Monday, June 17, 2024

सड़क के रैंप पर मोर का ‘कैट वाक’


सुबह टहलने निकले तो सामने ही मोर दिखा । बीच सड़क टहलते हुए । लगता है वह भी मार्निंग वाक पर निकला है । पंजे सड़क पर एक के बाद दूसरा रखता हुआ । मानो सड़क पर ‘कैट वाक’ कर रहा हो । मोर के सुन्दर लंबे पंख बहुत खूबसूरत । सड़क पार करते हुए मोर को देखकर अनायास केदारनाथ जी की कविता याद आ गयी:
“मुझे आदमी का सड़क पार करना
हमेशा अच्छा लगता है
क्योंकि इस तरह
एक उम्मीद सी होती है
कि दुनिया जो इस तरफ़ है
शायद उससे कुछ बेहतर हो
सड़क के उस तरफ़ । “
पता नहीं आदमी के लिए लिखी कविता मोर पर लागू होती है कि नहीं । मोरों के यहाँ कवि होते हैं कि नहीं । वे इंसानों की तरह कवितायें लिखते हैं कि नहीं । कहने को तो कोई कह सकता है कि मोर जो सुबह-सुबह पेड़ों पर, छतों पर और ऊँची जगहों पर बैठकर आवाज देते हैं वे उनके कविता पाठ ही हैं । उनकी आवाज ऊँची होती है , दूर तक पहुँचती है इसलिए शायद उनको लाउडस्पीकर की जरूरत नहीं होती ।
इस कविता को अभी पढ़ते हुए लगा कि यह लैंगिक भेदभाव वाली कविता है । इसमें केवल आदमी को ही सड़क पार करते दिखाया गया है । कवि को शायद पसंद नहीं कि औरतें भी सड़क पर आयें और सड़क पार करें । अभी तक किसी ने इस कविता लैंगिग भेदभाव का आरोप क्यों नहीं लगाया?
बीच सड़क से जाते मोर की फोटो लेने की कोशिश की । जब तक कैमरा सेट करें मोर सड़क किनारे पहुँच गया और उचक कर नाली के पार हो गया । आगे मैदान में टहलने लगा । दूर से उसका फोटो साफ़ नहीं आयेगा यह सोचकर हमने फोन वापस जेब में धर लिया ।
पिछले दिनों ऐसा कई बार हुआ । मोर सड़क पर दिखा और हमारे देखते-देखते सड़क पार करके उचकते हुए नाली पार जाकर मैदान में टहलने लगा । हमारी फोटो लेने की तमन्ना अधूरी ही रह गयी । अब हम कोई प्रधानमंत्री थोड़ी हैं जो मोर हमारी इच्छा के अनुसार हमारे पास आ जाए । दाना चुग जाए । वहां मोर को भी डर रहता होगा कि अगर उसने नखरे किये तो कहीं उसके खिलाफ ईडी का सम्मन न आ जाए । आम आदमी और ख़ास लोगों के प्रति व्यवहार में इतना अंतर तो रहेगा ही ।
आगे सडक पर दो बच्चे , एक लड़का और एक लड़की स्केटिंग करते दिखे । जूते के नीचे ब्लेड वाले स्केट बंधे थे । लड़का एक्सपर्ट लग रहा था । तसल्ली से सड़क पर स्केटिंग कर रहा था । तरह-तरह की अदाओं में , पोज़ में। लड़की बीच-बीच में डगमगा रही थी । लड़का उसको समझा रहा था, संभाल भी रहा था । एक बार लड़की थोड़ी ज्यादा लडखडाई । गिरने को हुई । लेकिन उसको याद आया होगा और वह चलते-चलते बैठ गयी । संभल गयी । कुछ ही देर बाद फिर स्केटिंग करने लगी ।
बच्चों को स्केटिंग करते देख मुझे अपने कालेज के दोस्त सुरेन्द्र सिंह सावंत की याद आयी । स्केटिंग करते हुए माउथ आर्गन बजाते रहते । तीसरे मंजिल से स्केट्स पहने-पहने नीचे आते और देर तक और दूर तक माउथ आर्गन बजाते हुए स्केटिंग करते । हाल ही में आई ओ सी से रिटायर हुए । उनके रिटायर होने पहले उनके दोनों ही शौक रिटायर हो गए ।
हमारा मन किया कि काश हमको भी स्केटिंग आती होती तो अपन भी सडक पर रोलर वाले स्केट्स बांधकर टहलते । अब सीखने में डर लगता है कि कहीं सड़क पर गिर न जाएँ और कोई हड्डी न टूट जाए । महीने भर की छुट्टी हो जाए ।
सडक की पुलिया पर बैठा एक आदमी कुछ योग और कसरत कर रहा था । मोबाइल पैर के पास रखा था । उठक-बैठक वाली कसरत करते हुए बैठ गया । उसके बाद हाथ रगड़ते हुए कोई नयी कसरत करने लगा । उसको हाथ रगड़ते देख मुझे लगा बस पुण्य प्रसून बाजपेयी जी की तरह बस बोलने ही वाला है –‘दोस्तों नमस्कार ।‘
एक जोड़ा अपने बच्चे को गोद में लिए आहिस्ता-आहिस्ता टहल रहा था । बच्चा पिता की गोद में था । बीच-बीच में किलकता हुआ बच्चा मुस्करा रहा था । पूरे समय पिता ही लिए रहा बच्चे को । शेर याद आया जिसमें बच्चे को माँ द्वारा ही खिलाये जाने की बाद कही गयी है :
“.. जैसे कोई मां बच्चा खिलाये उछाल के”
शेर के माने के उलट यहाँ पूरे समय पिता ही बच्चे खिलाता रहा । जबकि शेर में पूरा क्रेडिट माँ को ही दिया गया है । पिता लोग कम क्रेडिट पाने के बावजूद बच्चों के प्रति अपना कर्तव्य निभाते रहते हैं । दुनिया में ऐसा न जाने कब से हो रहा है । किसी का क्रेडिट किसी और को दिया जाता रहा ।
माताओं के मुकाबले जो क्रेडिट पिता लोगों को कम मिलता है उसकी भरपाई के लिए ही शायद ‘फादर्स डे’ मनाया जाता है । कई तमाम लोगों ने अपने पिता को बड़े आदर और प्रेम से याद किया । पिता लोगों को आदर और प्रेम का सारा क्रेडिट एरियर के रूप में ‘पिता दिवस’ के दिन मिल जाता है ।
मुझे पिता दिवस पर रागदरबारी के छोटे पहलवान याद आये । आज अगर वे होते तो ‘फादर्स डे’ पर अपने पिता कुशहर प्रसाद को कैसे याद करते?
पुलिया पर बैठी दो बच्चियां बतियाते दिखी । देखते-देखते एक ने मोबाइल निकाला और दोनों की ‘सेल्फी’ लेने लगी । ढेर सारी सेल्फी ले डाली और आपस में देखते हुए मुस्कराने-बतियाने लगीं ।
पार्क में आज बहुत कम बच्चे खेल रहे थे । शायद खेल कर चले गए होंगे या फिर आज तमाम बच्चे ईद के कारण घर से न निकले हों खेलने ।
घर लौटकर देखा सूरज भाई गरम होते हुए हमको हड़का जैसा रहे हों । हमने उनको मुस्कराते हुए देखा और गुडमार्निंग किया । वे मुस्कराने लगे । यही फर्क है सूरज भाई और किसी खडूस इंसान में । कोई और होता तो ‘कारण बताओ नोटिस’ थमा देता –“ आप मुझे देखकर मुस्कराए क्यों ? क्यों न आपके खिलाफ विभागीय नियमों के अनुसार कार्यवाही की जाए? तीन दिन के भीतर अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करें ।“
शुक्र है दुनिया में मुस्कराने वाले लोग अभी बचे हुए हैं । इनके चलते ही दुनिया अभी तक खूबसूरत बनी हुई है ।

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Saturday, June 15, 2024

रमेश सैनी अमृत महोत्सव और साहित्य समारोह



आज हफ्ता हो गया जबलपुर में कार्यक्रम हुए। पिछले शनिवार आज के दिन इंतजाम देख रहे थे। कुर्सियां लगवा रहे थे। स्टेज सजवा रहे थे। हेल्लो ,माइक टेस्टिंग करवा रहे थे। शाम को कार्यक्रम होना था।
कार्यक्रम में रमेश सैनी जी के 75 साल के होने के मौके पर उनका अमृत महोत्सव होना था , उम्र और लेखन के हिसाब से वरिष्ठता को प्राप्त हो चुके राजशेखर चौबे जी के चौथे व्यंग्य संग्रह ‘संतरा गणतंत्र’ का लोकार्पण और विमर्श होना था और ‘जन्मशताब्दी वर्ष और परसाई की प्रासंगिकता ‘ पर बातचीत मतलब वक्तव्य होने थे। उपरोक्त का आयोजन ‘सतत-व्यंग्यधारा ‘ की तरफ तत्वावधान में होना था।
सतत संस्था के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं था अलबता ‘व्यंग्यधारा’ समूह से मैं काफी पहले से जुड़ा रहा हूँ। काफी दिन उसकी गोष्ठियों में नियमित भागेदारी रहती थी मेरी। व्यंग्य गोष्ठी के बाद की ‘उत्तर गोष्ठी’ का स्थायी अध्यक्ष रहता था मैं। इधर-उधर की बातें और बुराई-भलाई से ‘उत्तर गोष्ठी’ काफी चहल-पहल भरी रहती थी। लोग यह भी कहते थे कि व्यंग्य धारा की गोष्ठी में जुड़ते ही इसीलिए थे ताकि ‘उत्तर गोष्ठी’ का मजा ले सकें। यह बात अलग कि कई जिम्मेदार और शरीफ लोग ‘उत्तरगोष्ठी’ शुरू होते ही विदा हो जाते थे। ‘साए में धूप’ वाले अंदाज में कहें तो :
“मौज मजे, बुराई भलाई का दौर चला तो
शरीफ लोग लागआउट हुए और निकल लिए।“
व्यंग्यधारा समूह में व्यंग्य पर काफी सार्थक बातचीत और गोष्ठी होती रहीं। सवा तीन साल से लगातार संचालित समूह में व्यंग्य के अलावा किसी और विषय पर चर्चा पर कड़ी पाबंदी रहती है समूह में। मजाल है कि व्यंग्य के अलावा किसी बात पर कोई चर्चा करे और उसको चेतावनी न जारी हो। आपने व्यंग्य से इतर कुछ लिखा नहीं कि समूह के एडमिन से ‘सलाह मिसाइल’ का हमला हो जाता –‘इस तरह की सामग्री लगाने का यहाँ चलन नहीं, कृपया इसे (फ़ौरन) हटा लें।‘
इसी व्यंग्यधारा समूह में जहां व्यंग्य से इतर कोई भी चर्चा ‘समूह निकाले’ का कारण बन सकती है, एक दिन सूचना प्रसारित हुई कि व्यंग्य धारा समूह के वरिष्ठ एडमिन आदरणीय रमेश सैनी जी के 75 वर्ष पूरे करने के उपलक्ष में अमृत महोत्सव मनाया जाने का प्रस्ताव है।
अच्छा हुआ कि उस दिन यह सूचना देखी नहीं वरना ‘व्यंग्य धारा ‘ के एडमिन की तर्ज पर लिखता –‘महोदय इस तरह की सूचना लगाने का चलन इस समूह में नहीं है। कृपया इसे यहाँ से (फ़ौरन) हटा लें।‘
लेकिन उस समय नहीं देख पाया तो अब क्या कर सकते हैं। तमाम विसंगतियां अनदेखी रह जाती हैं।
व्यंग्यधारा में पोस्ट इस सूचना के पहले ही, जिसे मैंने आज देखा, रमेश तिवारी जी ने जबलपुर में आपसी सहयोग से कार्यक्रम कराने का प्रस्ताव बताया। प्रस्ताव देखते ही हमने कहा –‘आप आपसी सहयोग की बात छोड़ दें। इसमें हमेशा बवाल होते हैं। आप कार्यक्रम कराइये। जबलपुर में कार्यक्रम के आयोजन की जगह, रहने, खाने की व्यवस्था मैं कर दूंगा।‘
कार्यक्रम तय हो गया। आठ जून को। जैसे-जैसे कार्यक्रम का दिन नजदीक आने लगा, हमसे तकादे बढ़ते गए। हमने कई बार सोचा भी –‘कहाँ बवाल में फंस गए, इंतजाम की गारंटी लेकर।
‘ यह भी लगा कि अपन एक कार्यक्रम की गारंटी से हलकान हुए जा रहे, लेकिन लोग कैसे पूरे देश की फर्जी गारंटी पर गारंटी लेते रहते हैं और गारंटी लेकर भूल भी जाते हैं। हमें डर भी लगाने लगा कि कहीं किसी चूक पर ‘सलाह पत्र’ जारी न हो जाए।
बहरहाल जबलपुर के मित्रों ने पूरा सहयोग किया और सारा इंतजाम किया। हमारी बेइज्जती खराब होने से बची।
अपन कार्यक्रम के एक दिन पहले सात जून को पहुंचे। रहने का सबका इंतजाम व्हीकल फैक्ट्री जबलपुर की आफिसर्स मेस में था। कार्यक्रम भी यहीं होना था। रहने का अतिरिक्त इंतजाम जीसीएफ फैक्टी गेस्ट हाउस में था। लेकिन वहां जाना हुआ नहीं। जरूरत ही नहीं पड़ी।
सात की शाम तक महेंद्र कुमार ठाकुर जी, राजशेखर चौबे जी आ गए। रमेश सैनी जी अपने मित्र दिनेश अवस्थी जी के साथ लगातार आते-जाते और इंतजाम देखते रहे। दिनेश अवस्थी जी को इस बात का ताज्जुब था कि जहां से मैं आठ साल पहले जा चुका वहां रिटायर हो चुकने के बाद भी इतनी इज्जत से पेश आ रहे हैं लोग।
अगले दिन तक लोग आते गए, जमावड़ा होता गया। मिलने पर तमाम अनुपस्थित लोगों, खासकर व्यंग्य से जुड़े लोगों की , चर्चा और भलाई-बुराई होती रही। इनाम , सम्मान आदि पर भी चर्चा हुई। गोपनीयता की रक्षा के लिए इन चर्चाओं यहाँ का उल्लेख जानबूझकर नहीं कर रहा। किसी साथी को इन चर्चाओं का आनंद उठाना हो तो अलग से मुझसे संपर्क करके , नमक मिर्च के साथ चर्चा का आनंद ले सकता है।
कार्यक्रम शाम साढ़े तीन बजे से प्रस्तावित था। जबलपुर में गर्मी भीषण थी। लोग चार बजे तक आने शुरू हुए। उसके बाद कार्यक्रम शुरू हुआ। रमेश सैनी अमृत महोत्सव कार्यक्रम की शुरुआत रमेश तिवारी जी ने की और संचालन का काम अभिजीत दुबे को सौंप दिया।
रमेश सैनी जी के परिचय का जिम्मा सौंपा गया दिनेश अवस्थी जी को। सैनी जी के विस्तृत परिचय के बाद उनके सम्मान का सिलसिला शुरू हुआ। श्री महेंद्र कुमार ठाकुर जी , श्री अरुण अर्नव खरे जी और श्री राम स्वरूप दीक्षित जी ने रमेश सैनी जी का सम्मान किया। मित्रों द्वारा किया रमेश सैनी जी का सम्मान उनके प्रति मित्रों के प्रेम और सम्मान का परिचायक था।
यह भी लगा इतनी भीषण गर्मी में मित्र लोग रमेश जी को शाल पहनाकर सम्मानित करते हुए उनसे मजे तो नहीं ले रहे हैं।
सम्मान के बाद रमेश सैनी जी पर केन्द्रित पत्रिका ‘अनवरत’ का विमोचन हुआ। पत्रिका सीने से सटाकर फोटो खिंचाने के लिए सभी लोगों को बुला लिया गया मंच पर। मंच पर लोग आते गए और आगे बढ़कर खड़े होते गए। एक बारगी यह भी लगा कि कहीं लोग पत्रिका सीने से सटाए-सटाए नीचे न टपक जायें। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सभी के साथ फोटुओ के कई सत्र हुए।
अनवरत पत्रिका के विमोचन के बाद पत्रिका के सम्पादक रमेश तिवारी जी ने सम्पादन में रही-बची कसर अपना वक्तव्य देकर पूरी की। उन्होंने कहा –‘ यह पुस्तक हम सबको जोड़ने का काम करती है।‘
रमेश तिवारी जी के वक्तव्य के बाद रमेश सैनी जी की जीवन संगिनी श्रीमती शारदा सैनी जी ने अपना वक्तव्य दिया। इसके बाद वहां उपस्थित मित्रों /साथियों ने रमेश सैनी जी के व्यक्तित्व/कृतित्व पर अपनी राय व्यक्त की। इन मित्रों में सर्व श्री अरुण अर्णव खरे , ब्रजेश त्रिपाठी, अनूप शुक्ल, राजीव कुमार शुक्ल , टीका राम साहू, पंकज स्वामी , विजय तिवारी ‘किसलय’, हिमांशु राय , राजेन्द्र चन्द्र कान्त राय , पुतुल श्रीवास्तव , प्रदीप श्रीवास्तव , कुंदन लाल परिहार जी ने अपने वक्तव्य दिए। शांतिलाल जैन जी ने परसाई की प्रासंगिकता पर अपना वक्तव्य देते हुए रमेश सैनी के बारे में अपना वक्तव्य दिया।
जिस समय रमेश सैनी जी पर वक्तव्य का सिलसिला चल रहा था उसी समय हाल के एक तरफ के एसी हाल से अपना समर्थन वापस लेते हुए बार-बार ट्रिप हो रहे थे। शनिवार की शाम होने के बावजूद बिजली वाले लगे हुए थे और व्यवस्था ठीक करने की कोशिश कर रहे थे। एकाध बार बिजली पूरी तरह से चली गयी। लेकिन अन्तत: व्यवस्था बहाल हो गयी। इस बीच हाल में मौजूद पेडस्ट्रल ही मोर्चे पर लग गए और माहौल खुशनुमा टाइप हो गया।
बिजली व्यवस्था की देखभाल के चलते किस वक्ता ने क्या बोला यह ठीक से नोट नहीं कर पाया। अलबत्ता जिन लोगों के वक्तव्य मैं सुन पाया उनमें से पंकज स्वामी जी प्रमुख रहे। पंकज स्वामी जी ने रमेश सैनी जी के लेखकीय और वैयक्तिक पक्ष पर विस्तार से चर्चा की। पंकज स्वामी श्री रमेश सैनी और श्री श्रीराम ठाकुर की जोड़ी के कहानी मंच की चर्चा करते हुए सैनी जी को पीढ़ियों का सेतु बताया। उन्होंने रमेश जी को अच्छा संगठन कर्ता बताते हुए यह भी कहा कि रमेश जी लोगों को अपने साथ कार्यक्रमों में ले जाते थे।
राजीव कुमार शुक्ल जी ने कहा रमेश जी छोटी बातों में (बड़े) व्यंग्य तलाश लेते हैं।
राजेन्द्र चंद्रकांत राय जी ने रमेश जी को ‘एक्टिविस्ट भी’बताया।
राजेन्द्र चंद्रकांत राय जी ने हाल ही में (2023 में सेतु प्रकाशन से प्रकाशित) परसाई जी की प्रामाणिक जीवनी –‘काल के कपाल पर हस्ताक्षर’ लिखी है। इससे परसाई जी के जीवन के विविध पहलूओ का अंदाज लगता है।
पुतुल श्रीवास्तव जी ने रमेश सैनी जी को नर्मदा का पानी पिए हुए लिखने वाला व्यंग्यकार बताया।
प्रदीप मिश्र जी ने रमेश सैनी जी को 75 वर्ष का ज़िंदा(दिल) आदमी बताया।
विजय तिवारी ‘किसलय’ जी ने रमेश सैनी जी को उनकी हीरक जयन्ती पर शुभकामनाएँ देते हुए बताया कि रमेश जी सबसे पहले कवि , फिर कहानीकार इसके बाद व्यंग्यकार और फिर आलोचक हैं ।
सैनी जी के व्यंग्य संग्रह ‘बिन सेटिंग सब सून’ के विमोचन के मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री की कही बात का उल्लेख किया । भूतपूर्व मुख्यमंत्री जी ने कहा था –बिना सेटिंग के ऐसा संभव नहीं होता विमोचन में मंत्री मौजूद होता ।
इसके पहले विजय तिवारी जी ने अपनी पुस्तकें ‘किसलय की आद्याक्षरी कविताएं’, ‘किसलय मन में आया’ और ‘किसलय मन अनुराग’ भी मुझे भेंट की । साथ में गुलदस्ता भी । उस गुलदस्ते को मैंने उसी समय रमेश सैनी जी को भेंट कर दिया क्योंकि उस दिन उनका ख़ास दिन था ।
अनूप शुक्ल ने भी मौके का फायदा उठाकर कहा –‘रमेश सैनी जी पचहत्तर वर्ष के हो गए । अभी भी स्वस्थ हैं, सक्रिय हैं । दूर-दूर से मित्र उनके अमृत महोत्सव में आये हैं । यह अपने में ख़ास उपलब्धि है ।
लेखन में रमेश सैनी जी परसाई जी के घराने के व्यंग्यकार हैं जिनकी सहानुभूति सदैव वंचित, पीड़ित के साथ रहती है ।
रमेश सैनी जी के सम्मान के बाद राज शेखर चौबे जी की पुस्तक ‘संतरा गणतंत्र’ का विमोचन हुआ। मंच पर एक बार फिर सभी साथी सीने से किताब सटाये विमोचन करते नजर आये।
विमोचन के बाद महेंद्र कुमार ठाकुर जी ने राजशेखर चौबे को सम्मानित किया। रमेश तिवारी जी ने किताब पर विमर्श किया। राजशेखर चौबे जी ने अपनी किताब व्यंग्य के पुरोधा हरिशंकर परसाई जी को समर्पित की है।
पुस्तक के लोकार्पण के बाद ने राजशेखर जी ने अपना वक्तव्य दिया। अपने व्यंग्य लेखन को परसाई परंपरा से जोड़ते हुए बदलाव के मिशन को अपने लेखन का कारण बताया।
‘संतरा गणतंत्र’ के लोकार्पण के बाद ‘परसाई की प्रासंगिकता’ पर चर्चा शुरू हुई। संक्षेप में अपनी बात कहने के वायदे के साथ माइक पर आने के बाद लगभग सभी ने विस्तार से अपनी बात कही। पांच मिनट की बात को पंद्रह से बीस मिनट तक भी ले गए वक्ता साथी।
कार्यक्रम में देरी होती गयी। समय आगे बढ़ता गया। इस चक्कर में वक्ताओं का समय कम होता गया। अध्यक्ष विनोद साव जी ने समय की कमी को देखते हुए चाय-पानी मंच और श्रोताओं को उनके पास ही सर्व कराने का प्रस्ताव किया। लेकिन लोग अपने पाँव भी सीधे करना चाहते थे अत: उनको सूचित किया कि ‘यहाँ इस तरह का चलन नहीं है।’ विनोद साव जी ने उदारता पूर्वक इसे स्वीकार किया।
‘परसाई की प्रासंगिकता ‘ पर वक्तव्य की शुरुआत रमेश तिवारी जी ने की। इसके बाद शांतिलाल जैन जी , विनोद साव जी , कैलाश मांडलेकर जी और राम स्वरूप दीक्षित जी ने अपने वक्तव्य दिए दिए।
अध्यक्ष श्री विनोद साव जी की ट्रेन का समय हो चुका था अत: उनका वक्तव्य पहले कराया गया। कैलाश मांडलेकर जी के वक्तव्य तक श्रोता कुछ कम हो गए थे अत: उनका शुरुआती टेम्पो उनको ही कुछ कम लगा । ऐसा उन्होंने कहा। लेकिन जैसे-जैसे उनका वक्तव्य परवान चढा उनका टेम्पो आता गया और वक्तव्य शानदार होता गया। सभी वक्तव्य के वीडियो यहाँ संलग्न हैं। सुन सकते हैं। वैसे संपूर्ण कार्यक्रम का वीडियो अलग से यूट्यूब पर अपलोड किया जाएगा। उसे बाद में देखा जा सकता है।
कार्यक्रम के अंत में रमेश सैनी जी ने भी सभी साथियों का आभार व्यक्त किया। इसके बाद औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन अनूप शुक्ल ने किया।
कार्यक्रम के आयोजन में सभी साथियों का सहयोग रहा। सबसे उल्लेखनीय सहयोग रहा व्हीकल फैक्ट्री के चीफ जनरल मैनेजर श्री संजीव भोला का जिन्होंने वीएफजे की आफीसर्स मेस में कार्यक्रम की व्यवस्था करवाने की अनुमति दी । व्हीकिल फैक्ट्री के महाप्रबंधक कमलेश कुमार के हर मौके पर व्यवस्था संयोजन में सहायता की।
कार्यक्रम के बाद कुछ मित्र तो उसी दिन चले गए। कुछ अगले दिन गए। जितने समय भी लोग रहे, उनका समुचित उपयोग किया गया और मौज-मजे हुए।
लेखक साथियो ने मौके का फ़ायदा उठाते हुए अपनी –अपनी किताबें मित्रों को भेंट करते हुए प्रमाण स्वरूप फोटो भी खिंचा लिए। राजशेखर चौबे जी ने अपनी किताब ‘संतरा गणतंत्र’ हमको भी भेंट की। राम स्वरूप दीक्षित जी ने अपना व्यंग्य संग्रह ‘ टांग खींचने की कला’ मुझे भेंट की तो मैंने उनसे पूछा कि आपने किताब का नाम अधूरा क्यों रखा? पूरा नाम रखना चाहिए था –‘टांग खींचने की कला में माहिर - राम स्वरूप दीक्षित ।‘ दीक्षित जी ने अगले संस्करण में सही नाम लिखने की बात कही ।
मंच पर बोलते हुए महेंद्र कुमार ठाकुर जी बोलते-बोलते कुछ भूल से गए । पता चला कि बीती रात उनके लिये ‘दवाई ‘ की व्यवस्था नहीं हुई थी । जानकारी मिलने पर व्यवस्था का प्रयास किया गया तो पता चला उनके बगल के कमरे में ही इंतजाम था । सारी व्यवस्था के बावजूद उसका उपयोग वे न कर सके क्योंकि ठाकुर जी के कुछ हित चिन्तक उनसे मिलने आ गए थे ।
जो लोग कार्यक्रम में किसी कारण वश नहीं जा पाए वे कल्पना ही कर सकते हैं कि किया मिस किया उन्होंने । सबका विवरण देकर हम उनको और अफसोस नहीं कराना चाहते हैं ।
किस्से और भी हैं कहानियाँ और भी हैं । लेकिन वे फिर कभी । पूछे जाने पर अलग से बताया जाएगा ।

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Friday, June 14, 2024

दीपा से मुलाक़ात



दीपा से मुलाक़ात के लिए उसके घर की तरफ बढे हम । दो दिन पहले उसके घर का पता चला था । उससे मिलने गए तो पता चला सहेलियों से मिलाने गयी है । अगले दिन लौटेगी । उसके पति नीलू चौहान से मिले थे । अगले दिन आने की बात कहकर अपन लौट आये ।
अगले दिन शाम को जाने का प्लान था । लेकिन मित्रों के साथ घूमने चले गए । लौटना देर में होना था । फोन कर दिया दीपा को कि अगले दिन आयेंगे मिलने ।
घर के पास पहुचकर फोन किया । दीपा के पति नीलू चौहान नीचे आये । बताया कि दीपा अपने भाई के घर गयी है । आ जायेगी दोपहर तक । यह भी बताया –‘हमने कहा था कि अंकल जी आयेंगे मिलने । मत जाओ । लेकिन चली गयी ।‘
हम रुके कि वापस जायें सोच रहे थे कि नीलू ने मुझे ऊपर चलने का निमंत्रण दिया । हम गए । जमीन पर बिछे पतले गद्दे पर बैठकर बतियाने लगे । हाल-चाल पूछना हुआ । दो छुटके कमरे और एक बच्चा रसोई वाले घर में सामान बहुत कम । जरुरी से भी कम जरुरी टाइप । 2600 रुपये किराए के पड़ते हैं ।
दीपा को फोन किया तो उसने ग्यारह बजे आने को कहा । लेकिन फिर बोली अभी आते हैं । दस मिनट में ।
दस मिनट में मिनट में कुछ और मिनट लगाकर दीपा आई । अपने भाई के साथ । भाई को मैंने पहले कभी देखा नहीं था । उग्र, आक्रामक , चेहरे पर गुस्सा ,लहजे में नाराजगी का भाव । बताया कि बाप से पटती नहीं थी । उसकी दारु पीने की आदत से नाराजगी थी । पिता के मरने का कोई अफसोस नहीं था –‘मर गया अच्छा हुआ’ जैसी कुछ बात भी कही उसने ।
दीपा ने आने पर हाथ मिलाया । मुस्कराई । पास ही दीवार से टिककर बैठ गई । हमने कहा –‘तुम तो बहुत बड़ी हो गयी । शक्ल एकदम बदल गयी ।‘
उसने भी कुछ कहा । बात दीपा के मोबाइल ज्यादा उपयोग की भी होने लगी । पता चला रील्स बनाती है । सहेलियों से बात करती है । पति का मोबाइल अपने पास रखती है ।
हमने पूछा –‘रील कैसे बनाती हो? हमको तो आता नहीं बनाना ।‘
दीपा ने फ़ौरन मोबाइल का लाक खोलकर एक ठो रील बनाई । भौंहे इधर-उधर करते हुए । हमको दिखाई ।
हमने पूछा –‘ये रील्स किसलिए बनाती हो? ‘
उसने बताया कि रील्स से कमाई भी होती है । हमने बताया कि रील्स से कमाई के लिए लाखों फालोवर होने चाहिए । तुम्हारे कितने हैं? उसने दिखाया अपना खाता । उसके लगभग 1400 फालोवर थे ।
देश के लाखों युवा इसी भ्रम में रीलबाजी में जुटे हुए हैं कि इससे उनको कमाई होगी । अपना समय इसी में बरबाद करते हैं । कुछ बच्चों को तो मैं देखता हूँ कि वे देर रात तक रील्स बनाते हैं । न कोई कंटेंट , न कोई देखने लायक मसाला । सिर्फ इधर-उधर की अदाएं दिखाकर रील्स बनाते हुए काल्पनिक कमाई के ख्वाब में डूबकर रीलबाजी करते रहते हैं ।
कमाई से ज्यादा शायद उनको अपनी पहचान बनने, फालोवर होने का खुशनुमा एहसास प्रेरित करता होगा यह काम करने में।
दीपा को रील बनाते देख उसका भाई नाराज सा हो गया । बोला –‘ज्यादा रील-फील न बनाया करो। फोड़ देंगे मोबाइल-सोबाइल किसी दिन।‘
भाई की बात से बेपरवाह थी दीपा। चार साल बड़ा है दीपा से। भाई ऑटो चलाता है । महीने में बारह-पंद्रह हजार कमा लेता है । शादी नहीं हुई है अभी । कुछ देर में भाई चला गया ।
दीपा के पति को काम पर जाना था। दीपा के साथ कुछ फोटो लिए। दीपा ने विक्ट्री का निशान बनाया। हमने नीलू से भी बनाने को कहा । दीपा ने मना कर दिया । बोली –‘इनको नहीं आता बनाना।‘
इसके पहले चाय की बात हुई । दीपा के पति ने दीपा से कहा –‘दूध ले आओ । अंकल को चाय पिलाओ ।‘
दीपा ने कहा –‘तुम ले आओ दूध ।‘
उसके कहा –‘तुम ले आओ ।‘
हमने कहा –‘रहन देव । कोई न लाओ । हम चाय नहीं पीयेंगे ।‘
यह सुनकर दीपा उठी और दूध लेने चली गयी । लौटी थोड़ी देर में तो हाथ में एक छुटकी पेप्सी की बोतल और दूध का पैकेट था । हमको पेप्सी दी पीने के लिए ।
हमने मना किया –‘हम पेप्सी नहीं पीते । तुम पी लो ।‘
कुछ देर में चाय बनाकर लाई दीपा । हम लोग चाय पीते रहे । दीपा ने पेप्सी पी ।
थोड़ी देर में दीपा का पति नीलू चला गया काम पर । पास ही एक लोहा फैक्ट्री में काम करता है । सुबह नौ से शाम आठ तक की ड्यूटी के तीन सौ रोज के हिसाब से काम । प्राइवेट फर्मों में अमूमन यही रेट है दिहाड़ी का जबलपुर में ।
नीलू के जाने के बाद कुछ देर और बात होती रही दीपा से । उसने कहा –‘पापा के न रहने के कारण हमारी पढ़ाई नहीं हो पायी । वो होते तो हम पढ़ते रहते । उनके न रहने से पढ़ाई बंद हो गयी ।‘
शायद क्लास छह तक हुई है पढ़ाई दीपा की ।
हमने कहा –‘अब स्कूल में पढ़ना तो मुश्किल है । लेकिन अपने आप पढो । कौन सी किताब पढ़ना है बताओ । हम भेज देंगे ।‘
उसने कहा –‘हमको गणित पढना है ।‘
हम बोले –‘ठीक है पढ़ना । हम भेज देंगे किताब ।‘
उसके घर में पंखा नहीं है । गरमी में रहती है वो । उसके पति ने भी बताया था कि पंखे के लिए पैसे जमा कर रहे थे लेकिन इसका मोबाइल टूट गया तो वो बनवाया । उसमें खर्च हो गए पैसे ।
मोबाइल आज के समय की सबसे बड़ी ज़रूरत हो गया है।
हमने कहा –‘तुमको पंखा खरीद देंगे । साइकिल भी ले देंगे । क्या चाहिए पहले पंखा कि साइकिल ?’
वो बोली –‘पंखा ।‘ इसके बाद बोली –‘किताब दिला दीजिये पहले ।‘
हमने कहा- ‘ ठीक ।सब दिला देंगे।’
एक मित्र का फोन आया इस बीच । वे हमारा इन्तजार कर रहे थे । दीपा के साथ बाहर आये । उसके साथ सेल्फी ली । कुछ पैसे दिए । उसने मना किये लेकिन फिर हमने जबरदस्ती दिए तो ले लिए । बाद में बताया कि उससे अपने कुछ कपडे लाई है ।
बाद में अपने दोस्त Sagwal Pradeep के हाथ रात को पंखा भेजा । उसके यहाँ लग भी गया । अब दीपा के लिए किसी काम का इंतजाम करना है । जबलपुर के दोस्तों को बोला है । आशा है उसे भी कुछ काम मिल जाएगा ।
एक बच्ची की जिन्दगी से थोड़ा जुड़ने के बाद एहसास होता है कि गरीबी और अभाव का जीवन क्या होता है । पनपने के पहले ही तमाम ताकते उसको मुरझाने के लिए ताकतें लगाती हैं । कोई बच्चा अपनी पढ़ाई न पूरी कर पाए इससे बड़ी असफलता किसी समाज के लिए और क्या हो सकती है ?
दीपा की जिन्दगी में लफड़े और भी हैं । उसका आधार कार्ड खो गया है । नंबर याद नहीं । इसका उपाय अमित चतुर्वेदी Amit Chaturvedi ने बताया कि फिंगर प्रिंट से आधार नम्बर पता चल जाएगा । उसके बाद मोबाइल नम्बर बदल कर नया आधार कार्ड बन जाएगा । बताया है दीपा को । वह कह रही थी कि उसको पता है आधारताल में सर्विस सेंटर है । वहां जाकर बनवायेगी । लेकिन इस बीच उसका नाम भी बदल गया है । दीपा से शिवानी हो गया है नाम । सबका जोड़-तोड़ , मिलान कैसे होगा ।
लेकिन होगा । कुछ न कुछ तो होगा ही । ऐसे ही होता है कुछ न कुछ । ऐसे ही होता है सब कुछ ।

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Thursday, June 13, 2024

पुलिया पर बतकही



सुबह नीद खुलते ही चाय मंगाई। कड़क चाय। चाय पीकर टहलने निकले। साथी लोग अभी सो रहे थे शायद। कोई बाहर दिखा नहीं। हो सकता है वे भी चाय-वाय पीते हुए या इन्तजार करते हुए जगने की/उठने की कोशिश में लगे हों। जड़त्व का नियम जड़/चेतन सब पर सामान रूप से लागू होता है। जो वस्तु जिस अवस्था में है उसी में बनी रहती है जब तक उस पर बाहरी बल न आरोपित किया जाए।
मेस से बाहर निकलते हुए सड़क पर आते-जाते-टहलते लोग दिखे। कोई तसल्ली से , कोई हडबडी में। दोनों पुलिया आबाद थीं।
सर्वहारा पुलिया पर राजनीति का चैनल चालू थी। स्वत: स्फूर्त। किसी एंकर की जरूरत के बिना ही बहस/ बतकही जारी थी। बतकही काफी देर से चालू थी। हमने जब श्रोता के रूप अपनी मौजूदगी दर्ज की तो सुनाई पड़ा :
-नीतीश कुमार की तो लाटरी लग गयी।
-खुद मुख्यमंत्री ही रहेगा। केंद्र में अपना आदमी बैठायेगा। मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं छोड़ेगा। यहीं से चलाएगा अपना दांव।
-मोदी का मुंह इत्ता सा रह गया एक ने हथेली को चोंच की शक्ल में दिखाते हुए कहा।
-बहुत अकड़ता था। बहुत बोलता था। दूसरी पार्टी के लोगों को छोड़ दो, अपनी पार्टी तक के लोगों से कायदे से बात नहीं करता था। अब सब नचाएंगे। देखना खेल। मजा आयेगा।
बातचीत करते हुए नेताओं का नाम आत्मीयता से लेते हुए उनके नाम के आगे ‘वा/या’ लगाते हुए राजनीतिक कमेंट्री करते रहे पुलिया पर बैठे लोग।
पुलिया, नुक्कड़, चौराहे ,चौपाल किसी भी समाज के थर्मामीटर , बैरोमीटर होते हैं। समाज का ताप और दाब बताते हैं।
बतियाने वाले वीएफजे, जीआईऍफ़, जीसीऍफ़ और खमरिया से रिटायर्ड लोग थे। कामगार। बातचीत से अंदाज लग रहा था कि बिहार के मूल निवासी हैं। काम-धाम के लिए जबलपुर आये और फिर यहीं बस गए। रोजी-रोजगार के लिए इंसान कहाँ –कहाँ नहीं भटकता है। दुनिया में विस्थापन का सबसे बड़ा कारण नौकरी रहा है। स्थायित्व की तलाश में इंसान स्थाई रूप से भटकता रहता है।
हमने उन लोगों से छट्ठू सिंह और उनके साथियो के बारे में पूछा जो आठ साल पहले यहाँ टहलते हुए मिलते थे। किसी को उनके बारे में पता नहीं था। पुलिया और उसके आसापास के तमाम किरदारों के बारे में सोचते रहे कि शायद कहीं टहलते हुए दिख जाएँ। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। रोहिणी सिंह जो अक्सर यहाँ टहलती दिखती थीं वो भी शायद कहीं और चली गयीं हों। अब तो वो पीएचडी करके डाक्टर हो गयी हैं। मिलती तो चाय पीते, मिठाई खाते ।
सामने सर्वहारा पुलिया पर एक अकेला इंसान बैठा था। कुछ अनमना सा। नाम बताया ओमप्रकाश। वीएफजे रिटायर हुए थे। कुछ देर उनसे बतियाने के बाद आगे बढ़ गए।
टहलते हुए मेन रोड तक चले गए जो बाईं तरफ रांझी , खमरिया चली जाती है। दायीं तरफ जीसीऍफ़ होते हुए रेलवे स्टेशन। यहीं दायीं तरफ पंकज टी स्टाल पर बजाते रेडियो पर गाना सुनते हुए चाय पीते थे। एक के बाद दूसरा गाना सुनते हुए चाय पीते। अक्सर एक चाय खत्म करने के पहले ही दूसरी आर्डर कर देते थे। यहीं कई चरस पीने वाले मिलते थे और चरस वाली बीडी पीते हुए चरस की खासियत बताते थे। एक चरस प्रेमी ने धुँआ उड़ाते हुए बयान जारी किया था –‘चरस दिलखुश नशा है।‘
पंकज की चाय की दूकान बंद थी। बोर्ड भी नदारद। काउंटर पर चाय की केतली की जगह एक आदमी बैठा था। बगल की दूकान वाले ने बताया कि बहुत दिन हुए बंद हो गयी उनकी दूकान। अगल-बगल की दुकाने अलबत्ता आबाद थीं। सामने ही जलेबी छन रहीं थी। बगल में पोहा जलेबी का काउंटर भी खुला था। लेकिन अपन तो चाय पीने आये थे। पंकज टी स्टाल जो कि भूतपूर्व हो चुकी थी उसकी दूकान के बगल वाली दूकान से चाय पी और पलट लिए।
रास्ते में एक दुकान में रुके। सोचा दीपा के लिए चाकलेट ले लें। पहले कभी –कभी ले जाते थे। आठ साल बाद मुलाक़ात के जाते हुए यह बात याद आई। दूकान पर चाकलेट थी नहीं। साँची के पड़े थे , ले लिए और कुछ टाफी। आठ साल का समय बीत गया इस बीच। अब बड़ी हो गयी है लेकिन हमारी याद में वह बच्ची ही थी अभी तक।
शोभापुर क्रासिंग के आगे दायीं तरफ मुड़कर थोड़ी ही दूर पर रहती है दीपा। उसके घर की तरफ जाते हुए एक नल पर कुछ लोग पानी भरते हुए दिखाए दिए। एक महिला अपना प्लास्टिक का डब्बा नल के मुंह से सटाए हुए बैठी थी। पास से देखा तो नल का पानी डब्बे में भरता जा रहा था। हम आगे बढ़ गए। दीपा से मुलाक़ात की उत्सुकता हो रही थी हमको।

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Saturday, June 08, 2024

जबलपुर की सुबह



आज सुबह टहलने निकले। जबलपुर में आठ साल बाद। साइकिल नहीं थी आज। पैदल निकले।
पुलिया पर कोई बैठा नहीं दिखा। सड़क पर लोग टहलते दिखे। बच्चे साइकिल चलाते। एक आदमी साइकिल सड़क किनारे खड़ी करके कुछ कसरत कर रहा था। एक महिला पुलिया पर बैठी अनुलोम-विलोम करती दिखी।
स्कूल के मैदान में बच्चे पीटी कर रहे थे। अलग-अलग समूहों में अलग-अलग ड्रेस में। मास्टर लोग उनकी निगरानी कर रहे थे।
रॉबर्टसनलेक की तरफ गए। रास्ते में तीन महिलाएं खड़ी बतिया रही थीं। कुछ घर गृहस्थी की बातें। सास-बहू वाली सलाहें।
रास्ते ने एक मरे हुए मेढक को चीटियाँ टुकड़ों में घसीटती ले जाती दिखीं। मेढक का सर गायब था। बाकी हिस्से पर चींटियों की टीम लगी हुई थी। कुछ देर में मेढक का सफाया हो जाएगा।
झील में पानी किनारे पर कम था। पानी में हरियाली थी। घास-फूस जमी थी। दूर नावें चलती दिखी पानी में। सूरज की किरणों ने पानी को पालिश करके चमका सा दिया था। उजाले के फेशियल से झील का चेहरा चमक रहा था।
लौटते में देखा एक आदमी बनियाइन पहने बिना हेलमेट के स्कूटर दौड़ाए लिए जा रहा था। स्कूटर के पीछे 'पुलिस' लिखा देखकर हमने उसकी फोटो लेने का इरादा बदल दिया।कौन बवाल मोल ले।
सड़क पर खड़े कुछ आदमी कहीं घूमने जाने की योजना बना रहे थे। एक आदमी को कहते सुना -'अरे अमरनाथ और बद्रीनाथ अलग-अलग जगह हैं। उनके टिकट अलग लेने पड़ेंगे।'
मैदान जहां कभी लोग क्रिकेट खेलते और लड़ते-झगड़ते दीखते थे वहां बढ़िया आफ लाईन टेस्ट ट्रैक बना हुआ था। AVNL कंम्पनी के टेस्ट ट्रैक में गाड़ियों की चलने की टेस्टिंग होती होगी।
शोभापुर रेलवे क्रासिंग ओवरब्रिज बन गया है। ओवरब्रिज के बगल की सड़क से क्रासिंग तक गए। क्रासिंग एकदम बंद हो गयी है। बगल की सड़क से रेलवे लाइन के नीचे से रास्ता गया है। लेकिन पैदल चलने वाले लोग रेलवे की पटरी क्रॉस करके ही आते-जाते दिखे। सवारी वाले अलबत्ता नीचे से जा रहे थे।
ओवरब्रिज के नीचे उस जगह गए जहां दीपा अपने पापा के साथ रहती थी। पापा उसके रिक्शा चलाते थे। कुत्ता भी साथ में था। दीपा स्कूल जाती थी। हम उससे मिलने जाते थे। उसके बारे में लिखते थे।
दीपा के रहने की जगह खाली थी। बगल में सीमेंटेड पाइप लाइन के ऊपर गद्दा बिछाए आराम करते आदमी से दीपा के बारे में पता किया तो वहीं खड़े एक आदमी ने बताया कि दीपा के पिता की गैंग्रीन से मौत हो गयी। दीपा पास ही के एक घर में रहती है।
हम दीपा से मिलने की सोचते हुए लौटे। रास्ते में पहाड़ पर खाना बनाते, पानी लाते-ले जाते लोग दिखे। सब आसपास के गांवों-कस्बों से आये थे। मेहनत-मजदूरी करने। यहीं पहाड़ पर अस्थाई निवास बना लिया है। बरसात में घर चले जाते हैं।
एक आदमी जल्दी-जल्दी दाल-भात बनाकर थाली में डालकर खा रहा था। उसके पास तसल्ली से बीड़ी पीते आदमी ने बताया कि उसको दूर जाना है , रद्दी चौकी की तरफ मजदूरी के लिए। इसीलिए जल्दी पका-खाकर जा रहा है।
दूर बैठी एक महिला शीशे में मुंह देखकर अपनी चोटी करती हुई पास जलते चूल्हे में लकड़ी खिसकाती जा रही थी। बटलोई में कुछ बन रहा था। एक के चूल्हे में कुकर चढ़ा था।
गुंडम से आये आदमी ने बताया कि उनके यहां सिचाई का साधन नहीं। इसीलिए फसल ठीक नहीं होती। इसीलिए शहर आना पड़ता है कमाने।
सरकारों के प्रति कोई गुस्सा नहीं इस बात के लिए कि उनके यहां सिंचाई के लिये कोई इंतजाम नहीं। दुष्यंत कुमार का शेर याद आया :
न हो कमीज तो पांवों से पेट भर लेंगे,
बहुत मुनासिब हैं ये लोग इस सफर के लिए।
रास्ते में एक बच्चा अपनी साइकिल पर प्लास्टिक की बाल्टियों में पानी लादे ले जाते दिखा। उसकी छुटकी साइकिल के हैंडल पर टंगी पानी की बाल्टियां हिल रहीं थीं लेकिन बच्चा बहादुरी के साथ उनको थामे था। बच्चे की मां जिसने बाल्टियां हैंडल पर लादी थीं , वह संतोष के भाव से बच्चे को पानी ले जाते देख रही थी।
दीपा का पता पूछते हुए जिस घर पर पहुंचे वह एक स्थानीय कांग्रेसी पदाधिकारी का है। नाले के किनारे बना घर। खुला नाला जिसमें वर्षों की गंदगी जमा थी।
घर के बाहर कुत्ते से सावधान का बोर्ड लगा था। हमने सावधान होकर गेट खड़खड़ाया। कुत्ते ने भौंकते हुए हमारी सावधानी का इम्तहान लिया और कुछ देर तक भौंककर चुप हो गया।
सीहोरे जी से दीपा के बारे में पूछा तो विवरण जानकर उन्होने बताया कि दीपा उनके यहां अपने पति के साथ रहती है। दीपा की शादी की बात सुनकर हमको थोड़ा ताज्जुब हुआ। मेरी नजर में वह अभी बच्ची ही थी। आठ साल पहले स्कूल जाती थी। उसकी शादी हो गयी।
दीपा के पति से मुलाकात हुई। पता चला कि दीपा शहर गयी है अपनी सहेलियों से मिलने। कल आएगी। दीपा के नम्बर पर बात करने की कोशिश की लेकिन हर बार कट गया। शायद ऐसी जगह होगी जहां नेटवर्क न मिलता हो।
दीपा से कल मुलाकात की बात तय करके अपन लौट लिए।

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Friday, June 07, 2024

एक बार फिर पुलिया पर



एक बार फिर जबलपुर आना हुआ। पूरे आठ साल एक महीना और सात दिन बाद । 30 अप्रैल, 2016 को जबलपुर से कानपुर जाते समय तुरन्त लौटकर आने का प्लान था। प्लान बदलता गया और आठ साल निकल गए। इस बीच कानपुर, शाहजहांपुर होते हुए वापस कानपुर आकर रिटायर भी हो गए।
जबलपुर आने की खबर जानकर दोस्त लोगों ने स्टेशन आने के लिये कहा। गाड़ी सबेरे साढ़े पांच बजे पहुंचती है। हमने सबको मना कर दिया। लेकिन प्रदीप Sagwal Pradeep जबरियन आ गए। स्टेशन से उठाकर मेस तक लाये।
रिटायर इंसान की बात लोग मानते कहाँ हैं।
प्रदीप-आस्था के साथ हम लोग लंबे समय तक मेस में रहे। अपन ने रहने के लिए वही कमरा खुलवाया जिसमें चार साल रहे थे। कमरा नम्बर 14 । बताया गया कमरे का एसी खराब है। हमने कहा कोई बात नहीं। बन जायेगा। रहेंगे इसी कमरे में। चार साल रहे हैं इस कमरे में। इसी में रहेंगे।
कमरा खुल गया। सामान जमा लिया। दरवज्जा खोलकर बैठे हैं। सूरज भाई अपनी किरण-उजाला के कुनबे के साथ हमको देखकर मुस्करा रहे थे।
अजय कुमार राय Ajai Kumar Rai बनारस के लिए निकलने वाले थे। बहुत छुटकी मुलाकात हुई। आठ साल के भूले-बिसरे गीत आठ-दस मिनट में गा लिए गए।
अजय राय और प्रदीप के साथ शुरआती चाय पानी के बाद उनको विदा करके पुलिया की तरफ गए।
पुलिया के पहले एक आदमी अपना स्कूटर खोले स्टार्ट करने में जुटा था। किक पर किक मारे जा रहा था लेकिन स्कूटर स्टार्ट ही नहीं हो रहा था। स्कूटर वाला झुककर उससे विनती सरीखी करता हुआ किक मारे जा रहा था।
पुलिया पर एक आदमी बैठा था। हाथ में पट्टी बंधी हुई थी। यही बातचीत की शुरुआत का बहाना बनी। हमने पूछा -'चोट कैसे लगी?'
कूलर ठीक कर रहे थे। सीट लग गयी।
नाम,काम-धाम पूछने पर पता चला कि वीएफजे से रिटायर हुए हैं 2017 में। नाम इतवारी लाल। इतवार को पैदा होने के कारण नाम पड़ा इतवारी लाल। पिता खरिया में काम करते थे। इतवारी लाल एम पी वी में स्टोर का काम देखते थे। सामान रखने, इशू करने का।
सामने वाली पुलिया पर कोई था नहीं। सुबह लोग बैठते होंगे। कल देखेंगे।
लौटते हुए देखा स्कूटर वाला चला गया था। स्कूटर स्टार्ट हो गया होगा।
अपन भी स्टार्ट हो गये जबलपुर में।

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