25 दिसम्बर की दोपहर को अमेरिका आये। सैनफ्रांसिस्को उतरे। फॉस्टर सिटी में बेटे के घर आये। तब से एक दिन छोड़ बाकी आसपास ही टहलते रहे। फॉस्टर सिटी को हम पहले सैन फ्रांसिस्को का ही मोहल्ला समझते रहे। आज पता चला कि यह खुद में एक शहर है।
फॉस्टर सिटी अमेरिका के सबसे सुरक्षित शहरों में से एक माना जाता है।
सैनफ्रांसिस्को के समुद्र तट से जुड़े लैगून शहर की ड्रेनेज व्यवस्था को सुचारू बनाने में सहायक हैं। लोग इनमें नाव भी चलाते हैं।
जिस दिन आये उस दिन तो चुपचाप पड़े आराम करते रहे। अमेरिका में आये बर्फीले तूफान का नजारा और खबर देखते रहे। लग रहा था कि पूरे अमेरिका में किसी बर्फीली फौज ने हमला कर दिया है। जिधर देखो उधर बर्फ ही बर्फ। टीवी की इन खबरों के उलट फॉस्टरसिटी में धूप खिली थी।
शाम यहां बड़ी जल्दी हो जाती है। एक दिन देखा तो साढ़े पांच बजे ही अंधेरा हो गया। आसपास टहलने निकले तो कोई बाहर नहीं दिखा। अलबत्ता कई घरों में क्रिसमस के सांता जी दिखे। कुछ घरों में बिजली की झालरें भी चमक रही थी।
सड़को पर गाड़ियां बड़ी तेज भागती दिखीं। लोगों को घर पहुंचने की जल्दी होगी। ऐसा लग रहा था कि गाड़ियों को पीछे से कोई दौड़ा रहा हो। गाड़ियां मानों अपनी जान बचाने के लिए भाग रही हों।
कालोनी के पास ही एक लैगून को पार करके दूसरी तरफ गए। लैगून को पार करने के लिए जगह-जगह ओवरब्रिज बने थे। लैगून के दूसरी तरफ कुछ लोग वोटिंग करते दिखे। हमारे देखते-देखते एक आदमी लैगून से अपनी नाव निकालकर उसे अपने बगल में लादकर कार के पास गया और नाव को कार पर लादकर चलता बना।
वहां पास में ही एक कुत्तों का पार्क दिखा। उसमें लोग अपने कुत्तों को खिला रहे थे। कुत्ते आपस में दूसरे कुत्तों के साथ खेल रहे थे। हेलो हाय कर रहे थे। कुत्तों के मालिक-मालकिन अपने कुत्तों को कसरत करा रहे थे। ट्रेनिंग दे रहे थे। ज्यादातर लोग गेंद दूर फेक रहे थे और कुत्ते उनको उठाकर ला रहे थे।
दो पार्क थे। अगल-बगल। उनमें करीब दस बारह कुत्ते दिखे। लगभग इतने ही उनके मालिक। प्रति कुत्ता एक मालिक हिसाब समझिए। कुत्तों के लिए पानी की व्यवस्था थी। लोग कुछ देर कुत्तों को खिलाकर टहला कर उनको अपने साथ लेकर कार में बैठकर जाते दिखे। कुछ लोग कुत्तों को साथ लाते हुए भी दिखे। कार से उतरकर पार्क की तरफ कुत्ते इतनी तेज लपककर जा रहे थे कि उनको देखकर यही लगा कि पार्क में पहुंचते ही किसी पद या कुर्सी पर कब्जा कर लेंगे। लेकिन यह देखकर अच्छा लगा कि पार्क में पहुंच कर भी उनका कुत्तापन बरकरार रहा। उन्होंने कोई मानवोचित हरकत नहीं की।
एक कुत्ते ने कसरत करते हुए पार्क के बीच में ही दीर्घशंका कर दी। उसकी मालकिन लपककर पार्क में ही मौजूद व्यवस्था से एक प्लास्टिक का बैग निकाला। कुत्ते के निपटान को उठाया और वहीं मौजूद डस्टबिन में फेंक दिया।
कुत्तापार्क पर लगी नोटिस के अनुसार :
"यह पार्क कुत्तों को दूसरे कुत्तों से मिलन-जुलन की व्यवस्था के लिए बनाया गया है। बच्चे कुत्तों के मनोरंजन में बाधा पहुंचा सकते हैं।
अगर आप अपने बच्चे को कुत्तापार्क में लाते हैं तो उनकी ठीक से देखभाल करें। बच्चों को कुत्ता पार्क रहने का व्यवहार सिखाएं। जैसे कि बच्चे दौड़े नहीं, चिल्लाएं नहीं, छड़ी न हिलाएं और उन जानवरों की तरफ न जाएं जिनसे वे परिचित नहीं हैं। कुत्तों के बाल झाड़ते समय टूटे हुये बाल अपने बैग में रखें।"
कुत्तों के लिए इतनी शानदार और सुरक्षित व्यवस्था देखकर दिनकर जी की कविता याद आ गयी:
श्वानों को मिलता दूध-वस्त्र, भूखे बालक अकुलाते हैं
माँ की हड्डी से चिपक ठिठुर जाड़ों की रात बिताते हैं
युवती के लज्जा वसन बेच जब ब्याज चुकाए जाते हैं
मालिक जब तेल-फुलेलों पर पानी-सा द्रव्य बहाते हैं
पापी महलों का अहंकार देता तब मुझको आमन्त्रण
यह कविता बचपन में पढ़ी थी इसलिए याद आ गयी। बाकी भूखे बच्चों के हाल तो कविता लिखे जाने के समय से और बेहाल हुए होंगे। मालिक लोगों का तेल-फुलेल पर खर्च और बढ़ा होगा। पापी महलों के अहंकार भी बढ़े होंगे लेकिन कहीं कुछ बदल नहीं रहा।
हालाँकि हमको वहाँ खेलते कुत्तों और उनके मालिकों से कोई शिकायत नहीं है। लेकिन दुनिया भर के भूखे रह जाने वाले बच्चों के हाल सोचकर दुःख होता है।
कुछ देर वहां ठहरकर हम वापस घर चले आये।
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