Thursday, February 10, 2022

कबूतर के बहाने

 कल रिजवान के बारे में लिखा जो पक्षियों को दाना-पानी देते हैं। रिजवान नाम के मेरे एक और मित्र हैं कानपुर में। उन्होंने ही मुझे रिजवान नाम का मतलब बताया था -'जन्नत का दरोगा।'

लोगों के नाम का मतलब जानने की उत्सुकता रहती है। कोई नया नाम जिसका मतलब नहीं जानते हैं तो पूछ भी लेते हैं। अक्सर मित्रों के नाम उनके नाम के अर्थ सहित मोबाइल में रखते हैं। हमारे मित्र Md Shabbir शब्बीर (प्यारा) का नाम ही मेरे मोबाइल में 'शब्बीर माने लवली' के नाम से सेव है। Arifa Avis आरिफा से जब भी कभी बात होती है तो पूछते हैं -'कैसे हाल हैं ' जंग के मैदान' के।
समय के साथ आपको आप के नाम से बुलाने वाले कम होते जाते हैं। आप दो-तीन अक्षरों और उसके पुछल्ले सरनेम तक सीमित होकर रह जाते हैं। हमको अनूप कह करकर बुलाने वाले लोगों की संख्या दो अंको से ऊपर नहीं होगी। अनूप का मतलब -जिसकी उपमा न हो, अनोखा। 🙂
बहरहाल रिजवान जी से बात हुई तो उन्होंने बताया कि हमारे दिन की शुरुआत इसी प्रकार होती है। घर पर रोज कबूतर फाख्ता बुलबुल आदि आते हैं। एक पौंड में मछली हैं। सब को खाना देते हैं। गौरैया के घर बने हुए हैं। उन्होंने एक फोटो भी भेजा जिसमें कबूतर उड़ते दिख रहे हैं।
जयपुर में एक जगह सड़क के बीच फुटपाथ पर कुछ कबूतर उड़ते दिखाई दिए। पास जाकर देखा तो एक बुजुर्ग दाना लेकर वहां बैठे थे। लोग उनसे खरीदकर कबूतरों को दाना खिलाते हैं। आनंदित होते हैं। कबूतर फड़फड़ाते हुए , उड़ते हुए दाना खाते रहते हैं , अच्छा लगता है। किसी को भी सहज रूप से प्रसन्न, उल्लसित देखना खुशनुमा अनुभव होता है।
कबूतर दाना-पानी लेते हुए उड़ जाते, थोड़ा उड़कर फिर जमीन पर आ जाते। फड़फड़ाते , फिर खाते, फिर उड़ते, फिर जमीन पर आ जाते। कबूतरों को उड़ते देख Subhash Chander जी की व्यंग्य कहानी 'कबूतर की घर वापसी ' अनायास याद आ गयी। धर्म परिवर्तन की राजनीति पर बहुत बेहतरीन कहानी है यह।
कुछ लोगों ने बताया कि ये जो कबूतर उनके ही हैं जो यहां दाना बेचते हैं। लोगों से अपने कबूतरों के लिए दाने के पैसे लेकर अपना और कबूतरों का पेट पालते हैं। क्या सच है यह पता नहीं लेकिन किसी भूखे को दाना मिलने पर जो खुशी उसके चेहरे पर दिखती है, पूरी कायनात में उससे खुशनुमा एहसास और कोई नहीं।
मुफ्त का दाना-पानी कभी बवाल-ए-जान भी बनता है। जब किसी को बिना कुछ किये कहीं से पेट भरने को मिलने लगता है तो वह कुछ करने लायक नहीं रहता। उसकी मेहनत करने की आदत खत्म हो जाती है। जिस समाज मे यह होने लगता है वह समाज पिछड़ जाता है, अनेक बुराइयां आ जाती हैं उस समाज में।
किसी समाज की बेहतरी के लिए उस समाज के लोगों को उनकी काबिलियत के लिहाज से काम मिलना बहुत जरूरी होता है। ऐसा नहीं होने पर निठल्ले हो जाते हैं उस समाज के लोग। आवारा भीड़ में तब्दील हो जाते हैं लोग, जिनका उपयोग नकारात्मक कामों करते हैं फिरकापरस्त लोग।
जन्नत के दरोगा और अच्छाई की बात से शुरू हुए थे पहुंच गए फिरकापरस्ती तक। कहाँ से चले थे, कहाँ पहुंच गए। ऐसे ही बहलाते हैं लोग।

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