http://web.archive.org/web/20140420081906/http://hindini.com/fursatiya/archives/3158
डियर बादल! तुम आये इतै न कितै दिन खोये
By फ़ुरसतिया on July 22, 2012
पूरे देश में बादल झलक दिखला के फ़ूट
लिये हैं। सब लोग उसका इंतजार कर रहे हैं। लेकिन वह बरस के नहीं दे रहा
है। लोग बादल के बारे में तरह-तरह की अफ़वाहें फ़ैला रहे हैं। कवि लोगों की
कल्पनायें कुम्हला रही हैं। उनकी बारिश के बारे में लिखी कवितायें पन्नों
पर सूख रही हैं। मन में बरसाती कवितायें कुड़बड़ा रही हैं। वे सोच रहे हैं कि
जल्दी से झमाझम हो तो बरसाती कविताओं का स्टाक खपा कर जाड़े वाली कविताओं
पर काम किया जाये।
जगह-जगह कालोनियों में हरियाली तीज का उत्सव मनाने के इंतजार में लोग सजधज रहे हैं। रेन डांस के लिये लोग बादलों का इंतजार छोड़कर लोग बोरिंग के पानी से कृत्तिम रेन डांस (बरखा नाच) का इंतजार कर रहे हैं। छातों और रेनकोट बनाने/बेचने वालों के चेहरे कुम्हलाये हुये हैं।
कुछ लोग बरसात के न आने को बादल-बदली के चरित्र से जोड़ रहे हैं और दोहाबाजी कर रहे हैं:
हमारे एक अध्यापक मित्र बता रहे हैं कि मेघ को बड़े लोगों ने अपना दूत बनाकर कहीं भेज दिया होगा प्रेमपत्र अपनी प्रेमिका को देने के लिये। पहले भी ऐसा होता था लेकिन तब बादल अपना बरसने का काम भी कर लेते थे। लेकिन इस बार शायद उसको हिदायत मिली होगी -खबरदार अगर चिट्ठी देने के अलावा और कोई काम किया तो। बादल बेचारा मारे डर के अपना मूल काम छोड़कर वीआईपी प्रेमिका का हरकारा बनकर रह गया होगा जैसे सरकारी स्कूल के अध्यापक पढ़ाने के अलावा और तमाम कामों ( जनगणना, चुनाव, दोपहर भोजन योजना आदि) में उलझे रहते हैं।
एक आशंका यह भी है कि बच्चा बादल को किसी संपन्न किसान ने अगवा करके बंधुआ बना लिया हो और अपने इलाके में उससे बेगार मजदूरी करा रहा हो। मौसम पुलिस भी बड़े किसान की तरफ़दारी कर रही है और बच्चा बादल की मुक्ति के लिये कोई उपाय नहीं कर रही है।
बाढ़ राहत के पैसे का इंतजार कर रहे लोगों की आंखों में झांई पड़ने लगी है! उनके दिल सूखे में डूबे जा रहे हैं। बाढ़ राहत राहत कार्यक्रम की फ़ाइलें पहले से तैयार किये वे बीच-बीच में अपने साहब से पूछ रहे हैं- साहब क्या बाढ़ की जगह फ़ाइलों में सूखा लिखवा लें? साहब फ़ाइलों को हफ़्ते भर बाद पेश करने के लिये कहकर बारिश का इंतजार कर रहे हैं।
मौसम मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने नाम न बताने की शर्त पर सूचना दी कि चूंकि बादल आने में देरी हुई है इसलिये उसकी असलियत की जांच हो रही है। पासपोर्ट चेक किया जा रहा है। अगर जांच में बादल असली पाया गया तो उसको बरसने की इजाजत दी जायेगी। नकली पाया गया तो उसको बालकृष्ण की तरह अंदर कर दिया जायेगा। लोगों ने जांच में देरी होने की दशा में सूखे की आशंका जताई तो मंत्रालय के प्रवक्ता ने बयान जारी किया कि मंत्रालय के काम करने की अपनी गति है। उसमें किसी का हस्तेक्षप सहन नहीं किया जा सकता।
शहर की नालियां उफ़नाने के लिये तैयार हैं। गढ्ढे लबालब होने की आस में गहरे हुये जा रहे हैं। सड़क की धूल इंतजार में है कि पानी बरसे तो उसके संगम से वह कुछ दिन के लिये कीचड़ में बदल सके। सीवर लाइन का पानी, पानी की लाइनों के पानी से मिलन के लिये बेताब है। रेलगाडियां सोच रही हैं कि पानी बरसें तो कुछ दिन के लिये वे पटरियों पर ठहरकर आराम कर सकें। मुंबई की सड़कें डूबने के लिये बेताब हैं। सब लगातार बादल को फ़ोन कर रहे हैं लेकिन उसका नम्बर नेटवर्क एरिया के बाहर बता रहा है।
बरसाती बीमारियां भी अपनी बारी का इंतजार कर रही हैं। वे देरी से आलने के लिये बादल को उलाहना देते हुये ट्विट कर रही हैं- डियर बादल! तुम आये इतै न कितै दिन खोये। बरसात के स्वागत के लिये मेढक वगैरह ने भी टर्राने के लिये रियाज करना शुरु कर दिया है। मोरों ने भी नाचने के लिये अपने पैरों का वार्मअप शुरू कर दिया है। उधर मानस मर्मज्ञ गृहस्थ जीव बादलों की गरज का इंतजार कर रहे हैं ताकि वे अपना प्रिया हीन होने का चिरकुट राग अपने फ़ेसबुक/ट्विटर पर गा सकें।
कुछ लोग बता रहे हैं बादल भन्नाया हुआ है। वह लोगों के धरती के साथ किये बुरे व्यवहार की सजा देने का मन बना के निकला है इस बार ऊपर से। जो पानी वह बरसाता है उसके साथ हुये बुरे सुलूक को देखकर वह अनमना सा हो गया है और बरसने का मूड नहीं बना पाया है। उखड़े हुये मूड के चलते वह जमकर बरस नहीं पा रहा है।
कुछ कर्मचारी नेताओं ने बादल मैनेजमेंट पर यह आरोप लगाया है कि बादल को उसके काम के अनुरूप न्यूनतम वेतन नहीं मिलता। इसके अलावा उसको केवल बारिश के दिनों के काम का वेतन मिलता है। बाकी दिनों की पगार न मिलने से उसका मूड़ उखड़ा रहता है। मंहगाई के चलते उसकी माली हालत बिगड़ी रहती है। ऐसे में वह अपना काम मन लगाकर कर नहीं पाता।
बादल मैनेजमेंट बादल की परेशानी का एहसास किये बिना उसको काम से गैरहाजिर मानकर काम नहीं तो वेतन नहीं की नोटिसें जारी कर चुका है। मैनेजमेंट में तो कुछ छुटभैये बादलों को निलंबित करने का भी प्रस्ताव पास हो गया है लेकिन मनेसर के मारुति कारखाने में हुई मारपीट खबर सुनकर उन्होंने प्रस्ताव पर अमल करने से अपने को रोक लिया है।
ओह एक मिनट! फ़ोन बज रहा है। बादल का फोन है। लगता है उसने मेरी पोस्ट ड्राफ़्ट में बांच ली है। इसलिये अपनी सफ़ाई में कुछ कहना चाहता है। शायद इसीलिये फोनिया रहा है। आते हैं जरा बतिया के तब तक आप नीचे के दोहे बांचिये।
बारिश के लाले पड़े, मचा है सबहन* हाहाकार!
सबहन*= सब जगह
2.फ़्रिज से कुल्फ़ी निकलकर, ऐंठी गरदन अकड़ाय,
गर्मी ने झप्पी दई, दिया फ़ौरन उसको पिघलाय!
3.बादल धरती के ऊपर दिखा, गये सूरज जी भन्नाय,
’आपरेशन मजनू’ को याद कर, बादल फ़ूटा जान बचाय!
4.लू-लपटों के संग रह, सड़कों के भी बिगड़े हाल,
सुबह दिखे जो शान्त सी, झुलसाती तलवों की खाल!
5.पानी, पना पिलाय के , कोई देय पपीता खिलवाय,
लस्सी, पेप्सी के संग में,गर्मी भी खिल-खिल जाये।
6.एसी, फ़ेसी सब फ़ेल भये, कूलर भी मांगे खैर,
बिजली बिन कुछ न चले, जिसका गर्मी से बैर!
7.बूंद पसीने की चली, अटकी भौहों के पास,
बढ़ने की हिम्मत नहीं ,बहुत गर्म है सांस!
8.आम-नीम मिलि बैठकर, रहे आपस में बतियाय,
हिलें-डुलें तब हवा चले, कुछ पुन्य बटोरा जाय।
9.अर्थव्यवस्था सी नदिया भई, दुबली-पतली बे-नीर,
अब बादल बेलआउट मिले, तो मिटे सभी की पीर!
10. लैला-मजनू बतियात थे, करते जुल्फ़ों, नयनों की बात,
पानी देख लैला भगी, भरने लगी वो गगरी, ग्लास, परात!
11.नल पर लंबी लाइन है, मचा है पानी हित हाहाकार,
अब तो जो पानी पिलवाय दे , है वही नया अवतार।
अनूप शुक्ल
* सभी फोटो फ़्लिकर से आभार सहित।
जगह-जगह कालोनियों में हरियाली तीज का उत्सव मनाने के इंतजार में लोग सजधज रहे हैं। रेन डांस के लिये लोग बादलों का इंतजार छोड़कर लोग बोरिंग के पानी से कृत्तिम रेन डांस (बरखा नाच) का इंतजार कर रहे हैं। छातों और रेनकोट बनाने/बेचने वालों के चेहरे कुम्हलाये हुये हैं।
कुछ लोग बरसात के न आने को बादल-बदली के चरित्र से जोड़ रहे हैं और दोहाबाजी कर रहे हैं:
बदरा, बदरी के संग में, हुआ जाने कहां फ़रार,कुछ लोगों का मत है कि बादल को बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने हाईजैक कर लिया है। उसको उड़ाकर ले गये हैं और अपने गोदामों में कैद कर लिया है। जब पानी की किल्लत होगी तब बादल के टुकड़े-टुकड़े करके उसको बोतल में भर के बेचेंगे।
बारिश के लाले पड़े, मचा है सबहन* हाहाकार!
हमारे एक अध्यापक मित्र बता रहे हैं कि मेघ को बड़े लोगों ने अपना दूत बनाकर कहीं भेज दिया होगा प्रेमपत्र अपनी प्रेमिका को देने के लिये। पहले भी ऐसा होता था लेकिन तब बादल अपना बरसने का काम भी कर लेते थे। लेकिन इस बार शायद उसको हिदायत मिली होगी -खबरदार अगर चिट्ठी देने के अलावा और कोई काम किया तो। बादल बेचारा मारे डर के अपना मूल काम छोड़कर वीआईपी प्रेमिका का हरकारा बनकर रह गया होगा जैसे सरकारी स्कूल के अध्यापक पढ़ाने के अलावा और तमाम कामों ( जनगणना, चुनाव, दोपहर भोजन योजना आदि) में उलझे रहते हैं।
एक आशंका यह भी है कि बच्चा बादल को किसी संपन्न किसान ने अगवा करके बंधुआ बना लिया हो और अपने इलाके में उससे बेगार मजदूरी करा रहा हो। मौसम पुलिस भी बड़े किसान की तरफ़दारी कर रही है और बच्चा बादल की मुक्ति के लिये कोई उपाय नहीं कर रही है।
बाढ़ राहत के पैसे का इंतजार कर रहे लोगों की आंखों में झांई पड़ने लगी है! उनके दिल सूखे में डूबे जा रहे हैं। बाढ़ राहत राहत कार्यक्रम की फ़ाइलें पहले से तैयार किये वे बीच-बीच में अपने साहब से पूछ रहे हैं- साहब क्या बाढ़ की जगह फ़ाइलों में सूखा लिखवा लें? साहब फ़ाइलों को हफ़्ते भर बाद पेश करने के लिये कहकर बारिश का इंतजार कर रहे हैं।
मौसम मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने नाम न बताने की शर्त पर सूचना दी कि चूंकि बादल आने में देरी हुई है इसलिये उसकी असलियत की जांच हो रही है। पासपोर्ट चेक किया जा रहा है। अगर जांच में बादल असली पाया गया तो उसको बरसने की इजाजत दी जायेगी। नकली पाया गया तो उसको बालकृष्ण की तरह अंदर कर दिया जायेगा। लोगों ने जांच में देरी होने की दशा में सूखे की आशंका जताई तो मंत्रालय के प्रवक्ता ने बयान जारी किया कि मंत्रालय के काम करने की अपनी गति है। उसमें किसी का हस्तेक्षप सहन नहीं किया जा सकता।
शहर की नालियां उफ़नाने के लिये तैयार हैं। गढ्ढे लबालब होने की आस में गहरे हुये जा रहे हैं। सड़क की धूल इंतजार में है कि पानी बरसे तो उसके संगम से वह कुछ दिन के लिये कीचड़ में बदल सके। सीवर लाइन का पानी, पानी की लाइनों के पानी से मिलन के लिये बेताब है। रेलगाडियां सोच रही हैं कि पानी बरसें तो कुछ दिन के लिये वे पटरियों पर ठहरकर आराम कर सकें। मुंबई की सड़कें डूबने के लिये बेताब हैं। सब लगातार बादल को फ़ोन कर रहे हैं लेकिन उसका नम्बर नेटवर्क एरिया के बाहर बता रहा है।
बरसाती बीमारियां भी अपनी बारी का इंतजार कर रही हैं। वे देरी से आलने के लिये बादल को उलाहना देते हुये ट्विट कर रही हैं- डियर बादल! तुम आये इतै न कितै दिन खोये। बरसात के स्वागत के लिये मेढक वगैरह ने भी टर्राने के लिये रियाज करना शुरु कर दिया है। मोरों ने भी नाचने के लिये अपने पैरों का वार्मअप शुरू कर दिया है। उधर मानस मर्मज्ञ गृहस्थ जीव बादलों की गरज का इंतजार कर रहे हैं ताकि वे अपना प्रिया हीन होने का चिरकुट राग अपने फ़ेसबुक/ट्विटर पर गा सकें।
कुछ लोग बता रहे हैं बादल भन्नाया हुआ है। वह लोगों के धरती के साथ किये बुरे व्यवहार की सजा देने का मन बना के निकला है इस बार ऊपर से। जो पानी वह बरसाता है उसके साथ हुये बुरे सुलूक को देखकर वह अनमना सा हो गया है और बरसने का मूड नहीं बना पाया है। उखड़े हुये मूड के चलते वह जमकर बरस नहीं पा रहा है।
कुछ कर्मचारी नेताओं ने बादल मैनेजमेंट पर यह आरोप लगाया है कि बादल को उसके काम के अनुरूप न्यूनतम वेतन नहीं मिलता। इसके अलावा उसको केवल बारिश के दिनों के काम का वेतन मिलता है। बाकी दिनों की पगार न मिलने से उसका मूड़ उखड़ा रहता है। मंहगाई के चलते उसकी माली हालत बिगड़ी रहती है। ऐसे में वह अपना काम मन लगाकर कर नहीं पाता।
बादल मैनेजमेंट बादल की परेशानी का एहसास किये बिना उसको काम से गैरहाजिर मानकर काम नहीं तो वेतन नहीं की नोटिसें जारी कर चुका है। मैनेजमेंट में तो कुछ छुटभैये बादलों को निलंबित करने का भी प्रस्ताव पास हो गया है लेकिन मनेसर के मारुति कारखाने में हुई मारपीट खबर सुनकर उन्होंने प्रस्ताव पर अमल करने से अपने को रोक लिया है।
ओह एक मिनट! फ़ोन बज रहा है। बादल का फोन है। लगता है उसने मेरी पोस्ट ड्राफ़्ट में बांच ली है। इसलिये अपनी सफ़ाई में कुछ कहना चाहता है। शायद इसीलिये फोनिया रहा है। आते हैं जरा बतिया के तब तक आप नीचे के दोहे बांचिये।
मेरी पसंद
1.बदरा, बदरी के संग में, हुआ जाने कहां फ़रार,बारिश के लाले पड़े, मचा है सबहन* हाहाकार!
सबहन*= सब जगह
2.फ़्रिज से कुल्फ़ी निकलकर, ऐंठी गरदन अकड़ाय,
गर्मी ने झप्पी दई, दिया फ़ौरन उसको पिघलाय!
3.बादल धरती के ऊपर दिखा, गये सूरज जी भन्नाय,
’आपरेशन मजनू’ को याद कर, बादल फ़ूटा जान बचाय!
4.लू-लपटों के संग रह, सड़कों के भी बिगड़े हाल,
सुबह दिखे जो शान्त सी, झुलसाती तलवों की खाल!
5.पानी, पना पिलाय के , कोई देय पपीता खिलवाय,
लस्सी, पेप्सी के संग में,गर्मी भी खिल-खिल जाये।
6.एसी, फ़ेसी सब फ़ेल भये, कूलर भी मांगे खैर,
बिजली बिन कुछ न चले, जिसका गर्मी से बैर!
7.बूंद पसीने की चली, अटकी भौहों के पास,
बढ़ने की हिम्मत नहीं ,बहुत गर्म है सांस!
8.आम-नीम मिलि बैठकर, रहे आपस में बतियाय,
हिलें-डुलें तब हवा चले, कुछ पुन्य बटोरा जाय।
9.अर्थव्यवस्था सी नदिया भई, दुबली-पतली बे-नीर,
अब बादल बेलआउट मिले, तो मिटे सभी की पीर!
10. लैला-मजनू बतियात थे, करते जुल्फ़ों, नयनों की बात,
पानी देख लैला भगी, भरने लगी वो गगरी, ग्लास, परात!
11.नल पर लंबी लाइन है, मचा है पानी हित हाहाकार,
अब तो जो पानी पिलवाय दे , है वही नया अवतार।
अनूप शुक्ल
* सभी फोटो फ़्लिकर से आभार सहित।
Posted in बस यूं ही | 15 Responses
बरसाती बीमारियां भी अपनी बारी का इंतजार कर रही हैं। वे देरी से आलने के लिये बादल को उलाहना देते हुये ट्विट कर रही हैं- डियर बादल! तुम आये इतै न कितै दिन खोये। बरसात के स्वागत के लिये मेढक वगैरह ने भी टर्राने के लिये रियाज करना शुरु कर दिया है। मोरों ने भी नाचने के लिये अपने पैरों का वार्मअप शुरू कर दिया है। उधर मानस मर्मज्ञ गृहस्थ जीव बादलों की गरज का इंतजार कर रहे हैं ताकि वे अपना प्रिया हीन होने का चिरकुट राग अपने फ़ेसबुक/ट्विटर पर गा सकें।
ये काम सब लोग कर चुके अब रमजान कि बधाईयाँ देने की होड़ लगी है
amit srivastava की हालिया प्रविष्टी.." कैसे भूल जाऊं ..तुम्हारा जन्मदिन….."
मल्हार गए जाते है और तो और मेढक भी नहीं टर्राते . ये भी कोई बात हुई .
अपने स्वागत में कमी के कारण वो नाराज चल रहा है. या तो इन्द्र देव वरुण
देवता को फोर्स्ड लिव पर भेज दिये है .
ashish kanpuria की हालिया प्रविष्टी..सागरमाथा के देश में
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..उर्वशी, एक परिचय
ये लाइनें बहुत मजेदार लगीं…
डियर बादल! तुम आये इतै न कितै दिन खोये।
बूंद पसीने की चली, अटकी भौहों के पास,
बढ़ने की हिम्मत नहीं ,बहुत गर्म है सांस!
aradhana की हालिया प्रविष्टी..अकेली औरत
अजय कुमार झा की हालिया प्रविष्टी..एक रविवार हुआ करता था …
हमको तो लगता है कि बादल कवियों और धरती से बदला ले रहा है.वह अपनी प्रेमिका धरती से नाराज़ है.इस समय उसका सूखे के साथ चक्कर जो चल रहा है
कवि अब खूब सूखे के गीत गा सकते हैं.
एक जगह सुना था कि छोटी कविता कवि के मन की बात होती है और लंबी कविता कवि की खुद से लड़ाई। अब एक लाइन से बढ़कर दो लाइन हुए हैं, फिर खण्ड काव्य और फिर महाकाव्य… हा हा हा हा हा
शायद बादलों पर कोई असर हो… वैसे गर्मी के बिंब अब तक काम में लिए जा सकते हैं, राजस्थान का अधिकांश भाग सूख पड़ा है। इधर के पाठकों के लिए भेज दीजिए…