Thursday, January 24, 2013

इसको आप किस तरह से देखते हैं

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इसको आप किस तरह से देखते हैं

इसको आप किस तरह से देखते हैं?
देश में कोई घटना/दुर्घटना घटी, किसी ने कोई विवादास्पद बयान दिया, किसी ने कोई नागवार हरकत की -टीवी चैनलों के प्राइम टाइम एंकर चार-पांच लोगों को जमा करके घंटा भर बहस करते रहते हैं- इसको आप किस तरह से देखते हैं। 

अक्सर लोगों के विवादास्पद बयान बहस के विषय होते हैं। किसी ने कोई बेवकूफ़ी की बात कही- चैनल वाले उसको दोहराते हुये बहस करवाते हैं- बताओ भला ऐसे कहना चाहिये। किसी के , कुछ लोगों के सामने दिये, बेहूदे बयान को पचीस बार दुनिया भर को सुनाते हैं। बेहूदगी का मासूमियत के साथ प्रचार करते हैं। किसी ने कोई चिरकुटई की उसको पचास बार दिखाते हुये कहते हैं – बताओ भला ऐसे करना चाहिये। किसी नये नेता ने कुछ बयान दिया वहां घंट भर सवाल उछलेगा- आप इस बयान का क्या मतलब निकलते हैं। लगता है जैसे अगले ने शुक्र ग्रह में बोले जाने वाली भाषा में बयान जारी किया है। अरे भाई किसी के साथ कुछ नया हुआ है तो वो कुछ तो कहबै करेगा। आप उसको भी घसीट लिये प्राइम टाइम में।

टीवी वाले आमतौर पर नकारात्मक बयानों पर ज्यादा बहस करते हैं। खाप पंचायतों, फ़तवों, बापुओं-बाबाओं, मुल्ला-मौलवियों, साधू-साध्वियों, तानाशाहों, भांड़ों-भड़ैतों, चिरकुटों-चमचों के बयान ताकते रहते हैं। टीवी के राडार की फ़्रीक्वैंसी इनके बयानों से पर सेट है। जहां कोई बयान उनके मुंह से निकला ये फ़ौरन उसे शिकार की तरह टांग के अपने चैनल पर ले आते हैं। बहस की आग में भूनते-पकाते-चखते-चबाते हैं। बीच में कामर्शियल ब्रेक के शिप लेते रहते हैं। इसके बाद अगले दिन के बयान की खोज में निकल जाते हैं।

किसी के बेवकूफ़ी के बयान पर स्यापा करते एंकर बताता है कि बताइये भला एक्कीसवीं सदी में पन्द्रहवीं सदी की बातें करते हैं। जबकि देखा जाये तो दुनिया हमेशा एक साथ कई शताब्दियों में जीती है। कोई हिस्सा इक्कीसवीं सदी में जीता है कोई सत्रहवीं में तो कोई बारहवीं में तम्बू ताने रहता है। सबसे आधुनिक माने जाने वाले देश दुनिया के पिछड़े देशों को उन्नीसवीं सदी के पिंडारियों की तरह लूटते हैं। अमेरिका में कुछ लोग तो रहन-सहन तक में पुरानी सदियों में जीते हैं (देखिये ई-स्वामी की पोस्ट- (अमरीका के विलक्षण आमिश “कछुए”!)।
आंकड़ा नहीं मेरे पास लेकिन मुझे लगता दुनिया भर की प्राइम टाइम खबरों पर दुनिया के नकारात्मक पहलुओं पर चर्चा होती है। घपले, घोटाले, बलात्कार, हत्या, हमला, हार, हाय-हाय पर बहस। दुनिया हर दिन बुरी होते जाने के बावजूद ये सब अभी भी अल्पमत में हैं। दुनिया में हर दिन बहुत अच्छा भी होता रहता है। जिस दिन दुनिया में सैकड़ों बुरी बातें होती हैं उसीदिन करोड़ों-अरबों ऐसी घटनायें भी होती हैं जो अच्छी होतीं। बहुत अच्छी होती हैं। टीवी उनकी चर्चा प्राइम टाइम में नहीं कर पाता क्योंकि वे रोजमर्रा की बात है। टीवा छांटकर दुनिया की बुराई प्राइम टाइम पर दिखाता है। कभी-कभी लगता है कि टीवी का एंकर कबाड़ी की तरह होता है। कहीं भी कूड़ा-कबाड़ दिखता है खुश हो जाता है। उसको उठाकर अपने चैनल पर ले आता है। दुनिया भर को दिखाता है- देखो दुनिया में कित्ता कबाड़ इकट्ठा है।

टीवी पर अच्छी बातें भी दिखाई जाती हैं लेकिन उनका समय प्राइम टाइम नहीं होता। वह दोपहर के बाद चार बजे होगा या रात के दो बजे। अच्छी खबरों के बारे में टीवी पर बहसें सहमते हुये सी आती हैं। अच्छी खबर टीवी पर आने से डरती है कि कहीं कोई बुरा न मान जाये। वे सहमती हुयी सी , चुपके से आती है। अपने को दिखाकर चली जाती है।

टेलीविजन वालों को भी लगता है मीनाकुमारी सिन्ड्रोम होता है। बुरी खबरें दिखाकर खुश होते हैं।

प्राइम टाइम बहस का समय मतलब दुनिया का सबसे डरा हुआ और खराब समय होता है। दुनिया में प्रलय पता नहीं कब होगी लेकिन जब होगी उसको दिखाते हुये ब्रह्मांड का कोई एंकर इसके नियंताओं के मुंह के आगे माइक सटाकर चीखते हुये जरूर पूंछता दिखेगा- प्रलय की इस घटना को आप किस तरह से देखते हैं। :)

21 responses to “इसको आप किस तरह से देखते हैं”

  1. ajit gupta
    मैं तो इन्‍हें मंन्दिर के चबूतरे की तरह लेती हूँ या गांव की चौपाल की तरह। बस सारा दिन की गॉशिप को समेटकर मजे लेते रहते हैं। यदि किसी के मुखारबिन्‍द से कुछ निकल भी गया है तो उसका प्रोपेगेण्‍डा करने का अर्थ क्‍या है? लेकिन ये उसे सनसनी बनाकर ही छोड़ते हैं।
    ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..जीवन के दो मूल शब्‍द – अपमान और सम्‍मान (insult & respect)
  2. Prakash Govind
    “अच्छी खबरों के बारे में टीवी पर बहसें सहमते हुये सी आती हैं।”
    सबसे अजीब हालत तो तब होती है जब प्राईम टाईम की बहस में आये हुए मेहमान एक साथ अपने-अपने सुर में अलाप ले रहे होते हैं …. और हम जमूरे की भांति झल्ला रहे होते हैं कि अमा एक एक करके बोलो न … काहे दीमाग का दही करने पे अमादा हो :-)
    Prakash Govind की हालिया प्रविष्टी..जो कि महज मखमल में टाट का पैबंद था
  3. वीरेन्द्र कुमार भटनागर
    सच है, लगता है जैसे नकरात्मक खबरों की तलाश में ही रहते हैं यह टीवी एंकर और आमंञित महानुभावों की सहायता से इतनी बहस कराते हैं कि छोटा पर्दा किसी प्रायमरी पाठशाला की क्लास का सा दृश्य उपस्थित करता है। ऐसी खबरों का पोस्टमार्टम करने में सिद्धहस्त हो गये हैं कुछ चैनल।
  4. राहुल सिंह
    तीखा नजरिया.
    राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..काल-प्रवाह
  5. भारतीय नागरिक
    मीडिया-इलेक्ट्रानिक ने अजब माहौल बना रखा है और इनकी टीआरपी मुझे आजतक समझ नहीं आई.
    भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..सरोकार की पत्रकारिता और वेब-साइट पर तस्वीरें
  6. shikha varshney
    टेलीविजन वालों को भी लगता है मीनाकुमारी सिन्ड्रोम होता है। जबर्दस्त्त ..
    इसलिए तो हम कहते हैं कि ब्लॉग और फेसबुक सबसे अच्छा है. वहां मीना कुमारी कम और ऋषिकेश मुखर्जी सिंड्रोम अधिक देखने को मिलता है.:)
    shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..रिश्ते ..
    1. sanjay jha
      हा हा हा …………… “ऋषिकेश मुखर्जी सिंड्रोम”…………शानदार च जानदार पञ्च…………….
      प्रणाम.
  7. सतीश सक्सेना
    चटपटी खबर के तलाश में भटकते इन लोगों ने हमारे देश का दुनियां में मज़ाक ही बना दिया है , शायद ही कोई चैनल हो जो गंभीर बात अथवा देश के सम्मान पर कुछ कहता हो !
    आप आगे आइये महाराज …
    आनंद आएगा !
    :)
    सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..भाषा इन गूंगो की -सतीश सक्सेना
  8. shefali
    सच्ची बात ….यहाँ हर बुरी खबर अच्छी खबर होती है |
  9. Anonymous
    टीवी पर अच्छी बातें भी दिखाई जाती हैं लेकिन उनका समय प्राइम टाइम नहीं होता। अच्छी खबरों के बारे में टीवी पर बहसें सहमते हुये सी आती हैं। अच्छी खबर टीवी पर आने से डरती है कि कहीं कोई बुरा न मान जाये। वे सहमती हुयी सी , चुपके से आती है।
    बहुत सही.
    शानदार पोस्ट है. ऐसा कहना चाहिये, इसलिये नहीं कहा जा रहा बल्कि पोस्ट सचमुच जानदार है. एक बात और अखबार में काम करते हुए, जब शाम की पाली के सम्पादक गण दफ़्तर में प्रवेश करते थे, तो उनका पहला सवाल होता था- ” कुछ खास खबर?” और मेरा मुंह बिचका के कहना- ” न कुछ खास नहीं. अच्छे समाचार ही नहीं हैं आज तो” यहां अच्छे समाचार किसी बड़े राजनैतिक हंगामे, या बड़ी दुर्घटना के लिये कहा जाता :( ये अलग बात है कि खुद पर अफ़सोस होता कि कैसी घटिया सोच होती जा रही…. :)
  10. काजल कुमार
    टी.वी. चैनलों को ये चलन भारत में ही नहीं, सभी जगह यही हाल है.
    मुझे तो लगता है कि‍ इस धंधे को ही श्राप है.
    काजल कुमार की हालिया प्रविष्टी..कार्टून:- सालाना चढ़ाई का मौसम आया
  11. arvind mishra
    बचकानापन ,हास्यास्पद !
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..आधुनिक प्रेमकथा का उत्तरार्द्ध
  12. देवेन्द्र पाण्डेय
    सार्थक व्यंग्य।
  13. देवांशु निगम
    वैसे ही जैसे रॉकस्टार में पीयूष मिश्रा कहते हैं “नेगेटिव, यहाँ नेगेटिव बिकता है” |
    प्राइम टाइम ही क्यूँ, यहाँ तो मुश्किल से कोई मूवी रिलीज़ होती है जिसमे कोई बवाल ना जोड़ दिया जाए | हीरो का हिरोइन से अफेयर होगा , सेंसर सीन्स पर कैंची चलाएगा, गानों के शब्द बकवास होंगे और उनपर भी चर्चा होगी | फिल्म में कुछ हो न हो अगर ये सब तड़के हैं तो फिल्म तो चल ही जाएगी |
    अब यही देख लीजिये , समाज में हो रहे अपराधों के बारे में जो धारावाहिक बन रहें हैं वो जागरूक कम बना रहे हैं, डरा ज्यादा रहे हैं | सास-बहू की जितनी टोटल लड़ाई नहीं हुई होगी, उससे ज्यादा तो एक-एक सीरियल दिखाने पर तुला हुआ है |
    बाकी सब तो ठीक है :) :) :)
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..मारे डर के हालत खराब, और लोग बोलते डर नहीं लगता !!!!
  14. girijakulshreshth
    समाचारों में जानकारी कम कचरा अधिक होता है ।
  15. प्रवीण पाण्डेय
    यदि देश को सच में आवश्यकता है तो वह है अच्छे समाचार चैनल की, आजकल तो लगभग सब ही पका रहे हैं।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..बख्शा तो हमने खुद को भी नहीं है
  16. aradhana
    इ बात बहुत सही पकड़े हैं आप. अच्छी ख़बरें भी आती हैं लेकिन प्राइम टाइम पर नहीं…
    और दुनिया एक साथ कई शताब्दियों में जीती है, पर आपका ये कहना- “सबसे आधुनिक माने जाने वाले देश दुनिया के पिछड़े देशों को उन्नीसवीं सदी के पिंडारियों की तरह लूटते हैं। अमेरिका में कुछ लोग तो रहन-सहन तक में पुरानी सदियों में जीते हैं” …लाजवाब है :)
    aradhana की हालिया प्रविष्टी..New Themes: My Life and Silesia
  17. समीर लाल
    देखो दुनिया में कित्ता कबाड़ इकट्ठा है।
    समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..आहिस्ता आहिस्ता!!
  18. समीर लाल
    :)
    समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..चचा का यूँ गुजर जाना….हाय!!
  19. jitu
    भाई, हम तो इसको ऐसे ही नज़रंदाज़ करते है, ये सोचकर :
    भैंस जब भी पूँछ उठाएगी, गोबर ही देगी.
    इसलिए मस्त रहो व्यस्त रहो, नेताओं की बातों पर मत जाओ और न ही न्यूज़ चैनलों की चर्चा को सुनो, टेंशन दूर करनी है तो कोई कॉमेडी चैनल (जैसे राज्य सभा/लोक सभा टीवी) देखो.
  20. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] इसको आप किस तरह से देखते हैं [...]

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