Wednesday, November 20, 2019

शहर अभी सोया हुआ है


सुबह के छह बजने वाले हैं। पूरा सैनफ्रांसिस्को नींद के आगोश में लेटा हुआ है। मन करता है शहर को वंशीधर शुक्ल की कविता सुनाकर जगा दें:
उठ जाग मुसाफ़िर भोर भई
अब रैन कहाँ जो सोवत है।
लेकिन कविता अवधी में है। शहर अवधी समझता नहीं है। उसके लिए अंग्रेजी में अनुवाद कराना होगा।
सड़क पर गाड़ियां पार्किंग लेन में खड़ी हैं। उठते ही भागने को तैयार।
उधर भारत मे रात होने वाली है। शाम के साढ़े सात बजे गए उधर। खैरियत कि तारीख दोनों जगह एक ही है।
इत्ती सुबह पूरा शहर सोया कैसे है यार ! कानपुर में तो इस समय पूरा शहर अंगड़ाई लेकर उठ खड़ा होता है। चाय की दुकान पर लोग बतकही शुरू कर देते हैं। अखबार कई हिस्सों में बंट कर पढ़े जाने लगते हैं। सुलभ शौचालय गुलजार होने लगते हैं। मन करता है निकलकर पूछें किसी से सड़क पर।
लेकिन पूछें किससे? कोई तो सड़क पर आता-जाता दिखता नहीं। सड़क भी सब कुछ बेंच कर सोई हुई है।
चलते हैं अब चाय बनाने। आप भी पियोगे? बनाये आप के लिए भी ?

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10218142873296787

No comments:

Post a Comment