Wednesday, December 14, 2022

काठमांडू में कैसिनो



‘यात्राओं में बेवकूफियां चंद्रमा की कलाओं की तरह खिलती हैं। ‘
होटल लौटते हुए बहुत पहले की यह बात फिर याद आई। लेकिन इस बार यह घटना यात्रा शुरू करने के पहले ही घट गई।
हुआ यह कि चलने के पहले होटल बुकिंग कराई तो जो पासपोर्ट में लिखा था वह लिखा -अनूप कुमार शुक्ला। आगे सरनेम का खाना था। हमने लिख दिया -शुक्ला। बुकिंग के लिए भुगतान कर दिया। बुकिंग हो गयी। नाम लिखा था -'अनूप कुमार शुक्ला शुक्ला।'
बुकिंग की तसल्ली का लुत्फ अभी पूरी तरह ले भी नहीं पाए थे कि शंका हुई कि यार यह नाम तो पासपोर्ट से अलग है। एक शुक्ला ज्यादा हो गया। बुकिंग कराने वाली साइट में लिखा था -नाम पासपोर्ट से वेरिफाई होगा। यह बात देखते ही शंका गहरी हुई कि कहीं होटल वाला घुसने न दे कि बुकिंग 'अनूप कुमार शुक्ला शुक्ला' की है और आप ‘अनूप कुमार शुक्ला’हैं। हम एक अतिरिक्त शुक्ला से मुक्त होने को बेताब होने लगे। नाम का जो अंश हमारी पहचान है वही ज़्यादा होने पर बवाल लगने लगा।
बुकिंग एजेंसी को फोन किया तो उसने बताया कि होटल वाला मान भी सकता है, मना भी कर सकता है वैसे परेशानी होनी नहीं चाहिए।
हमारे पास और कोई काम था नहीं इसलिए शंका और चिंता ही करने लगे। खाली समय चिंता की खाद-पानी होता है। हम कल्पना करने लगे कि नेपाल पहुंचे और होटल वाले ने कमरा देने से इनकार कर दिया।
साइट वाले से समस्या बताई तो उसने कहा नाम में सुधार होने में 24 से 48 घण्टे लग सकते हैं। वो लोग कर भी सकते हैं , मना भी कर सकते हैं। अजब ढुलमुल विनम्रता।
हमने सोचा कि बुकिंग कैंसल करके दुबारा करा लें। रात बारह बजे तक मुफ्त कैन्सलिंग की सुविधा थी। पता किया तो उसने बताया कि बुकिंग निरस्त करने पर पैसे हफ्ते भर में वापस आएंगे। हमने कहा कि आप नाम ठीक करवाओ, शाम तक हो गया तो ठीक नहीं तो बुकिंग कैंसल कर देंगे।
बहरहाल, दो घण्टे बाद एजेंसी के लोगों ने मेहनत करके नाम ठीक करवाया। इसके बाद कई लोगों ने पूछा -'आप हमारी सेवाओं से संतुष्ट हैं?' हमने कहा -हां। शाम तक तीन-चार लोगों ने सेवाओं से संतुष्टि की बात पूछी। सबने कहा -'फ़ीडबैक में लिख दीजिएगा।'
एक सुधार की तारीफ के तमाम तकादे। लगता है कि किसी एक काम के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने श्रेय लेने की कला इन एजेंसियों से ही सीखा है।
बहरहाल रात में जब होटल वापस पहुंचे तो देखा एक कोना थोड़ा ज्यादा गुलजार था। कुछ गाड़ियां भी खड़ीं थीं। गए तो देखा वह कैसिनो था। कैसिनो मतलब जुआघर।
कैसिनो के बाहर ही बोर्ड में लिखा था -'केवल विदेशी नागरिकों के लिए। नेपाली लोगों का प्रवेश वर्जित है।'
मतलब नेपाल में हैं लेकिन नेपाली जुआ नहीं खेल सकते। शायद ऐसा नेपाली लोगों के भले के लिए किया गया हो। देखिए नियम क्या लिखे थे:
1. प्रवेश प्रतिबंधित है।
2. नेपाल सरकार द्वारा नेपाली नागरिकों को जुआ खेलने वाले हिस्से में प्रवेश प्रतिबंधित है।
3. प्रवेश के समय परिचय पत्र (पासपोर्ट, वोटर आई डी आदि प्रस्तुत किया जाए ।
4. ड्रेस कोड : स्मार्ट कैजुअल। चप्पल और घुटन्ना पहने लोग अंदर न जा पाएंगे।
5. सुरक्षा वाले कोई भी तलाशी कर सकते हैं।
6. गोला बारूद अंदर ले जाने की मनाही है।
7. अंदर जाने वाले की सुरक्षा उसकी अपनी जिम्मेदारी है। अपने रिस्क पर अंदर जाएं।
8. अंदर कोई दुर्घटना हो जाये उसके लिए कैसिनो के लोग या नेपाल सरकार जिम्मेदार नहीं होगी।
9. मैनेजमेंट ऊपर दिए नियमों में से कोई भी कभी भी बदल सकता है।
10. कैसिनो के अंदर फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी मना है।
जुआ तो वैसे भी हमको नहीं खेलना था। कभी खेला भी नहीं , न मन क़िया। बिना मेहनत की कोई भी कमाई अंततः बर्बादी की तरफ ही ले जाती है। महाभारत जुआ का अपरिहार्य उत्पाद है। लेकिन मन किया कि देखें कि लोग कैसे खेलते हैं जुआ कैसिनो में। कैसे समाज की बर्बादी का ड्राफ्ट लिखा जाता है।
दरबान को बताया कि खेलना नहीं है, बस देखना है। जा सकते हैं?
जितने भोलेपन से हमने पूछा उससे दोगुने भलेपन से उसने कहा -'देख लीजिए। यहां इंट्री कर दीजिए। पासपोर्ट नम्बर और विवरण भर दीजिए।'
इंट्री की बात सुनते ही हमारा देखने का कौतूहल हवा हो गया। हम लौट लिए। जिस गली जाना नहीं उसके कोस गिनने से क्या फायदा? कौन सफाई देता कि खेलने नहीं देखने गए थे। तमाम लफड़े हैं शरीफ नागरिक बने रहने के। कितने कौतूहल कत्ल हो जाते हैं एक नागरिक को शरीफ बनाये रखने में। अगर 'कौतूहल कत्ल' की कोई सजा होती तो हर सभ्य समाज अनगिनत सजाएं भुगत रहा होता। वैसे देखा जाए तो भुगत तो रहे ही हैं लोग तमाम सजाएं, बस दर्ज नहीं हो रहीं।
वापस लौटकर रिसेप्शन पर आए। काउंटर पर मौजूद रिसेप्शनिस्ट से होटल और आसपास की जानकारी ली। नेपाल के बारे में भी। बात करते हुए जानकारियां अपने आप उद्घाटित होती हैं। उसकी ड्यूटी रात ग्यारह बजे तक थी। वह उस होटल की अकेली स्थायी कर्मचारी है। बाकी सब दिहाड़ी पर। रात की ड्यूटी में छोड़ने के लिए होटल का वाहन जाता है।
पास में स्थित बौद्ध स्तूप का रास्ता भी बताया महिला रिसेप्सनिष्ट ने इस हिदायत के साथ कि देर होने पर इधर से मत जाइयेगा। सुबह जाइयेगा। बताकर वह दिन भर की कमाई गिनने लगी। उसको घर जाना था।
सुबह बौद्ध स्तूप जाने की बात तय करके हम कमरे आ गए।’

https://www.facebook.com/share/p/jjiimMxdEnPQpUXJ/

No comments:

Post a Comment