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गांधी जी ईश्वरी नपुंसक होना चाहते थे
By फ़ुरसतिया on October 3, 2013
हरिशंकर
परसाई जी देशबन्धु समाचार पत्र में ’पूछो परसाई से’ स्तम्भ के अन्तर्गत
पाठकों के सवालों के जबाब देते थे। ’पूछो परसाई से’ सम्भवत: सबसे लम्बे समय
तक प्रकाशित होने वाला नियमित स्तम्भ है। इस स्तम्भ में देश के कोने-कोने
से जिज्ञासु पाठक परसाई को पत्र लिखकर प्रश्न पूछते थे। परसाई अपनी
विशिष्ट भाषा शैली में पाठकीय जिज्ञासाओं पर टिप्पणी करते थे।
पूछो परसाई के प्रश्नोत्तर के संकलन की किताब राजकमल प्रकाशन से ’पूछो परसाई से’ नाम से प्रकाशित हुई है। मैं आजकल इस किताब को पढ़कर रहा हूं। इसमें से कुछ प्रश्नोत्तर मैं अपने ब्लॉग पर पोस्ट करता हूं। आज शुरुआत गांधी जी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग से संबंधित सवाल से।
प्रश्न : गांधीजी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे? (महासमुन्द से पी.आर.चौहान)
उत्तर: गांधीजी ने 4 बेटों के बाप होने के बाद लगभग जवानी की दोपहरी में ब्रह्मचर् व्रत ले लिया था। उन्होंने पांच व्रत लिये थे- सत्य,अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, अहिंसा। ब्रह्मचर्य के बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अप्राकृतिक तथा अवैज्ञानिक है तथा इससे मानसिक कुंठायें तथा मानसिक विकृतियां पैदा होती हैं। पर भारत में प्राचीनकाल से ब्रह्मचर्य को शक्ति का साधक माना गया है। ईसाई धर्म में भी पादरियों और साध्वियों (नन्स) के विवाह न करने की व्यवस्था है। पर आमतौर पर ब्रह्मचर्य धारण किये हुये पादरी और नन्स क्रूर होते हैं। मिशन स्कूलों में पढ़ाने वाली ’नन्स’ सैडिस्ट(दूसरे को दुख देकर स्वयं सुख बोध करना) । ये बच्चों के कान खींचती, चिकोटी लेतीं तथा क्रूर व्यवहार करती हैं। यह काम दमन के कारण है। कुछ पादरी समलैंगिक संबध रखते हैं।
गांधीजी ने ब्रह्मचर्य काप्रयोग अपने अन्त्तिम दिनों में किया। यों ऐसा पहले भी होता था कि आधी रात को उनके शरीर में कंपकपी होती थी। आश्रमवासी जब उनके हाथ-पांव की मालिश करते थे, तब वे शान्त होकर सोते थे। मनोवैज्ञानिक इसे एक काम क्रिया मानते हैं। नोआखोली में 1946 में गांधीजी जी हिन्दू मुसलमान सद्भाव के लिये यात्रा कर रहे थे। साथ में सुशीला नायर , मनु गांधी तथा दूसरे आश्रमवासी थे। नोआखोली में उन्होंने सोचा कि -मेरे तप में कमी है। मेरा ब्रह्मचर्य शायद पूरा नहीं है। मैं ब्रह्मचर्य का प्रयोग करूंगा। यह प्रयोग कैसे हुआ, यह सबसे पहले पुस्तक रूप में लिखा उनके साथ यात्रा कर रहे प्रो. बोस ने। उनकी पुस्त है- गांधी’ज एक्सपेरिमेंटस विथ ब्रह्मचर्य । प्रयोग यों था-उन्होंने पहले सुशीला नायर से कहा कि हम दोनों एक ही बिस्तर में सोयेंगे। यों तब गांधीजी की उम्र 75 साल से आगे थी। सुशीला नायर को बहाना बनाकर किसी और जगह काम करने चलीं गयीं। तब गांधी जी ने मनु गांधी को राजी किया। दोनों एक ही बिस्तर में सोते थे। सुबह गांधी जी सोचते थे कि मुझे रात में कैसा लगा और मनु से पूछते थे। प्रो. बोस इससे असहमत थे। उन्होंने विरोध किया तो गांधी जी ने उनकी छुट्टी कर दी। प्रयोग चलता रहा। गांधीजी ने नेहरू, पटेल . कृपलानी आदि नेताओं को पत्र लिखे कि मैं यह प्रयोग कर रहा हूं। सबसे मजे का जबाब कृपलानी ने दिया -आप तो महात्मा हैं। पर जरा सोचिये कि आपकी देखादेखी छुटभैये, ब्रह्मचर्य का प्रयोग करने लगे तो क्या होगा? गांधी ने हरिजन में लेख भी लिखा। प्रो.बोस ने अपनी पुस्तक में यह सब विवरण दिया है और सवाल किया है मनोवैज्ञानिक इसका समाधान सोचें। गांधी कहते थे- मैं ईसामसीह की तरह गॉड्स यूनफ़( नपुंसक हिजड़ा ) होना चाहता हूं। प्यारेलाल, विजय तेन्दुलकर, वेद मेहता वगैरह ने भी गांधीजी की जीवनी में ब्रह्मचर्य के इस प्रयोग का विवरण दिया है। कुछ मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जीवन भर काम का दमन करने की यह प्रतिक्रिया थी। उन्हें रात में कंपकपी आना और मालिश के बाद शान्त होना भी , काम सन्तोष है। वे जीवन की अंतिम रात तक यह प्रयोग करते रहे।
(हरिशंकर परसाई, 9 अक्तूबर,1983 देशबंधु में प्रकाशित)
पूछो परसाई के प्रश्नोत्तर के संकलन की किताब राजकमल प्रकाशन से ’पूछो परसाई से’ नाम से प्रकाशित हुई है। मैं आजकल इस किताब को पढ़कर रहा हूं। इसमें से कुछ प्रश्नोत्तर मैं अपने ब्लॉग पर पोस्ट करता हूं। आज शुरुआत गांधी जी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग से संबंधित सवाल से।
प्रश्न : गांधीजी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे? (महासमुन्द से पी.आर.चौहान)
उत्तर: गांधीजी ने 4 बेटों के बाप होने के बाद लगभग जवानी की दोपहरी में ब्रह्मचर् व्रत ले लिया था। उन्होंने पांच व्रत लिये थे- सत्य,अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, अहिंसा। ब्रह्मचर्य के बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अप्राकृतिक तथा अवैज्ञानिक है तथा इससे मानसिक कुंठायें तथा मानसिक विकृतियां पैदा होती हैं। पर भारत में प्राचीनकाल से ब्रह्मचर्य को शक्ति का साधक माना गया है। ईसाई धर्म में भी पादरियों और साध्वियों (नन्स) के विवाह न करने की व्यवस्था है। पर आमतौर पर ब्रह्मचर्य धारण किये हुये पादरी और नन्स क्रूर होते हैं। मिशन स्कूलों में पढ़ाने वाली ’नन्स’ सैडिस्ट(दूसरे को दुख देकर स्वयं सुख बोध करना) । ये बच्चों के कान खींचती, चिकोटी लेतीं तथा क्रूर व्यवहार करती हैं। यह काम दमन के कारण है। कुछ पादरी समलैंगिक संबध रखते हैं।
गांधीजी ने ब्रह्मचर्य काप्रयोग अपने अन्त्तिम दिनों में किया। यों ऐसा पहले भी होता था कि आधी रात को उनके शरीर में कंपकपी होती थी। आश्रमवासी जब उनके हाथ-पांव की मालिश करते थे, तब वे शान्त होकर सोते थे। मनोवैज्ञानिक इसे एक काम क्रिया मानते हैं। नोआखोली में 1946 में गांधीजी जी हिन्दू मुसलमान सद्भाव के लिये यात्रा कर रहे थे। साथ में सुशीला नायर , मनु गांधी तथा दूसरे आश्रमवासी थे। नोआखोली में उन्होंने सोचा कि -मेरे तप में कमी है। मेरा ब्रह्मचर्य शायद पूरा नहीं है। मैं ब्रह्मचर्य का प्रयोग करूंगा। यह प्रयोग कैसे हुआ, यह सबसे पहले पुस्तक रूप में लिखा उनके साथ यात्रा कर रहे प्रो. बोस ने। उनकी पुस्त है- गांधी’ज एक्सपेरिमेंटस विथ ब्रह्मचर्य । प्रयोग यों था-उन्होंने पहले सुशीला नायर से कहा कि हम दोनों एक ही बिस्तर में सोयेंगे। यों तब गांधीजी की उम्र 75 साल से आगे थी। सुशीला नायर को बहाना बनाकर किसी और जगह काम करने चलीं गयीं। तब गांधी जी ने मनु गांधी को राजी किया। दोनों एक ही बिस्तर में सोते थे। सुबह गांधी जी सोचते थे कि मुझे रात में कैसा लगा और मनु से पूछते थे। प्रो. बोस इससे असहमत थे। उन्होंने विरोध किया तो गांधी जी ने उनकी छुट्टी कर दी। प्रयोग चलता रहा। गांधीजी ने नेहरू, पटेल . कृपलानी आदि नेताओं को पत्र लिखे कि मैं यह प्रयोग कर रहा हूं। सबसे मजे का जबाब कृपलानी ने दिया -आप तो महात्मा हैं। पर जरा सोचिये कि आपकी देखादेखी छुटभैये, ब्रह्मचर्य का प्रयोग करने लगे तो क्या होगा? गांधी ने हरिजन में लेख भी लिखा। प्रो.बोस ने अपनी पुस्तक में यह सब विवरण दिया है और सवाल किया है मनोवैज्ञानिक इसका समाधान सोचें। गांधी कहते थे- मैं ईसामसीह की तरह गॉड्स यूनफ़( नपुंसक हिजड़ा ) होना चाहता हूं। प्यारेलाल, विजय तेन्दुलकर, वेद मेहता वगैरह ने भी गांधीजी की जीवनी में ब्रह्मचर्य के इस प्रयोग का विवरण दिया है। कुछ मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जीवन भर काम का दमन करने की यह प्रतिक्रिया थी। उन्हें रात में कंपकपी आना और मालिश के बाद शान्त होना भी , काम सन्तोष है। वे जीवन की अंतिम रात तक यह प्रयोग करते रहे।
(हरिशंकर परसाई, 9 अक्तूबर,1983 देशबंधु में प्रकाशित)
Posted in परसाई जी | 9 Responses
गांधी ने इस प्रयोग को छुप-छुपाकर नहीं किया, इसके बारे में सीना तानकर पूरी दुनिया को बताया. अगर मन में कलुषित भावना होती तो वे ऐसा नहीं करते.गांधी एक जिद्दी किस्म के इंसान थे जो अपने सिद्धांतों से हिलते नहीं थे चाहे दुनिया उन्हें कितना भी गलत कह ले. उन्होंने अपने जीवन में कई प्रयोग किये, सत्य पर, अहिंसा पर, सत्याग्रह पर, और ब्रह्मचर्य पर भी. उनके तरीके को हम आज के आधुनिक मानदंडों पर गलत मान सकते हैं पर उनके इरादों को नहीं. और तसलीमा नसरीन ने उन्हें पीडोफाइल और रेपिस्ट तक कह डाला.
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