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देश में चुनाव की घोषणा हो गयी है। कुछ पार्टियों ने घोषणा की है वे सिर्फ़ ईमानदार प्रत्याशियों का चयन करेंगी।
तमाम ईमानदार उमड़ पड़े हैं चुनाव में टिकट पाने के लिये। कुछ को उनके घर वालों ने ठेल-ठाल कर भेजा है-अभी तक तो कष्ट ही मिले हैं तुम्हारी इस मुई ईमानदारी के चलते। जाओ, देखो क्या पता इस बार टिकट ही मिल जाये।
कुछ ऐसे भी हैं जिनको उनके दफ़्तर वालों ने जबरिया त्यागपत्र दिलाकर भेज दिया कहते हुये – यहां पेंशन लो वहां देश सेवा करो! कम से कम दफ़्तर में कुछ काम तो होने दो। स्पीडब्रेकर की तरह जमे हो न जाने कब से।
चुनाव दफ़्तर के बाहर बहुत भीड़ है। कुछ को उनके घर वाले कांवरियों की तरह ढोकर लाये हैं। वे चाहते हैं उनके बुजुर्ग की ईमानदारी किसी काम तो आ जाये। कुछ के दोस्त उनके दोस्त क्रेन पर टांगे हुये हैं ताकि उनकी ईमानदारी सबसे ऊपर दिखे।
लोग अपने साथ ईमानदारी के प्रमाणपत्र भी लाये हैं। कुछ अपने साथ अपनी बैंक की सूनी पासबुक लाये हैं। कुछ अपनी ए.सी.आर. की फ़ोटोकापी लाये हैं जिनमें उनकी सत्यनिष्ठा असंदिग्ध बतायी गयी है। कुछ अपनी ईमानदारी के चलते निलंबित होने, पिटने, जान से मारने की धमकी मिलने के सबूत दिखाने के लिये अखबारों की फोटोकापी लाये हैं।
नये जमाने के ईमानदार अपने मोबाइल पर ईमानदारी वाले वक्तव्यों के स्टेटस चमका रहे हैं।
जिनको लगता है कि इनके चलते उनका टिकट कट जायेगे वे दूसरों की ईमानदारी की पोल खोलते जा रहे हैं। बता रहे हैं – ये जो अपनी पासबुक लाये हैं वह तो केवल चुनाव के लिये खोली है इसने। इसकी बाकी पासबुक देखी जायें। करोड़ों-अरबों जमा हैं वहां। स्विस बैंक में भी खाता है। ये छ्द्म ईमानदार हैं। इनको टिकट मिला तो ईमानदारी कैसे कायम होगी।
गरीब पासबुक वाला उसका गिरेबान पकड़कर भिड़ रहा है। हमको बेईमान बताता है।
चोट्टा कहीं का! खुद कमीशन खाता है। अगर लोकपाल लागू हो जाता तो अब तक
जेल में आत्मकथा लिख रहा होता।
कमीशन वाला अपना बचाव करते हुये बता रहा है- हमने कोई कमीशन नहीं खाया आजतक। लेकिन कोई अपनी खुशी से कुछ दे जाये तो कैसे मना करें। किसी की खुशी में क्यों रोड़ा बनें। हम खुशहाल ईमानदार हैं। हमारी ईमानदारी के चलते किसी को कष्ट नहीं होना चाहिये।
इस बीच कोई जबर ईमानदार दोनों ईमानदारों को धकियाकर आगे आ जाता है। अपने प्रमाणपत्र मेज पर पटककर -वन्देमातरम का नारा लगाता है। अपेक्षित प्रभाव न होता देख -भारत माता की जय भी चिल्ला देता है। उसके पास एक डायरी है जिसमें उसने तिथिवार दर्ज कर रखा है कि किस दिन उसने कितने रुपये की घूस की पेशकश टुकराई। कुल तीन करोड़ पचीस लाख तीन हजार पचहत्तर रुपये ठुकराने का हिसाब दर्ज है उसमें। हिसाबी ईमानदार है। अपनी ईमानदारी का साल-दर-साल रिटर्न अपनी डायरी में दाखिल किया है।
एक दूसरा टिकटार्थी उसके विवरण को फ़र्जी बताते हुये तर्क पेश करता है-”ये आंकड़े फ़र्जी हैं। घूस देने वालों को बेवकूफ़ समझते हैं क्या? जब एक बार आपने घूस से मना कर दिया तो आपकी छवि ईमानदार बन गयी होगी। फ़िर जब आपकी छवि ईमानदार की बन गयी तो कौन बेवकूफ़ होगा जो आपको घूस आफ़र करेगा। ऐसे लोगों से तो लोग मौसम की बात करते हैं। जमाना बड़ा खराब आ गया है- कहते हैं। घूस कौन देता है।”
हिसाबी ईमानदार के साथ वाला स्वयंसेवक कम चमचा ज्यादा इस तर्क को अपने प्रतितर्क से काटता है-”आपकी बात सही है। लेकिन साहब ने अपनी इमेज ऐसे ईमानदार की बना रखी थी जो घूस लेता तो नहीं था लेकिन अगर उसको घूस का प्रस्ताव न दिया न दिया जाये तो काम लटका देता है। इसलिये लोग आते थे। घूस का प्रस्ताव देते थे। साहब मुस्कराकर मना करते थे। घूस की आफ़र रकम डायरी में दर्ज करते थे। उसका प्रस्ताव ठुकरा देते थे। काम कर देते थे। बिना घूस का प्रस्ताव ठुकराये साहब ने आजतक कोई काम नहीं किया। उसूलों के पक्के, हिसाबी ईमानदार थे साहब। इनको टिकट तो मिलना ही चाहिये।”
लोग साहब को गम्भीर ईमानदार न समझ लें इस बात को ध्यान में रखते हुये
स्वयंसेवक एक किस्सा भी सुना डाला- एक बार साहब ने किसी द्वारा आफ़र की हुई
रकम को मुस्कराकर ठुकराते हुये काम कर दिया। लेकिन फ़िर याद आया कि इस बीच
घूस की दरें बढ़ गयीं हैं। उन्होंने उसकी फ़ाइल रुकवा ली। दुबारा बुलाकर बढ़ी
हुई रकम का प्रस्ताव ठुकराया। तब काम किया। हड़काया अलग से – हमको बेवकूफ़ ईमानदार मत समझो। हिसाब गड़बड़ाने की कोशिश मत करो। सही रेट आफ़र किया करो वर्ना काम लटका देंगे।
ईमानदारों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। लोगों ने अब चिल्ला-चिल्लाकर अपनी ईमानदारी बखाननी शुरु कर दी। कुछ ने फ़ेसबुक और ट्विटर का रास्ता अख्तियार कर लिया। किसी ने ईमानदारी का पाडकास्ट बनाया किसी ने उसको यू-ट्य़ूब में डाल दिया। सब तरफ़ ईमानदारी ही ईमानदारी छितराने लगी। कुछ झलक देख लीजिये। लोग अपना बखान कर रहे हैं:
आपको भी चुनाव लड़ना है क्या? जल्दी कीजिये टिकट कहीं खत्म न हों जायें।
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ईमानदारों का जमघट
By फ़ुरसतिया on August 4, 2012
तमाम ईमानदार उमड़ पड़े हैं चुनाव में टिकट पाने के लिये। कुछ को उनके घर वालों ने ठेल-ठाल कर भेजा है-अभी तक तो कष्ट ही मिले हैं तुम्हारी इस मुई ईमानदारी के चलते। जाओ, देखो क्या पता इस बार टिकट ही मिल जाये।
कुछ ऐसे भी हैं जिनको उनके दफ़्तर वालों ने जबरिया त्यागपत्र दिलाकर भेज दिया कहते हुये – यहां पेंशन लो वहां देश सेवा करो! कम से कम दफ़्तर में कुछ काम तो होने दो। स्पीडब्रेकर की तरह जमे हो न जाने कब से।
चुनाव दफ़्तर के बाहर बहुत भीड़ है। कुछ को उनके घर वाले कांवरियों की तरह ढोकर लाये हैं। वे चाहते हैं उनके बुजुर्ग की ईमानदारी किसी काम तो आ जाये। कुछ के दोस्त उनके दोस्त क्रेन पर टांगे हुये हैं ताकि उनकी ईमानदारी सबसे ऊपर दिखे।
लोग अपने साथ ईमानदारी के प्रमाणपत्र भी लाये हैं। कुछ अपने साथ अपनी बैंक की सूनी पासबुक लाये हैं। कुछ अपनी ए.सी.आर. की फ़ोटोकापी लाये हैं जिनमें उनकी सत्यनिष्ठा असंदिग्ध बतायी गयी है। कुछ अपनी ईमानदारी के चलते निलंबित होने, पिटने, जान से मारने की धमकी मिलने के सबूत दिखाने के लिये अखबारों की फोटोकापी लाये हैं।
नये जमाने के ईमानदार अपने मोबाइल पर ईमानदारी वाले वक्तव्यों के स्टेटस चमका रहे हैं।
जिनको लगता है कि इनके चलते उनका टिकट कट जायेगे वे दूसरों की ईमानदारी की पोल खोलते जा रहे हैं। बता रहे हैं – ये जो अपनी पासबुक लाये हैं वह तो केवल चुनाव के लिये खोली है इसने। इसकी बाकी पासबुक देखी जायें। करोड़ों-अरबों जमा हैं वहां। स्विस बैंक में भी खाता है। ये छ्द्म ईमानदार हैं। इनको टिकट मिला तो ईमानदारी कैसे कायम होगी।
कमीशन वाला अपना बचाव करते हुये बता रहा है- हमने कोई कमीशन नहीं खाया आजतक। लेकिन कोई अपनी खुशी से कुछ दे जाये तो कैसे मना करें। किसी की खुशी में क्यों रोड़ा बनें। हम खुशहाल ईमानदार हैं। हमारी ईमानदारी के चलते किसी को कष्ट नहीं होना चाहिये।
इस बीच कोई जबर ईमानदार दोनों ईमानदारों को धकियाकर आगे आ जाता है। अपने प्रमाणपत्र मेज पर पटककर -वन्देमातरम का नारा लगाता है। अपेक्षित प्रभाव न होता देख -भारत माता की जय भी चिल्ला देता है। उसके पास एक डायरी है जिसमें उसने तिथिवार दर्ज कर रखा है कि किस दिन उसने कितने रुपये की घूस की पेशकश टुकराई। कुल तीन करोड़ पचीस लाख तीन हजार पचहत्तर रुपये ठुकराने का हिसाब दर्ज है उसमें। हिसाबी ईमानदार है। अपनी ईमानदारी का साल-दर-साल रिटर्न अपनी डायरी में दाखिल किया है।
एक दूसरा टिकटार्थी उसके विवरण को फ़र्जी बताते हुये तर्क पेश करता है-”ये आंकड़े फ़र्जी हैं। घूस देने वालों को बेवकूफ़ समझते हैं क्या? जब एक बार आपने घूस से मना कर दिया तो आपकी छवि ईमानदार बन गयी होगी। फ़िर जब आपकी छवि ईमानदार की बन गयी तो कौन बेवकूफ़ होगा जो आपको घूस आफ़र करेगा। ऐसे लोगों से तो लोग मौसम की बात करते हैं। जमाना बड़ा खराब आ गया है- कहते हैं। घूस कौन देता है।”
हिसाबी ईमानदार के साथ वाला स्वयंसेवक कम चमचा ज्यादा इस तर्क को अपने प्रतितर्क से काटता है-”आपकी बात सही है। लेकिन साहब ने अपनी इमेज ऐसे ईमानदार की बना रखी थी जो घूस लेता तो नहीं था लेकिन अगर उसको घूस का प्रस्ताव न दिया न दिया जाये तो काम लटका देता है। इसलिये लोग आते थे। घूस का प्रस्ताव देते थे। साहब मुस्कराकर मना करते थे। घूस की आफ़र रकम डायरी में दर्ज करते थे। उसका प्रस्ताव ठुकरा देते थे। काम कर देते थे। बिना घूस का प्रस्ताव ठुकराये साहब ने आजतक कोई काम नहीं किया। उसूलों के पक्के, हिसाबी ईमानदार थे साहब। इनको टिकट तो मिलना ही चाहिये।”
ईमानदारों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। लोगों ने अब चिल्ला-चिल्लाकर अपनी ईमानदारी बखाननी शुरु कर दी। कुछ ने फ़ेसबुक और ट्विटर का रास्ता अख्तियार कर लिया। किसी ने ईमानदारी का पाडकास्ट बनाया किसी ने उसको यू-ट्य़ूब में डाल दिया। सब तरफ़ ईमानदारी ही ईमानदारी छितराने लगी। कुछ झलक देख लीजिये। लोग अपना बखान कर रहे हैं:
- मैं हमेशा सतर्क ईमानदार रहा। जब भी कोई निर्णय लेना हुआ उसे ऊपर ठेल दिया या नीचे सरका दिया। मैंने आजतक कोई निर्णय लिया ही नहीं। मेरी ईमानदारी असंदिग्ध है।
- मैंने अपनी ईमानदारी की रक्षा उसी तरह से की जैसे कोई साध्वी अपने शील की और कोई ब्रह्मचारी अपने ब्रह्मवर्य की करता है। जब कभी कामवासना (काम करने की इच्छा) ने हमला किया मैंने अपने निष्क्रियता, अकर्मर्ण्यता और जहालत के छींटे मारकर उसको शान्त किया।
- मैंने हमेशा बड़ी बेईमानी पर हमला किया। अपने अधीनस्थों के सामने अपनी ईमानदारी का उदाहरण पेश किया। मुझे वर्षों से पता था कि मेरे डिपो में सामान सप्लाई करने वाले मेरे अधीनस्थों को माल सप्लाई और पास कराने के लिये घूस देते हैं। लेकिन मैंने उसको रोकने में समय बर्बाद करने की बजाय अपनी अधीनस्थों के सामने बड़ी घूस को ठुकराने का उदाहरण पेश किया। आज तक के इतिहास में किसी ने इत्ती बड़ी घूस नहीं ठुकराई होगी। मैं बहादुर ईमानदारी का चलता-फ़िरता बैनर हूं।
- मुझे अच्छी तरह पता है लोग सही काम की आड़ में कई गलत काम भी करा लेते हैं। इसलिये हमने आजतक कोई काम नहीं किया। ईमानदारी हमारे लिये सर्वोपरि रही। काम निकृष्ट। हमारे ऊपर कोई काम करने का आरोप तक नहीं लगा सकता, बेईमानी तो बहुत दूर की बात है। हमने सिर्फ़ वेतन से गुजारा किया। निष्क्रियता के सहारे मैंने ईमानदारी की रक्षा करता रहा। लोग मुझे मोहब्बत से (A.H)अकर्मण्य़ ईमानदार कहते रहे।
- हमने सिस्टम में रहकर बेईमानी का विरोध किया। काम न किया न होने दिया। जब कोई जरूरी काम आया, छुट्टी ले ली। सड़े हुये सिस्टम को और सड़ा दिया ताकि जल्दी से इससे निजात मिले। हमसे ज्यादा दूरदर्शी ईमानदार कहां मिलेगा।
आपको भी चुनाव लड़ना है क्या? जल्दी कीजिये टिकट कहीं खत्म न हों जायें।
Posted in बस यूं ही | 18 Responses
रवि की हालिया प्रविष्टी..माइक्रोसॉफ़्ट की नई ऑनलाइन ईमेल सेवा : आउटलुक.कॉम – क्या यह हम हिंदी वालों के लिए काम का है?
…कई लोग पिछले फेसबुक स्टेटस दिखाकर भी टिकट माँग रहे हैं !
http://raviratlami.blogspot.in/2012/08/blog-post_4.html
रवि की हालिया प्रविष्टी..ईमानदारों की सरकार
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..बड़ा अनूठा खेला है
aradhana की हालिया प्रविष्टी..Freshly Pressed’s Best Of July 2012
मस्त पोस्ट। फुर्सतिया टाइप।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..भ्रष्टाचार का भविष्य अच्छा है…।
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..बरसात का पहला दिन
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यह पढ़ कर भय टाइप लगने लगा है।
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..‘मैं’ वैसा(सी) नहीं जैसे ‘हम’ !