'हमारे बहुमत में रहते हुए भी हर बार जीत ससुरे न्याय की ही क्यों होती है ? इस बार भी वही जीत गया।'- अन्याय भुनभुनाया ।
'बेटा जो न्याय जीता है वो भी अपना ही दूर का रिश्तेदार है। उसकी जीत को भी अपनी ही जीत समझ।' -अन्याय के पिता ने समझाया।
'रिश्तेदारी तो ठीक है लेकिन खराब लगता है न कि पसीना हम बहाएं। जीत न्याय की हो।' -अन्याय झुंझलाया।
'बेटा सुबह-सुबह ज्यादा सोचा मत करो। जैसे गरीब लोगों के बहुमत में होते हुए भी सब कानून अमीरों की हिफाजत करते हैं वैसे ही समझ लो अन्याय के बहुतायत में होते हुए भी लोग न्याय को जिता देते हैं।' -अन्याय के बाप ने समझाया।
अन्याय झल्लाते हुए कुछ बोलने को हुआ पर बाप ने उसको प्यार किया और कहा-' ये ले बेटा आयोडेक्स मल, अब काम पर निकल। बहुत काम पड़ा है तेरे लिए करने को । समय पर अन्याय नहीं होगा तो न्याय की तरह लोगों का अन्याय से भी भरोसा उठ जायेगा।'
अन्याय काम पर निकल लिया। जगह जगह न्याय की जीत का हल्ला सुनकर वह तेजी से अपने काम में जुट गया। उसके काम में कोई डिस्टर्ब न करे इसलिए उसने बोर्ड लगा दिया है:
' आगे काम प्रगति पर है। असुविधा के लिए खेद है।'
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