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सफ़लता के किस्से और मोटीवेशन के इंजेक्शन
By फ़ुरसतिया on January 19, 2013
दो दिन पहले कानपुर विश्वविद्यालय जाना हुआ। दीक्षांत सप्ताह के अवसर पर कई कार्यक्रम हो रहे थे वहां। एक दिन वहां के बच्चों को उत्साहित करने के नाम पर विभिन्न क्षेत्रों से लोगों को बुलाया गया था।
कार्यक्रम आशानुरूप घंटे भर विलंब से शुरु हुआ। बच्चों को पहली शिक्षा यह मिली समयपालन से बचना सफ़ल होने के लिये सफ़लता का मूलमंत्र है।
दीप-शीप जलने के बाद बच्चों को सफ़ल होने के मंत्र रटाये गये। एक डाक्टर साहब ने बच्चों से सीधे संवाद करते हुये बच्चों को सफ़ल होने के गुर सिखाये। मंच पर बुलाकर गाने गवाये। शपथ दिलवायी। एक बच्चे ने गाना गाया ’छोटा सा दिल है छोटी सी आशा’ डाक्टर ने कहा – दिल छोटा नहीं चलेगा, बड़ा करो। वहीं गाने की बाईपास सर्जरी कर दी। वाल्व फ़ुला के दिल बड़ा बना दिया।
एक बच्ची ने बताया कि उसने शपथ ली है कि वह शादी के बाद पहले एक बच्चा गोद लेगी उसके बाद अपना बच्चा करेगी। पालेगी।
डाक्टर साहब ने मंच पर गाना गाने आये सब बच्चों को ट्रीट देने का वायदा किया।
एक वक्ता शुरुआती इंजीनियर थे। निकलते ही नौकरी नहीं मिली तो एम.बी.ए करना पड़ा। हावर्ड जाना पड़ा। वहां अर्थशास्त्र पढ़े। सफ़ल हुये। सफ़लता का गुरु बताते हुये उन्होंने बताया मेहनत करते रहने से सफ़लता निश्चित है। अपने मन का काम करना चाहिये चाहे दो पैसे कम मिलें।
मेरे हिसाब से अगर उनको समय पर नौकरी मिल जाती तो वे न तो आगे पढ़ते, न सफ़ल होते। समय पर नौकरी न मिलना उनकी सफ़लता का मूल कारण रहा। रोजगार देने में असफ़ल सरकारें चाहे तो कह सकती हैं हम चाहते हैं कि देश के युवा बड़ी सफ़लता हासिल करें इसलिये हम उनके लिये रोजगार का जानबूझकर इंतजाम नहीं कर रहे हैं।
कानपुर के एक और डाक्टर ने अपने किस्से सुनाये। बताया कि वे सर्जरी से डरते थे। लड़की के पास बैठने से डरते थे। अतंत: वे नामी सर्जन बने। जिस लड़की से डरते थे उसी से प्रेमविवाह हुआ।
एक सीख यह निकलकर आई कि जिस पेशे में सफ़ल होना है उसमें डरते हुये घुसें। प्रेम संबंध बनाने के लिये डरना जरूरी है।
इतने तक तो बच्चों को प्रेम से सफ़ल होना सिखाया जा रहा था। इसके बाद शिक्षा आक्रामक होने लगी। हर वक्ता बच्चों को सफ़ल होने के लिये हड़काने जैसा लगा।
एक टीवी वाले ने तो एक बच्चे को इत्ती जोर से हड़काया कि हम डर गये। उसने कहा कि देश में आज जो भी हो रहा है वो मीडिया के चलते हो रहा है। उसने बच्चे का आह्वान किया कि वह संघर्ष करे टीवी उसका कवरेज करेगा। उसकी बातों से मुझे लगा कि मीडिया में सफ़ल होने के लिये आत्ममुग्ध और अतार्किक होना जरूरी होता हो।
डाक्टर,इंजीनियर,मीडिया के बाद एक अध्यापक आये। उन्होंने बच्चों को धड़ाधड़ सफ़लता के कैप्सूल दिये। धमकी भी कि वे ग्यारह घंटे तक बिना रुके बोलते रह सकते हैं। हम सहम गये। आयोजकों को मन ही मन शुक्रिया भी दिया कि उन्होंने बोलने का समय पन्द्र्ह मिनट रखा था।
मिसेज इंडिया इंटरनेशनल और क्लीन सिटी प्रोजेक्ट से जुड़ी डाक्टर उदिता त्यागी ने मौके पर ही बच्चों से विश्वविद्यालय के आडिटोरियम में फैले प्लास्टिक के कपों को हटवाकर स्वच्छता का पाठ पढ़ाया। उनको लोगों की गंदगी फ़ैलाने की आदत का शुक्रिया भी करना चाहिये था जिसके चलते उनको अपना पाठ पढ़ाने का मौका मिला। लेकिन वे यह बताने में व्यस्त होगयीं कि कैसे उन्होंने अपना वजन अस्सी किलो से कम किया और मिसेज इंडिया इंटरनेशनल बनीं। इसी में समय निकल गया।
समय बीतने के साथ वक्ता आक्रामक होते गये। श्रोता निरीह। शान्त। बेजान। हर वक्ता के जाने के बाद उपज क्षणिक खुशी को अगला वक्ता आकर काफ़ूर कर देता। जितने वक्ता शुरु में तय थे उससे कई गुना आकर बच्चों को मोटीवेट कर गये। हम सोचते रहे कि हमारा नम्बर अब आयेगा , अब आयेगा लेकिन आ ही नहीं रहा था। हमारे हिस्से का मोटीवेशन वाली जमीन दूसरे लोग जोतते चले जा रहे थे।
आखीर में हमें भी मौका मिला। हमने बच्चों के प्रति सहानुभूति प्रकट की कि उनके इतने मोटीवेशन के इंजेक्शन ठुक चुके हैं कि और मोटीवेट करना उनके साथ अन्याय होगा। हमने यह भी कहा कि जिस उमर में वे हैं उस उमर के बच्चों को सही-गलत का मोटा-मोटी अंदाजा होता है। बच्चे जिसे सही समझते हैं वो करें, जिसे गलत समझते हैं उससे बचें। अपनी काबिलियत पर भरोसा रखें। हौसला रखें। मेहनत करें। उनको सफ़ल होने से कोई रोक नहीं सकता।
हमारे बाद डा.अम्बुज ने भी ऐसा ही कुछ कहा। उन्होंने कहा बच्चों को कौन सीख दे सकता है। वह तो बड़ों का बाप होता है। युवा क्रांतिकारी होते हैं। समाज में जो भी बदलाव/क्रांतियां हुई हैं वे सब युवाओं ने ही कीं। उनका क्या उत्साह बढाना।
अंत तक आते-आते हाल खाली सा हो गया। बच्चे आतंकित होकर फ़ूट लिये थे। वक्ता अपने-अपने हिस्से का मोटीवेशन बम फ़ेंककर चलते बने थे।
सफ़ल मध्यमवर्गीय आदमी अपने संघर्ष के दिनों की एफ़.डी.कराकर उनको यादों के लाकर में रखता है। उसके ब्याज कमाई खाता है। अपने संघर्ष को मुग्धा नायिका की तरह निहारता है। संघर्षबयानी में दूसरे के संघर्ष भी अपने खाते में जोड़ लेता है। अपने क्षुद्रताओं के किस्से दूसरे के दरवाजे डाल देता है। अपने संघर्ष को मैग्नीफ़ाइंग ग्लास से और चिरकुटैयों को मिनिमाइज करके देखता है। अपने सफ़लता के किस्से से लोगों को आतंकित करता है। भाषण देता है। सफ़ल होना सिखाता है।
मुझे लगा कि अपने-अपने क्षेत्र के सब सफ़ल लोग धुप्पल में सफ़ल हुये लोग होते हैं। वे मेहनती और लगनशील होते हैं इसलिये अपने क्षेत्र में सफ़ल हुये। किसी और में जाते तो शायद वहां भी उतने ही सफ़ल होते। लगन और मेहनत के बाद मिली सफ़लता काम में रुचि पैदा करती है। और सफ़लता मिलती है। इंसान को भाषण देने का मौका दिलाती है।
क्या पता कल को लोग अपनी सफ़लता के किस्से कुछ इस तरह बखान करें:
1.कोई बतायेगा कि एक लंबी ट्रेन की यात्रा उसने कैसे की। कैसे जनरल डिब्बे में घुसा, जान हथेली पर रखकर यात्रा की और जिन्दा ट्रेन से निकलकर पहुंचा।
2.कोई लड़की बतायेगी किस तरह वो एक दिन शाम को सुरक्षित घर पहुंची।
3. कोई बच्ची बतायेगी कि कैसे-कैसे वह जन्म ले सकी। किस तरह उनके मां-बाप उसकी भ्रूण हत्या का इरादे में असफ़ल रहे और वह पैदा हो सकी।
4. कोई दम्पति बतायेगा कि कैसे वे कम पैसे में अपनी लड़की के दूल्हा खरीद सके।
5. कोई लेखक बतायेगा कि कैसे वह अपनी किताब के लिये प्रकाशक पटा पाया।
6. कोई प्रकाशक बतायेगा कि कैसे उसने छपास पीड़ित कवि से पचीस हजार रुपये लेकर बिना रायल्टी उसका कविता संग्रह निकालकर उसी की सहायता से लाइब्रेरियों में खपाया।
6. कोई व्यापारी मिलावट के धंधे के गुर सिखायेगा। कैसे इंनकम टैक्स अधिकारियों से निपटें यह बतायेगा।
7. कोई मुकदमेबाज बतायेगा कैसे उसने अपने मुकदमे का फ़ैसला अपने जिन्दा रहते करा लिया।
8.कोई गीतकार बतायेगा कि कैसे उसने किसी लोकगीत के मुखड़े चुराकर अपने गीत में फ़िट करके इनाम जीता।
9. कोई फ़िल्मकार बतायेगा कि उसने किस-किस फ़िल्म से सीन चुराकर अपनी फ़िल्म बनाई और आस्कर में भिड़ा दी।
10. कोई नौकरशाह बतायेगा कि कैसे उसने अपने सीनियर को फ़र्जी जांच में फ़ंसाकर उससे पहले प्रमोशन पा लिया।
11. भारत सरकार का कोई सचिव बतायेगा कि कैसे उसने अपनी फ़र्जी उपलब्धियां दिखाकर अपने लिये दो साल का एक्सटेंशन हासिल किया।
आप भी अपनी सफ़लता का कोई किस्सा सुनाना चाहेंगे?
कार्यक्रम आशानुरूप घंटे भर विलंब से शुरु हुआ। बच्चों को पहली शिक्षा यह मिली समयपालन से बचना सफ़ल होने के लिये सफ़लता का मूलमंत्र है।
दीप-शीप जलने के बाद बच्चों को सफ़ल होने के मंत्र रटाये गये। एक डाक्टर साहब ने बच्चों से सीधे संवाद करते हुये बच्चों को सफ़ल होने के गुर सिखाये। मंच पर बुलाकर गाने गवाये। शपथ दिलवायी। एक बच्चे ने गाना गाया ’छोटा सा दिल है छोटी सी आशा’ डाक्टर ने कहा – दिल छोटा नहीं चलेगा, बड़ा करो। वहीं गाने की बाईपास सर्जरी कर दी। वाल्व फ़ुला के दिल बड़ा बना दिया।
एक बच्ची ने बताया कि उसने शपथ ली है कि वह शादी के बाद पहले एक बच्चा गोद लेगी उसके बाद अपना बच्चा करेगी। पालेगी।
डाक्टर साहब ने मंच पर गाना गाने आये सब बच्चों को ट्रीट देने का वायदा किया।
एक वक्ता शुरुआती इंजीनियर थे। निकलते ही नौकरी नहीं मिली तो एम.बी.ए करना पड़ा। हावर्ड जाना पड़ा। वहां अर्थशास्त्र पढ़े। सफ़ल हुये। सफ़लता का गुरु बताते हुये उन्होंने बताया मेहनत करते रहने से सफ़लता निश्चित है। अपने मन का काम करना चाहिये चाहे दो पैसे कम मिलें।
मेरे हिसाब से अगर उनको समय पर नौकरी मिल जाती तो वे न तो आगे पढ़ते, न सफ़ल होते। समय पर नौकरी न मिलना उनकी सफ़लता का मूल कारण रहा। रोजगार देने में असफ़ल सरकारें चाहे तो कह सकती हैं हम चाहते हैं कि देश के युवा बड़ी सफ़लता हासिल करें इसलिये हम उनके लिये रोजगार का जानबूझकर इंतजाम नहीं कर रहे हैं।
कानपुर के एक और डाक्टर ने अपने किस्से सुनाये। बताया कि वे सर्जरी से डरते थे। लड़की के पास बैठने से डरते थे। अतंत: वे नामी सर्जन बने। जिस लड़की से डरते थे उसी से प्रेमविवाह हुआ।
एक सीख यह निकलकर आई कि जिस पेशे में सफ़ल होना है उसमें डरते हुये घुसें। प्रेम संबंध बनाने के लिये डरना जरूरी है।
इतने तक तो बच्चों को प्रेम से सफ़ल होना सिखाया जा रहा था। इसके बाद शिक्षा आक्रामक होने लगी। हर वक्ता बच्चों को सफ़ल होने के लिये हड़काने जैसा लगा।
एक टीवी वाले ने तो एक बच्चे को इत्ती जोर से हड़काया कि हम डर गये। उसने कहा कि देश में आज जो भी हो रहा है वो मीडिया के चलते हो रहा है। उसने बच्चे का आह्वान किया कि वह संघर्ष करे टीवी उसका कवरेज करेगा। उसकी बातों से मुझे लगा कि मीडिया में सफ़ल होने के लिये आत्ममुग्ध और अतार्किक होना जरूरी होता हो।
डाक्टर,इंजीनियर,मीडिया के बाद एक अध्यापक आये। उन्होंने बच्चों को धड़ाधड़ सफ़लता के कैप्सूल दिये। धमकी भी कि वे ग्यारह घंटे तक बिना रुके बोलते रह सकते हैं। हम सहम गये। आयोजकों को मन ही मन शुक्रिया भी दिया कि उन्होंने बोलने का समय पन्द्र्ह मिनट रखा था।
मिसेज इंडिया इंटरनेशनल और क्लीन सिटी प्रोजेक्ट से जुड़ी डाक्टर उदिता त्यागी ने मौके पर ही बच्चों से विश्वविद्यालय के आडिटोरियम में फैले प्लास्टिक के कपों को हटवाकर स्वच्छता का पाठ पढ़ाया। उनको लोगों की गंदगी फ़ैलाने की आदत का शुक्रिया भी करना चाहिये था जिसके चलते उनको अपना पाठ पढ़ाने का मौका मिला। लेकिन वे यह बताने में व्यस्त होगयीं कि कैसे उन्होंने अपना वजन अस्सी किलो से कम किया और मिसेज इंडिया इंटरनेशनल बनीं। इसी में समय निकल गया।
समय बीतने के साथ वक्ता आक्रामक होते गये। श्रोता निरीह। शान्त। बेजान। हर वक्ता के जाने के बाद उपज क्षणिक खुशी को अगला वक्ता आकर काफ़ूर कर देता। जितने वक्ता शुरु में तय थे उससे कई गुना आकर बच्चों को मोटीवेट कर गये। हम सोचते रहे कि हमारा नम्बर अब आयेगा , अब आयेगा लेकिन आ ही नहीं रहा था। हमारे हिस्से का मोटीवेशन वाली जमीन दूसरे लोग जोतते चले जा रहे थे।
आखीर में हमें भी मौका मिला। हमने बच्चों के प्रति सहानुभूति प्रकट की कि उनके इतने मोटीवेशन के इंजेक्शन ठुक चुके हैं कि और मोटीवेट करना उनके साथ अन्याय होगा। हमने यह भी कहा कि जिस उमर में वे हैं उस उमर के बच्चों को सही-गलत का मोटा-मोटी अंदाजा होता है। बच्चे जिसे सही समझते हैं वो करें, जिसे गलत समझते हैं उससे बचें। अपनी काबिलियत पर भरोसा रखें। हौसला रखें। मेहनत करें। उनको सफ़ल होने से कोई रोक नहीं सकता।
हमारे बाद डा.अम्बुज ने भी ऐसा ही कुछ कहा। उन्होंने कहा बच्चों को कौन सीख दे सकता है। वह तो बड़ों का बाप होता है। युवा क्रांतिकारी होते हैं। समाज में जो भी बदलाव/क्रांतियां हुई हैं वे सब युवाओं ने ही कीं। उनका क्या उत्साह बढाना।
अंत तक आते-आते हाल खाली सा हो गया। बच्चे आतंकित होकर फ़ूट लिये थे। वक्ता अपने-अपने हिस्से का मोटीवेशन बम फ़ेंककर चलते बने थे।
सफ़ल मध्यमवर्गीय आदमी अपने संघर्ष के दिनों की एफ़.डी.कराकर उनको यादों के लाकर में रखता है। उसके ब्याज कमाई खाता है। अपने संघर्ष को मुग्धा नायिका की तरह निहारता है। संघर्षबयानी में दूसरे के संघर्ष भी अपने खाते में जोड़ लेता है। अपने क्षुद्रताओं के किस्से दूसरे के दरवाजे डाल देता है। अपने संघर्ष को मैग्नीफ़ाइंग ग्लास से और चिरकुटैयों को मिनिमाइज करके देखता है। अपने सफ़लता के किस्से से लोगों को आतंकित करता है। भाषण देता है। सफ़ल होना सिखाता है।
मुझे लगा कि अपने-अपने क्षेत्र के सब सफ़ल लोग धुप्पल में सफ़ल हुये लोग होते हैं। वे मेहनती और लगनशील होते हैं इसलिये अपने क्षेत्र में सफ़ल हुये। किसी और में जाते तो शायद वहां भी उतने ही सफ़ल होते। लगन और मेहनत के बाद मिली सफ़लता काम में रुचि पैदा करती है। और सफ़लता मिलती है। इंसान को भाषण देने का मौका दिलाती है।
क्या पता कल को लोग अपनी सफ़लता के किस्से कुछ इस तरह बखान करें:
1.कोई बतायेगा कि एक लंबी ट्रेन की यात्रा उसने कैसे की। कैसे जनरल डिब्बे में घुसा, जान हथेली पर रखकर यात्रा की और जिन्दा ट्रेन से निकलकर पहुंचा।
2.कोई लड़की बतायेगी किस तरह वो एक दिन शाम को सुरक्षित घर पहुंची।
3. कोई बच्ची बतायेगी कि कैसे-कैसे वह जन्म ले सकी। किस तरह उनके मां-बाप उसकी भ्रूण हत्या का इरादे में असफ़ल रहे और वह पैदा हो सकी।
4. कोई दम्पति बतायेगा कि कैसे वे कम पैसे में अपनी लड़की के दूल्हा खरीद सके।
5. कोई लेखक बतायेगा कि कैसे वह अपनी किताब के लिये प्रकाशक पटा पाया।
6. कोई प्रकाशक बतायेगा कि कैसे उसने छपास पीड़ित कवि से पचीस हजार रुपये लेकर बिना रायल्टी उसका कविता संग्रह निकालकर उसी की सहायता से लाइब्रेरियों में खपाया।
6. कोई व्यापारी मिलावट के धंधे के गुर सिखायेगा। कैसे इंनकम टैक्स अधिकारियों से निपटें यह बतायेगा।
7. कोई मुकदमेबाज बतायेगा कैसे उसने अपने मुकदमे का फ़ैसला अपने जिन्दा रहते करा लिया।
8.कोई गीतकार बतायेगा कि कैसे उसने किसी लोकगीत के मुखड़े चुराकर अपने गीत में फ़िट करके इनाम जीता।
9. कोई फ़िल्मकार बतायेगा कि उसने किस-किस फ़िल्म से सीन चुराकर अपनी फ़िल्म बनाई और आस्कर में भिड़ा दी।
10. कोई नौकरशाह बतायेगा कि कैसे उसने अपने सीनियर को फ़र्जी जांच में फ़ंसाकर उससे पहले प्रमोशन पा लिया।
11. भारत सरकार का कोई सचिव बतायेगा कि कैसे उसने अपनी फ़र्जी उपलब्धियां दिखाकर अपने लिये दो साल का एक्सटेंशन हासिल किया।
आप भी अपनी सफ़लता का कोई किस्सा सुनाना चाहेंगे?
Posted in बस यूं ही | 23 Responses
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..विदाई गुडिया की … सतीश सक्सेना
प्रश्न तो हमारा सिरियसै था …हलके लै लेओ ताऊ का करें
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..भाषा इन गूंगो की -सतीश सक्सेना
प्रश्न तो हमारा सिरियसै था …हलके लै लेओ तौ का करैं
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..भाषा इन गूंगो की -सतीश सक्सेना
रवि की हालिया प्रविष्टी..फ़ेसबुक और सेल्फ-कंट्रोल
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..मारे डर के हालत खराब, और लोग बोलते डर नहीं लगता !!!!
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..सरोकार की पत्रकारिता और वेब-साइट पर तस्वीरें
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..सरोकार की पत्रकारिता और वेब-साइट पर तस्वीरें
manish की हालिया प्रविष्टी..UP Wizards Start Hero Hockey on a Winning Note
“मीडिया में सफ़ल होने के लिये आत्ममुग्ध और अतार्किक होना जरूरी होता हो।”
इधर मीडिया का स्वरूप सचमुच बहुत संदिग्ध हो गया है, हमारे समय में ऐसा नहीं था. मीडियाकर्मी का तार्किक होना बहुत ज़रूरी होता था. आत्ममुग्धता तो मन का भाव है, जो अधिकाँश में पाया जाता है.
बढ़िया पोस्ट है, हमेशा की तरह.
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..समाचार संश्लेषण
व्यंगकार अब भविष्यदर्शी भी हो चला है मुबारक
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..मित्रों की फरमाईश ,समय से द्वंद्व और नल दमयंती आख्यान
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@ मुझे लगा कि अपने-अपने क्षेत्र के सब सफ़ल लोग धुप्पल में सफ़ल हुये लोग होते हैं। वे मेहनती और लगनशील होते हैं इसलिये अपने क्षेत्र में सफ़ल हुये। किसी और में जाते तो शायद वहां भी उतने ही सफ़ल होते।
हाँ, आप काम कोई भी करें, पर डटे रहें उसे करने में, लगातार लंबे समय तक बिना डिगे, बिना निराश हुऐ डटे रहना ही सफलता दिलाता है, बारीकियाँ भी समय के साथ ही सीखी जाती हैं … पर शायद इसे धुप्पल में सफल होना नहीं कहा जायेगा…
…
केवल संघर्ष करने वालों में कितने सफल हो पाते हैं?
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..कहाँ फँस गये तलाश में…?
समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..आहिस्ता आहिस्ता!!