http://web.archive.org/web/20140331064005/http://hindini.com/fursatiya/archives/4861
सोशल मीडिया पर यदा-कदा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की बुराई करने वाले उनकी नीतियों और निर्णयों के अलावा उनके व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी बातों की चर्चा करके उनकी आलोचना करते हैं। ऐसा ही एक चर्चित विषय है नेहरू-एडविना प्रेम संबंध। नेहरू-एडविना के संबंधों को लेकर अनेक किताबें लिखी गयीं हैं। परसाई जी ने एक पाठक के पूछने पर इस संबंध में अपने विचार व्यक्त किये।
परसाई जी नेहरू जी के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थे। उनकी वैज्ञानिक समझ और दूरदृष्टि के प्रशंसक थे। नेहरू जी उनके रोमानी हीरो सरीखे थे। लेकिन व्यंग्यकार परसाई नेहरू की आलोचना और उनकी नीतियों की खिल्लियां उड़ाने से चूकते नहीं थे। परसाई जी का विश्वास था कि बिना व्यवस्था में बदलाव लाये, भ्रष्टाचार के मौके कम किये देश से भ्रष्टाचार कम नहीं हो सकता। नेहरूजी ने एक सभा में कहा था कि मुनाफाखोरों को बिजली के खम्भों पर लटका दिया जायेगा। बिना किसी समुचित योजना के इस तरह की घोषणा करने की प्रवृत्ति की खिल्ली उड़ाते परसाई जी ने व्यंग्य लेख लिखा था- उखड़े खम्भे। नेहरू जी द्वारा स्वयं की सरकार द्वारा ‘भारत रत्न’ स्वीकार करने की घटना का भी परसाई जी ने ( सम्मानित होने की इच्छा उद्दात मनुष्य की आखिरी कमजोरी होती है) विरोध किया था।
नेहरू-एडविना संबंध में परसाई जी का मानना था कि इसमें एतिहासिक परिस्थितियों ने एक साधारण स्त्री को एक इतिहास-पुरुष के संपर्क में ला दिया। अपने उत्तर में परसाईजी ने अपनी राय व्यक्त की थी की थी कि सहमति से अगर किसी स्त्री और पुरुष के शारीरिक संबंध भी हों तो मैं इसे बुरा नहीं मानता एक पाठक ने उनके इस वक्तव्य पर सवाल उठाते हुये एतराज किया कि इससे तो समाज में मुक्त यौन संबंध का चलन हो जायेगा। परसाईजी ने अपनी बात साफ़ करते हुये पाठक को जबाब दिया मैं मुक्त यौन सम्बन्ध की वकालत नहीं कर रहा हूं।।
“पूछो परसाई से” पढ़ते हुये लगता है कि परसाईजी की देश-समाज से जुड़े मुद्दे पर क्या राय थी। बहरहाल, आप पढिये ये दोनों प्रश्न-उत्तर।
प्रश्न- क्या नेहरू-एडविना का प्रेम विश्व इतिहास में एक महान प्रेम प्रकरण था या चलते किस्म की चीज? (पोटियाकला से कु. शशि साव)
उत्तर-एडविना भारत के अन्तिम वाइसरॉय लॉर्ड लुई माउंट बेटन की पत्नी थी। लार्ड माउंट बेटन से पंडित नेहरू के पहले से अच्छे सम्बन्ध थे। कृष्णमेनन भी माउंट बेटन के दोस्त थे और आदत के मुताबिक साफ़ बात कहते थे। उन्होंने एक दिन दोपहर के भोजन करते-करते माउंट बेटन से कह दिया था- तुम मुस्लिम लीग का उपयोग भारत विभाजन के लिये कर रहे हो और भारत में रहने वाले करोड़ों मुसलमानों के साथ धोखा कर रहे हो।
बहरहाल, एडविना माउंट बेटन पंडित नेहरू की मित्र थीं। सहमति से अगर किसी स्त्री और पुरुष के शारीरिक संबंध भी हों तो मैं इसे बुरा नहीं मानता। प्रेम अत्यन्त पवित्र स्वाभाविक मानवीय भावना है। मगर यह सम्बन्ध ऐतिहासिक कैसे हो जायेगा? ऐतिहासिक परिवर्तन कैसे हो जायेगा? ऐतिहासिक परिवर्तन और प्रक्रिया में जवाहरलाल नेहरू की राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय भूमिका थी और महत्व था। पूंजीवादी और समाजवादी शक्तियों का संघर्ष अवश्यम्भावी है यह उन्होंने समझ लिया था। वे अमेरिकी साम्राज्यवाद के आगे के रोल की कल्पना कर चुके थे। इसीलिये उन्होंने ‘शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व’, ‘पंचशील’ और ‘गुट’, संलग्नता की नीतियां प्रतिपादित कीं। एडविना उस वाइसरॉय की पत्नी थीं जिसने ब्रिटिश संसद के फ़ैसले के अनुसार भारतीयों को सत्ता सौंपी और देश का विभाजन हुआ।
पंडित नेहरू अत्यन्त आकर्षक व्यक्ति थे। यह आकर्षण केवल सुन्दर चेहरे के कारण नहीं था। उनके कार्यों , बुद्धि की प्रखरता, साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष, कीर्ति और विश्व इतिहास में उनकी भूमिका के कारण भी था। यह समझना गलत है कि स्त्री केवल सुन्दर चेहरे पर मोहित होती है। स्त्री दूसरे कारणों से भी किसी पुरुष पर मोहित होती है। कुरूप पुरुषों पर भी स्त्रियां मोहित हैं। असंख्य स्त्रियों देश और दुनिया में थीं जो नेहरू पर मोहित थीं। इतिहास की सबसे महान और अहंकारी अभिनेत्री ग्रेटा गार्बों जवाहरलाल को देखने के लिये भीड़ में खड़ी होती थीं। इतना मोहक व्यक्तित्व था नेहरू का।
नेहरू भावुक थे, रूमानी भी थे। उनकी कई स्त्रियों से मित्रता थी- मृदुला साराभाई, राजकुमारी अमृत कौर, पूर्णिमा बेनर्जी, पद्मजा नायडू, आदि से उनकी मित्रता थी। वे छिपाते नहीं थे। एक बार संसद में उन्होंने कह दिया था- हां मृदुला सारा भाई कुछ साल मेरी मित्र थीं।
एडविना और नेहरू के सम्बन्धों के बारे में बहुत अफ़वाहें हैं और बहुत लिखा गया है। अब जब न नेहरू हैं, न लॉर्ड माउंट बेटन, न एडविना तब तो रिसर्च होकर और खुलकर किताबें लिखीं जा रहीं हैं। ताजा किताब एक अंग्रेज ने लिखी है जिसमें उसने कहा है कि एडविना शुरु से चंचल थीं। यहां तक लिखा है कि शादी के बाद दस साल तक ‘शी वाज गोइंग फ़्रॉम बेड टु बेड’। इस बिस्तर से उस बिस्तर तक जाती रहीं। एक लेखक ने लिखा है कि माउंट बेटन इस बात पर गर्व करते थे कि उनकी पत्नी पुरुषों को इस तरह मोहित करती हैं। महान नीग्रो गायक पाल राब्सन से भी एडविना के सम्बन्ध थे। जब एडविना और नेहरू में मित्रता हुई तब एडविना की उम्र 45 साल थी और नेहरू की 54 साल। यह उम्र किशोरों जैसे प्रेम की नहीं होती। इन उम्र में विवेक और समझदारी से प्रणय सम्बन्ध होते हैं। कुछ लोगों का यह ख्याल गलत है एडविना ने नेहरू के विचारों को प्रभावित करके उनसे ब्रिटिश सरकार की बात मनवाई। नेहरू बहुत दृढ़ आदमी थे। यह जरूर है कि एडविना के साहचर्य, उसकी भावुकता तथा सद्भावना से नेहरू प्रभावित थे। यह सम्बन्ध कहां तक था। कुछ लोग कहते हैं कि शरीर के स्तर पर भी सम्बन्ध था। हो तो हर्ज क्या है? जिस क्षोभ और मानसिक तनाव में देश विभाजन के दौर में नेहरू कार्य कर रहे थे, इस कोमल भावना से उन्हें राहत मिलती थी। एतिहासिक इसमें इतना ही है कि एतिहासिक परिस्थितियों ने एक साधारण स्त्री को एक इतिहास-पुरुष के संपर्क में ला दिया।
(देशबन्धु ,18 दिसम्बर, 1983)
प्रश्न- नेहरू-एडविना प्रेम के बारे में आपने लिखा है- सुसम्मत यौन सम्पर्क के आप विरोधी नहीं हैं। आप बहुत बड़े लेखक हैं। आपके इस समर्थन को पढ़कर देश के नर-नारी सम्मति से यौन सम्पर्क करने लगें तो क्या परिणति होगी? (भिलाई से निखिलानन्द घोष)
उत्तर- आप मुझे गलत समझे, आपकी कल्पना में अतिशयोक्ति है। स्वभाव से स्त्री एक ही पुरुष की रहना चाहती है, रहती भी है क्योंकि वही सन्तान पैदा करके मनुष्य की जीवन परम्परा बढ़ाती है। एकनिष्ठ वैवाहिक संबंध की सुरक्षा उसे तथा बच्चों को चाहिये। मेरे कह देने से स्त्रियां एकदम चंचल नहीं हो उठेंगी मगर मानवीय भावना र वासना गणित से नहीं चलती। एक स्त्री और पुरुष का परस्पर आकर्षण और प्रेम है, तो उसमें अनैतिक कुछ भी नहीं है। यह प्राकृतिक है। यह आकर्षण शरीर-सम्पर्क की मांग करता है। सुविधा हो तो ऐसा सम्पर्क होता भी है। आप अपनी जानकारी के दायरे में देख लीजिये, ऐसे सम्बन्ध हैं। मेरी जानकारी में ऐसे कई सम्बन्ध हैं और ये सम्बन्ध सम्मानजनक हैं। मैं मुक्त यौन सम्बन्ध की वकालत नहीं कर रहा हूं। ऐसे सम्बन्ध बाजारू हो जायेंगे। मर्यादा समाज में जरूरी है। मैं कह रहा हूं कि स्त्री-पुरुष में परस्पर आकर्षण और प्रेम से शरीर सम्बन्ध हों, तो वे सही हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि पत्नियां पतियों को छोड़ देगीं और यौन अराजकता आ जायेगी।
बलात्कार, दबाब, डर से जो सम्बन्ध हों ये अपराध हैं। अगर कोई अफ़सर अपने मातहत स्त्री नौकरीपेशा को दबाकर उससे सम्भोग करता है तो यह बलात्कार है। यदि प्रोफ़ेसर छात्रा से यौन सम्बन्ध करके डॉक्टरेट दिलाता है, तो यह भी बलात्कार है। ये सम्बन्ध प्रेम और स्वेच्छा के नहीं होते।
(देशबंन्धु, 29 जनवरी, 1984)
नेहरू एडविना संबंध- एक महान प्रेम प्रकरण या चलते किस्म की चीज
By फ़ुरसतिया on October 4, 2013
सोशल मीडिया पर यदा-कदा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की बुराई करने वाले उनकी नीतियों और निर्णयों के अलावा उनके व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी बातों की चर्चा करके उनकी आलोचना करते हैं। ऐसा ही एक चर्चित विषय है नेहरू-एडविना प्रेम संबंध। नेहरू-एडविना के संबंधों को लेकर अनेक किताबें लिखी गयीं हैं। परसाई जी ने एक पाठक के पूछने पर इस संबंध में अपने विचार व्यक्त किये।
परसाई जी नेहरू जी के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थे। उनकी वैज्ञानिक समझ और दूरदृष्टि के प्रशंसक थे। नेहरू जी उनके रोमानी हीरो सरीखे थे। लेकिन व्यंग्यकार परसाई नेहरू की आलोचना और उनकी नीतियों की खिल्लियां उड़ाने से चूकते नहीं थे। परसाई जी का विश्वास था कि बिना व्यवस्था में बदलाव लाये, भ्रष्टाचार के मौके कम किये देश से भ्रष्टाचार कम नहीं हो सकता। नेहरूजी ने एक सभा में कहा था कि मुनाफाखोरों को बिजली के खम्भों पर लटका दिया जायेगा। बिना किसी समुचित योजना के इस तरह की घोषणा करने की प्रवृत्ति की खिल्ली उड़ाते परसाई जी ने व्यंग्य लेख लिखा था- उखड़े खम्भे। नेहरू जी द्वारा स्वयं की सरकार द्वारा ‘भारत रत्न’ स्वीकार करने की घटना का भी परसाई जी ने ( सम्मानित होने की इच्छा उद्दात मनुष्य की आखिरी कमजोरी होती है) विरोध किया था।
नेहरू-एडविना संबंध में परसाई जी का मानना था कि इसमें एतिहासिक परिस्थितियों ने एक साधारण स्त्री को एक इतिहास-पुरुष के संपर्क में ला दिया। अपने उत्तर में परसाईजी ने अपनी राय व्यक्त की थी की थी कि सहमति से अगर किसी स्त्री और पुरुष के शारीरिक संबंध भी हों तो मैं इसे बुरा नहीं मानता एक पाठक ने उनके इस वक्तव्य पर सवाल उठाते हुये एतराज किया कि इससे तो समाज में मुक्त यौन संबंध का चलन हो जायेगा। परसाईजी ने अपनी बात साफ़ करते हुये पाठक को जबाब दिया मैं मुक्त यौन सम्बन्ध की वकालत नहीं कर रहा हूं।।
“पूछो परसाई से” पढ़ते हुये लगता है कि परसाईजी की देश-समाज से जुड़े मुद्दे पर क्या राय थी। बहरहाल, आप पढिये ये दोनों प्रश्न-उत्तर।
प्रश्न- क्या नेहरू-एडविना का प्रेम विश्व इतिहास में एक महान प्रेम प्रकरण था या चलते किस्म की चीज? (पोटियाकला से कु. शशि साव)
उत्तर-एडविना भारत के अन्तिम वाइसरॉय लॉर्ड लुई माउंट बेटन की पत्नी थी। लार्ड माउंट बेटन से पंडित नेहरू के पहले से अच्छे सम्बन्ध थे। कृष्णमेनन भी माउंट बेटन के दोस्त थे और आदत के मुताबिक साफ़ बात कहते थे। उन्होंने एक दिन दोपहर के भोजन करते-करते माउंट बेटन से कह दिया था- तुम मुस्लिम लीग का उपयोग भारत विभाजन के लिये कर रहे हो और भारत में रहने वाले करोड़ों मुसलमानों के साथ धोखा कर रहे हो।
बहरहाल, एडविना माउंट बेटन पंडित नेहरू की मित्र थीं। सहमति से अगर किसी स्त्री और पुरुष के शारीरिक संबंध भी हों तो मैं इसे बुरा नहीं मानता। प्रेम अत्यन्त पवित्र स्वाभाविक मानवीय भावना है। मगर यह सम्बन्ध ऐतिहासिक कैसे हो जायेगा? ऐतिहासिक परिवर्तन कैसे हो जायेगा? ऐतिहासिक परिवर्तन और प्रक्रिया में जवाहरलाल नेहरू की राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय भूमिका थी और महत्व था। पूंजीवादी और समाजवादी शक्तियों का संघर्ष अवश्यम्भावी है यह उन्होंने समझ लिया था। वे अमेरिकी साम्राज्यवाद के आगे के रोल की कल्पना कर चुके थे। इसीलिये उन्होंने ‘शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व’, ‘पंचशील’ और ‘गुट’, संलग्नता की नीतियां प्रतिपादित कीं। एडविना उस वाइसरॉय की पत्नी थीं जिसने ब्रिटिश संसद के फ़ैसले के अनुसार भारतीयों को सत्ता सौंपी और देश का विभाजन हुआ।
पंडित नेहरू अत्यन्त आकर्षक व्यक्ति थे। यह आकर्षण केवल सुन्दर चेहरे के कारण नहीं था। उनके कार्यों , बुद्धि की प्रखरता, साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष, कीर्ति और विश्व इतिहास में उनकी भूमिका के कारण भी था। यह समझना गलत है कि स्त्री केवल सुन्दर चेहरे पर मोहित होती है। स्त्री दूसरे कारणों से भी किसी पुरुष पर मोहित होती है। कुरूप पुरुषों पर भी स्त्रियां मोहित हैं। असंख्य स्त्रियों देश और दुनिया में थीं जो नेहरू पर मोहित थीं। इतिहास की सबसे महान और अहंकारी अभिनेत्री ग्रेटा गार्बों जवाहरलाल को देखने के लिये भीड़ में खड़ी होती थीं। इतना मोहक व्यक्तित्व था नेहरू का।
नेहरू भावुक थे, रूमानी भी थे। उनकी कई स्त्रियों से मित्रता थी- मृदुला साराभाई, राजकुमारी अमृत कौर, पूर्णिमा बेनर्जी, पद्मजा नायडू, आदि से उनकी मित्रता थी। वे छिपाते नहीं थे। एक बार संसद में उन्होंने कह दिया था- हां मृदुला सारा भाई कुछ साल मेरी मित्र थीं।
एडविना और नेहरू के सम्बन्धों के बारे में बहुत अफ़वाहें हैं और बहुत लिखा गया है। अब जब न नेहरू हैं, न लॉर्ड माउंट बेटन, न एडविना तब तो रिसर्च होकर और खुलकर किताबें लिखीं जा रहीं हैं। ताजा किताब एक अंग्रेज ने लिखी है जिसमें उसने कहा है कि एडविना शुरु से चंचल थीं। यहां तक लिखा है कि शादी के बाद दस साल तक ‘शी वाज गोइंग फ़्रॉम बेड टु बेड’। इस बिस्तर से उस बिस्तर तक जाती रहीं। एक लेखक ने लिखा है कि माउंट बेटन इस बात पर गर्व करते थे कि उनकी पत्नी पुरुषों को इस तरह मोहित करती हैं। महान नीग्रो गायक पाल राब्सन से भी एडविना के सम्बन्ध थे। जब एडविना और नेहरू में मित्रता हुई तब एडविना की उम्र 45 साल थी और नेहरू की 54 साल। यह उम्र किशोरों जैसे प्रेम की नहीं होती। इन उम्र में विवेक और समझदारी से प्रणय सम्बन्ध होते हैं। कुछ लोगों का यह ख्याल गलत है एडविना ने नेहरू के विचारों को प्रभावित करके उनसे ब्रिटिश सरकार की बात मनवाई। नेहरू बहुत दृढ़ आदमी थे। यह जरूर है कि एडविना के साहचर्य, उसकी भावुकता तथा सद्भावना से नेहरू प्रभावित थे। यह सम्बन्ध कहां तक था। कुछ लोग कहते हैं कि शरीर के स्तर पर भी सम्बन्ध था। हो तो हर्ज क्या है? जिस क्षोभ और मानसिक तनाव में देश विभाजन के दौर में नेहरू कार्य कर रहे थे, इस कोमल भावना से उन्हें राहत मिलती थी। एतिहासिक इसमें इतना ही है कि एतिहासिक परिस्थितियों ने एक साधारण स्त्री को एक इतिहास-पुरुष के संपर्क में ला दिया।
(देशबन्धु ,18 दिसम्बर, 1983)
प्रश्न- नेहरू-एडविना प्रेम के बारे में आपने लिखा है- सुसम्मत यौन सम्पर्क के आप विरोधी नहीं हैं। आप बहुत बड़े लेखक हैं। आपके इस समर्थन को पढ़कर देश के नर-नारी सम्मति से यौन सम्पर्क करने लगें तो क्या परिणति होगी? (भिलाई से निखिलानन्द घोष)
उत्तर- आप मुझे गलत समझे, आपकी कल्पना में अतिशयोक्ति है। स्वभाव से स्त्री एक ही पुरुष की रहना चाहती है, रहती भी है क्योंकि वही सन्तान पैदा करके मनुष्य की जीवन परम्परा बढ़ाती है। एकनिष्ठ वैवाहिक संबंध की सुरक्षा उसे तथा बच्चों को चाहिये। मेरे कह देने से स्त्रियां एकदम चंचल नहीं हो उठेंगी मगर मानवीय भावना र वासना गणित से नहीं चलती। एक स्त्री और पुरुष का परस्पर आकर्षण और प्रेम है, तो उसमें अनैतिक कुछ भी नहीं है। यह प्राकृतिक है। यह आकर्षण शरीर-सम्पर्क की मांग करता है। सुविधा हो तो ऐसा सम्पर्क होता भी है। आप अपनी जानकारी के दायरे में देख लीजिये, ऐसे सम्बन्ध हैं। मेरी जानकारी में ऐसे कई सम्बन्ध हैं और ये सम्बन्ध सम्मानजनक हैं। मैं मुक्त यौन सम्बन्ध की वकालत नहीं कर रहा हूं। ऐसे सम्बन्ध बाजारू हो जायेंगे। मर्यादा समाज में जरूरी है। मैं कह रहा हूं कि स्त्री-पुरुष में परस्पर आकर्षण और प्रेम से शरीर सम्बन्ध हों, तो वे सही हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि पत्नियां पतियों को छोड़ देगीं और यौन अराजकता आ जायेगी।
बलात्कार, दबाब, डर से जो सम्बन्ध हों ये अपराध हैं। अगर कोई अफ़सर अपने मातहत स्त्री नौकरीपेशा को दबाकर उससे सम्भोग करता है तो यह बलात्कार है। यदि प्रोफ़ेसर छात्रा से यौन सम्बन्ध करके डॉक्टरेट दिलाता है, तो यह भी बलात्कार है। ये सम्बन्ध प्रेम और स्वेच्छा के नहीं होते।
(देशबंन्धु, 29 जनवरी, 1984)
Posted in परसाई जी, मेरी पसंद | 15 Responses
कट्टा कानपुरी असली वाले की हालिया प्रविष्टी..भीड़ का हिस्सा हैं हम – सतीश सक्सेना
काजल कुमार की हालिया प्रविष्टी..कार्टून :- बिनु WiFi जेल, नेता बिनु बेल, प्रभु कैसा खेल !
eswami की हालिया प्रविष्टी..कटी-छँटी सी लिखा-ई
“एक स्त्री और पुरुष का परस्पर आकर्षण और प्रेम है, तो उसमें अनैतिक कुछ भी नहीं है। यह प्राकृतिक है। यह आकर्षण शरीर-सम्पर्क की मांग करता है।”
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..नौकरी के वर्ष तीस! (श्रृंखला-2)
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..बंगलोर से वर्धा
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..नौकरी के वर्ष तीस! (श्रृंखला-2)
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..संयोग
परसाई जी के विचार से नयी पीढ़ी गलत प्रेरणा ले सकती है
सस्ती पब्लिसिटी कि कोशिश लगती है, एक अच्छे भले व्यंग्यकार द्वारा !
कट्टा कानपुरी असली वाले की हालिया प्रविष्टी..अगर हमने भी डर के ऐसे, समझौते किये होते -सतीश सक्सेना