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सूरज की मिस्ड काल
By फ़ुरसतिया on July 11, 2012
आज सुबह जगे तो देखा कि सूरज की चार ठो मिस्ड काल पड़ी थीं।
उठकर बाहर आये। सोचा फ़ोन मिलाकर बात कर लें। लेकिन फ़िर नहीं मिलाये। सोचा -काम में बिजी होगा। ड्य़ूटी में दखल देना ठीक नहीं।
देखा कि पानी हल्का-हल्का बरस रहा है। मन किया कि हल्के-हल्के को थोड़ा गोलिया के हौले-हौले कर दें। लेकिन फ़िर कहीं से आवाज आई- नहीं यार! रफ़्ता-रफ़्ता करो! बहुत दिन से रफ़्ता-रफ़्ता नहीं किया।
रफ़्ता-रफ़्ता जब आया तो साथ में हफ़्ता-हफ़्ता लग लिया। हफ़्ता-हफ़्ता का कोई सिला समझ न आया तो हमने उससे पूछा कि तुम्हारे महीना भाई किधर हैं।
महीना भाई सकुचाये से खड़े थे जैसे किसी बूंद की आड़ में बूंद। हमने कहा सामने आओ भाई! ऐसे घपले-घोटाले की तरह काहे चिलमन में छिपे हो। महीना जिस तरह लजा के मुस्कराया उससे मन किया कि किसी मुफ़्तिया साफ़्टवेयर में उसकी आई डी धर के देखें कि कहीं ये पूर्वजन्म में मोनालिसा तो न थी।
बूंद की आड़ से बूंद बाहर आयी तो देखा सूरज की एक किरन एक बूंद के रोशनी का इंजेक्शन लगा रही थी। साथ की बूंदे खिलखिला रहीं थीं। तमाम बूंदों को खिलखिलाता देखकर एक दलाल ने उनको अपने साथ इकट्ठा करके एक फ़ोटो सेशन कर लिया और सारी दुनिया भर में खिलखिलाहट को इंद्रधनुष के नाम से पेटेंन्ट करा लिया।
सूरज ने शायद मुझे आनलाइन देख लिया होगा ऊपर से। उसका मेसेज आया -भाई साहब ये आपके मोहल्ले की बारिश की बूंदे हमारी किरणों को भिगो के गीला कर रही हैं। आप इनको मना कर दो वर्ना मैं सागर मियां को उबाल के धर दूंगा।
मैंने तीन ठो इस्माइली भेज के सूरज को समझाया -अरे खेलने-कूदने दो किरणों और बूंदों को आपस में यार तुम काहे के लिये हलकान हो रहे हो। उमर हो गयी लेकिन जरा-जरा सी बात पर उबलना अभी तक छोड़ा नहीं।
इस बीच एक बूंद अचानक उछली। लगा कि वापस गिरेगी तो हड्डी-पसली का तो प्रमुख समाचार हो के ही रहेगा। लेकिन उसके नीचे गिरने के पहले ही तमाम बूंदे चादर की तरह खड़ीं हो गयीं। उसको गोद में लेकर गुदगुदी करने लगीं। किरणें भी बूंद के गाल पर गुदगुदी करने लगीं। सब खिलखिलाने लगीं।
मैंने बूंदों-किरणों का खिलखिलौआ सीन मोबाइल से खींचकर फ़ौरन फ़ेसबुक पर अपलोड कर दिया। अपलोड करने के बाद सूरज को संदेशा भेजा -देख लो अपनी किरणों को क्या मजे से हैं।
संदेशा भेजने के बाद देखा कि सूरज पहले ही मेरी फोटो को लाइक कर चुका था। बड़ा तेज चैनल है भाई ये भी।
हम आगे कुछ और गुलजार होने का मन बना रहे थे कि मोबाइल की घंटी बजने लगी। सूरज का फोन आ रहा है। मुझे पता है कि बेटियों की याद में भावुक टाइप होकर फोन किया है। उनको खिलखिलाते देखकर रहा नही गया होगा बेचारे से। मारे खुशी के गीला हो गया होगा। आते हैं जरा बात करके। तब तक आप कैरी आन करिये।
आगे-आगे नाचती – गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली
पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आँधी चली, धूल भागी घाँघरा उठाये
बाँकी चितवन उठा नदी,ठिठकी,घँघट सरके।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के ,सँवर के।
-सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
उठकर बाहर आये। सोचा फ़ोन मिलाकर बात कर लें। लेकिन फ़िर नहीं मिलाये। सोचा -काम में बिजी होगा। ड्य़ूटी में दखल देना ठीक नहीं।
देखा कि पानी हल्का-हल्का बरस रहा है। मन किया कि हल्के-हल्के को थोड़ा गोलिया के हौले-हौले कर दें। लेकिन फ़िर कहीं से आवाज आई- नहीं यार! रफ़्ता-रफ़्ता करो! बहुत दिन से रफ़्ता-रफ़्ता नहीं किया।
रफ़्ता-रफ़्ता जब आया तो साथ में हफ़्ता-हफ़्ता लग लिया। हफ़्ता-हफ़्ता का कोई सिला समझ न आया तो हमने उससे पूछा कि तुम्हारे महीना भाई किधर हैं।
महीना भाई सकुचाये से खड़े थे जैसे किसी बूंद की आड़ में बूंद। हमने कहा सामने आओ भाई! ऐसे घपले-घोटाले की तरह काहे चिलमन में छिपे हो। महीना जिस तरह लजा के मुस्कराया उससे मन किया कि किसी मुफ़्तिया साफ़्टवेयर में उसकी आई डी धर के देखें कि कहीं ये पूर्वजन्म में मोनालिसा तो न थी।
बूंद की आड़ से बूंद बाहर आयी तो देखा सूरज की एक किरन एक बूंद के रोशनी का इंजेक्शन लगा रही थी। साथ की बूंदे खिलखिला रहीं थीं। तमाम बूंदों को खिलखिलाता देखकर एक दलाल ने उनको अपने साथ इकट्ठा करके एक फ़ोटो सेशन कर लिया और सारी दुनिया भर में खिलखिलाहट को इंद्रधनुष के नाम से पेटेंन्ट करा लिया।
सूरज ने शायद मुझे आनलाइन देख लिया होगा ऊपर से। उसका मेसेज आया -भाई साहब ये आपके मोहल्ले की बारिश की बूंदे हमारी किरणों को भिगो के गीला कर रही हैं। आप इनको मना कर दो वर्ना मैं सागर मियां को उबाल के धर दूंगा।
मैंने तीन ठो इस्माइली भेज के सूरज को समझाया -अरे खेलने-कूदने दो किरणों और बूंदों को आपस में यार तुम काहे के लिये हलकान हो रहे हो। उमर हो गयी लेकिन जरा-जरा सी बात पर उबलना अभी तक छोड़ा नहीं।
इस बीच एक बूंद अचानक उछली। लगा कि वापस गिरेगी तो हड्डी-पसली का तो प्रमुख समाचार हो के ही रहेगा। लेकिन उसके नीचे गिरने के पहले ही तमाम बूंदे चादर की तरह खड़ीं हो गयीं। उसको गोद में लेकर गुदगुदी करने लगीं। किरणें भी बूंद के गाल पर गुदगुदी करने लगीं। सब खिलखिलाने लगीं।
मैंने बूंदों-किरणों का खिलखिलौआ सीन मोबाइल से खींचकर फ़ौरन फ़ेसबुक पर अपलोड कर दिया। अपलोड करने के बाद सूरज को संदेशा भेजा -देख लो अपनी किरणों को क्या मजे से हैं।
संदेशा भेजने के बाद देखा कि सूरज पहले ही मेरी फोटो को लाइक कर चुका था। बड़ा तेज चैनल है भाई ये भी।
हम आगे कुछ और गुलजार होने का मन बना रहे थे कि मोबाइल की घंटी बजने लगी। सूरज का फोन आ रहा है। मुझे पता है कि बेटियों की याद में भावुक टाइप होकर फोन किया है। उनको खिलखिलाते देखकर रहा नही गया होगा बेचारे से। मारे खुशी के गीला हो गया होगा। आते हैं जरा बात करके। तब तक आप कैरी आन करिये।
मेरी पसंद
मेघ आये बड़े बन-ठन के ,सँवर के।आगे-आगे नाचती – गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली
पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आँधी चली, धूल भागी घाँघरा उठाये
बाँकी चितवन उठा नदी,ठिठकी,घँघट सरके।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के ,सँवर के।
-सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
Posted in बस यूं ही | 26 Responses
amit srivastava की हालिया प्रविष्टी.."नेट लैग " …यह "जेट लैग" का बाप है …….|
विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..प्रतिबंधों के बाद आजाद जिंदगी जीने का मजा
बूंदों-किरणों को खूब खिलखिलौआ बनाया है आपने। सर्वेश्वर दयाल सस्केना क्या गज़ब लिखे हैं! वाह!!
अब हम उनका फोन-फान नहीं उठाएंगे
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..ना जीना ना मरना
एक ज़माना से लोग चाँद को फोन मिलाता है, रोमिंग कटता है तैयो, और आप सूरज से बतिया रहे हैं…
हाँ बाबा, वड्डे लोग, वड्डी बातें…टोप किलास का आदमी टोपे किलास से न बात करेगा..रेजगारी लोगन को थोड़े पूछेगा..
अब मजाक से अलग की बात, बिंबों का बहुत ही उत्तम प्रयोग..मान गए आपको..
थान्कू
Swapna Manjusha ‘ada’ की हालिया प्रविष्टी..हम होंगे क़ामयाब…
जोक्स अपार्ट ..इतने खतरनाक टाइप के आइडियाज आपको आते कैसे हैं?
आपकी पसंद वाकई लाजवाब है.
Rekha Srivastava की हालिया प्रविष्टी..आम आदमी कौन है ?
जय हो…………
प्रणाम.
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..पानी का व्यापार
..बहुत उम्दा बतकही,क्या मारते हो,सूरज तक चोट पहुँच गई होगी !
सर्वेश्वर दयाल जी की यह कविता मैं हर साल अपनी कक्षा में पढ़ता हूँ.बड़े सजीव-बिम्ब डाले हैं सक्सेनाजी ने !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..उनका जन्मदिन,मेरा उपहार !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..उनका जन्मदिन,मेरा उपहार !
अजय कुमार झा की हालिया प्रविष्टी..खुद अपने आप से आगे निकलिए ……
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..बुर्जुआ भाषा वालीं हिन्दी फ़िल्में
sangeeta swarup की हालिया प्रविष्टी..बूंद बूंद रिसती ज़िंदगी
संजय अनेजा की हालिया प्रविष्टी..माने उसका भी भला, जो न माने उसका भी भला
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..हनी जैसी स्वीट, मिर्ची जैसी हॉट (पटना १४)
aradhana की हालिया प्रविष्टी..Go Ahead—Add a Splash of Color
आप कवि तो हैं नहीं, फिर कैसे रच लेते हैं ऐसा गद्य-गीत????
सूरज के सारे कॉल मिस्ड हो गए
—आशीष श्रीवास्तव
आनंद आ गया! यह व्यंग्य कल्पानाशीलता में अच्छी-अच्छी कविताओं से लोहा लेता है!
हितेन्द्र अनंत की हालिया प्रविष्टी..दुर्गा-शक्ति-नागपाल (लघुकथा)
रचना त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..गिफ्ट कहो या तिहवारी बात बराबर है…