पिछले कई दिनों से देख रहा हूँ कि लोग हमसे बिना पूछे हमारा प्यार और शुभकामनाएं और यहां तक कि आशीर्वाद तक उठा के ले गए। बिना बताए। अब चूंकि यह सब हमारे पास इफरात में रहता है इसलिए कभी इसका हिसाब नहीं रखा लेकिन बिना बताए कोई हमारा सामान ले जाये तो बुरा लगता है न!
हमको प्यार, शुभकामना और आशीर्वाद के उठाईगिरी का पता भी न चलता अगर उन लोगों ने सूचित न किया होता -'आपके प्यार, शुभकामनाओं और आशीर्वाद से पच्चीसवीं, तीसवीं किताब आ रही है।'
मजे की बात यह बात हमको डंके की चोट पर बता भी देते हैं लोग। कर लो जो करते बने।
हमको तो डर लगता है इससे कहीं दिन प्रतिदिन कम होते पाठकों के साथ हुए इस तरह के अत्याचार में हमारी गैर इरादतन भागेदारी न साबित हो जाये।
हम कोई मना थोड़ी करते प्यार, शुभकामनाएं और आशीर्वाद देने से लेकिन एक बार पूछना तो चाहिए था। है कि नहीं?
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