Thursday, December 29, 2022

दोहा से अमेरिका वाया ईरान, अफ़्रीका और अटलांटिक महासागर



अमेरिका का टिकट कतर एयरलाइंस से हुआ था और फ्लाइट कतर की राजधानी दोहा होकर जानी थी। उस समय कतर में 2022 का फुटबाल विश्व कप भी हो रहा था। कतर में ढाई घण्टे का ठहराव भी था। हालांकि रूकना नहीं था फिर भी जानकारी ली कतर के बारे में।
पता चला कि कतर दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक है। 9 वां नम्बर बैठता है अमीरी के मामले में। आबादी कुल जमा करीब तीस लाख। कानपुर की आबादी (45 लाख) इसकी डेढ़ गुनी है। कुल शहर 51 हैं कतर में इससे ज्यादा तो मोहल्ले होंगे कानपुर में। एरिया लगभग कानपुर के बराबर।मतलब कतर की पूरी आबादी को समेट के कानपुर में रखा जा सकता।
कतर की खास बात यह कि यहाँ की करीब नब्बे प्रतिशत आबादी बाहर से आई है। सर्विस देने। मतलब करीब 3 लाख लोग ही यहां के हैं। बाकी सब दिहाड़ी पर काम करने आये दुनिया के दूसरे देशों से। प्रवासी मजदूरों से काम कराने का रिकार्ड यहाँ अच्छा नहीं बताया जाता। कांट्रैक्ट पर आए लोगों के वीसा यहाँ लोग जब्त कर लेते हैं। बंधुआ मजदूर की तरह काम कराते हैं। पिछले साल विश्व कप फुटबाल के आयोजन की तैयारियों से सम्बंधित निर्माण के काम में करीब 6500 मजदूरों की मौत हो गयी। किसी लोकतांत्रिक देश में इतनी मौतों पर बवाल होता लेकिन कतर में इसके बावजूद शानदार आयोजन हुआ।
गरीब की जान की अमीर लोग परवाह नहीं करते।
कतर के बारे में पढ़ते हुए एक रोचक बात पता चली। रोचक क्या नकारात्मक ही कहेंगे आज के समय के हिसाब से। वैसे संविधान के अनुसार तो कतर में स्त्री-पुरुष समानता है। लेकिन कतर की परम्परा के अनुसार हर महिला को जिंदगी भर अपना कोई न कोई अभिभावक रखना होता। बिना अभिभावक की लिखित अनुमति के वे अपने जीवन से जुड़ा कोई भी अहम फैसला नहीं ले सकती। यह अहम फैसला महिलाओं की पढाई, शादी, तलाक़ या कहीं बाहर जाने-आने से भी सम्बंधित हो सकता है।
(बीबीसी की रिपोर्ट का लिंक कमेंट बॉक्स में)
हालांकि कानून इस बात के लिए मजबूर नहीं करता लेकिन परम्परा के अनुसार यह जरूरी है। और नकारात्मक बातों में परम्परा हमेशा कानून पर हावी रहती है। भारत में ही शादी में दहेज कानूनन अपराध है लेकिन बकौल परसाई जी -'हमारे समाज की आधी ताकत लड़कियों के लिए दहेज जुटाने में लग जाती है।'
बहरहाल बात हो रही थी दोहा की। जहाज दिल्ली से एक घण्टे देरी से उड़ा था। एक घण्टे देर ही पहुंचना था। अगली फ्लाइट में डेढ़ घण्टे समय था। दिल्ली में जिस तरह देरी हुई सुरक्षा जांच में उससे डर लग रहा था कि कहीं अगली फ्लाइट हमको लिए बिना न चली जाए और हम दोहा में ही रह जाएं।
यह बात हमने एयरहोस्टेस से पूछी। उसने कहा -'ऐसा नहीं होगा। सेम एयरलाइन है और इसके कई लोग उसमें जाने हैं इसलिए आपको लेकर ही जायेंगे। अगर छूट भी गयी तो दूसरी फ्लाइट से भेजेंगे। उसकी बात मानकर हम चुप हो गए। लेकिन जब मन आता तो मन ही मन चिंता तो कर ही लेते। चिंता करने में कौन पैसा लगता है।
मुफ्त की सुविधा होने के चलते दुनिया ने तमाम लोग इसका फायदा उठाते हैं और दनादन ऊलजलूल चिंताएं करते रहते हैं। दनादन चिंतित होते हैं। काल्पनिक समस्यायों से चिंतित होते हैं। एक की चिंता से उबरते हैं दूसरी में घुस जाते हैं। मुफ्त की सेवाओं का यह साइड इफेक्ट होता है, हर कोई उसका लाभ उठाना चाहता है।
इस बीच नाश्ता पानी भी आता रहा। चाय , पानी,जूस और तमाम खाने के सामान। इनके साथ हवाई जहाज के शौचालय सबसे व्यस्त जगह दिखे। अतिशय उपयोग के चलते सबसे ज्यादा गन्दी जगह हो गए थे शौचालय। न जाने की इच्छा के बावजूद लोग जा रहे थे।
इस बीच फुटबाल में विश्वकप की झलकियां भी देखीं। पुराने खिलाड़ियों के मैच। इसी क्रम में विश्व कप क्रिकेट 1983 पर बनी पिक्चर भी देखी। लेकिन सबसे ज्यादा देखा फ्लाइट स्टेटस। अब कहाँ हैं, किसके ऊपर से उड़ रहे हैं। कितना तापमान है बाहर। कितनी दूरी बची है, कितनी तय कर आये।
ईरान के ऊपर से उड़ते हुए वहां चल रहा युवाओं का आंदोलन याद आया। पढ़ने-लिखने , घूमने-फिरने और मजे का जीवन जीने की उम्र के बच्चे पहनने, ओढ़ने और बुनियादी आजादी के लिए आंदोलन कर रह रहे हैं। तीन सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। न जाने कितनों को मौत की सजा सुनाई जा चुकी है। महिलाओं के हिजाब पहनने की पाबन्दी से आजादी की मांग को लेकर शुरू हुआ आंदोलन न जाने कितने और लोगों की जान लेगा। इंसान की जिंदगी से कीमती कुछ नहीं होता। यह अमूल्य जीवन कुछ लोगों की हठधर्मिता और अड़ियल पैन के चलते बर्बाद हो रहा। न जाने कब यह सिलसिला रुकेगा।
दोहा से अमेरिका की दूरी करीब 16 घण्टे की थी। सैनफ्रांसिस्को पहुंचने का समय सुबह के 1240 था। हम खिड़की से दूर थे। लेकिन समुद्र लहराता दिख रहा था। सूरज भाई भी हमारी अगवानी में चमकते-चहकते दिखे। खिड़की से सटकर चलते रहे।
आखिर में पहुंच ही गए। सैनफ्रांसिस्को। मौसम खुशनुमा और खिला-खिला था।

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