अमेरिका के लिए दिल्ली एयरपोर्ट से जहाज पकड़ा। फ्लाइट 25 दिसम्बर की सुबह 0340 पर थी। पहले शताब्दी में रिजर्वेशन करवाया था। सोचा था कि शाम को चलकर रात साढ़े दस तक दिल्ली फिर वहां से एयरपोर्ट पहुंचकर फ्लाइट पकड़ लेंगे।
गाड़ी से दिल्ली के निकले दोपहर डेढ़ बजे। गूगल मैप की कृपा से भटकते, चलते रात दस बजे पहुंच गए दिल्ली एयरपोर्ट।
विद्वानों में इस बात पर मतभेद था कि इतनी जल्दी एयरपोर्ट में घुसने देंगे कि नहीं। कुछ का कहना था तीन घण्टे पहले नहीं आने देते। लेकिन हम घुस ही गए टिकट दिखाकर। पता चला कि बोर्डिंग पास नहीं बनता तीन घण्टे से पहले। अंदर आने में कोई मनाही नहीं।
अब समय इफरात था। उसको खर्च करने के लिहाज से इधर-उधर टहले। खरामा-खरामा चलते हुए पता किया कि कतर एयरलाइंस का बोर्डिंग पास किधर बनता है। पता चला अमेरिकन एयरलाइन का सबसे आख़िरी में काउंटर हूं उसी पर बनेगा बोर्डिंग पास। साढ़े ग्यारह बजे से।
लौटकर वापस आये। फिर सोचा कुछ डॉलर नकद और खरीद लिए जाएं। काउंटर पर नाम बताया तो उसने जानकारी दी -'4 नवम्बर, 2019 को आपने खरीदे थे डॉलर।'
हमने पूछा -'कितने।' उसने बता दिए देखकर। जबकि हमने लिए किसी और काउंटर से थे। मतलब विदेशी मुद्रा के एक-एक रुपये के हिसाब किताब पर नजर रखी जाती है।
काउंटर पर कुछ बच्चे सिंगापुर की मुद्रा खरीद रहे थे। कुछ पैसे कम पड़े तो दूसरे से लाये। हमने भी अपना फार्म भरा। जब तक मिलें डॉलर तब तक एक महिला और आ गयी। उसको कुछ विदेशी मुद्रा चाहिए थी। पैन कार्ड मांगा गया तो निकाल के दे दिया उसने। अपने पति के पास जा रही थी वो। काउंटर वाले ने पति का वीसा मांगा। उसके पास था नहीं। पता नहीं होगा शायद कि यह भी लगेगा।
इधर-उधर खोजने पर नहीं मिला तो उसने घर से भेजने को फोन किया। काउंटर वाले ने मजे लेते हुए कहा- 'सब कुछ लेकर चलेंगे लेकिन कागज घर पर रख के आएंगे।'
इस बीच हमें डॉलर मिल गए। हम लोग अपनी एयरलाइंस के काउंटर के पास पहुंच गए। अभी भी घण्टा भर बाकी था काउंटर खुलने में। सोचा गया कुछ खा लिया जाए।
कुछ खाने निकले तो पता चला सामानों की कीमतों के एयरपोर्टिकरण हो चुका था। चाय 125 रुपये में और ब्रेड को दो पीस 120 पर पहुंच गए थे।
चाय पीकर वापस आये तो काउंटर के लिये लाइन लग गयी थी। हम बीच में लग लिए। किसी ने टोंका नहीं क्योंकि समय इफरात था और लाइन ढीली। कोई सबूत नहीं कि हम गलत लगे थे।
इस बीच एक बुजुर्ग महिला को व्हीलचेयर पर बैठा कर अटेंडेंट ले जा रहा था। महिला को बहुत तकलीफ थी। बैठने में समस्या से उपजा दर्द उनकी आंख में झलक रहा था। बगल में होने के कारण हमने भी सहयोग करके उनको बैठा दिया। बैठने के बाद उनकी आंखों में जो धन्यवाद का भाव दिखा उसका अनुवाद असंभव है। कितना भी भाषा-समर्थ हो जाये इंसान लेकिन कई मनोभाव अनुवादित हुए बिना ही रह जाते हैं।
कुछ देर में काउंटर पर पहुंचे। टिकट बन गए। सामान जमा होने लगा। छह बैग में तीन का वजन कम था। तीन का थोड़ा ज्यादा। बुकिंग बालिका बोली -'ये ज्यादा है इसका अतिरिक्त पैसा लगेगा।' अतिरिक्त मतलब 75 डालर प्लस टैक्स। 75 डालर मतलब लगभग 6300 रुपये।
हमने बहुत कहा कि कुल मिलाकर तो वजन कम ही है। फिर काहे का पैसा। लेकिन वह मानी नहीं। बोली सामान एडजस्ट कर लें। हम लोग सारे बैग लेकर बाहर आये और आधे घण्टे से भी ज्यादा मशक्कत में इधर का सामान उधर करते करते रहे। तरतीब से लगाया सामान बेरहमी से बेतरतीब किया। जाड़े में पसीना आ गया। पसीने में मेहनत और देरी के कारण फ्लाइट छूटने का डर भी शामिल हो गया था।
सामान सजाकर जब दुबारा पहुंचे काउंटर पर तो भी कुछ ग्राम इधर-उधर था। लेकिन इस बार उसने टिकट दे दिया।
इस बीच एक सरदार जी का सामान भी कुछ ज्यादा निकला।एक्स्ट्रा चार्ज मांगने पर वो बमक गए कि आते समय नहीं लिया, जाते समय भी वही वजन है। काउंटर बालिका नियम की आड़ में छिप गई और पैसे धरा लिए। सरदार जी ने बाद में वसूल लेने की धमकी देते हुये पैसे भरे।
एक महिला टिकट के लिए लाइन में खड़ी थी। उसका वीसा देखकर एयरलाइन वाले ने बताया कि उसका टूरिस्ट वीजा तीन महीने का था। खत्म हो गया। जाने के पहले उसको वीसा बढ़वाना होगा। साइप्रस जाना था उसको। महिला की बच्चा हल्ला मचा रहा था। महिला ने पूछा -'क्या करें? कैसे होगा।'
एयरलाइन वाले ने अपनी मजबूरी जाहिर की। बोला -'आपको वीजा बढ़वाना होगा। दूतावास से।' महिला फोन पर इधर-उधर न जाने किधर-किधर बात करती रही।
विदेश यात्रा में न जाने कितने लफड़े हैं। न जाने कितने पचड़े हैं।
बहरहाल हमको टिकट मिल गया था। टिकट मिलते के बाद इमिग्रेशन काउंटर पर पहुंचे। वहां भयंकर भीड़ थी। लाइन एकदम चींटी की रफ्तार से चल रही थी। हर कोई परेशान। देखा देखी हमको भी होना पड़ा यह सोचकर कि फ्लाइट छूटी तो क्या करेगे।
लाइन के हाल एकदम ट्रैफिक की तरह थे। जिसकी मर्जी होती वो अतिक्रमण कर जाता। हमने भी किया एकाध बार। आखिर में इमिग्रेशन से निकले तब तक एक घण्टा बचा था। अब लाइन सुरक्षा जांच के लिए थी। जिस गति से आगे बढ़ रहे थे वहां उससे लग रहा था कि गयी फ्लाइट। लेकिन अंततः सिक्योरिटी चेकिंग के बाद बोर्डिंग के लिए पहुंचे तब तक 10 मिनट बाकी थे।
हमने सारी साँसों को स्थगित करके स्पेशल सांस ली जिसे लोग 'सुकून की सांस' कहते हैं। ऐसा लगा कि हमने छूटी हई फ्लाइट दौड़ कर पकड़ी है।
बोर्डिंग के बाद फ्लाइट घण्टे भर बाद चली दोहा के लिए। पहले बता दिया होता तो इतना हड़बड़ काहे को करते। लेकिन एयरलाइन वाले तो अपनी मर्जी से काम करते हैं।
कतर एयरलाइन का जहाज था। कतर में अभी फुटबाल का विश्वकप हुआ था। हर तरफ विश्वकप की छाप थी। हर सामान पर फीफा 2022 का विज्ञापन। टीवी पर विश्वकप की झलकियां।
दिल्ली से एक घण्टा देरी से उड़े थे। दोहा एक घण्टा देर पहुंचे। अगली उड़ान कहीं छूट न जाये यह धुक़ुर-पुकुर मचनी शुरू हो गयी थी।
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