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पडोसियों का दोस्ताना रवैया
By फ़ुरसतिया on October 23, 2013
नवाज शरीफ़ साहब जब पड़ोस के हाकिम-ए-सदर बने थे तो कसम खाये थे- “पड़ोसी से दोस्ताना रिश्ते रखेंगे।”
घटनायें गवाह हैं कि अगला अपनी बात पर कायम है। बर्बाद हुआ जा रहा है बेचारा लेकिन दोस्ताना रवैये में रत्ती भर कमी नहीं आने दी उसने। भूख से तो खैर लोग मरते ही रहते हैं ,बीच-बीच में वहां हजारों की तादाद में मरे लोग खून-खराबे में। उफ़ तक नहीं की पट्ठे ने। शिकन तक नहीं आयी चेहरे पर। भीख मांग रहा है खाने के लिये दूसरे से। लेकिन मजाल है जो पड़ोसी से दोस्ताना रवैये में कमी आ जाये। जब से बना है वजीर बरसाये जा रहा है गोलियां। दागे जा रहा है गोले। भेजे जा रहा है घुसपैठिये। जा बेट्टा, जान दे देना, लेकिन पडोसी के यहां हलचल मचाने में चूक न जाना। जान कीमती है लेकिन जबान के आगे कुछ नहीं। हिन्दुस्तान के साथ दोस्ताना रवैया हर हाल में निभाना है। प्राण जायें पर वचन न जायें।
पडोसियों से पड़ोसपना निभाने के हर समाज के तरीके होते हैं। हिन्दुस्तान, पाकिस्तान साझा विरासत वाले हैं। अपने यहां रसोई में जब कोई अच्छी चीज बनती है तो एकाध कटोरी सबसे प्यारे पड़ोसी को भी भेजी जाती है। घर के लोगों को खिलाने से पहले। इसलिये कि पड़ोसी भी चख ले क्या बना है अपने यहां। तारीफ़ करे पाककला की। पड़ोसियों का प्रेम कटोरियों की मार्फ़त परवान चढ़ता रहता है।
पाकिस्तान भी अपना सबसे प्यारा पडोसी है। उसके यहां आतंकवादी बड़ी खूबसूरती से बनते हैं। हुकूमत पर हावी रहते हैं। लगाकर ओसामा से , दाउद , हाफ़ीज और न जाने कित्ते नामचीन लजीज पकवान पड़ोसी की आतंकवादी देग में खदबताते रहे सालों। जब भी कभी प्रेम उमड़ा एकाध कटोरी भेज दिया। दोस्ताना रिश्ता निभाने की हुड़क ने जब भी जोर मारा, भेज दिये सौ-पचास आतंकवादी – “जाओ बे भाईचारा निभा के आओ। जान कुर्बान कर देना लेकिन भाईचारा निभाने में कमी मती आने देना।”
बेचारे भागे चले आते हैं। बम गोलियां बरसाते। उनके दोस्ताना रवैया बनाने के रास्ते में जो भी आता है उसको निपटा देते हैं। कभी-कभी खुद भी हलाक हो जाते हैं। लेकिन मजाल है जो कभी कमी आये बिरादराना रवैये में।
पाकिस्तान के हाल फ़टेहाल नबाबों की तरह हैं। तन पर नहीं लत्ता, पान खायें अलबत्ता। खाने को है नहीं घर में। मांग के खाते हैं। लेकिन ऐंठ बिगड़े नबाबों वाली ही है। दोस्ताना रवैया अपनाने के चक्कर में फ़ौज गोलीबारी करती रहती है हफ़्तों। एक गोली की कीमत 200 रुपये भी रख लें। रात भर की फ़ायरिंग में एक जगह से 5 हजार गोलियां भी चलाये तो 10 लाख फ़ुंक गये । एक ठिकाने से। पचीस जगह से फ़ायरिंग हुई पिछले दिन। 2.5 करोड़ स्वाहा कर दिये एक दिन में। हफ़्ते भर की दोस्ती निभाने में निकल गये पन्द्रह बीस करोड़। तोप का एक गोला गिरी हाल में लाख का पड़ता है। अगर तोप के गोले चले तो मामला अरबों तक निकल गया। इत्ते में हजारों के खाने का इंतजाम हो सकता है लेकिन पेट की चिन्ता किसको है भाई! गोली चलाओ, पड़ोसी धर्म निभाओ।
पड़ोसी धर्म बराबरी से निभता है। कभी-कभी अपने यहां से भी कुछ जाता होगा। हो सकता है उत्ता न जाता हो कम जाता हो। उधर से दस बार आता हो तो अपने यहां से एक बार जाता हो। सौ सुनार की एक लुहार वाले अन्दाज में। लेकिन आता है तो कुछ जाता भी होगा।
आने-जाने को तो कलाकार, खिलाड़ी भी आते-जाते रहते हैं एक दूसरे के इधर। लेकिन नवाज साहब उसको दोस्ताना रवैये में नहीं मानते शायद इसीलिये उसके लिये मेहनत नहीं करते। उसके लिये पैसे भी नहीं मिलते उनको अमेरिका से। अमेरिका गोला-बारूद बेचता है। उसकी दुकान धड़ाम-भड़ाम वाले सामान की खपत से चलती है। मजा आता होता अगले को जब दोस्ताना रवैया निभता होगा इधर। कभी-कभी जब माहौल ज्यादा दोस्ताना हो जाता है तब कहता भी है – “अरे भाई आराम से निभाओ दोस्ती। सब भाईचारा एक दिन में ही दिखा दोगे क्या? ये ले जाओ नया हथियार है। तुमको शूट करेगा। अच्छे से निभाओ दोस्ती।”
हथियार बेचने वाले देश, मोहल्ले के स्मैक बेचने वाले ठेकदार सरीखे होते हैं। वह मोहल्ले के लड़को को मुफ़्त में सुट्टा लगाने की लत लगाता है। एक बार लत लग जाने पर बच्चे चाहें चोरी करें, सामान बेंचे लेकिन नशे के लिये स्मैक जरूर खरीदते हैं। बिना नशा अंतड़ियां ऐंठने लगती है उनकी।
हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और दुनिया के तमाम गरीब देश ऐसे ही बच्चों की तरह हैं जिनको आपस में लड़ने की लत लगा दी है हथियार बेचने वाले ठेकेदार ने। देश की आबादी भले भूखी मरती रहे लेकिन पड़ोसी से गोलाबारी जरूरी है उनके लिये। मजे की बात है इनके हाल उन बिल्लियों की तरह हैं जो अपने झगड़े के निपटारे के लिये भी उसी बंदर के पास जाते हैं जो उनकी रोटी खाता रहता है।
यह लिखते हुये टेलिविजन पर खबर आ रही है कि कल फ़िर फ़ायरिंग हुई है। घायल बी.एस.एफ़. के जवान का बयान आ रहा है कि कैसे घायल हुआ वह। ऐसे न जाने कितने जवान घायल/शहीद हुये होंगे अब तक। उनके बच्चे अनाथ हो गये होंगे। परिवार तबाह। वे कोसते होंगे एक-दूसरे देश की हुकूमतों को।
अब उन बेचारों को क्या पता कि पडोसियों की दोस्ती में यह सब तो होता ही है। दोस्ती का निभाना बड़ी चीज है। लोगों की जानों की कीमत की परवाह करें तब तो निभ चुका भाईचारा।
पड़ोसी से भाईचारा निभायें।
ये नवाज शरीफ़ का नारा है,
फ़िर बना वजीर बेचारा है।
तन पर उनके है नहीं लत्ता,
शौक पान का है अलबत्ता।
मांग के खाते हैं बेचारे ये,
फ़ौज की चाबी से अकड़े ये।
जरा ढील की तो फ़िर जायेंगे,
अबकी तो भाग भी न पायेंगे।
जनता मरती भूख-प्यास से,
फ़ायरिंग में क्या जाता पास से।
आयेगा सब जी अमरीका से,
बिल्ली की लड़ाई में बंदर से।
कुछ मरे कुछ घायल हो जायें,
चलो यार फ़िर गोली बरसाये।
-कट्टा कानपुरी
घटनायें गवाह हैं कि अगला अपनी बात पर कायम है। बर्बाद हुआ जा रहा है बेचारा लेकिन दोस्ताना रवैये में रत्ती भर कमी नहीं आने दी उसने। भूख से तो खैर लोग मरते ही रहते हैं ,बीच-बीच में वहां हजारों की तादाद में मरे लोग खून-खराबे में। उफ़ तक नहीं की पट्ठे ने। शिकन तक नहीं आयी चेहरे पर। भीख मांग रहा है खाने के लिये दूसरे से। लेकिन मजाल है जो पड़ोसी से दोस्ताना रवैये में कमी आ जाये। जब से बना है वजीर बरसाये जा रहा है गोलियां। दागे जा रहा है गोले। भेजे जा रहा है घुसपैठिये। जा बेट्टा, जान दे देना, लेकिन पडोसी के यहां हलचल मचाने में चूक न जाना। जान कीमती है लेकिन जबान के आगे कुछ नहीं। हिन्दुस्तान के साथ दोस्ताना रवैया हर हाल में निभाना है। प्राण जायें पर वचन न जायें।
पडोसियों से पड़ोसपना निभाने के हर समाज के तरीके होते हैं। हिन्दुस्तान, पाकिस्तान साझा विरासत वाले हैं। अपने यहां रसोई में जब कोई अच्छी चीज बनती है तो एकाध कटोरी सबसे प्यारे पड़ोसी को भी भेजी जाती है। घर के लोगों को खिलाने से पहले। इसलिये कि पड़ोसी भी चख ले क्या बना है अपने यहां। तारीफ़ करे पाककला की। पड़ोसियों का प्रेम कटोरियों की मार्फ़त परवान चढ़ता रहता है।
पाकिस्तान भी अपना सबसे प्यारा पडोसी है। उसके यहां आतंकवादी बड़ी खूबसूरती से बनते हैं। हुकूमत पर हावी रहते हैं। लगाकर ओसामा से , दाउद , हाफ़ीज और न जाने कित्ते नामचीन लजीज पकवान पड़ोसी की आतंकवादी देग में खदबताते रहे सालों। जब भी कभी प्रेम उमड़ा एकाध कटोरी भेज दिया। दोस्ताना रिश्ता निभाने की हुड़क ने जब भी जोर मारा, भेज दिये सौ-पचास आतंकवादी – “जाओ बे भाईचारा निभा के आओ। जान कुर्बान कर देना लेकिन भाईचारा निभाने में कमी मती आने देना।”
बेचारे भागे चले आते हैं। बम गोलियां बरसाते। उनके दोस्ताना रवैया बनाने के रास्ते में जो भी आता है उसको निपटा देते हैं। कभी-कभी खुद भी हलाक हो जाते हैं। लेकिन मजाल है जो कभी कमी आये बिरादराना रवैये में।
पाकिस्तान के हाल फ़टेहाल नबाबों की तरह हैं। तन पर नहीं लत्ता, पान खायें अलबत्ता। खाने को है नहीं घर में। मांग के खाते हैं। लेकिन ऐंठ बिगड़े नबाबों वाली ही है। दोस्ताना रवैया अपनाने के चक्कर में फ़ौज गोलीबारी करती रहती है हफ़्तों। एक गोली की कीमत 200 रुपये भी रख लें। रात भर की फ़ायरिंग में एक जगह से 5 हजार गोलियां भी चलाये तो 10 लाख फ़ुंक गये । एक ठिकाने से। पचीस जगह से फ़ायरिंग हुई पिछले दिन। 2.5 करोड़ स्वाहा कर दिये एक दिन में। हफ़्ते भर की दोस्ती निभाने में निकल गये पन्द्रह बीस करोड़। तोप का एक गोला गिरी हाल में लाख का पड़ता है। अगर तोप के गोले चले तो मामला अरबों तक निकल गया। इत्ते में हजारों के खाने का इंतजाम हो सकता है लेकिन पेट की चिन्ता किसको है भाई! गोली चलाओ, पड़ोसी धर्म निभाओ।
पड़ोसी धर्म बराबरी से निभता है। कभी-कभी अपने यहां से भी कुछ जाता होगा। हो सकता है उत्ता न जाता हो कम जाता हो। उधर से दस बार आता हो तो अपने यहां से एक बार जाता हो। सौ सुनार की एक लुहार वाले अन्दाज में। लेकिन आता है तो कुछ जाता भी होगा।
आने-जाने को तो कलाकार, खिलाड़ी भी आते-जाते रहते हैं एक दूसरे के इधर। लेकिन नवाज साहब उसको दोस्ताना रवैये में नहीं मानते शायद इसीलिये उसके लिये मेहनत नहीं करते। उसके लिये पैसे भी नहीं मिलते उनको अमेरिका से। अमेरिका गोला-बारूद बेचता है। उसकी दुकान धड़ाम-भड़ाम वाले सामान की खपत से चलती है। मजा आता होता अगले को जब दोस्ताना रवैया निभता होगा इधर। कभी-कभी जब माहौल ज्यादा दोस्ताना हो जाता है तब कहता भी है – “अरे भाई आराम से निभाओ दोस्ती। सब भाईचारा एक दिन में ही दिखा दोगे क्या? ये ले जाओ नया हथियार है। तुमको शूट करेगा। अच्छे से निभाओ दोस्ती।”
हथियार बेचने वाले देश, मोहल्ले के स्मैक बेचने वाले ठेकदार सरीखे होते हैं। वह मोहल्ले के लड़को को मुफ़्त में सुट्टा लगाने की लत लगाता है। एक बार लत लग जाने पर बच्चे चाहें चोरी करें, सामान बेंचे लेकिन नशे के लिये स्मैक जरूर खरीदते हैं। बिना नशा अंतड़ियां ऐंठने लगती है उनकी।
हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और दुनिया के तमाम गरीब देश ऐसे ही बच्चों की तरह हैं जिनको आपस में लड़ने की लत लगा दी है हथियार बेचने वाले ठेकेदार ने। देश की आबादी भले भूखी मरती रहे लेकिन पड़ोसी से गोलाबारी जरूरी है उनके लिये। मजे की बात है इनके हाल उन बिल्लियों की तरह हैं जो अपने झगड़े के निपटारे के लिये भी उसी बंदर के पास जाते हैं जो उनकी रोटी खाता रहता है।
यह लिखते हुये टेलिविजन पर खबर आ रही है कि कल फ़िर फ़ायरिंग हुई है। घायल बी.एस.एफ़. के जवान का बयान आ रहा है कि कैसे घायल हुआ वह। ऐसे न जाने कितने जवान घायल/शहीद हुये होंगे अब तक। उनके बच्चे अनाथ हो गये होंगे। परिवार तबाह। वे कोसते होंगे एक-दूसरे देश की हुकूमतों को।
अब उन बेचारों को क्या पता कि पडोसियों की दोस्ती में यह सब तो होता ही है। दोस्ती का निभाना बड़ी चीज है। लोगों की जानों की कीमत की परवाह करें तब तो निभ चुका भाईचारा।
मेरी (ना)पसंद
चलो यार फ़िर गोली बरसायें,पड़ोसी से भाईचारा निभायें।
ये नवाज शरीफ़ का नारा है,
फ़िर बना वजीर बेचारा है।
तन पर उनके है नहीं लत्ता,
शौक पान का है अलबत्ता।
मांग के खाते हैं बेचारे ये,
फ़ौज की चाबी से अकड़े ये।
जरा ढील की तो फ़िर जायेंगे,
अबकी तो भाग भी न पायेंगे।
जनता मरती भूख-प्यास से,
फ़ायरिंग में क्या जाता पास से।
आयेगा सब जी अमरीका से,
बिल्ली की लड़ाई में बंदर से।
कुछ मरे कुछ घायल हो जायें,
चलो यार फ़िर गोली बरसाये।
-कट्टा कानपुरी
Posted in बस यूं ही | 5 Responses
क्या खूब हिसाब लगाया है ,
इस पोस्ट को अगर दोस्त मुल्क वाले पढ़ लें तो आप को आर्थिक मामलो का सलाहकार अवश्य रख लेंगे .
इतना ध्यान तो खुद उनके किसी अधिकारी ने नहीं रखा होगा .
बाकी कट्टा कानपुरी ने भी खूब सही लिखा है.
आयेगा सब जी अमरीका से,
बिल्ली की लड़ाई में बंदर से।
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