निकलते हैं घर से तो देखते हैं शहर हमसे बहुत पहले ही निकल चुका है। हड़बड़ाया भगा चला जा रहा है कहीं। जित्ती तेज कोई जाता दीखता है उससे और जाता तेजी से आता भी दिखता है। मने हर तरफ हिसाब बराबर करने की हड़बड़ी।
अक्सर कोई बाल्टी में पानी भरे एक तरफ से दूसरी तरफ जाता दीखता है। भरी बाल्टी देखना शुभ होता है। खुश होकर आगे बढ़ते हैं तो क्रासिंग बन्द। मने भरी बाल्टी शुभ नहीं हुई। हर जगह मिलावट का जमाना है। क्या पता कि ’भरी बाल्टी के शुभ’ में भी कोई मिलावट हो। हो तो यह भी सकता है कि शुभ इसलिए न हुआ कि बाल्टी में पानी 'आर ओ' का नहीं था। मुनिस्पलटी का पानी भी कहीं शुभ होता है आजकल। इससे तो बस पीलिया और डायरिया हो सकता है। शुभ होने के लिये किसी कम्पनी के ’आर ओ’ का पानी चाहिये होता है आजकल।
कल दफ़्तर जाते समय एक पुलिस वाले ने एक स्कूटर वाले को हाथ दिया। स्कूटर वाला रुका। पुलिस वाला बिना कुछ कहे उसके पीछे बैठ गया। आगे चौराहे पर उतर गया। किराया नहीं दिया। जब वह स्कूटर को हाथ दे रहा था तब मैंने सोचा कि कार में ही बैठा लेते। लेकिन उसने हमको हाथ दिया ही नहीं तो कैसे बैठा लेते। वह बुरा मान जाता।
टाटमिल के पास एक और पुलिस वाला दिखा। बड़ी-बड़ी मूछें एकदम सरेंडर मुद्रा में नीचे की तरफ झुकान वाली थीं। किसी गृहस्थ के महीने के अंतिम दिनों की तरह बेरौनक सी मूछें देखकर कहने का मन किया -'भाई साहब, काहे को ये बोझ लादे घूम रहे। छाँट दो तो क्या पता मुंह बाकी मुंह थोड़ा खुशनुमा सा लगे।' लेकिन कुछ कहे नहीँ। मूंछ वाले लोगों से डरना चाहिए। क्या पता गुस्सा कर डालें। फ़ड़कने लगे मूंछे। आ जाये भूचाल।
वैसे मुझे लगता है कि जो लोग मूछें बड़ी-बड़ी रखते हैं वे शायद इसलिए रखते हों कि रूआब बना रहे। जैसे कट्टा, बन्दूक से भौकाल रहता है। जिन लोगों का चेहरा रूआबदार होता है उनके चेहरे पर मूंछे अतिरिक्त रुआब वाली होती हैं। जिनके चेहरे बेरुआब, चूसे हुए आम सरीखे होते हैं, उनके चेहरे पर मूंछे रुआब का इश्तहार टाइप होती हैं। और गुरु अब आपसे क्या बतायें, आप तो खुदै जानते हो कि ढोल वही पीटता है जिसमें कुछ पोल होता है।
शाम को लौटते समय एक पुलिसवाले ने गाड़ी रोक ली। हमने सोचा किसी ’नई विधा’ में चालान होना तय है। हम फ़ौरन थोड़ा डर गये। पुलिस वाले से डरते हुये बात करना हमेशा सुरक्षित रहता है। हम डरते हुए सब कागज दिखाने लगे। लेकिन हमारे सब कागज दिखाना शुरू करते ही उसकी दिलचस्पी मुझमें और कागजों में कम होती गयी। वह अनमना सा हो गया। उसको लगा होगा कि कोई न कोई कागज तो कम होगा अगले के पास। हमने उसके विश्वास को चोट पहुंचाई। अनजाने में।
तब तक हमारा अर्दली भी बगल से साईकल से निकला। उसने पुलिस वाले को बताया कि -'साहब, ओपीएफ में अधिकारी हैं।' हमने अर्दली से कहा -'तुम घर जाओ। चिंता न करो।' कागज सब थे इसलिए हमारे चेहरे पर -'देखना है जोर कितना , बाजुए कातिल में है' हाबी हो गया था।
लेकिन पुलिस वाले का रहा-सहा उत्साह हमारे अर्दली की सूचना से खत्म हो गया। उसने कहा -'अब क्या चेक करें जब इत्ता बड़ा परिचय बता दिया।' मने आप समझ लीजिये कि अगर कोई अधिकारी है तो चेकिंग छूट मिल सकती है। चलते समय हितैषी से हो गए पुलिस भाईसाहब। बोले-'अगर सीएनजी किट हो तो उसका पाल्यूशन बनवा लीजियेगा।'
हम घबराहट के मारे देख नहीं पाये कि पुलिस जी के मूंछे हैं कि नहीं। अपनी 17 साल पुरानी कार को हांकते हुए घर आ गए।
17 साल पुरानी गाड़ी से याद आया कि दिल्ली में 10 साल से ज्यादा पुरानी गाड़ी नहीं चल पाएंगी। मतलब दिल्ली में होते तो हमारी गाड़ी मार्गदर्शक हो गयी होती। कानपूर में यह खतरा नहीं है इसलिए -झाड़े रहो कलट्टरगंज।
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