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ये गुंडागर्दी नहीं चलेगी
By फ़ुरसतिया on October 12, 2013
अखबार
में एक पुलिस अधिकारी का बयान आया – शहर में नहीं होने देंगे गुंडागर्दी।
बयान पढ़कर बड़ा खराब लगा। अरे भाई, शहर में नहीं चलने दोगे तो गुंडे क्या
गुंडागर्दी करने गांव जायेंगे? जंगल में ’गुंडाकैंप’ करेंगे? अरे गुंडे भी
इस देश के नागरिक हैं भाई। उनका भी हक है जहां मन आये वहां रहने का। अपना
काम धंधा करने का। आप कानून व्यवस्था के नाम पर किसी का काम धंधा बंद कर
दोगे क्या? किसी के पेट पर लात मार दोगे? यह तो देश के कानून का सरासर
उल्लंघन है भाई। कानून कहता है कि देश का नागरिक कहीं भी रह सकता है, आ
सकता है, जा सकता है, काम धंधा कर सकता है। देश के चलाने में गुंड़ों का भी
योगदान होता है। गुंडे माफ़िया न हों तो न जाने कित्ते धंधे बंद हो जायें,
आई.पी.एल. बन्द हो जाये, फ़िल्में न बनें, ठेकेदारी ठप्प हो जाये। सरकारें
तक भहराकर गिर पड़ें। बकौल ’राहत इंदौरी’ –
गुंडों का विरोध करने वालों को समाज निर्माण में उनका योगदान समझना चाहिये। जो काम सरकारें नहीं कर पातीं वह गुंडे करके दिखाते हैं। सरकार का काम लोगों के भले के लिये काम करना होता है। वह नहीं कर पाती तो कोई गुंडा अपने कुछ लोगों का भला करने लगता है। भलाई का कुटीर उद्योग चलाता है। लोग कानून की बजाय गुंडे को पसन्द करने लगते हैं। यह सहज भी है। कानून और गुंडे में जो भला करेगा उसी को तो पसंद करेगा न आम आदमी। उसी को तो वोट देगा। चुनाव जितवायेगा। मंत्री बनायेगा। अब अगर किसी गुंडे से कुछ लोगों को तकलीफ़ है तो वो अपना गुंडा बनाये। अपना भला करवाये।
समाज निर्माण में गुंडों की सफ़लता को देखते हुये गुंडों की संख्या बढ़ती जा रही है। लेकिन समाज में उनको अभी स्वीकार्यता खुले मन से मिली नहीं है। दकियानूस समाज अभी भी गुंडो को बुरा मानता है। सरकारें इस बारे में उदार हैं। अपने मंत्रिमंडल में गुंडों को रखने में हिचकती नहीं। उनको क्लीनचिट वगैरह दिलवाती हैं। ताकि कोई हल्ला मचाये तो कह सकें कि भाई एक भले आदमी को खाली आरोपों के आधार पर कैसे जनता के सेवा के मौके से वंचित कर दिया जाये।
ऐसे ही एक जनसेवक को उसकी लोकप्रियता के चलते जलने वाले लोगों ने उस भले आदमी को लोगों ने झूठे आरोपों में फ़ंसा दिया। कानून ने फ़ौरन अपना काम किया। जनसेवक को क्लीन चिट मिली। फ़िर सरकार ने फ़टाक से अपना काम किया। जनसेवक को मंत्री बनाया। फ़िर विपक्ष भी अपना काम करने में जुट गया और सरकार की बुराई करने लगा। यह सब देखकर शायर ’कट्टा कानपुरी’ ने भी अपना काम किया और जनसेवक के मंत्री बनने का विरोध करने वालों को धिक्कारते हुये लिखा:
काम करें चाहे न करें लेकिन अधिकारियों को बयान तो सोच समझकर देने चाहिये। बयान देने के मामले में अधिकारियों की गुंडागर्दी नहीं चलेगी।
सभी का खून शामिल है यहां की मिट्टी में,सच पूछा जाये तो गुंडों के साथ हमेशा से अन्याय होता आया है। समाज और सरकार निर्माण में गुंडे जितना योगदान करते हैं उसके हिसाब से उनको श्रेय नहीं मिलता। काम निकल जाने के बाद उनको भुला दिया जाता है या किनारे कर दिया जाता है। इससे गुंडों के मनोबल पर असर पड़ता है। कभी-कभी तो इतना असर पड़ता है कि वे नेता तक बन जाते हैं। चुनाव लड़ते हैं। जीत जाते हैं। मंत्री बन जाते हैं। दूसरे गुंडों को राह दिखाते हैं। हाशिये पर पड़े गुंडों को समाज की मुख्य धारा में लाते हैं।
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है।
गुंडों का विरोध करने वालों को समाज निर्माण में उनका योगदान समझना चाहिये। जो काम सरकारें नहीं कर पातीं वह गुंडे करके दिखाते हैं। सरकार का काम लोगों के भले के लिये काम करना होता है। वह नहीं कर पाती तो कोई गुंडा अपने कुछ लोगों का भला करने लगता है। भलाई का कुटीर उद्योग चलाता है। लोग कानून की बजाय गुंडे को पसन्द करने लगते हैं। यह सहज भी है। कानून और गुंडे में जो भला करेगा उसी को तो पसंद करेगा न आम आदमी। उसी को तो वोट देगा। चुनाव जितवायेगा। मंत्री बनायेगा। अब अगर किसी गुंडे से कुछ लोगों को तकलीफ़ है तो वो अपना गुंडा बनाये। अपना भला करवाये।
समाज निर्माण में गुंडों की सफ़लता को देखते हुये गुंडों की संख्या बढ़ती जा रही है। लेकिन समाज में उनको अभी स्वीकार्यता खुले मन से मिली नहीं है। दकियानूस समाज अभी भी गुंडो को बुरा मानता है। सरकारें इस बारे में उदार हैं। अपने मंत्रिमंडल में गुंडों को रखने में हिचकती नहीं। उनको क्लीनचिट वगैरह दिलवाती हैं। ताकि कोई हल्ला मचाये तो कह सकें कि भाई एक भले आदमी को खाली आरोपों के आधार पर कैसे जनता के सेवा के मौके से वंचित कर दिया जाये।
ऐसे ही एक जनसेवक को उसकी लोकप्रियता के चलते जलने वाले लोगों ने उस भले आदमी को लोगों ने झूठे आरोपों में फ़ंसा दिया। कानून ने फ़ौरन अपना काम किया। जनसेवक को क्लीन चिट मिली। फ़िर सरकार ने फ़टाक से अपना काम किया। जनसेवक को मंत्री बनाया। फ़िर विपक्ष भी अपना काम करने में जुट गया और सरकार की बुराई करने लगा। यह सब देखकर शायर ’कट्टा कानपुरी’ ने भी अपना काम किया और जनसेवक के मंत्री बनने का विरोध करने वालों को धिक्कारते हुये लिखा:
“क्लीन चिट मिली है भाई, मंत्री काहे न बने,लगता है पुलिस अधिकारी ने अपना बयान ऐसे ही बिना सोचे समझे दे दिया। लगता है पुलिस अधिकारी ने ’पापुलर मेरठी’ का शेर नहीं सुना:
तेरा सिर है तू चाहे, इसे सहलाये या धुने। अरे भाई गुंड़ों के भी सीने में दिल होता है,
बाहुबली होने से क्या, कोई नेता न बने?
अरे तुमने वोट दे दिया अब ये उनकी मर्जी,
सरकार चलाने के लिये चाहे जिनको चुनें।
अरे यार जनता हो,देखो सब पर चुप रहो,
चलेगी ऐसी ही सरकार, चाहे जिसकी बने।
मवालियों को न देखा करो हिकारत सेमान लिया कि शेर नहीं पढ़ा लेकिन बयान देने से पहले यह तो सोचना चाहिये कि अगर गुंडे शहर से बाहर चले गये तो फ़िर थाने को कौन पूछेगा? उनकी रौनक का क्या होगा?
न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाए ।
काम करें चाहे न करें लेकिन अधिकारियों को बयान तो सोच समझकर देने चाहिये। बयान देने के मामले में अधिकारियों की गुंडागर्दी नहीं चलेगी।
Posted in बस यूं ही | 7 Responses
हम भी अगर गुंडे होते
नाम हमारा होता ….
हमको भी मिलती गद्दी…
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..कानपुर से बंगलोर
अब दुबारा तुक बनाने का मूड नहीं है।
अस्तु साधुवाद देकर चलता हूँ।
पोस्ट तो मजेदार है ही।
सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..फेसबुक पर इंटेलेक्चुअल कैसे दिखें
बड़ी गुंडनीयता के साथ लिखा हुआ व्यंग्य !