।
यादवजी हमारी बगल की ही फ़ैक्ट्री से दो-तीन साल पहले रिटायर हुये। हमारे साथ कभी काम नहीं किया। लेकिन नियमित आते हैं। बतियाते हैं। पढ़ने का शौक था कभी बहुत। अब खाली किताबें सहेजने तक सीमित हो गया है। बांगला और हिन्दी के पुराने लेखकों को काफ़ी पढ़ रखा है। बातचीत करते हुये यादवजी रह रह कर अपने अतीत में लौट जाते हैं। जैसे हम ब्लागिंग के पुराने किस्से सुनाने लगते हैं अक्सर इम्प्रेस करने के लिये:
सत्य कभी था आज सत्य ही सपना लगता हैबहुत सताता है सब कुछ पर अपना लगता है!
बहरहाल बात यादवजी की कर रहे थे। तो उस दिन यादवजी सुबह-सुबह सवा आठ बजे जलेबी-दही लेकर हमारे यहां आये। पता चला कि आसपास की दुकाने बन्द थीं तो दूर की दुकान से लाये थे। सुबह-सुबह बेचारे हमारे कारण हलकान हो गये।
यादवजी हमारे घर के हर सदस्य के जन्मदिन नोट किये हैं! हरेक जन्मदिन पर बेनागा आते हैं और उपहार या मिठाई लाते हैं। कई बार मना किया लेकिन यादवजी हैं कि मानते नहीं। आजकल वे अपनी खाने वाली सबसे पसंदीदा चीजें एक-एक कर छोड़ते जा रहे हैं। यह सोचकर कि आगे बन के न मिलेगी तब कष्ट होगा।
दफ़्तर में चौड़े होकर बैठे रहे काफ़ी देर। चाय-साय पी गयी। मोबाइल संदेश का जो आदान हुआ था उनका प्रदान किया गया फ़िर हम अपनी शाप में मौका मुआयना करने निकले। पता चला अगले दिन विश्वकर्मापूजा के लिये सेक्सन साफ़ हो रहा था। हम सब लोगों से मिलमिलाकर चले आये। सबकी शुभकामनायें बटोर के चुप्पे से चले आये। एक दिन पहले जिसका जन्मदिन था उससे पूछे कि जन्मदिन उसने कैसे मनाया। उसका किस्सा भी सुनते चलें।
कुछ दिन पहले से अपने शाप में लोगों से मिलने-जुलने की मंशा से मैंने सबके जन्मदिन नोट किये और उनके जन्मदिन पर उनके पास जाकर बधाई देना शुरू किया। इसी बहाने उसके घर परिवार , रुचि, लगाव, परेशानी और अन्य गुणों की भी जानकारी हो जाती है। मैंने पाया कि लोगों ने इसे बहुत अच्छा कदम माना और हम फ़्री फ़न्ड में एक लोगों का ख्याल रखने वाले आत्मीय अधिकारी के रूप में जाने जाने लगे। कई लोगों को ताज्जुब हुआ कि उनके जन्मदिन के बारे में मुझे कैसे पता! लोगों को पहली बार इस तरह की बात सुखद आश्चर्य ही लगी।
तो एक दिन पहले जिसका जन्मदिन था जब मैंने उसको जन्मदिन की बधाई दी उसने कहा आज तो मेरा जन्मदिन नहीं है! मैंने कहा कब है? उसने बताया 15.09.72 को। हमने आज क्या तारीख है? उसने बताया- 15 सितम्बर! फ़िर उसने हंसते /झेंपते हुये बधाई स्वीकार की। बहरहाल!
दिन ऐसे ही शाम तक बधाई बीनते बटोरते बीता। शाम को केक काटा गया और अम्मा ने जो बनाये थे वो गुगगुले खाये गये। उपहार घर वाले देने पर अड़े थे एक नया मोबाइल! लेकिन हम न लेने पर अड़ गये। मितव्ययिता और समझदारी हमारे ऊपर जमकर सवार थीं। समझदारी इसलिये कि हमें पक्का पता था कि ये मोबाइल आये भले हमारे पैसे से लेकिन इसका इस्तेमाल वही ताकतें करेंगी जो इसे खरीदवाने के लिये बेताब हैं। हमारे भाग्य में अंतत: उन ताकतों का पुराना मोबाइल ही आना है। इसलिये हमने दृढ़ता पूर्वक इस आत्मीय साजिश को फ़ेल कर दिया !
जहां तक ब्लागिंग से सबंधित बाते हैं तो हमने पिछले वर्ष लिखा था
अगर मुझे सही अन्दाजा है तो ब्लाग जगत में मेरी इमेज एक खिलन्दड़े, मौजिया और मेहनती ब्लागर की है। लोगों की खिंचाई भी करते रहने वालों में नाम है। कुछ लोग मुझे स्त्रीविरोधी और मठाधीश ब्लागर भी मानते हैं। इसके अलावा और भी इमेजें होंगी लेकिन उनके मुझे उनके बारे में अच्छी तरह पता नहीं। या पता भी होगा तो उसके बारे में हम बताना नहीं चाहते होंगे। हम भी कम काइयां नहीं हैं जी!
इनमें से मुझे नहीं लगता कि मैंने किसी इमेज से पीछा छुड़ाया हो! मौज लेने की हमारी आदत के चलते तो ब्लाग जगत में जलजला ही आ गया। इसके अलावा पक्षपाती और षड़यंत्रकारी की उपाधि अलहदा मिलीं। कुल मिलाकर उपाधियों में निरन्तर इजाफ़ा ही हुआ है।
पिछले वर्ष हमने कुछ काम करने का मन बनाया था। उनकी प्रगति आख्या निम्नवत है।
क्रम संख्या
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सोचा गया काम
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कार्य संबंधी प्रगति
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१. | ब्लाग लिखना बंद करने की घोषणा। | हम इस योजना पर अमल नहीं कर पाये। यह रास्ता इत्ता आम हो गया कि हमें वो वाले शेर ने रोक लिया अपने तआर्र्रुफ़ के लिये इतना काफ़ी है। हम उस रास्ते नहीं जाते जो आम हो जाये। आजकल तो लोग दो-पोस्ट लिखकर लिखना छोड़ देते हैं और कोई रोकता नहीं। हमें लगा कि अब ब्लाग लिखना बंद करने में वो मजा नहीं रहा। उलटे कहो लोग कहें हां हां भाई अच्छा किया। घर,दफ़्तर,सेहत और बच्चों का ख्याल रो रखना ही चाहिये। ब्लागिंग फ़ालतू की चीज है। |
२. | सबके प्यार और अनुरोध पर वापस आने की घोषणा। | जब पहली बात नहीं हुई तो ये वाली होने का सवाल ही नहीं उठता। |
३. | किसी का दिल दुखाने वाली पोस्ट न लिखना। | जानबूझकर मैंने ऐसा नहीं किया। अब अगर मेरे कुछ भी लिखने से किसी का दिल दुखा हो तो नहीं कह सकते। |
४. | बड़े-बुजुर्गों (ज्ञानजी, समीरलाल,शास्त्रीजी आदि-इत्यादि) से अतिशय मौज लेने से परहेज करना। | यथासम्भव मैंने ऐसा नहीं किया। एकाध बार हो गया है तो अब उसमें और कमी लाने के बारे में सोचा जायेगा। |
५. | नारी ब्लागरों की पोस्टों को खिलन्दड़े अन्दाज से देखने से परहेज करना। | इसमें तो पक्का सफ़ल रहे। देखा भी कोई कमेंट न करने के कारण अन्दर की बात अन्दर ही रह गयी। |
६. | नये ब्लागरों का केवल उत्साह बढ़ाना, उनसे मौज लेने से परहेज करना। | उत्साह उत्ता नहीं बढ़ा पाये लेकिन मौज-परहेज बना रहा। एकाध बार छोड़ कर! |
७. | किसी आरोप का मुंह तोड़ जबाब देने से बचना। | इस दिशा में मैंने यथा सम्भव प्रयास किये। सवालों के जबाब भले दिये लेकिन आरोपों के जबाब ही नहीं दिये, मुंह तोड़ तो दूर की बात। लेकिन अब जब किसी का मुंह पहले से ही टेढ़ा हो और टूटा भी तो उसके लिये हम क्या करें। कई बार तो जबाब उछल कर की बोर्ड के ऊपर आये भी लेकिन हमने उनको बरज कर अन्दर कर दिया। |
८. | अपने आपको ब्लाग जगत का अनुभवी/तीसमारखां ब्लागर बताने वाली पोस्टें लिखने से परहेज करना। | ऐसी पोस्टें अपनी समझ में कम लिखीं। अगर कोई दिखायेगा तो उसके लिये हम मुनव्वर राना का ये वाला शेर याद कर लिये हैं:”मियां मैं शेर हूँ शेरों कि गुर्राहट नहीं जाती, लहजा नर्म भी कर लूं तो झुंझलाहट नहीं जाती”।
कोई साथी इसका अपने हिसाब से मतलब निकालकर यह समझने का काम अपने रिस्क पर करे कि हम अपने को शेर कह रहे हैं। हमारी समझ में तो शेर विटामिन की गोली की तरह होते हैं। जो भावना कम होती है उसको उसी भावना के शेर से पूरा करते हैं! जैसे हम चूहा दिल हैं और बात-बात पर सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है तो हम बात-बेबात ये वाला शेर पढ़ते रहेंगे।
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९. | अपने लेखन से लोगों को चमत्कृत कर देने की मासूम भावना से मुक्ति का प्रयास। | इस भावना से अब हम शायद मुक्त होगये। हम खुदी अपने लेखन से चमत्कृत नहीं होते , कूड़ा समझते हैं इसे , तो दूसरे को क्या चमत्कृत करेंगे। |
१०. | तमाम नई-नई चीजें सीखना और उन पर अमल करना। | सीख रहे हैं जी। आज ही देखो विन्डो लाइव राइटर पर ये पोस्ट लिख रहे हैं! और भी सीखना है। |
११. | जिम्मेदारी के साथ अपने तमाम कर्तव्य निबाहना। | यहां मामला डाउटफ़ुल है। कभी लोग कहते हैं निभा रहे हो, कभी कहते हैं इल्लई मतलब नहीं निभा रहे हो! इसका निर्णय तो सिक्का उछाल कर करना होगा। |
अब और आपको क्या बतावैं? पुराने हो नहीं पाये सब काम और एकाध नये ले लिये हैं! क्या लिये हैं यह आपको समय के साथ पता चल ही जायेगा। करेंगे तो गाना गायेंगे ही!
फ़िलहाल जन्मदिन के बहाने इतना ही। आप बोर तो नहीं हुये? बोर हुये हो तो आप ये पैरोडी गाने लगिये:
भये छियालिस के फ़ुरसतिया
ठेलत अपना ब्लाग जबरिया।
मौज मजे की बाते करते
अकल-फ़कल से दूरी रखते।
लम्बी-लम्बी पोस्ट ठेलते
टोंकों तो भी कभी न सुनते॥
कभी सीरियस ही न दिखते,
हर दम हाहा ठीठी करते।
पांच साल से पिले पड़े हैं
ब्लाग बना लफ़्फ़ाजी करते॥
मठीधीश हैं नारि विरोधी
बेवकूफ़ी की बातें करते।
हिन्दी की न कोई डिगरी
बड़े सूरमा बनते फ़िरते॥
गुटबाजी भीषण करवाते
विद्वतजन की हंसी उड़ाते।
साधु बेचारे आजिज आकर
सुबह-सुबह क्षमा फ़र्माते॥
चर्चा में भी लफ़ड़ा करते
अपने गुट के ब्लाग देखते।
काबिल जन की करें उपेक्षा
कूड़ा-कचरा आगे करते॥
एक बात हो तो बतलावैं
कितने इनके अवगुन भईया।
कब तक इनको झेलेंगे हम
कब अपनी पार लगेगी नैया॥
भये छियालिस के फ़ुरसतिया
ठेलत अपना ब्लाग जबरिया।
मेरी पसन्द
जरा नम्र हो जा मजा आयेगा
ये ऊंचाई कोई छू न पायेगा।
ये ऊंचाई कोई छू न पायेगा।
जो किस्मत में चलना लिखा है तो चल
ये मत देख चलकर कहां जायेगा।
ये मत देख चलकर कहां जायेगा।
अगर उसके जुल्मों का एहसास है
समझ ले वो तुझको भी तड़पायेगा।
समझ ले वो तुझको भी तड़पायेगा।
अगर ख्वाब देखा तो तामीर कर
ये जज़्बा बुलंदी पर पहुंचायेगा।
ये जज़्बा बुलंदी पर पहुंचायेगा।
जिसे बदगुमानी पे भी नाज है,
उसे दिल दिखा करके क्या पायेगा।
उसे दिल दिखा करके क्या पायेगा।
हैं आंखों में आंसू उसी के लिये
न देखेगा वो, तो तू पछतायेगा।
न देखेगा वो, तो तू पछतायेगा।
बड़ा बनना है तो हुनर सीख ले-
कि अपनो से बचकर निकल जायेगा।
कि अपनो से बचकर निकल जायेगा।
Posted in बस यूं ही, संस्मरण | 59 Responses
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