http://web.archive.org/web/20140420081204/http://hindini.com/fursatiya/archives/3290
तीन दिन पहले जबलपुर से कानपुर जा रहे थे। ट्रेन कानपुर के पास पहुंचने वाली थी। मोबाइल पर नेटवर्क दिखा तो फ़ेसबुक पर संदेशा सटा दिया-मजाक-मजाक में ब्लॉगिंग के 8 साल पूरे हो गये। आज के ही दिन 2004 में लिखी थी पहली पोस्ट! उस दिन तारीख थी उन्नीस अगस्त!
बाद में याद आया कि ये सूचना तो एक दिन पहले सटा दी थी। ब्लॉगिंग तो हमने 20 को शुरु की थी। बहरहाल अब जो हो गया सो हो गया। बधाईयां और उलाहने आ गये थे। अब उनको मटिया के नया स्टेटस क्या डालते।
सोचा था कि 20 को एक पोस्ट लिखी जायेगी जिसमें पिछ्ले साल का लेखा-जोखा दिया जायेगा। कुछ ब्लॉगिंग प्रवचन दिये जायेंगे। ब्लॉगिंग की स्थिति के बारे में बयान जारी किये जायेंगे। कोई माने या न माने लेकिन हमें यह मानने से कौन रोक सकता है कि हम ब्लॉगजगत के सबसे पुराने लोगों में हैं।
लेकिन घर में ऐसा हो न सका। बिजी-उजी हो गये। फ़िर लौटने का समय हो गया। लौट आये। आज सोचते हैं एक पोस्ट घसीट ही दी जाये। मौका-दस्तूर तो है जी। सुबह जल्दी उठ गये तो टाइम भी है काम भर का।
ब्लॉगिंग से जुड़ी अपनी पिछली सालगिरह वाली पोस्टों में पहले के किस्से हम बता ही चुके हैं। अब उनको क्या दोहरायें। बात पिछली ब्लॉगिंग सालगिरह से। पिछले साल जब हमने फ़ुरसतिया की सालगिरह पोस्ट लिखी थी तो हमको रविरतलामी जी ने साल भर का “ब्लॉगवर्क” दिया था- इस साल आप १०० फुरसतिया टाइप पोस्ट लिखेंगे. पूरा मौलिक. रीठेल नहीं चलेगा.
हमने रविरतलामी के कहने पर रिठेल वाली पोस्टें तो एकदम बन्द कर दीं। जो पुरानी पोस्ट सटानी हुयी उसे फ़ेसबुक पर सटा दिया लेकिन ब्लॉग पर रिठेल टोट्टली स्टाप कर दिया। लेकिन 100 लेख वाला काम 60 तक ही हो पाया। अब इसका मतलब क्या समझा जाये कि हम फ़र्स्ट डिवीजन पास हुये कि एकदम फ़ेल।
कुछ मित्रों ने दिलासा देते हुये कहा कि संख्या नहीं गुणवत्ता जरूरी होती है। इसका मतलब यह लिया जाये क्या कि साठ कूड़ा लेख लिखने के लालच में फ़ंसने की बजाय एक लेख भी कायदे का लिखा होता।
ब्लॉगिंग के आठ सालों के अनुभव मजेदार रहे हैं। शुरुआती दिनों में हालत यह थी कि ब्लॉगिंग के बारे में कहीं भी कुछ छप जाये तो उसकी चर्चा हफ़्तों करते थे। आज हाल यह है कि लगभग हर अखबार माले-मुफ़्त-दिले-बेरहम बना ब्लॉग से मसाला उठाकर छाप लेता है। ब्लॉगर मस्त कि हम अखबार में छपे। अखबार मस्त कि पैसे बचे। अखबार बेचारे बहुत गरीब हो गये हैं। वे पत्रकारों को पैसा नहीं देते, लेखक को मानदेय नहीं देते। बस देश-दुनिया की भलाई में लगे पैसा-पावर कमाते रहते हैं।
जो हो लेकिन अब ब्लॉग उपेक्षित माध्यम नहीं रहा। बड़े-बड़े लोग अब अपने ब्लॉग लिखते हैं। उनकी चर्चा मीडिया में होती है। उसके लिंक इधर-उधर होते हैं। यहां भी गुटबाजी-गिरोहबाजी जैसी सांस्कृतिक गतिबिधियां होती हैं। हर गुट गिरोह के अपने-अपने सबसे अच्छे ब्लॉगर हैं।
गुटबाजी-गिरोहबाजी कहना शायद ठीक नहीं होगा। इसकी जगह यह लिखना ठीक होगा कि यहां भी लाइक-माइंडेड लोग होते हैं। लोग एक-दूसरे का लिखा हुआ पढ़ते हैं। लाइक करते हैं। फ़िर लिखने वाले को लाइक करते हैं। फ़िर उसके लेखन से बोर होते हैं। लिखने वाले से बोर होते हैं। फ़िर अनलाइक करते हैं। लाइक और अनलाइक करने के बीच आपस में एक दूसरे के बारे में कुछ पोस्टें भी निकाल लेते हैं। ब्लॉगिंग को समृद्ध करते हैं।
कुछ भले मन वाले लोग ब्लॉगिंग में आई गिरावट से चिंतित रहते हैं! कभी-कभी तो उनकी चिंता देखकर ऐसा लगता है कि काश कोई ऐसा जैक होता जिससे कि नीचे गिरती ब्लॉगिंग को उचका के ऊंचा कर दिया जाता।
इस बीच ब्लॉग से शुरु करके अखबार-सखबार में छपने वाले साथियों के बयान भी सुनने में आये कि – अब मैं ब्लॉग में नहीं अखबार में लिखता हूं। कुछ दिन बाद बयान आया कि बहुत गुटबाजी है अखबारों में।
अब देखा जाये तो कहां नहीं गुटबाजी! आदमी के अपने मन के अंदर तक गुटबाजी है। मन की भली ताकतें जूझती रहती हैं बुरी ताकतों से। जब सब जगह है गुटबाजी तो इससे इत्ता हलकान काहे हुआ आये। मस्त होकर गुटबाजी मतलब लाइक मांइडेडनेस के नजारे देखे जायें।
बहरहाल अभिव्यक्ति की इस अद्भुत विधा में आठ साल पूरे होने के मौके पर इस सफ़र के शुरुआती साथियों रविरतलामी, देबाशीष, पंकज नरूला, ई-स्वामी, जीतेंन्द्र चौधरी, रमन कौल, अतुल अरोरा आदि को फ़िर से याद करता हूं।
रविरतलामी का लेख न पढ़ा होता तो ब्लॉग बनाने का विचार न आता। ई-स्वामी न मिले होते हो ये साइट न होती। देबाशीष के ब्लॉगजगत में योगदान के से आज के लोग अपरिचित हैं यह भी ब्लॉगिंग की प्रवृत्ति की निशानी है। जीतेंद्र चौधरी हमेशा की तरह अब भी एक ई-मेल की दूरी पर हैं लेकिन उनका पन्ना अब नया नहीं होता। हमारा जी-मेल का ई-मेल खाता हमको पंकज नरूला उर्फ़ मिची सेठ ने दिया था जब जी-मेल का खाते पर राशनिंग थी।
अतुल अरोरा और रमन कौल के लेखों का हम अभी भी याद, इंतजार और मिस करते हैं। लेकिन लगता है सब लोग रोटी-पानी की चिंता में व्यस्त हो गये हैं।
अपने तमाम पाठकों का शुक्रिया कि वे हमको पढ़ें न पढ़ें लेकिन अपनी टिप्पणियों से मेरे मन में यह भ्रम पैदा करने में सहयोग करते रहे कि हमारा लिखा पढ़ने वाले कुछ लोग हैं।
जब तक यह भ्रम बना रहेगा हम ब्लॉगिंग करते रहेंगे।
सूचना: एक , दो ,तीन , चार , पांच , छह और सात साल के पूरे होने के किस्से।
…और ये फ़ुरसतिया के आठ साल
By फ़ुरसतिया on August 22, 2012
बाद में याद आया कि ये सूचना तो एक दिन पहले सटा दी थी। ब्लॉगिंग तो हमने 20 को शुरु की थी। बहरहाल अब जो हो गया सो हो गया। बधाईयां और उलाहने आ गये थे। अब उनको मटिया के नया स्टेटस क्या डालते।
सोचा था कि 20 को एक पोस्ट लिखी जायेगी जिसमें पिछ्ले साल का लेखा-जोखा दिया जायेगा। कुछ ब्लॉगिंग प्रवचन दिये जायेंगे। ब्लॉगिंग की स्थिति के बारे में बयान जारी किये जायेंगे। कोई माने या न माने लेकिन हमें यह मानने से कौन रोक सकता है कि हम ब्लॉगजगत के सबसे पुराने लोगों में हैं।
लेकिन घर में ऐसा हो न सका। बिजी-उजी हो गये। फ़िर लौटने का समय हो गया। लौट आये। आज सोचते हैं एक पोस्ट घसीट ही दी जाये। मौका-दस्तूर तो है जी। सुबह जल्दी उठ गये तो टाइम भी है काम भर का।
ब्लॉगिंग से जुड़ी अपनी पिछली सालगिरह वाली पोस्टों में पहले के किस्से हम बता ही चुके हैं। अब उनको क्या दोहरायें। बात पिछली ब्लॉगिंग सालगिरह से। पिछले साल जब हमने फ़ुरसतिया की सालगिरह पोस्ट लिखी थी तो हमको रविरतलामी जी ने साल भर का “ब्लॉगवर्क” दिया था- इस साल आप १०० फुरसतिया टाइप पोस्ट लिखेंगे. पूरा मौलिक. रीठेल नहीं चलेगा.
हमने रविरतलामी के कहने पर रिठेल वाली पोस्टें तो एकदम बन्द कर दीं। जो पुरानी पोस्ट सटानी हुयी उसे फ़ेसबुक पर सटा दिया लेकिन ब्लॉग पर रिठेल टोट्टली स्टाप कर दिया। लेकिन 100 लेख वाला काम 60 तक ही हो पाया। अब इसका मतलब क्या समझा जाये कि हम फ़र्स्ट डिवीजन पास हुये कि एकदम फ़ेल।
कुछ मित्रों ने दिलासा देते हुये कहा कि संख्या नहीं गुणवत्ता जरूरी होती है। इसका मतलब यह लिया जाये क्या कि साठ कूड़ा लेख लिखने के लालच में फ़ंसने की बजाय एक लेख भी कायदे का लिखा होता।
ब्लॉगिंग के आठ सालों के अनुभव मजेदार रहे हैं। शुरुआती दिनों में हालत यह थी कि ब्लॉगिंग के बारे में कहीं भी कुछ छप जाये तो उसकी चर्चा हफ़्तों करते थे। आज हाल यह है कि लगभग हर अखबार माले-मुफ़्त-दिले-बेरहम बना ब्लॉग से मसाला उठाकर छाप लेता है। ब्लॉगर मस्त कि हम अखबार में छपे। अखबार मस्त कि पैसे बचे। अखबार बेचारे बहुत गरीब हो गये हैं। वे पत्रकारों को पैसा नहीं देते, लेखक को मानदेय नहीं देते। बस देश-दुनिया की भलाई में लगे पैसा-पावर कमाते रहते हैं।
जो हो लेकिन अब ब्लॉग उपेक्षित माध्यम नहीं रहा। बड़े-बड़े लोग अब अपने ब्लॉग लिखते हैं। उनकी चर्चा मीडिया में होती है। उसके लिंक इधर-उधर होते हैं। यहां भी गुटबाजी-गिरोहबाजी जैसी सांस्कृतिक गतिबिधियां होती हैं। हर गुट गिरोह के अपने-अपने सबसे अच्छे ब्लॉगर हैं।
गुटबाजी-गिरोहबाजी कहना शायद ठीक नहीं होगा। इसकी जगह यह लिखना ठीक होगा कि यहां भी लाइक-माइंडेड लोग होते हैं। लोग एक-दूसरे का लिखा हुआ पढ़ते हैं। लाइक करते हैं। फ़िर लिखने वाले को लाइक करते हैं। फ़िर उसके लेखन से बोर होते हैं। लिखने वाले से बोर होते हैं। फ़िर अनलाइक करते हैं। लाइक और अनलाइक करने के बीच आपस में एक दूसरे के बारे में कुछ पोस्टें भी निकाल लेते हैं। ब्लॉगिंग को समृद्ध करते हैं।
कुछ भले मन वाले लोग ब्लॉगिंग में आई गिरावट से चिंतित रहते हैं! कभी-कभी तो उनकी चिंता देखकर ऐसा लगता है कि काश कोई ऐसा जैक होता जिससे कि नीचे गिरती ब्लॉगिंग को उचका के ऊंचा कर दिया जाता।
इस बीच ब्लॉग से शुरु करके अखबार-सखबार में छपने वाले साथियों के बयान भी सुनने में आये कि – अब मैं ब्लॉग में नहीं अखबार में लिखता हूं। कुछ दिन बाद बयान आया कि बहुत गुटबाजी है अखबारों में।
अब देखा जाये तो कहां नहीं गुटबाजी! आदमी के अपने मन के अंदर तक गुटबाजी है। मन की भली ताकतें जूझती रहती हैं बुरी ताकतों से। जब सब जगह है गुटबाजी तो इससे इत्ता हलकान काहे हुआ आये। मस्त होकर गुटबाजी मतलब लाइक मांइडेडनेस के नजारे देखे जायें।
बहरहाल अभिव्यक्ति की इस अद्भुत विधा में आठ साल पूरे होने के मौके पर इस सफ़र के शुरुआती साथियों रविरतलामी, देबाशीष, पंकज नरूला, ई-स्वामी, जीतेंन्द्र चौधरी, रमन कौल, अतुल अरोरा आदि को फ़िर से याद करता हूं।
रविरतलामी का लेख न पढ़ा होता तो ब्लॉग बनाने का विचार न आता। ई-स्वामी न मिले होते हो ये साइट न होती। देबाशीष के ब्लॉगजगत में योगदान के से आज के लोग अपरिचित हैं यह भी ब्लॉगिंग की प्रवृत्ति की निशानी है। जीतेंद्र चौधरी हमेशा की तरह अब भी एक ई-मेल की दूरी पर हैं लेकिन उनका पन्ना अब नया नहीं होता। हमारा जी-मेल का ई-मेल खाता हमको पंकज नरूला उर्फ़ मिची सेठ ने दिया था जब जी-मेल का खाते पर राशनिंग थी।
अतुल अरोरा और रमन कौल के लेखों का हम अभी भी याद, इंतजार और मिस करते हैं। लेकिन लगता है सब लोग रोटी-पानी की चिंता में व्यस्त हो गये हैं।
अपने तमाम पाठकों का शुक्रिया कि वे हमको पढ़ें न पढ़ें लेकिन अपनी टिप्पणियों से मेरे मन में यह भ्रम पैदा करने में सहयोग करते रहे कि हमारा लिखा पढ़ने वाले कुछ लोग हैं।
जब तक यह भ्रम बना रहेगा हम ब्लॉगिंग करते रहेंगे।
सूचना: एक , दो ,तीन , चार , पांच , छह और सात साल के पूरे होने के किस्से।
Posted in बस यूं ही, संस्मरण | 44 Responses
आशीष श्रीवास्तव की हालिया प्रविष्टी..हिग्स बोसान मिल ही गया !
आशीष श्रीवास्तव की हालिया प्रविष्टी..हिग्स बोसान मिल ही गया !
रवि की हालिया प्रविष्टी..महंगाई से कौन साला दुःखी होता है?
रविरतलामी, धन्यवाद। आपने अगले साल का टार्गेट नहीं बताया।
….आपको साल में साठ पोस्ट लिखने पर सठियाने की बधाई !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..अमन की अपील !
धन्यवाद!
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..तुझपे दिल कुर्बान!!
खूब मौज लेते हैं बिहारी बाबू! जय हो!
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..मैंने कब किसी को कहा ब्लागरा या ब्लॉग वालियां!?
अब देखते हैं रवि साहब कित्ता टार्गेट देते हैं अगले साल के लिए, सौ चाहियें तो कम से कम एक सौ सड़सठ का टार्गेट देना पड़ेगा|
संजय अनेजा की हालिया प्रविष्टी..किस्साकिस्से
७.किसी पोस्ट पर आत्मविश्वासपूर्वक सटीक टिप्पणी करने का एकमात्र उपाय है कि आप टिप्पणी करने के तुरंत बाद उस पोस्ट को पढ़ना शुरु कर दें। पहले पढ़कर टिप्पणी करने में पढ़ने के साथ आपका आत्मविश्वास कम होता जायेगा।
अगले साल का टार्गेट अभी तक मिला नहीं है। इसलिये टार्गेट ४०, १००, १६० में से कुछ भी रख सकते हैं।
संजय अनेजा की हालिया प्रविष्टी..किस्साकिस्से
rachna की हालिया प्रविष्टी..अपनी इज्ज़त करना सीखिये "ब्लॉग वालियों" और दूसरो को भी सिखाइये को वो आप की इज्ज़त करे .
बधाई-शधाई तो है ही लेकिन थोड़ा और फुरसतियाइये अगली पोस्ट मे…
अपने बारे में कहूँ तो आपका ब्लॉग उन पहले ब्लॉगों में था जिन्हें पढ़ना शुरू किया था…
और अब भी मैं इसे हिन्दी के उन चुनिन्दा बेहतरीन ब्लॉग्स में से एक मानता हूँ जिनपर घंटों बिना बोर हुए बिताए जा सकते हैं..आपकी ब्लॉग पर से यह सोच के नहीं जाता है पाठक कि अब कुछ है नहीं पढ़ने को बल्कि यह सोचकर जाना पड़ता है कि कितना पढ़ें… बहुत माल बचा है.. अब बाकी बाद में देखेंगे… अभी भी पुरानी दसियों पोस्टें बची हैं आपकी जिन्हें नहीं देखा पर देखने का मन है..
ब्लॉगिंग में कितने लोगों की लिखने की शैली को आपने प्रभावित किया है इसका अंदाजा आपको खुद नहीं होगा.. मैं खुद उनमें से एक हूँ… कभी कभी अपनी कोई पोस्ट ‘डुप्लिकेट मार्का फ़ुरसतिया पोस्ट’ लगती है…. हालांकि कोई-कोई पोस्ट ही.. बाकी उस लेवल तक भी नहीं पहुँच पाती…
सतीश चंद्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..टर्किश लैंगुएज सेल्फ स्टडी – तुर्की भाषा अल्फाबेट
दिल करता है बधाई-सधाई वापिस ले जाऊं …….. लेकिन लोक-समाज इसे ब्यव्हारिकता में तंग-दिल कहेंगे.
ई पोस्ट हम जैसे पाठकों के लिए ‘हवाई मिठाई’ है जो लोग खा तो लेते हैं समझ नहीं पाते…….तमाम सुधि प्रशंसकों के तरह हम भी ‘फुरसतिया-भाईजी’ को इस्तकबाल करते हैं के ओ अपने ‘प्राकृतिक मौजिये शैली को ब्लॉग जगत में अक्षणु रखें……………
हम उन सभी ‘कारकों’ का घोर भर्त्सना करते हैं जो हमारे ‘फुरसतिया-भाईजी’ को उनके मौलिक लेखन पर
वक्तिगत लानत-मलानत कर उनके लेखनी से हमें दूर करना चाहते हैं……….
बकिया, इस पोस्ट पर हम आज जो कहना चाहते थे….ओ बात/जज्बात पिछले पोस्ट सॉरी जन्मदिन सॉरी ब्लॉग की’ ……… पोस्ट पर ‘लहरों वाली पूजाजी’ ने कह दी है………
प्रणाम.
आठ की ख़ुशी में साठ, तो नौ की ख़ुशी में सौ पोस्टें लिख डालिए
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..दोस्त…
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..स्तब्धता
यह भी हिम्मत का काम है कि बिना रीठेल निरंतरता बनाये रखी.
वो भी पूरे आठ साल!
ब्लॉग रिपोर्ट कार्ड में फर्स्ट डिविशन या पोस्ट के अंकों की बात न करें क्योंकि आप के एक लेख से एक औसत क्षमता का ब्लोगर कम से कम अपनी ५-६ पोस्ट आराम से बना सकता है .इसलिए जितनी छपी है उन्हें ५ से गुना कर दिजीये.वही आप का फाईनल स्कोर होगा .
बेशक आप ने हिंदी ब्लॉग्गिंग को सकारात्मक रूप से समृद्ध किया है.
आगे भी आप की कलम यूँ ही चलती रहे .शुभकामनाएँ
Alpana की हालिया प्रविष्टी..कुछ बातें बस ऐसे ही…
@. अब मैं ब्लॉग में नहीं अखबार में लिखता हूं। कुछ दिन बाद बयान आया कि बहुत गुटबाजी है अखबारों में”।इंसान का स्वभाव है जहाँ रहता वहाँ से कभी संतुष्ट नहीं रहता .और खासकर फ्री में मिली हुई चीज में तो खोट ही नजर आता है तो सोचने का नहीं, बस लिखने का.ब्लॉग्गिंग जिंदाबाद
हमको मानना तो पड़ेगा हुजूर! आखिर बात सही है।
६० हो गया तो पास हो गए, मेरी तरफ से पास।
लाइक और अनलाइक करने के बीच आपस में एक दूसरे के बारे में कुछ पोस्टें भी निकाल लेते हैं। ब्लॉगिंग को समृद्ध करते हैं।
बढिया फलसफा।
लेकिन लगता है सब लोग रोटी-पानी की चिंता में व्यस्त हो गये हैं।
पुराने लोगों के साथ तो यह सही लगता है हमें भी।
भ्रम बरकरार रहेगा।
हा हा हा।
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..‘अंग्रेजी ग्लोबल है’ (लघुकथा)
amit srivastava की हालिया प्रविष्टी.." बहुत कठिन है डगर …….ब्लागिंग की …….."
आपका पिछले दिनों एक लेख पढ़ा था जहाँ बंगलोरे को कंग्लोरे कर दिया गया था व्यवस्था अनुभाग के अनुभव के आधार पर मेरा विचार है की ऐसा कभी कभी जन बुझ कर भी किया जाता है मतलब फाइल पर काम पूरा लेकिन फर्म को पत्र मिले ही नहीं
हम भी रोटी-पानी की चिन्ता में व्यस्त हो जाते हैं बीच-बीच में…लेकिन जब भी समय मिलता है लिख लेते हैं, कोई पढ़े या ना पढ़े.
कलक्टरगंज वाली पोस्ट का शीर्षक याद है मुझे . अब ये तो आपको मानना पड़ेगा की पूरी पोस्ट याद रहे न रहे शीर्षक और कुछ लाइने तो याद रहती ही हैं
या बोर हो गए हैं या राईटर्स ब्लॉक आ गया है!
amit की हालिया प्रविष्टी..मैं भारतीय…..
उन्मुक्त की हालिया प्रविष्टी..नैनीताल झील की गहरायी नहीं पता चलती
manish की हालिया प्रविष्टी..काव्यशेष आकाश
अच्छा याद दिलाया कि हमें भी तीन वर्ष पूरे हो गये , बस बधाई लेना ही भूल गये !
वाणी गीत की हालिया प्रविष्टी..ऐसा भी कोई मित्र होता है भला ?
८ वर्ष पूरे होने पर बधाइयाँ
ये वाला आठ (८) देख कर मज़ा आ गया
आशीष श्रीवास्तव
shefali pande की हालिया प्रविष्टी..सुगम के माने सौ – सौ ग़म, यह मान लीजिये