’पावेल बुक स्टोर’ के अन्दर जाने के पहले वहीं फ़ुटपाथ के नुक्कड़ पर एक खूबसूरत नौजवान बैठा था। खूब गोरा रंग ! बढिया चकाचक बढी हुई दाढी। गोल शीशे वाला चश्मा। कपड़े से ठंके तीन पाये वाले स्टूल पर धरा छुटका सा टाइपराइटर । टाइपराइटर के सामने एक कागज पर लिखा हुआ पोस्टर – ’गिव वर्डस गेट ए पोयम’। मतलब ’तुम हमें शब्द हो, तुमको कविता देंगे।’
अमेरिका में अब तक फ़ुटपाथ के कोनों पर चाय/काफ़ी की दुकानें देखीं। असहाय होमलेस लोग बैठे दिखे। बसों के एजेन्ट दिखे। पुलिस वाले दिखे। लेकिन फ़ुटपाथ के नुक्कड़ पर कवि पहली बार दिखी। लेकिन दिये शब्द पर कविता रचना तो आशुकविता हुई इसलिये कवि की जगह आशुकवि पढा जाये।
आशुकवि से बतकही की उत्सुकता के चलते हम उनसे बतियाये। बेन बर्नथल है कवि का नाम। पेशे से अंग्रेजी के अध्यापक हैं। स्वीडिश भी जानते हैं। किसी जगह बैठकर लोगों के दिये हुये शब्दों पर कवितायें बनाते हैं।
आशु कविता घराने की इस तरह की कवितायें शायद तुकबंदी घराने की होती हैं। अपने यहां आशुकविता का बहुत समृद्ध इतिहास रहा है। कुछ कवि तो आशुकविता में संचालन करते रहे हैं। इसके लिये कवि का बहुपाठी होना, शब्दसंपदा युक्त होना और भावों के जोड़-तोड़ में महारत होना आवश्यक होता है। इस तरह के अनेक सिद्ध आशुकवि हुये हैं। एक नाम मुझे स्व. बृजेन्द्र अवस्थी का याद आता है। आज के कवियों में अशोक चक्रधर जी अपनी पहले से लिखी हुई कविताओं के अलाव मंच पर जिस तरह मुक्त छंद वाली आशुकविता में बातचीत करते हैं वह जबरदस्त है।
व्यंग्य में भी कुछ लोग व्यंग्य के नाम पर आशु व्यंग्य लिखते हैं। शब्दों की तुक मिलाते हुए शानदार ड्रिबलिंग करते हैं। व्यंग्य को रौंदते हुए लेख के पोस्ट पर गोल कर देते हैं।
दिये हुये शब्द पर कविता लिखने में तो सोचने का समय होता है इसके मुकाबले आशुकवि के पास बहुत कम समय होता है अपनी बात कहने का। लेकिन टाइपराइटर पर लिखने में कोई शब्द गड़बड़ हो जाने पर ठीक करने की गुंजाइश कम होती है। इस लिहाज से बेन का काम काफ़ी चुनौती भरा है।
बेन दिये शब्दों पर कविता लिखने के इस काम को शौकिया करते हैं लेकिन उनका काम करने का अंदाज ऐसा है कि इससे उनको पैसे भी मिलते हैं। कविता लिखाने वाले जो मन आता है वह उनको देते हैं। अपने इस प्रोजेक्ट को उन्होंने नाम दिया है –स्ट्रेन्जर्स पोयम्स प्रोजेक्ट। उनकी साईट https://www.strangerspoemsproject.com/ में उनके द्वारा लिखी तमाम कवितायें मौजूद हैं।
आमने-सामने बैठकर कविता लिखने के अलावा बेन आर्डर पर भी कवितायें लिखते हैं। इस साइट में एक फ़ार्म है जिसमें आप अपने द्वारा चुने हुये शब्द , अपना नाम, मेल पता , जिसके लिये कविता लिखाना चाहते हैं उसका नाम भेज दें तो बेन उसके अनुसार कविता लिखकर भेज देते हैं। इस फ़ार्म के साथ भुगतान की व्यवस्था भी है जिसके माध्यम से कविता के आर्डर के साथ भुगतान किया जा सकता है।
बातचीत करने पर पता चला कि बेन तीन साल से यह काम कर रहे हैं। अभी तक हजार के करीब कवितायें लिख चुके हैं। व्यस्त दिन में 20-25 तक कवितायें लिखते हैं। कभी पांच-छह लोग ही कवितायें लिखवाते हैं।
कविता पैसे के लिये लिखते हैं या शौक के लिये यह सवाल पूछने पर बेन ने कहा कि मूलत: तो उनका यह शौक है। लेकिन कमाई भी होती है तो शौक और अच्छा लगता है। बेन ने बड़ी अच्छी बात यह कही कि कलाकार को अपनी कला में महारत हासिल करने के लिये नियमित अभ्यास तो करना ही चाहिये। रियाज से कला निखरती है। इसीलिये वे नियमित कविता लिखते हैं।
प्रभा ने बेन को चार शब्द दिये कविता लिखने के लिये। बेन ने कहा –’आप लोग किताब की दुकान से बाहर आइये तब तक हम कविता लिख लेंगे।’
हम लोग वापस पहुंचे तो बेन कविता लिख चुके थे। टाइप की हुई कविता के नीचे हस्ताक्षर करके बेन से दे दिया।उन्होंने कविता के लिये कोई मांग अपनी तरफ़ से नहीं की लेकिन इंद्र ने बेन को दस डालर कविता रचना के लिये दिये।
बेन से हमने कोई कविता तो नहीं लिखवाई लेकिन उनकी बातचीत से सीख ग्रहण की - 'कला के निखार के लिए नियमित अभ्यास जरूरी होता है।'
यह अनूठा प्रयोग अपने यहां चल सकता है क्या? शायद नहीं। आपको क्या लगता है?
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