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धूप खिली उजाले के साथ
By फ़ुरसतिया on January 8, 2013
1. जाड़े में धूप
आहिस्ते से आती है,
धीमें-धीमे सहमती हुई सी।
जैसे कोई अकेली स्त्री
सावधान होकर निकलती है
अनजान आदमियों के बीच से।
धूप सहमते हुये
गुजरती है चुपचाप
कोहरे, अंधेरे और जाड़े के बीच से।
2. बहुत जाड़े में
धूप का स्कूल
बंद हो जाता है।
वह आराम करती होगी,
रजाई में दुबकी,
चाय पीती, टीवी देखती हुई।
अचानक दोपहर में
कभी भेज दिया जाता होगा
धरती पर, उजाले के साथ।
कुनमुनाती धूप
बेमन, अनमनी सी
निकलती होगी धरती के लिये।
देखकर लगता होगा
स्कूल बंद होने पर कोई बच्चा
ट्य़ूशन पढ़ने जा रहा है।
3. धूप को घेर लिया
पहुंचते ही धरती पर
अंधेरे,कोहरे और जाड़े ने।
भाई कहा, हाथ जोड़े
गिड़गिड़ाई, दुहाई दी,
लेकिन कोई बदमाश माना नहीं।
अचानक सूरज ने देखा
बच्ची को अपनी ऊपर से
भेजा फ़ौरन उजाले को।
उजाले ने आकर
हाथ-पांव तोड़े अंधेरे के,
तार-तार किया कोहरे को।
भागा जाड़ा सर पर धरे पांव,
कोहरा तिड़ी-बिड़ी हुआ,
अंधेरा शहर पार।
धूप खिली
उजाले के साथ
किसी निष्कलुष मुस्कान सी।
4. तुम्हारी याद
गुनगुनी धूप सी पसरी है
मेरे चारो तरफ़।
कोहरा तुम्हारी अनुपस्थिति की तरह
उदासी सा फ़ैला है।
धीरे-धीरे
धूप फ़ैलती जा रही है
कोहरा छंटता जा रहा है।
आहिस्ते से आती है,
धीमें-धीमे सहमती हुई सी।
जैसे कोई अकेली स्त्री
सावधान होकर निकलती है
अनजान आदमियों के बीच से।
धूप सहमते हुये
गुजरती है चुपचाप
कोहरे, अंधेरे और जाड़े के बीच से।
2. बहुत जाड़े में
धूप का स्कूल
बंद हो जाता है।
वह आराम करती होगी,
रजाई में दुबकी,
चाय पीती, टीवी देखती हुई।
अचानक दोपहर में
कभी भेज दिया जाता होगा
धरती पर, उजाले के साथ।
कुनमुनाती धूप
बेमन, अनमनी सी
निकलती होगी धरती के लिये।
देखकर लगता होगा
स्कूल बंद होने पर कोई बच्चा
ट्य़ूशन पढ़ने जा रहा है।
3. धूप को घेर लिया
पहुंचते ही धरती पर
अंधेरे,कोहरे और जाड़े ने।
भाई कहा, हाथ जोड़े
गिड़गिड़ाई, दुहाई दी,
लेकिन कोई बदमाश माना नहीं।
अचानक सूरज ने देखा
बच्ची को अपनी ऊपर से
भेजा फ़ौरन उजाले को।
उजाले ने आकर
हाथ-पांव तोड़े अंधेरे के,
तार-तार किया कोहरे को।
भागा जाड़ा सर पर धरे पांव,
कोहरा तिड़ी-बिड़ी हुआ,
अंधेरा शहर पार।
धूप खिली
उजाले के साथ
किसी निष्कलुष मुस्कान सी।
4. तुम्हारी याद
गुनगुनी धूप सी पसरी है
मेरे चारो तरफ़।
कोहरा तुम्हारी अनुपस्थिति की तरह
उदासी सा फ़ैला है।
धीरे-धीरे
धूप फ़ैलती जा रही है
कोहरा छंटता जा रहा है।
Posted in कविता, बस यूं ही | 18 Responses
सादर
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कुहरे का आतंक!
सूरज! तुम कब आओगे?
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देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..मारे डर के हालत खराब, और लोग बोलते डर नहीं लगता !!!!
सूचनार्थ |
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Vinay Prajapati की हालिया प्रविष्टी..वह लड़की कौन थी (हासिल)
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