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चुनाव घोषणा पत्र में च्यवनप्राश
By फ़ुरसतिया on October 10, 2013
“…..लैपटॉप तो रखना ही पड़ेगा। ठेल दिया!” ….. और बताओ और क्या घुसेड़ दें घोषणा पत्र में ,दादा?
ये ठीक किया। लैपटॉप तो चुनाव घोषणापत्र में ऐसा हो गया है जैसे दहेज के सामान की लिस्ट में गाड़ी। दूल्हा चाहे गदहा, गोबर गणेश हो लेकिन दहेज में उसको गाड़ी तो चाहिये ही चाहिेये। बाजी बाजी तो ससुर कहते हैं कि दुल्हन भले न मिले लेकिन शादी में गाड़ी जरूर मिले। -दादा बगल की लुटिया में पान मसाला थूकते हुये बोले।
सीन राजनीतिक पार्टी का है। चुनाव घोषणा पत्र तय हो रहा है। जीत जाने पर वोटरों को बांटे जाने वाले प्रसाद पर चिंतन चल रहा है।
अच्छा लैपटॉप की जगह आईपैड न कर दें? कुछ अलग देना चाहिये। -एक ने सुझाव दिया।
अरे यार देओ चाहे जो कुछ लेकिन लिखो लैपटॉपै। और कुछ लिखोगे तो जनता समझेगी कि कैसी चिल्लर पार्टी है जो लैपटॉप तक नहीं दे रही। देने को लैपटॉप की जगह काले डब्बा बंटे हैं लेकिन नाम यहै हुआ न कि न कि लैपटॉप बंटे हैं। लैपटॉपै रहन देव। अगला आइटम सोचा जाये। – दादा ने लैपटॉप पर फ़ाइनल मोहर मारते हुये कहा।
बुजुर्ग बढ़ेंगे इस बार चुनाव में। उनके लिये कुछ रखा जाये। -एक कार्यकर्ता ने सुझाया?
बुजुर्ग क्यों बढ़ेंगे भाई? संस्कारी पार्टियां तक अपने बुजुर्गों को धकिया के बाहर कर रही हैं। तो बुजुर्ग वोटर काहे को आयेगा वोट डालने। बुजुर्गों की कोई इज्जत तो करता नहीं आजकल। वो काहे वोट डालने आयेंगे? – अगले ने सवाल उछाला।
इज्जत नहीं होती तभी तो आयेंगे बुजुर्ग। वे बदले की भावना से आयेंगे। अपना गुस्सा दिखाने। बेइज्जती का बदला लेने। तुमने हमको पीएम न बनने दिया हम तुमको शपथ न लेंगे देंगे। तुमने हमको खारिज किया हम तुम सबको रिजेक्ट करेंगे। वैसे भी बुजुर्गों की नजरों में वर्तमान रिजेक्टेड माल ही होता है। वह सोचता है आज की पीढ़ी जो कर रही है वो सब फ़ालतू है। जो उसके समय में हुआ वही सही था। बहुत बुजुर्ग आयेंगे रिजेक्ट करने। उनके लिये कुछ होना चाहिये घोषणा पत्र में। – चर्चा में तर्क का छौंका लगाते हुये कार्यकर्ता ने कहा।
अरे यार जो व्हील चेयर पर होगा वो वोट डालने कैसे आयेगा? जो वोट डालने न आये उसके लिये पैसा क्या खर्चना? -व्हील चेयर बेकार है।
अरे ये भी तो हो सकता है कि जो चलने-फ़िरने से मोहताज हैं वो व्हील चेयर की लालच में आ जायें वोट डालने और अपने उम्मीदवार पर ठप्पा लगा दें। व्हील चेयर छोड़ो मत। डाले देते हैं। – व्हील चेयर समर्थक वीटो मुद्रा में आ गया।
बुजुर्गों के लिये व्हील चेयर कैसी रहेगी? – एक ने सुझाव दिया।
अरे यार तुम तो ऐसे अड़ गये व्हील चेयर के लिये जैसे तुम्हारे बिटिया/दामाद की व्हील चेयर की फ़ैक्ट्री है। ऐसा है तो साफ़ बताओ। आपस में क्या छुपाना। बताओ डाल देते हैं। -कार्यालय में चुहलबाजी होने लगी।
अरे भाई हम कोई बिजनेस से राजनीति में आये हैं जिसकी कोई फ़ैक्ट्री होगी। ये धंधे तो पैसे वाले करते हैं जो ब्लैकमनी पर खड़िया पुताई के लिये आते हैं राजनीति में। हम तो होलटाइमर हैं। शुरु से अब तक दरी बिछाने वाले। और मानो फ़ैक्ट्री होगी भी तो क्या कमीशन छोड़ दिया जायेगा खरीद में? वो तो देना ही पड़ेगा न! ज्यादा मुंह न खुलवाओ सुबह-सुबह।- होलटाइमर भावुक टाइप हो गये।
बहस सुनकर बेचारी व्हील चेयर दूसरे सामानों के समर्थन में बैठ गई। अगले सामान तय होने लगे।
बुजुर्गों को अपने नाती-पोतों को खिलाने का शौक बहुत रहता है। इसी बहाने घर में टिके भी रहते हैं। ऐसा करते हैं बुजुर्गों के लिये खिलौने की घोषणा कर देते हैं। पूरा घर खुश हो जायेगा। घर के बच्चे खुश तो सब खुश। फ़ेमिली पैकेज हो जायेगा।
लेकिन आजकल बच्चे हो कहां रहे हैं। सब नौजवान तो देश में राजभाषा के कार्यान्वयन की तरह् शादी मुल्तवी किये पड़े हैं। जैसे कहा जाता है कि जब हिन्दी सक्षम होगी तब लागू होगी वैसे ही युवा पीढ़ी कहती है कि सेटल हो जायें तब शादी करेंगे। औ जब शादी नहीं होगी तो बच्चे कहां से होंगे। इसलिये खिलौना बेकार है। -खिलौना भी घुस नहीं पाया चुनाव घोषणा पत्र में।
मन तो करता है ससुर पूरे वाल मार्ट को डाल दें घोषणा पत्र में। जो मांगोगे वो देंगे। बस एक बार सेवा का मौका दे दो। सबको परखा बार-बार, हमको भी परखो न एक बार। – लिखने वाले ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किये।
चुनाव भावुकता से नहीं लड़े जाते बच्चा। घोषणापत्र में भावुकता दिखेगी तो जनता समझेगी ये कवि लोग हैं। राजनेता नहीं हैं। चुनाव घोषणा पत्र लिखना कोई कविता लिखना नहीं है कि जो मन आया ठेल दिया। घोषणा पत्र ललित निबन्ध सरीखा होना चाहिये जो पढ़ने में मनभावन होना चाहिये। भले ही उसका मतलब कुछ न निकले। -दादा ने विरोधाभाषी तर्क देते हुये चुप किया कलमकार को।
होते-करते सब आईटम पर चर्चा होती गयी। आइटम खारिज होते गये। आखिर में तय हुआ कि बुजुर्गों के लिये कोई युटिलिटी आइटम बोले तो काम की चीज की घोषणा की जाये।
काम की चीज में “आत्मरक्षा के लिये पिस्तौल” से लेकर “सर दर्द भगाने के लिये झंडू बॉम” तक पर बहस करने के बाद बात फ़ाइनली च्यवनप्राश पर आकर टूटी। चुनाव घोषणा पत्र में बुजुर्गों के लिये च्यवनप्राश डाल दिया गया। निर्णय हुआ कि अगर पार्टी चुनाव जीतेगी तो हर बुजुर्ग को प्रतिमाह च्यवनप्राश का एक किलो का डिब्बा देगी। बारह डिब्बे के साथ साल में एक चम्मच मुफ़्त में। पांच साल के लिये साठ डिब्बे च्यवनप्राश और पांच चम्मच साथ में दिये जायेंगे। बुजुर्ग चाहें तो घर के बाकी सदस्यों को भी च्यवनप्राश खिला सकते हैं लेकिन उसके लिये चम्मच उनको अपने जुगाड़ करने होंगे।
चुनाव घोषणा पत्र प्रकाशित होते ही उस पर चर्चा होने लगी। टेलीविजन पर शाम की प्राइम टाइम बहस का विषय था कि बारह च्यवनप्राश के डिब्बे के साथ केवल एक चम्मच की घोषणा कहीं परिवार कहीं संयुक्त परिवार को बांटने की कोशिश तो नहीं है। क्या यह घोषणा पार्टी को बहुमत दिला पायेगी।
हम तो कुछ समझ नहीं पा रहे हैं इस पर क्या कहें? आप की कोई राय हो तो बतायें। एंकर को एस.एम.एस. करें।
सूचना: यह पोस्ट संक्षिप्त रूप में 11.10.2013 के हिन्दुस्तान में छपी।
ये ठीक किया। लैपटॉप तो चुनाव घोषणापत्र में ऐसा हो गया है जैसे दहेज के सामान की लिस्ट में गाड़ी। दूल्हा चाहे गदहा, गोबर गणेश हो लेकिन दहेज में उसको गाड़ी तो चाहिये ही चाहिेये। बाजी बाजी तो ससुर कहते हैं कि दुल्हन भले न मिले लेकिन शादी में गाड़ी जरूर मिले। -दादा बगल की लुटिया में पान मसाला थूकते हुये बोले।
सीन राजनीतिक पार्टी का है। चुनाव घोषणा पत्र तय हो रहा है। जीत जाने पर वोटरों को बांटे जाने वाले प्रसाद पर चिंतन चल रहा है।
अच्छा लैपटॉप की जगह आईपैड न कर दें? कुछ अलग देना चाहिये। -एक ने सुझाव दिया।
अरे यार देओ चाहे जो कुछ लेकिन लिखो लैपटॉपै। और कुछ लिखोगे तो जनता समझेगी कि कैसी चिल्लर पार्टी है जो लैपटॉप तक नहीं दे रही। देने को लैपटॉप की जगह काले डब्बा बंटे हैं लेकिन नाम यहै हुआ न कि न कि लैपटॉप बंटे हैं। लैपटॉपै रहन देव। अगला आइटम सोचा जाये। – दादा ने लैपटॉप पर फ़ाइनल मोहर मारते हुये कहा।
बुजुर्ग बढ़ेंगे इस बार चुनाव में। उनके लिये कुछ रखा जाये। -एक कार्यकर्ता ने सुझाया?
बुजुर्ग क्यों बढ़ेंगे भाई? संस्कारी पार्टियां तक अपने बुजुर्गों को धकिया के बाहर कर रही हैं। तो बुजुर्ग वोटर काहे को आयेगा वोट डालने। बुजुर्गों की कोई इज्जत तो करता नहीं आजकल। वो काहे वोट डालने आयेंगे? – अगले ने सवाल उछाला।
इज्जत नहीं होती तभी तो आयेंगे बुजुर्ग। वे बदले की भावना से आयेंगे। अपना गुस्सा दिखाने। बेइज्जती का बदला लेने। तुमने हमको पीएम न बनने दिया हम तुमको शपथ न लेंगे देंगे। तुमने हमको खारिज किया हम तुम सबको रिजेक्ट करेंगे। वैसे भी बुजुर्गों की नजरों में वर्तमान रिजेक्टेड माल ही होता है। वह सोचता है आज की पीढ़ी जो कर रही है वो सब फ़ालतू है। जो उसके समय में हुआ वही सही था। बहुत बुजुर्ग आयेंगे रिजेक्ट करने। उनके लिये कुछ होना चाहिये घोषणा पत्र में। – चर्चा में तर्क का छौंका लगाते हुये कार्यकर्ता ने कहा।
अरे यार जो व्हील चेयर पर होगा वो वोट डालने कैसे आयेगा? जो वोट डालने न आये उसके लिये पैसा क्या खर्चना? -व्हील चेयर बेकार है।
अरे ये भी तो हो सकता है कि जो चलने-फ़िरने से मोहताज हैं वो व्हील चेयर की लालच में आ जायें वोट डालने और अपने उम्मीदवार पर ठप्पा लगा दें। व्हील चेयर छोड़ो मत। डाले देते हैं। – व्हील चेयर समर्थक वीटो मुद्रा में आ गया।
बुजुर्गों के लिये व्हील चेयर कैसी रहेगी? – एक ने सुझाव दिया।
अरे यार तुम तो ऐसे अड़ गये व्हील चेयर के लिये जैसे तुम्हारे बिटिया/दामाद की व्हील चेयर की फ़ैक्ट्री है। ऐसा है तो साफ़ बताओ। आपस में क्या छुपाना। बताओ डाल देते हैं। -कार्यालय में चुहलबाजी होने लगी।
अरे भाई हम कोई बिजनेस से राजनीति में आये हैं जिसकी कोई फ़ैक्ट्री होगी। ये धंधे तो पैसे वाले करते हैं जो ब्लैकमनी पर खड़िया पुताई के लिये आते हैं राजनीति में। हम तो होलटाइमर हैं। शुरु से अब तक दरी बिछाने वाले। और मानो फ़ैक्ट्री होगी भी तो क्या कमीशन छोड़ दिया जायेगा खरीद में? वो तो देना ही पड़ेगा न! ज्यादा मुंह न खुलवाओ सुबह-सुबह।- होलटाइमर भावुक टाइप हो गये।
बहस सुनकर बेचारी व्हील चेयर दूसरे सामानों के समर्थन में बैठ गई। अगले सामान तय होने लगे।
बुजुर्गों को अपने नाती-पोतों को खिलाने का शौक बहुत रहता है। इसी बहाने घर में टिके भी रहते हैं। ऐसा करते हैं बुजुर्गों के लिये खिलौने की घोषणा कर देते हैं। पूरा घर खुश हो जायेगा। घर के बच्चे खुश तो सब खुश। फ़ेमिली पैकेज हो जायेगा।
लेकिन आजकल बच्चे हो कहां रहे हैं। सब नौजवान तो देश में राजभाषा के कार्यान्वयन की तरह् शादी मुल्तवी किये पड़े हैं। जैसे कहा जाता है कि जब हिन्दी सक्षम होगी तब लागू होगी वैसे ही युवा पीढ़ी कहती है कि सेटल हो जायें तब शादी करेंगे। औ जब शादी नहीं होगी तो बच्चे कहां से होंगे। इसलिये खिलौना बेकार है। -खिलौना भी घुस नहीं पाया चुनाव घोषणा पत्र में।
मन तो करता है ससुर पूरे वाल मार्ट को डाल दें घोषणा पत्र में। जो मांगोगे वो देंगे। बस एक बार सेवा का मौका दे दो। सबको परखा बार-बार, हमको भी परखो न एक बार। – लिखने वाले ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किये।
चुनाव भावुकता से नहीं लड़े जाते बच्चा। घोषणापत्र में भावुकता दिखेगी तो जनता समझेगी ये कवि लोग हैं। राजनेता नहीं हैं। चुनाव घोषणा पत्र लिखना कोई कविता लिखना नहीं है कि जो मन आया ठेल दिया। घोषणा पत्र ललित निबन्ध सरीखा होना चाहिये जो पढ़ने में मनभावन होना चाहिये। भले ही उसका मतलब कुछ न निकले। -दादा ने विरोधाभाषी तर्क देते हुये चुप किया कलमकार को।
होते-करते सब आईटम पर चर्चा होती गयी। आइटम खारिज होते गये। आखिर में तय हुआ कि बुजुर्गों के लिये कोई युटिलिटी आइटम बोले तो काम की चीज की घोषणा की जाये।
काम की चीज में “आत्मरक्षा के लिये पिस्तौल” से लेकर “सर दर्द भगाने के लिये झंडू बॉम” तक पर बहस करने के बाद बात फ़ाइनली च्यवनप्राश पर आकर टूटी। चुनाव घोषणा पत्र में बुजुर्गों के लिये च्यवनप्राश डाल दिया गया। निर्णय हुआ कि अगर पार्टी चुनाव जीतेगी तो हर बुजुर्ग को प्रतिमाह च्यवनप्राश का एक किलो का डिब्बा देगी। बारह डिब्बे के साथ साल में एक चम्मच मुफ़्त में। पांच साल के लिये साठ डिब्बे च्यवनप्राश और पांच चम्मच साथ में दिये जायेंगे। बुजुर्ग चाहें तो घर के बाकी सदस्यों को भी च्यवनप्राश खिला सकते हैं लेकिन उसके लिये चम्मच उनको अपने जुगाड़ करने होंगे।
चुनाव घोषणा पत्र प्रकाशित होते ही उस पर चर्चा होने लगी। टेलीविजन पर शाम की प्राइम टाइम बहस का विषय था कि बारह च्यवनप्राश के डिब्बे के साथ केवल एक चम्मच की घोषणा कहीं परिवार कहीं संयुक्त परिवार को बांटने की कोशिश तो नहीं है। क्या यह घोषणा पार्टी को बहुमत दिला पायेगी।
हम तो कुछ समझ नहीं पा रहे हैं इस पर क्या कहें? आप की कोई राय हो तो बतायें। एंकर को एस.एम.एस. करें।
सूचना: यह पोस्ट संक्षिप्त रूप में 11.10.2013 के हिन्दुस्तान में छपी।
Posted in बस यूं ही | 9 Responses
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..वर्धा से कानपुर
*****रेटिंग।
जीतेगा वही , जो पढ़ लेगा , इनके फार्मूलों में, दम है !
- कट्टा कानपुरी असली वाले
कट्टा कानपुरी असली वाले की हालिया प्रविष्टी..जब से इन्होने जनम लिया है, देश में नफरत आई है – सतीश सक्सेना
rachana tripathi की हालिया प्रविष्टी..राजनीति अब शरीफों के लिए नहीं रही…
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..सेकुलरिज्म का श्रेय हिंदुओं को: विभूति नारायण राय
Rekha Srivastava की हालिया प्रविष्टी..पांच वर्ष ब्लोगिंग के !
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..The “Talented” Culprit Since 1992