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ब्लागिंग में भी रिश्ते बन जाते हैं
By फ़ुरसतिया on March 29, 2007
कानपुर के गीतकार प्रमोद तिवारी की एक बहुत प्यारी पारिवारिक कविता है-
कुछ ऐसा ही पिछले दिनों अपने हिंदी ब्लाग जगत में हुआ। ब्लागिंग के मैदान में अपने कुंवारेपन के किस्से बड़ी शान से गाते रहने वाले आशीष के कुंवारेपन की गिल्लियां उड़ गयीं और वे मुस्कराते हुये उत्फुल्ल कदमों से पवेलियन (शादी के मंडप) की तरफ़ से चले जा रहे हैं।
गेंद रविरतलामी की थी और आशीष को कोई मौका नहीं मिला के वे अपने स्टम्प उड़ने से बचा पाते। वे अंपायर की तरफ़ देखे बिना पवेलियन की तरफ़ चल दिये। अपने कुंवारे पन की पारी विकेट से हटते ही उन्होंने घोषित कर दी। कुंवारेपन के स्वघोषित अध्यक्ष पद से भी उन्होंने चहकते हुये इस्तीफ़ा दे दिया।
रवि रतलामी अपनी इस उपलब्धि को अपनी चिट्ठाकारी के जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि मानते हैं। उनकी चिट्ठाकारी सफल हुई।
पहले कई बार दोहराया सत्य एक बार फिर से दोहरा दूं। रवि रतलामी भले देबाशीष के कहने से ब्लागिंग की दुनिया में आये हों लेकिन रविरतलामी इस बात के दोषी हैं कि उन्होंने अपने लेख ‘ब्लाग क्या है’ से तमाम लोगों को ब्लाग लिखने के लिये उकसाया।
मैं भी उन पीड़ितों में से एक हूं जो रविरतलामी का यह लेख पढ़कर ही इस ब्लाग जगत में आया। इसलिये अगर किसी को मुझसे कोई शिकायत है तो वह रवि रतलामी से हिसाब बराबर करे।
हम तो खैर तब आये जब बाल-बच्चेदार थे। लेकिन और तमाम लोग अपने कुंवारेपन का झंडा फहराते हुये रवि रतलामी के लेख से बहककर आये। उन्हीं कुंवारों में से एक आशीष भी थे। आशीष अपने कुंवारेपन की शौर्य गाथायें यदा-कदा क्या कहें सदा-सर्वदा सुनाते रहते थे। इस कन्यापुराण में उन्होंने अब तक के सारे किस्से सुनाये थे। कन्याऒं को परेशान करने के सारे किस्से सुना डाले। किसी की चोटी खींची तो किसी को कन्टाप मारा। जिस बालिका ने इनसे लटपटाने की कोशिश की उसकी शादी किसी से करा दी। शादी करके किसी के बच्चों के पिता बनने से ज्यादा मेहनत इन्होंने लोगों के ‘भगवत पिता’( गाड फादर) बनने में की। किसी भी कन्या द्वारा इनको अपने दिल का राजा बनाने की साजिश सूंघते ही आशीष ने झट से उसका गाडफादर, बोले तो फ्रेंड फिलासफर एंड गाइड, बनकर साजिश विफल कर दी। गर्ज यह कि सारे काम कन्याओं के दुखी करने के लिये किये।
दुखी हम भी कम नहीं हुये। हम सुलगते रहते थे कि बताओ यह कैसा विधि का विधान है कि हमारे ऊपर आजतक कोई कन्या (अब महिला भी) फिदा नहीं हुयी। (वह भी तब जबकि हमारी कुंडली में बकौल ज्योतिषाचार्या मानसी, ‘फ्लर्ट-योग’ है)| जबकि ये देखो इस लड़के पर जो देखो वहीं कन्या फिदा है।
बाद में हमने समझ लिया कि आशीष एक ऐसा बस-स्टाप हैं जहां लड़कियां शादी की बस पकड़ने के लिये इंतजार करते हुये कुछ देर रुकती रहीं।:)
बहरहाल, इनका कुंवारेपन का झंडा, बहुत दिन तक बदस्तूर फहराता रहा।
लेकिन अपनी हरकतों से ये रवि रतलामी की नजरों में चढ़ चुके थे। वे आशीष के व्यक्तित्व, व्यवहार, काबिलियत पर फिदा होते गये। रवि रतलामी ने खुद प्रेम विवाह किया। अभी खुशी को दिये इंटरव्यू में उन्होंने स्वीकार किया उनका प्यार शादी के बाद ॠणात्मक दिशा में लगातार बढ़ रहा है। मतलब उन्होंने शादी के बाद अपने प्यार में कोई वैल्यू एडीशन नहीं किया। जो एक बार कर लिया सो कर लिया। प्यार का प्लांट लगा लिया लेकिन आफ्टर सेल्स सर्विस के नाम पर कुच्छ नहीं किया! वह भी तब जबकि भाभीजी उनके सारे चिट्ठे पढ़ती हैं। क्या शादी के बाद आदमी प्यार करने लायक नहीं रहता!
अब जब रविरतलामी ने आशीष को देख परख लिया तो सोचा ये लड़का प्रेम विवाह तो कर नहीं पायेगा। इसका विवाह ही क्यों न करा दिया जाये।
जो लोग आशीष से परिचित हैं वे जानते होंगे कि उनके पिताजी का असमय निधन हो गया। बड़े भाई होने के नाते घर की तमाम जिम्मेदारियां उन्होंने निबाही। पढ़ाई के बाद नौकरी फिर अपनी बहनों के विवाह। ये ऐसे जिम्मेदारी के काम हैं जिनको करते हुये आदमी अनचाहे बुजुर्गियत के पाले में चला जाता है। आशीष के लेखन में बचपना, शरारत, खिलंदड़ापन है। लेकिन पारिवारिक परिस्थितियों ने उनको गम्भीर दायित्व निभाने में लगा दिया।
पिछले साल अपनी बहन की शादी का निमंत्रण आशीष ने सबको भेजा था। हमको, रविरतलामी और तमाम ब्लागर साथियों को जिनसे उनकी चिट्ठी-पत्री थी।
आशीष के कुंवारेपन के खिलंदड़े किस्से रवि रतलामी पढ़ते रहते थे। आशीष की बहन की शादी का निंमंत्रण पत्र पाने पर रवि रतलामी ने आशीष से कहा-अब अपनी शादी कब कर रहे हो। और कुछ योजना है तो बताओ, रिश्ते हम बताते हैं। अपनी बात को पुखता करने के लिये एक कहावत भी नत्थी कर दी – मैरिजेस आर मेड इन हैवन एंड सफर्ड आन अर्थ - शादियां स्वर्ग में तय होती हैं लेकिन उनको झेलना धरती पर पड़ता है।
रतलामी जी ने आगे यह चुनौती भी उछाल दी- देखते हैं कि तुम कहाँ किधर सफर करते हो!
बहरहाल, बात आगे बढ़ी। आशीष की शादी रवि रतलामी की भान्जी निवेदिता से तय हो गयी। इसके किस्से आशीष ने अपने अंदाज में लिखे हैं।उसमें कुछ लोगों ने कयास लगाये थे कि शायद हमारी भांजी से आशीष की शादी तय हुयी है।
रविरतलामी के पिछले जन्मदिन पर आशीष ने उनको शुभकामनायें देते हुये लिखा था रवि भैया को जन्मदिन की शुभकामनायें। इसबार अपने रवि मामा को बधाई देंगे। कम मेहनत करके काम हो जायेगा। एक बार ‘मा’ लिखकर ‘कापी-पेस्ट’ से ‘मामा’ लिखकर अपने ‘रवि मामा’ को शुभकामनायें दे देंगे। आलसी को इससे बड़ा सुख कहां।
चिट्ठेकारी से शुरू हुये संबंध रिश्तेदारी में बदल गये। रविरतलामी ने पहले आशीष को चिट्ठा लिखना सिखाया। आशीष से रविरतलामी और हम लोगों की भी जानपहचान चिट्ठों के माध्यम से ही हुयी। यह जान-पहचान अब रिश्तेदारी में बदल गयी। एक चिट्ठे के सफल होने का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है।
रविरतलामी बहुत दिनों से लिख रहे हैं और लगभग हर विधा में लिखते हैं। लेख, कविता, व्यंग्य, कहानी अटरम-सटरम सब कुछ। यह संयोग रहा कि आजतक ब्लागिंग से संबंधित कोई इनाम उनको नहीं मिला। इंडीब्लागीस में वोटों के मामले में सबसे कम वोट पाकर हमेशा नींव की ईंट बने रहे। भाषा इंडिया क इनाम घोषित हुआ लेकिन मिला अभी तक नहीं। शायद यह इसलिये कि एक बड़ा इनाम उनका इंतजार कर रहा था- दामाद के रूप में झालिया नरेश के रूप में उनको यह इनाम मिला। रवि रतलामी के लेख ब्लाग क्या है का भुगतान उन्हें इस रूप में मिला। रवि रतलामी की चिट्ठाकारी सफ़ल हुयी।
प्रथम ब्लागर भेंटवार्ता, प्रथम ब्लागजीन, प्रथम इंकब्लागिंग की तर्ज पर यह पहली हिंदी ब्लागर शादी है।
आशीष हमसे लड़की पसंद करने के किस्से पूछते रहते थे। हमने यही कहा था- अपने दिमाग का न्यूनतम इस्तेमाल करो। आशीष ने विस्तार से जानकारी मांगी। हम जानकारी देते इससे पहले ही एक दिन उन्होंने रवि रतलामी का फोन नंबर मांगा। हमने देबाशीष से लेकर नंबर भेजा। अगले दिन जब हमने फोन करके पूछा नंबर मिल गया था न! तो बालक साक्षात्कार के दौर से गुजर रहा था। हमने कहा- चढ़ जा बेटा सूली पर भली करेंगे राम!
इस बीच हमने रविरतलामी से भी इस बारे में बात की -पहली बार!रवि रतलामी ने आशीष की तारीफ़ के साथ -साथ अपनी भांजी के बारे में विस्तार से बताया।
निवेदिता इस वर्ष एम.एस.सी. गणित की परीक्षायें दे रही है। रवि रतलामी का विचार था कि दोनों के स्वभाव को देखते हुये अगर यह शादी तय होती है तो दोनों के लिये अच्छा रहेगा। इसी बहाने हमारी रवि रतलामी से पहली बार बातचीत हुयी।
फिर आशीष ने बताया कि उन्होंने तो अपनी सहमति भेज दी है। इसके बाद का निर्णय निवेदिता के घर वालों को लेना था। कुंडली में कुछ ग्रहों का चक्कर था। लेकिन उनके घर वालों ने प्रगतिशीलता का परिचय देते हुये अपनी सहमति दे दी।
आशीष के मोबाइल का बिल और कानों का काम तेजी से बढ़ता जा रहा है। मुंह अभी से बंद होने के अभ्यास में जुट गया है। प्रैक्टिस मेक्स के मैन परफ़ेक्ट! हमारे चेन्नई के सूत्र बताते हैं कि आशीष के मोबाइल की घंटी बजते ही उनके दोस्त हल्ला मचाने लगाने लगते हैं! उन्हे उनका हर फोनकाल एक ही जगह से लगता है!
अब शादी शायद दिसम्बर में होगी। हम अपने आपको उसके तैयार कर रहे हैं। इस बात कोई मतलब नहीं है कि हम किसकी ओर से शादी में शामिल होंगे। आशीष हमको भैया कहते हैं इसलिये हमारा जाना बनता है, रवि रतलामी की भांजी हमारी भांजी ठहरी इसलिये भी शामिल होने का योग है इसके अलावा एक ब्लागर होने के नाते ब्लागर परिवार में होने वाली शादी में तो हम तो जबरिया जइबे यार हमार कोई का करिहै!:) मनोहर श्याम जोशी के ये मे लो, वो मे ले , वो हू मे ले के अनुसार हमारा इधर से जाने का, उधर से जाने का और उधर से भी जाने का सुयोग और कर्तव्य बनता है। हम कैसे उसकी उपेक्षा कर सकते हैं।
शादी के बाद जैसा कि शायद रचना बजाज जी ने सवाल किया था- आशीष निवेदिता को c++ में प्रोग्रामिंग करके दिखायें/सिखायें। उधर निवेदिता एक बार फिर पोहा बनाकर हम लोगों को खिलायें और आशीष को सिखायें भी ताकि आगे कोई तकलीफ़ न हो।
यह वाकई खुशी की बात है कि ब्लाग एक माध्यम के रूप में इस मांगलिक अवसर की स्थितियां बनाने का निमित्त बना। प्रमोद तिवारी की कविता की तर्ज पर आशीष-निवेदिता की आगे पीढ़ी जब कभी ब्लाग पर इन किस्सों को पढे़ तो शायद आशीष भी कहें-
आज की मेरी पसन्द में मैं अपनी शादी के अवसर पर सुना गया स्वागत गीत खासतौर से पोस्ट कर रहा हूं। ९ फरवरी, १९८९ को पहली बार सुना यह गीत सैकड़ों बार सुन चुका हूं। कविवर कंटकजी का यह गीत आज भी जब पोस्ट करने के बहाने दो-तीन बार सुन लिया।
संबंधित कड़ियां:
१.आशीष का कच्चा चिट्ठा
२. रवि रतलामी का साक्षात्कार
३. प्रमोद तिवारी की कविता
राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं
ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं
आओ तुमको एक गीत सुनाते हैं
अपने संग थोड़ी सैर कराते हैं।
कुछ ऐसा ही पिछले दिनों अपने हिंदी ब्लाग जगत में हुआ। ब्लागिंग के मैदान में अपने कुंवारेपन के किस्से बड़ी शान से गाते रहने वाले आशीष के कुंवारेपन की गिल्लियां उड़ गयीं और वे मुस्कराते हुये उत्फुल्ल कदमों से पवेलियन (शादी के मंडप) की तरफ़ से चले जा रहे हैं।
गेंद रविरतलामी की थी और आशीष को कोई मौका नहीं मिला के वे अपने स्टम्प उड़ने से बचा पाते। वे अंपायर की तरफ़ देखे बिना पवेलियन की तरफ़ चल दिये। अपने कुंवारे पन की पारी विकेट से हटते ही उन्होंने घोषित कर दी। कुंवारेपन के स्वघोषित अध्यक्ष पद से भी उन्होंने चहकते हुये इस्तीफ़ा दे दिया।
रवि रतलामी अपनी इस उपलब्धि को अपनी चिट्ठाकारी के जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि मानते हैं। उनकी चिट्ठाकारी सफल हुई।
पहले कई बार दोहराया सत्य एक बार फिर से दोहरा दूं। रवि रतलामी भले देबाशीष के कहने से ब्लागिंग की दुनिया में आये हों लेकिन रविरतलामी इस बात के दोषी हैं कि उन्होंने अपने लेख ‘ब्लाग क्या है’ से तमाम लोगों को ब्लाग लिखने के लिये उकसाया।
मैं भी उन पीड़ितों में से एक हूं जो रविरतलामी का यह लेख पढ़कर ही इस ब्लाग जगत में आया। इसलिये अगर किसी को मुझसे कोई शिकायत है तो वह रवि रतलामी से हिसाब बराबर करे।
हम तो खैर तब आये जब बाल-बच्चेदार थे। लेकिन और तमाम लोग अपने कुंवारेपन का झंडा फहराते हुये रवि रतलामी के लेख से बहककर आये। उन्हीं कुंवारों में से एक आशीष भी थे। आशीष अपने कुंवारेपन की शौर्य गाथायें यदा-कदा क्या कहें सदा-सर्वदा सुनाते रहते थे। इस कन्यापुराण में उन्होंने अब तक के सारे किस्से सुनाये थे। कन्याऒं को परेशान करने के सारे किस्से सुना डाले। किसी की चोटी खींची तो किसी को कन्टाप मारा। जिस बालिका ने इनसे लटपटाने की कोशिश की उसकी शादी किसी से करा दी। शादी करके किसी के बच्चों के पिता बनने से ज्यादा मेहनत इन्होंने लोगों के ‘भगवत पिता’( गाड फादर) बनने में की। किसी भी कन्या द्वारा इनको अपने दिल का राजा बनाने की साजिश सूंघते ही आशीष ने झट से उसका गाडफादर, बोले तो फ्रेंड फिलासफर एंड गाइड, बनकर साजिश विफल कर दी। गर्ज यह कि सारे काम कन्याओं के दुखी करने के लिये किये।
दुखी हम भी कम नहीं हुये। हम सुलगते रहते थे कि बताओ यह कैसा विधि का विधान है कि हमारे ऊपर आजतक कोई कन्या (अब महिला भी) फिदा नहीं हुयी। (वह भी तब जबकि हमारी कुंडली में बकौल ज्योतिषाचार्या मानसी, ‘फ्लर्ट-योग’ है)| जबकि ये देखो इस लड़के पर जो देखो वहीं कन्या फिदा है।
बाद में हमने समझ लिया कि आशीष एक ऐसा बस-स्टाप हैं जहां लड़कियां शादी की बस पकड़ने के लिये इंतजार करते हुये कुछ देर रुकती रहीं।:)
बहरहाल, इनका कुंवारेपन का झंडा, बहुत दिन तक बदस्तूर फहराता रहा।
लेकिन अपनी हरकतों से ये रवि रतलामी की नजरों में चढ़ चुके थे। वे आशीष के व्यक्तित्व, व्यवहार, काबिलियत पर फिदा होते गये। रवि रतलामी ने खुद प्रेम विवाह किया। अभी खुशी को दिये इंटरव्यू में उन्होंने स्वीकार किया उनका प्यार शादी के बाद ॠणात्मक दिशा में लगातार बढ़ रहा है। मतलब उन्होंने शादी के बाद अपने प्यार में कोई वैल्यू एडीशन नहीं किया। जो एक बार कर लिया सो कर लिया। प्यार का प्लांट लगा लिया लेकिन आफ्टर सेल्स सर्विस के नाम पर कुच्छ नहीं किया! वह भी तब जबकि भाभीजी उनके सारे चिट्ठे पढ़ती हैं। क्या शादी के बाद आदमी प्यार करने लायक नहीं रहता!
अब जब रविरतलामी ने आशीष को देख परख लिया तो सोचा ये लड़का प्रेम विवाह तो कर नहीं पायेगा। इसका विवाह ही क्यों न करा दिया जाये।
जो लोग आशीष से परिचित हैं वे जानते होंगे कि उनके पिताजी का असमय निधन हो गया। बड़े भाई होने के नाते घर की तमाम जिम्मेदारियां उन्होंने निबाही। पढ़ाई के बाद नौकरी फिर अपनी बहनों के विवाह। ये ऐसे जिम्मेदारी के काम हैं जिनको करते हुये आदमी अनचाहे बुजुर्गियत के पाले में चला जाता है। आशीष के लेखन में बचपना, शरारत, खिलंदड़ापन है। लेकिन पारिवारिक परिस्थितियों ने उनको गम्भीर दायित्व निभाने में लगा दिया।
पिछले साल अपनी बहन की शादी का निमंत्रण आशीष ने सबको भेजा था। हमको, रविरतलामी और तमाम ब्लागर साथियों को जिनसे उनकी चिट्ठी-पत्री थी।
आशीष के कुंवारेपन के खिलंदड़े किस्से रवि रतलामी पढ़ते रहते थे। आशीष की बहन की शादी का निंमंत्रण पत्र पाने पर रवि रतलामी ने आशीष से कहा-अब अपनी शादी कब कर रहे हो। और कुछ योजना है तो बताओ, रिश्ते हम बताते हैं। अपनी बात को पुखता करने के लिये एक कहावत भी नत्थी कर दी – मैरिजेस आर मेड इन हैवन एंड सफर्ड आन अर्थ - शादियां स्वर्ग में तय होती हैं लेकिन उनको झेलना धरती पर पड़ता है।
रतलामी जी ने आगे यह चुनौती भी उछाल दी- देखते हैं कि तुम कहाँ किधर सफर करते हो!
बहरहाल, बात आगे बढ़ी। आशीष की शादी रवि रतलामी की भान्जी निवेदिता से तय हो गयी। इसके किस्से आशीष ने अपने अंदाज में लिखे हैं।उसमें कुछ लोगों ने कयास लगाये थे कि शायद हमारी भांजी से आशीष की शादी तय हुयी है।
रविरतलामी के पिछले जन्मदिन पर आशीष ने उनको शुभकामनायें देते हुये लिखा था रवि भैया को जन्मदिन की शुभकामनायें। इसबार अपने रवि मामा को बधाई देंगे। कम मेहनत करके काम हो जायेगा। एक बार ‘मा’ लिखकर ‘कापी-पेस्ट’ से ‘मामा’ लिखकर अपने ‘रवि मामा’ को शुभकामनायें दे देंगे। आलसी को इससे बड़ा सुख कहां।
चिट्ठेकारी से शुरू हुये संबंध रिश्तेदारी में बदल गये। रविरतलामी ने पहले आशीष को चिट्ठा लिखना सिखाया। आशीष से रविरतलामी और हम लोगों की भी जानपहचान चिट्ठों के माध्यम से ही हुयी। यह जान-पहचान अब रिश्तेदारी में बदल गयी। एक चिट्ठे के सफल होने का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है।
रविरतलामी बहुत दिनों से लिख रहे हैं और लगभग हर विधा में लिखते हैं। लेख, कविता, व्यंग्य, कहानी अटरम-सटरम सब कुछ। यह संयोग रहा कि आजतक ब्लागिंग से संबंधित कोई इनाम उनको नहीं मिला। इंडीब्लागीस में वोटों के मामले में सबसे कम वोट पाकर हमेशा नींव की ईंट बने रहे। भाषा इंडिया क इनाम घोषित हुआ लेकिन मिला अभी तक नहीं। शायद यह इसलिये कि एक बड़ा इनाम उनका इंतजार कर रहा था- दामाद के रूप में झालिया नरेश के रूप में उनको यह इनाम मिला। रवि रतलामी के लेख ब्लाग क्या है का भुगतान उन्हें इस रूप में मिला। रवि रतलामी की चिट्ठाकारी सफ़ल हुयी।
प्रथम ब्लागर भेंटवार्ता, प्रथम ब्लागजीन, प्रथम इंकब्लागिंग की तर्ज पर यह पहली हिंदी ब्लागर शादी है।
आशीष हमसे लड़की पसंद करने के किस्से पूछते रहते थे। हमने यही कहा था- अपने दिमाग का न्यूनतम इस्तेमाल करो। आशीष ने विस्तार से जानकारी मांगी। हम जानकारी देते इससे पहले ही एक दिन उन्होंने रवि रतलामी का फोन नंबर मांगा। हमने देबाशीष से लेकर नंबर भेजा। अगले दिन जब हमने फोन करके पूछा नंबर मिल गया था न! तो बालक साक्षात्कार के दौर से गुजर रहा था। हमने कहा- चढ़ जा बेटा सूली पर भली करेंगे राम!
इस बीच हमने रविरतलामी से भी इस बारे में बात की -पहली बार!रवि रतलामी ने आशीष की तारीफ़ के साथ -साथ अपनी भांजी के बारे में विस्तार से बताया।
निवेदिता इस वर्ष एम.एस.सी. गणित की परीक्षायें दे रही है। रवि रतलामी का विचार था कि दोनों के स्वभाव को देखते हुये अगर यह शादी तय होती है तो दोनों के लिये अच्छा रहेगा। इसी बहाने हमारी रवि रतलामी से पहली बार बातचीत हुयी।
फिर आशीष ने बताया कि उन्होंने तो अपनी सहमति भेज दी है। इसके बाद का निर्णय निवेदिता के घर वालों को लेना था। कुंडली में कुछ ग्रहों का चक्कर था। लेकिन उनके घर वालों ने प्रगतिशीलता का परिचय देते हुये अपनी सहमति दे दी।
आशीष के मोबाइल का बिल और कानों का काम तेजी से बढ़ता जा रहा है। मुंह अभी से बंद होने के अभ्यास में जुट गया है। प्रैक्टिस मेक्स के मैन परफ़ेक्ट! हमारे चेन्नई के सूत्र बताते हैं कि आशीष के मोबाइल की घंटी बजते ही उनके दोस्त हल्ला मचाने लगाने लगते हैं! उन्हे उनका हर फोनकाल एक ही जगह से लगता है!
अब शादी शायद दिसम्बर में होगी। हम अपने आपको उसके तैयार कर रहे हैं। इस बात कोई मतलब नहीं है कि हम किसकी ओर से शादी में शामिल होंगे। आशीष हमको भैया कहते हैं इसलिये हमारा जाना बनता है, रवि रतलामी की भांजी हमारी भांजी ठहरी इसलिये भी शामिल होने का योग है इसके अलावा एक ब्लागर होने के नाते ब्लागर परिवार में होने वाली शादी में तो हम तो जबरिया जइबे यार हमार कोई का करिहै!:) मनोहर श्याम जोशी के ये मे लो, वो मे ले , वो हू मे ले के अनुसार हमारा इधर से जाने का, उधर से जाने का और उधर से भी जाने का सुयोग और कर्तव्य बनता है। हम कैसे उसकी उपेक्षा कर सकते हैं।
शादी के बाद जैसा कि शायद रचना बजाज जी ने सवाल किया था- आशीष निवेदिता को c++ में प्रोग्रामिंग करके दिखायें/सिखायें। उधर निवेदिता एक बार फिर पोहा बनाकर हम लोगों को खिलायें और आशीष को सिखायें भी ताकि आगे कोई तकलीफ़ न हो।
यह वाकई खुशी की बात है कि ब्लाग एक माध्यम के रूप में इस मांगलिक अवसर की स्थितियां बनाने का निमित्त बना। प्रमोद तिवारी की कविता की तर्ज पर आशीष-निवेदिता की आगे पीढ़ी जब कभी ब्लाग पर इन किस्सों को पढे़ तो शायद आशीष भी कहें-
हम तो फिलहाल यही कहते हैं जैसे इनके दिन बहुरे वैसे सबके बहुरैं।
अब पत्नी, बच्चे साथी सब मिलकर
मुझको ही मेरा ब्लाग सुनाते हैं,
राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं
ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं।
आज की मेरी पसन्द में मैं अपनी शादी के अवसर पर सुना गया स्वागत गीत खासतौर से पोस्ट कर रहा हूं। ९ फरवरी, १९८९ को पहली बार सुना यह गीत सैकड़ों बार सुन चुका हूं। कविवर कंटकजी का यह गीत आज भी जब पोस्ट करने के बहाने दो-तीन बार सुन लिया।
संबंधित कड़ियां:
१.आशीष का कच्चा चिट्ठा
२. रवि रतलामी का साक्षात्कार
३. प्रमोद तिवारी की कविता
मेरी पसंद
जीवन पथ पर मिले इस तरह जैसे यह संसार मिला,‘कंटक’ लखीमपुर खीरी।
नयन-नयन से मिले परस्पर दो हृदयों का प्यार मिला।
बरसों बाट जोहते बीते था नयनों को कब विश्राम ,
सहसा मिले खिला उर उपवन सुरभित वंदनवार ललाम।
वर ‘आशीष’ को ‘निवेदिता’ सदृश सुरभित झंकृत उर तार मिला।
जीवन पथ पर मिले इस तरह जैसे यह संसार मिला।
देते आशीर्वाद सुहृदजन, घर बाहर के सज्जन वृंद,
जब तक रवि, शशि रहें जगत में तब तक रहें अटल संबंध
आज सुखद बेला में प्रतिपल मित्र जनोंका प्यार मिला
जीवन पथ पर मिले इस तरह जैसे यह संसार मिला।
युग-युग अमर रहे ये जोड़ी इसको पग-पग प्यार मिले,
फूले-फले जवानी प्रतिपल नवजीवन संचार मिले,
जैसे ‘कंटक’ की बगिया में प्रिय फूलों का हार मिला,
जीवन पथ पर मिले इस तरह जैसे यह संसार मिला।
Posted in बस यूं ही | 32 Responses
आशीष और निवेदिता को ढेर सारी शुभकामनायें , रवि जी को बधाई , मामा श्वसुर की उपाधी प्राप्त करने के लिये और अनूप जी को मध्यस्थता करने के लिये ।
कुछ ऐसा ही पिछले दिनों अपने हिंदी ब्लाग जगत में हुआ। ब्लागिंग के मैदान में अपने कुंवारेपन के किस…
आशीष और निवेदिता को बहुत शुभकामनायें.
स्वागत गीत अति सुंदर है…
जानकारी के लिए अनूप जी का धन्यवाद!
हम आज ही एक कुवारे मित्र को ब्लागिग का रास्ता दिखा कर आए है ।
लगता है वह भी शायद कामयाब हो जाएगा।
आशीष भाई व नवोदिताजी को ढ़ेर सारी बधाई व शुभकामनाएं.
हम भी लगे हाथ नया मस्त चकाचक कूर्ता सिलवा लेते है. क्या पता कब निमंत्रण आ जाए?
हिंदी ब्लॉगिंग जगत की इस बड़ी उपलब्धि पर सारे ब्लॉगरों को बधाई!
धन्यवाद अनूप जी, यह जानकारी बाँटने के लिए!
यह सत्य है कि मेरी चिट्ठाकारी सफल हो गई. बकिया आगे जो मिलेगा या मिलना है, वह तो बोनस है..:)
द्वारे पर गुलाब, निशिगंधा से करते हों बातें
चंदन की गंधें बिखराते, कलश भरे द्वारे पर
मौसम लेकर आये हर पल सावन की सौगातें
शुभकामनायें
ईश्वर से प्रर्थना है कि उनका नव दाम्पत्य जीवन सुख-मय हो।
वैसे हाथी के पॉंव में सबका पॉंव की तर्ज पर अनूप की भागीदारी में हमें भी शामिल मानें।
और आशीष हिंदी ब्लॉगिगं के लिए तुम्हारी इस ‘शहादत’ को पफ, मिष्टी और मानसी जैसे बाल ब्लॉगर सदैव याद रखेंगे।
ये रविरतलामी जी को पकड़ना पड़ेगा पूछने के लिए कोई और भांजी है क्या?…:)
और, रहा सवाल भांजी के लिए, तो प्रतिप्रश्न है – क्या आपका बेटा हो गया है शादी लायक?
ई झालिया नरेश का होवत है, पँडिज्जी ?
इतना विस्तृत ब्यौरा दिहौ, पर यह काहे नाहिं स्वीकार किहौ के पुरोहिताई आपै की रही ।