सुबह टहलने निकले तो देखा साइकिल में हवा गोल है। साइकिल टहलाते हुए हवा भराने पहुंचे। साइकिल की दुकान और घर के गठबंधन वाली एक झोपड़ी दिखी। आगे दुकान, पीछे घर। एक महिला खाना बना रही थी। दो लड़कियां अंदर बैठी थीं। एक बच्ची बच्ची टीवी देखते हुए कुछ काम कर रही थी। दूसरी कान और कंधे के बीच मोबाइल दबाए किसी से बतियाती हुई सब्जी काट रही थी।
दुकान का मालिक खटिया पर बैठा था। एक रिक्शा वाला आया। खुद हवा भरी कम्प्रेशर से और पैसे देकर चल दिया। हमने भी स्वयंसेवा की। चार रुपये लगे खुद हवा भरने के। लगा कि एक कम्प्रेसर हम भी धर लें। लोग खुद हवा भरेंगे और पैसे मिलेंगे। हम आगे सोचते तब तक एक रिक्शा वाला पंचर बनवाने आ गया। दुकान वाले ने टॉयर खोलकर पंचर बनाना शुरू कर दिया। हमने हवा भरने की दुकान खोलने का काम स्थगित कर दिया। पैसे बचे, बवाल कटा।
क्रासिंग बन्द थी। हम बगलिया के निकले। पटरी को दूर तक और देर तक देखा। एक झोपड़ी के बाहर एक लड़की तवा मांज रही थी। दो बकरियां बिना मतलब ही जुगाली करती दिखीं। झोपड़ियों के झुरमुट में ही एक मंदिर उगा था। किसी देवी की मूर्ति खड़ी थी संकरे में। अकेलेपन और बोरियत मूर्ति के चेहरे से टप्प टप्प चू रहा था।
क्रासिंग पार करते ही कुछ लोग ऊंचाई पर बैठे दिखे। एक आदमी को घेरे हुए कुछ लोग उससे चुहल कर रहे थे। हम रुक गए। हमसे वो बोले -'ये उनके बहुत बड़े भक्त हैं। उनके गीत गाते रहते हैं। आप भी सुन लेव।'
वहां बैठे लोग ओवरब्रिज पर काम करने वाले थे। बताया काम फिर से रुक गया है क्योंकि पेमेंट नहीं हुआ। न जाने कब शुरू होगा। काम करने वाले लोग बिहार के रहने वाले हैं। वोट डालने नहीं जा पाये। रिजर्वेशन नहीं मिला।
ओवरब्रिज कई सालों से बन रहा है। अनगिनत बार काम रुका है। न जाने कब बनेगा।
नए पुल की तरफ से शुक्लागंज की तरफ गए। पुल की शुरुआत में ही एक महिला अपने बच्चे को नहला रही थी। बाल्टी में पानी था। जिस किफायत से बच्चे के ऊपर पानी डालते हुए नहला रही थी महिला उसको देखकर लगा कि कोई समझदार फोटोग्राफर होता तो इसी से 'पानी बचाओ' अभियान का वीडियो बना लेता। बच्चे के हाथ मे चोट लगी थी। बच्चे के पास शायद मोबाइल नहीं था वरना अब तक अपनी नहाती हुई फ़ोटो की खींचकर 'मदर्स डे' मना चुका होता।
गंगा की रेती में कुछ बच्चे एक रेत की बोरी के ऊपर से कूदते हुये अलग-अलग मुद्रा में जम्प कर रहे थे। पता चला स्टंट और डांस सीख रहे हैं। हवा में अलग-अलग स्टाइल में कूदते देखते रहे उनको।
बच्चे रोज सीखते हैं स्टंट। अपने आप। वीडियो के सहारे। कोई सिखाने वाला नहीं। नेट के वीडियो इन एकलव्यों के द्रोणाचार्य हैं। एक बच्चा किसी कंपटीशन में भाग भी ले चुका है।
एक बच्चा एकदम नया है। चड्डी बनियाइन में। अभी दो दिन हुए सीखते हुए।
डांस में क्या करते हो ? पूछने पर बच्चे ने कोई डांस का नाम बताया। हमको समझ नहीं आया। बच्चे ने डांस करके बताया। पैर जमीन पर पटककर शरीर अकड़ा लिया। ऐंठ है डांस में। लेकिन है तो डांस ही।
कोई तय नहीं कि यह शौक आगे कहाँ तक जाएगा। लेकिन बच्चों में जुनून है।
इस बीच एक साधु जी टहलते हुए आये। पता चला कि हठयोगी हैं। खड़े रहने का प्रण लिए हैं दो साल से। कामख्या में मुख्य मठ है। पश्चिम बंगाल में कहीं मंदिर बनवाने का संकल्प लिया है। जब तक नहीं बनेगा तब तक खड़े रहेंगे। खड़े रहने से एक पांव दूसरे के मुकाबले फूल गया है। रात को सोते समय झूले के सहारे खड़े रहते हैं। किसी भक्त ने झोपड़ी बनवा दी है। मच्छरदानी लगी है। कोई पत्रकार फलाहार दे जाते हैं। हठयोग चल रहा है। समाज से वैराग्य है, खाना समाज से ही मिल रहा है।
बाबा जी यूट्यूब पर अपने बारे में उपलब्ध वीडियो का लिंक बताते हैं। हम वहीं खड़े होकर देखते हैं। ख्याल आता है कि देश में रोज बढ़ती बेरोजगारी का इलाज बाबागिरी हो सकती है। ख्याल को हड़का देते हैं। बाबा बनना आसान नहीं है।
लौटते में नाव से पार आये। 30 रुपये तय हुआ। केवट प्रसंग याद आया :
'कहेहु कृपालु लेहु उतराई
केवट चरण गहेहु अकुलाई।'
केवट घबरा गए थे। यहां भगवान पैसा दे रहे हैं मतलब आगे लफ़ड़ा होगा।
इसी डर से ठेले वाले , दुकानदार, रिक्शेवाले, टेम्पोवाले इलाके के वर्दी वाले से पैसे नहीं लेते। आगे काम बिगड़ जाएगा।
बीच नदी में बात हुई। पता चला सुबह से मछली पकड़ रहे हैं। तीन-चार किलो मिलीं। मछली 120 रुपये किलो हैं। जो पकड़ी गई मछलियां उनकी उम्र 3 से 4 महीने हैं। पकड़ गयीं। क्या पता मछलियों के कोई थाने होते हैं क्या जहां जाकर इन मछलियों के मां-बाप रिपोर्ट लिखाते होंगे कि उनकी बच्ची गुम हो गयी।
पार उतरे। 35 रुपये दिए। पांच रुपये ज्ञान के। घर आये। बीच के किस्से अलग से।
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