माचिस की तीली के जलने का सिद्धांत यह है कि उसके सिरे पर लगे फास्फ़ोरस पर साधारण तापमान की हवा यानी ऑक्सीजन के संपर्क में आने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती. जब हम डिब्बे के एक तरफ की खुरदरी सतह पर तीली को घिसते हैं तो घर्षण से दोनों के बीच की हवा का तापमान बढ़ जाता है जिसके नतीजे में तीली के सिरे पर लगा फास्फ़ोरस एक छोटे विस्फोट से जल उठता है.
लॉरा एस्कीवेल के मैक्सिकी उपन्यास ‘जैसे चॉकलेट के लिए पानी’ के एक अध्याय में जॉन नाम का डाक्टर कई दुखों से एक साथ जूझ रही कहानी की नायिका तीता को वैज्ञानिकी नुस्खे से माचिस बनाकर दिखाता है. वह उसे अपनी दादी का बताया हुआ एक और नुस्खा बतलाता है -
“हम सब अपने भीतर एक माचिस का डिब्बा लेकर पैदा होते हैं लेकिन हम अपने आप उसमें से एक भी तीली नहीं जला सकते. लेकिन बिना ऑक्सीजन और मोमबत्ती के वह संभव नहीं होता. हमारे मामले में ऑक्सीजन उस व्यक्ति की सांस से आएगी जिसे हम प्यार करते हैं जबकि मोमबत्ती का काम खाना, संगीत, दुलार या वे शब्द करेंगे जो उस चमकदार विस्फोट को घटने में मदद करें. उससे हमारे भीतर ऐसी गर्मी पैदा होती है जो हमें ज़िंदा रखती है. वक्त के साथ-साथ यह गर्मी कम होती जाती है. एक वैसा ही दूसरा विस्फोट उसे पुनर्जीवित कर सकता है.”
“हर व्यक्ति को जीवन में यह ढूंढना होता है कि ऐसे विस्फोट उसके भीतर कैसे होंगे क्योंकि इन्हीं विस्फोटों में हमारी आत्मा के लिए जीवन छिपा होता है. अगर वह समय रहते यह नहीं ढूंढ पाता कि ये विस्फोट उसके भीतर कैसे होंगे तो उसका माचिस का डिब्बा सील जाता है और उसके बाद एक भी माचिस नहीं जलाई जा सकती.”
“ऐसा होने पर उस शरीर की आत्मा सबसे काले रंगों की तरफ भटकने को शरीर से बाहर निकल जाती है – व्यर्थ प्रयास करती हुई कि वहां उसे अपने लिए भोजन मिलेगा लेकिन उसके भोजन का स्रोत तो दरअसल उसके शरीर के भीतर ही होता है जिसे वह ठंडा और असुरक्षित छोड़ आई होती है.”
“इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप ऐसे लोगों से दूर रहें जिनकी सांस ठंडी होती है और जो आपके भीतर की हर आग को बुझा देते हैं.”
Ashok Pande की वाल पोस्ट से साभार
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