Sunday, November 10, 2019

अमेरिका में पहली बस यात्रा



कल न्यूयार्क टहलते हुये शाम हो गई। प्लान के हिस्से का ब्रुकलिन ब्रिज बचा रह गया था। 5 बजे ही सूरज भाई बॉय कहकर निकल लिए। अंधेरे की सरकार ने शपथ ग्रहण कर ली। दिखाने लगी अपनी कलाकारी। अंधेरे की सरकार को रोशनी से बाहर से समर्थन दिया। अंधेरा ख़ूबसूरत लगने लगा। अंधेरे की सरकार सत्तारूढ़ हो गई।
ब्रुकलिन ब्रिज जाने के लिए Lyft की टैक्सी ली। पैसा बचाने के लिए साझे की टैक्सी ली। सूचना आई कि चार मिनट में पहुंचेगी टैक्सी। हम इंतजार करने लगे।
कुछ देर में सूचना आई कि टैक्सी इंतजार कर रही है। तीन मिनट बाद चली जायेगी। हमने कहा इधर आओ स्टॉक एक्सचेंज के चार्जिंग बुल के पास। उसको मेरी बात समझ नहीं आई शायद। उसने जो कहा वह मेरी समझ में नहीं आया। दोनों के उच्चारण अलग-अलग। अब अंग्रेजी कोई प्रेम की भाषा तो है नहीं जो बिना बोले समझ आ जाये।
अंतत: सूचना मिली कि टैक्सी वाला चला गया। पांच डॉलर चार्ज होने की सूचना आ गयी। पांच डॉलर मतलब 350 रुपये। कहां तो ओला में 30 /50 रुपये उतने रुपये की हड़काई/लड़ाई कर डालते हैं। यहां 350 पर सनाका खा के रह गए। शिकायत करने पर जितनी अंग्रेजी ख़र्च करनी पड़ती उतनी खर्च करना हमको फिजूलखर्ची लगती। हम चुप हो गए।
फिर सोचा पीली टैक्सी कर लें। वह भी नहीं मिली। दुबारा लिफ्ट की शरण में गए। मुझे तू लिफ्ट करा दे कहते हुए फिर बुक की टैक्सी। इस बार आ भी गयी।
ब्रुक्लिन ब्रिज से लौटते हुए सवारी खोजते हुए एक बस मिली। हमने एक से पूछा यह पेन स्टेशन जाएगी? उसने बोला। स्ट्रीट 34 तक जाएगी। वहां से पास ही है पेन स्टेशन। हम बैठ गए। बस कुछ दूर चली। फिर खराब हो गयी।

बस ड्राइवर ने हमको उतारकर दूसरी बस में बैठा दिया। बैठते ही हमने टिकट मांगा। कार्ड बढ़ाया। ड्राइवर बोला इसमें कार्ड नहीं चलता। हमने सौ डालर का नोट दिया उसको वह बोला टिकट खुद ले लो। दी नहीं टिकट।
तब तक एक आदमी घुसा बस में। उसने हमसे हमारी समस्या सुनी। हमने बताया -'बिना टिकट बैठे हैं। फुटकर हैं नहीं। कार्ड ये लेते नहीं।व्हाट टू डु? '
उसने हमको इशारा किया चुपचाप बैठे रहो। हमें लगा यही कंडक्टर है। हम तसल्ली में आ गए।
लेकिन बाद में पता चला कि वह भी हमारी तरह सवारी ही है। एक युनिवर्सिटी में कानून का प्रोफेसर है। घर लौट रहा था। बातें करते हुए एक दूसरे के परिवार के बारे में बात हई
। छोटे बच्चे हैं प्रोफेसर साहब के। एक छह साल का दूसरा चार साल का।
हम पैसे देकर टिकट लेने को उतावले हो रहे थे। पर्स और कार्ड हाथ में। उसने पहले इशारे से और बाद में बोलकर समझाया ,बटुआ और कार्ड अंदर रखो।(ज्यादा उचको मत)
पता लगा कि प्रोफेसर साहब को 21 स्ट्रीट पर उतरना था। हमको 34 वी में। हमको फिर डर लगा कि इनके उतरने के क्या होगा। हमने पूछा तो उन्होंने कहा कि किसी दुकान से कुछ खरीद लेना। फुटकर मिल जाएंगे। उससे पेमेंट कर देना। टिकट खरीद लेना।
हमने फिर कहा वह तो आगे के लिए लेकिन अभी का भुगतान कैसे करें?
उसने फिर कहा-' बैठे रहो ।' हम बैठ गए।
प्रोफेसर साहब 21 वीं गली में उतर गए। अब हमारा जी धुकुर-पुकुर करने लगा। कोई आएगा , टिकट मांगेगा तो हम क्या कहेंगे। हर नया यात्री मुझे टिकट चेकर लगता।
हमको लगता चेकर आयेगा। फाइन करेगा।
फाइन की कोई बात नहीं लेकिन हमको लगा बेईज्जती और बदनामी होगी। हर स्टॉप पर मन करता उतर जाएं लेकिन जड़त्व के नियम के चलते उतर नहीं पाए।
लेकिन फिर धुकुर-पुकुर तेज हुई तो तीन गली पहले उतर गए। मन शांत हुआ।
अब उतरने के बाद जब सुरक्षित महसूस किये तो मन की खुराफात के पर निकल आये। कुतर्क दिया कि लिफ्ट टैक्सी के जो पैसे कटे वह हमने बचा लिए। अमेरिका ने हमको चूना लगाया हमने उसको लगा दिया।
इस तरह यह हमारी पहली बस यात्रा थी अमरीका में। जो गैर इरादतन बिनाटिकट थी। अब जब जाएंगे अमेरिका तो कोई तरीका होगा तो दे देंगे किराया । हम किसी देश का पैसा मारकर अपने पास नहीं रखना चाहते। मुफ्त की कमाई में बरकत नहीं होती।
सौरभ को बताया तो उसने जानकारी दी कि बस में यहां कंडक्टर नहीं आते। ड्रॉइवर की पूरी जिम्मेदारी होती है यात्रियों के टिकट की। गलती से टिकट नही लिया तो अगर उनको लगे कि ऐसा जानबूझकर नहीं किया तो मान जाते हैं। वैसे टिकट लेने की जिम्मेदारी यात्री की होती है।
बाद में लिफ्ट टैक्सी ने जो पैसे काटे थे उसकी सूचना में असहमत लिखकर भेज दिया तो पलक झपकते कटे हुए पैसे वापस आ गए।


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