Saturday, July 16, 2016

आशिक टायर सर्विस



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आशिक टायर सर्विस 
सुबह फैक्ट्री जाते हुये अफीम कोठी के पास सड़क की दूसरी और यह दुकान अक्सर दिखती। नाम रोचक -'आशिक टायर सर्विस'। रोज सोचते कि कभी पूछेंगे लौटते हुए कि यह नाम क्यों रखा दुकान का। क्या किसी की आशिकी से कोई ताल्लुक है दुकान के नाम का।

लेकिन रोज लौटते हुए या तो घर लौटने की हड़बड़ी होती या फिर जब तक याद आता तब तक दुकान के पार निकल गए होते। कभी खोजते तो दिखती नहीँ। गाड़ी धीरे करके चलाते तो पीछे गाड़ियां इत्ती तेज हल्ला मचाती कि क्या बताएं।

लेकिन कल पहुँच ही गए दुकान पर। दुकान के मालिक दुकान पर ग्राहक का इंतजार कर रहे थे। हमको कार से उतरकर दुकान की तरफ बढ़ते देखा तो थोड़ा सर्तक टाइप भी हो गए।

हमने दुकान के नाम की बावत पूछा तो पता चला दुकान उनके वालिद 'आशिक अली' के नाम पर है। वालिद 5 साल पहले गुजर गए।

हम नाम को किसी मजनूपने से जोड़कर देख रहे थे। सोच रहे थे कोई फंटुश किस्सा निकलेगा। लेकिन वह सब फुस्स हो गया। इससे अच्छा तो न ही पूछते। कम से कम एक इश्किया किस्सा ड्राफ्ट मोड में पड़ा रहता। हमारे हाल मीडिया की तरह हो गए जो किसी मसालेदार खबर की आश में दिन भर अपनी ओबी बैन कहीं लगाये रहे और कोई किस्सा न मिले।

खैर भाई जी ने तसल्ली से बात की। बताया कि वे टायर की मरम्मत का काम करते हैं। टायर मरम्मत में नए टायर की कीमत का करीब 25% पैसा लगता है और टायर की जिंदगी नए के मुकाबले करीब अस्सी प्रतिशत हो जाती है।

हलीम कालेज के पास चमनगंज के पास रहते हैं भाई जी। फिर गुफ्तगू हुई तो पता चला उसके पास के ही मोहल्ले में हम बहुत दिन रहे। बातचीत करने पर कोई न कोई सम्बन्ध तो निकल ही आता है।

चलते समय हमसे बोले -'अच्छा लगा मिलकर। रुकिए चाय पीकर जाइये।' लेकिन हमें निकलना था घर के लिए। निकल लिए।

अब यह सोच रहे हैं कि टायर सर्विस की तर्ज पर कोई शायर सर्विस भी होती तो क्या बढ़िया होता। लोगों के टूटे-फूटे शेर रिपयेर करके दुरस्त किये जाते। खूब चलती दुकान। है कि नहीं? 

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