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जबलपुर में मौसम स्विटजरलैंड हो रहा है
By फ़ुरसतिया on January 7, 2013
नया साल आये हफ़्ता हो गया। हम सोच रहे थे कि कुछ ’हैप्पी न्यू ईयर टाइप’ लिखकर नये साल का फ़ीता काटें। लेकिन सब आइडिया लोग छुट्टी पर निकल गया लगता है। जो दिखे भी वो बोले -साहब जाड़ा बहुत है। अभी जमें हैं। डिस्टर्ब न करिये।
उत्तर भारत में जाड़ा बहुत पड़ रहा है। सैकड़ों जाने जाड़े से जा चुकी हैं। सरकार बेचारी कुछ कर नहीं पा रही है। जो गिनती बतायी जाती है नोट कर लेती है। किसी टीवी पर इस बारे में कोई बहस दिखी नहीं। लोग अभी लक्ष्मण रेखा , भारत और इंडिया में बिजी हैं।
जबलपुर में मौसम स्विटजरलैंड हो रहा है। खूब सर्दी, खूब धूप। स्वेटर, कोट तो साथ हैं ही। जाड़े का लुत्फ़ उठाया जा रहा है। रोज गिरते तापमान के रिकार्ड आंकड़े आते हैं अखबार में। हमें वो सब एक गिनती की तरह लगते हैं। यही अगर पहनने को गरम कपड़े, ओढ़ने को कम्बल/रजाई न होते तो बिलबिलाते घूमते। मौसम जो स्विटजरलैंड हो रहा है वो साइबेरिया हो जाता। दुआ करते कि ये जाड़ा टले जल्दी। बवाल है।
कल ऐसे ’चलो कुछ तूफ़ानी करते हैं’ सोचते हुये साइकिल चलाने निकल गये। शुरु के पंद्रह-बीस पैडल तो खुशी-खुशी मारे। फ़िर मामला फ़ंसने लगा। समतल सड़क पर चलाने में लग रहा था कि एवरेस्ट पर साइकिलिंग कर रहे हैं। मन किया कि रुक जायें। लेकिन फ़िर सोचा रुकेंगे तो लगेगा कि थक गये। स्टेमिना गड़बड़ है। फ़िर सोचा कि कोई जरूरी फोन कर लिया जाये रुककर। लेकिन कोई जरूरी काम याद ही नहीं आया। सब मौज ले रहे थे हमसे। हमारे पसीना आ गया। हम सोचे कि अब तो रुकना ही पड़ेगा लगता है। लेकिन तब तक आगे खुशनुमा लम्बी ढलान मिल गयी। हम खुश हो गये। वो ढाल हमें ऐसे लगी जैसी किसी आपदा में फ़ंसे को ताहत सामग्री लगती होगी। ढ़ाल में साइकिल चलाते हुये सोचा कोई गाना गुनगुनाया जाये। लेकिन जब तक गाना याद आता तब तक ढ़लान खतम हो गयी। हम फ़िर से पैडल मारने में जुट गये।
आगे फ़िर अपने एक मित्र से मिलने चले गये। साइकिल से आने की बात को ऐसे बताया गया जैसे हम कोई किला फ़तह करके आये हों। हांफ़ते हुये चार किलोमीटर की साइकिलिंग ने ही हमारे मन में इत्ता आत्मविश्वास भर दिया कि हम प्लान बना लिये कि तीन महीने बाद साइकिल से नर्मदा परिक्रमा करेंगे। करें भले न लेकिन घोषणा करने में टेंट से क्या जाता है?
दोस्त के यहां से निकले तो देखा सड़क पर बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। बिना गद्दी की बच्चा साइकिल को उल्टाये हुये धरे अपना विकेट बनाये थे। हमने उनका फ़ोटो खींचा तो बच्चा बोला हमको भी साइकिल चलाने दो। हमने दे दी। फ़िर दूसरा भी बोला हम भी चलायेंगे। हमने उसको भी चलाने को दे दी। साइकिल की गद्दी पर उचक-उचक कर उसने साइकिल चलाई। एक ने कहा हमारी बॉलिंग करते हुये फोटो खैंचिये। हमने खैंच ली। वे फ़िर से क्रिकेट खेलने में जुट गये। उनको पता भी नहीं रहा होगा कि भारत की क्रिकेट टीम की हालत कितनी पतली हो रही थी उस समय।
गिन के देखा तो तीन किलोमीटर बारह मिनट में नापे। मतलब चलते रहे तो पन्द्रह किलोमीटर प्रति घंटा। मतलब दिन में सौ किलोमीटर चलने के लिये सात घंटे पैडल मारना होगा। इस इस्पीड से अगर चले और हर दिन सौ किलोमीटर चले तो नर्मदा उद्गम से विसर्जन तक पहुंचने में सोलह-सत्रह दिन लग जायेंगे। कुल मिलाकर एक दिन में दस किलोमीटर चलने में हाल-बेहाल हो लिये तो पंद्रह-सोलह सौ किलोमीटर में कौन हाल होगा। लेकिन वो तो जब होगा तब होगा अभी तो नया साल मुबारक हो आपको।
उत्तर भारत में जाड़ा बहुत पड़ रहा है। सैकड़ों जाने जाड़े से जा चुकी हैं। सरकार बेचारी कुछ कर नहीं पा रही है। जो गिनती बतायी जाती है नोट कर लेती है। किसी टीवी पर इस बारे में कोई बहस दिखी नहीं। लोग अभी लक्ष्मण रेखा , भारत और इंडिया में बिजी हैं।
जबलपुर में मौसम स्विटजरलैंड हो रहा है। खूब सर्दी, खूब धूप। स्वेटर, कोट तो साथ हैं ही। जाड़े का लुत्फ़ उठाया जा रहा है। रोज गिरते तापमान के रिकार्ड आंकड़े आते हैं अखबार में। हमें वो सब एक गिनती की तरह लगते हैं। यही अगर पहनने को गरम कपड़े, ओढ़ने को कम्बल/रजाई न होते तो बिलबिलाते घूमते। मौसम जो स्विटजरलैंड हो रहा है वो साइबेरिया हो जाता। दुआ करते कि ये जाड़ा टले जल्दी। बवाल है।
कल ऐसे ’चलो कुछ तूफ़ानी करते हैं’ सोचते हुये साइकिल चलाने निकल गये। शुरु के पंद्रह-बीस पैडल तो खुशी-खुशी मारे। फ़िर मामला फ़ंसने लगा। समतल सड़क पर चलाने में लग रहा था कि एवरेस्ट पर साइकिलिंग कर रहे हैं। मन किया कि रुक जायें। लेकिन फ़िर सोचा रुकेंगे तो लगेगा कि थक गये। स्टेमिना गड़बड़ है। फ़िर सोचा कि कोई जरूरी फोन कर लिया जाये रुककर। लेकिन कोई जरूरी काम याद ही नहीं आया। सब मौज ले रहे थे हमसे। हमारे पसीना आ गया। हम सोचे कि अब तो रुकना ही पड़ेगा लगता है। लेकिन तब तक आगे खुशनुमा लम्बी ढलान मिल गयी। हम खुश हो गये। वो ढाल हमें ऐसे लगी जैसी किसी आपदा में फ़ंसे को ताहत सामग्री लगती होगी। ढ़ाल में साइकिल चलाते हुये सोचा कोई गाना गुनगुनाया जाये। लेकिन जब तक गाना याद आता तब तक ढ़लान खतम हो गयी। हम फ़िर से पैडल मारने में जुट गये।
आगे फ़िर अपने एक मित्र से मिलने चले गये। साइकिल से आने की बात को ऐसे बताया गया जैसे हम कोई किला फ़तह करके आये हों। हांफ़ते हुये चार किलोमीटर की साइकिलिंग ने ही हमारे मन में इत्ता आत्मविश्वास भर दिया कि हम प्लान बना लिये कि तीन महीने बाद साइकिल से नर्मदा परिक्रमा करेंगे। करें भले न लेकिन घोषणा करने में टेंट से क्या जाता है?
दोस्त के यहां से निकले तो देखा सड़क पर बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। बिना गद्दी की बच्चा साइकिल को उल्टाये हुये धरे अपना विकेट बनाये थे। हमने उनका फ़ोटो खींचा तो बच्चा बोला हमको भी साइकिल चलाने दो। हमने दे दी। फ़िर दूसरा भी बोला हम भी चलायेंगे। हमने उसको भी चलाने को दे दी। साइकिल की गद्दी पर उचक-उचक कर उसने साइकिल चलाई। एक ने कहा हमारी बॉलिंग करते हुये फोटो खैंचिये। हमने खैंच ली। वे फ़िर से क्रिकेट खेलने में जुट गये। उनको पता भी नहीं रहा होगा कि भारत की क्रिकेट टीम की हालत कितनी पतली हो रही थी उस समय।
गिन के देखा तो तीन किलोमीटर बारह मिनट में नापे। मतलब चलते रहे तो पन्द्रह किलोमीटर प्रति घंटा। मतलब दिन में सौ किलोमीटर चलने के लिये सात घंटे पैडल मारना होगा। इस इस्पीड से अगर चले और हर दिन सौ किलोमीटर चले तो नर्मदा उद्गम से विसर्जन तक पहुंचने में सोलह-सत्रह दिन लग जायेंगे। कुल मिलाकर एक दिन में दस किलोमीटर चलने में हाल-बेहाल हो लिये तो पंद्रह-सोलह सौ किलोमीटर में कौन हाल होगा। लेकिन वो तो जब होगा तब होगा अभी तो नया साल मुबारक हो आपको।
Posted in बस यूं ही | 12 Responses
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.ब्लॉगरों के लिए आपकी पोस्ट किसी राहत- सामग्री से कम नहीं होती
ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..आपको अभी तक याद है आपकी छत?
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..कांजी हाउस – गाड़ियों का भी
सादर
akash की हालिया प्रविष्टी..दादा – एक गीत
पता करिए इतनी ठण्ड इंडिया में पड़ती है या भारत में
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..किरदार ???
यूँ अच्छी सायकिल चला ली आपने .अब आइडिया भी आ जायेंगे वापस जल्दी ही
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..एक कैपेचीनो और "कठपुतलियाँ"
सेहत अपनी, ख्याल अपना ही रखना होगा!! हा हा!!
समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..खुशियाँ मनाइये कि मेरा रेप नहीं हुआ!!!
साइकिल चलाते रहो तोंद कम हो जायेगी शर्तिया !!
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..घर से माल कमाने निकले, रंग बदलते गंदे लोग -सतीश सक्सेना
रचना त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..औरत हो औरत की तरह रहो…!