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वर्ना पंगेबाज आ जायेगा…:)
एक तोड़
एक कान को मरोड़
शब्द चुन
कविता बुन
बस सुना, मत सुन
इधर चटक
उधर मटक
लिखा है खूब
लिख जरा
न पूछ खोटा कौन है
न पूछ कौन है खरा
नजर बचा के बास की
कलम उठा के खास सी
यूँ पोस्ट रोज कीजिये
हमें भी हर्ष दीजिये
विवादित लिख
कुछ फ़ड्डा कर
(अप)यश मिलेगा
बकिया चकाचक लिखे हो प्रभु।
तो वन लाइनर लिख
ज्ञान जी को पकड़
आलोक जी को जकड़
लिंकित कर
पोस्ट लिख
चर्चा कर
आखिर कविता क्यों लिख डाली ?
मत कर,मत कर, मत कर ?
जो लिखा है सत्य सब !
सलाम हे,कलम के भक्त
हर्षित हुए सुबह के वक्त !
दही रगड़म
कुछ भी लिख
पर पोस्ट कर
धर्म निभा
हे ब्लॉगर
जिसने भी टिपियाया
कविता ही लिखी
‘हम भी शब्दों से खेलूँगा’
टिपण्णी की शक्ल में
कविता ही ठेलूँगा
एक लाइन की चिटठा चर्चा
बचाए समय का खर्चा
एक हाथ में चाय की कप
फ़ोन पर गप-शप
सब ऐसे ही चलता रहे
अनूप भइया, कीप इट अप
कभी तो भूलिए
आफिस की देरी
ब्लॉग पर लिखिए
बड़ी सी पोस्ट
सामने रहे की-बोर्ड
बगल में चाय और टोस्ट
आज-कल नहीं लिखते
‘जबरिया’ कभी भी
थोडी तो निकालिए ‘फुरसत’
समय है अभी भी
अगर ऐसा नहीं हुआ
तो हम जुलूस लेकर आयेंगे
हमारे शहर के ‘बुद्धिजीवी’
आपके घर के बाहर
नारे लगायेगें
आप का लिखना
हमें भाया
पढ़ कर बहुत
मजा आया
ऐसे ही लिखें
सदा फुरसतिया जी
यूहीं फुर्सत में दिखें।
वैसे यह तो ब्लॉगर प्रणय गीत है प्रयाण गीत नहीं
शब्दों से
या फिर कोई
मुद्दा उठा
कर घमासान
चर्चा में रह
।
जगा सोते को
या फिर बहला
सबके मन को
।
कर टिप्पणी
टिप्पणी पा।
पाठक बढ़ा
फैन-फोलोइंग बना
लोकप्रिय बन
छप पत्र-पत्रिकाओं में।
किताबें पढ़
देख सिनेमा
समीक्षा छाप।
ब्लॉगर मीट कर
फोटो-वर्णन छाप।
घर-दफ्तर का काम छोड़
पोस्ट पढ़
पोस्ट कर
ब्लॉगिंग कर
खुश रह।
कोई कोसे
कोई डाँटे
परवाह मत कर
तू है आजाद
कर अभिव्यक्ति
पहली बार
मिला है
यह मंच
धड़ाधड़ छाप
बकबक कर।
दूसरों की सुन,
अपनी भी सुना।
तारीफ कर
तारीफ पा।
कर खिंचाई
गाली खा।
अहा !
क्या है मजा।
रोजमर्रा के खाली वक्त को
चिट्ठाकारी में खपा।
क्या पता
किसने देखा कल
हो सकता है
कल तू बन जाए प्रेमचंद
परसाई को भी दे पछाड़
या फिर होने लगे कमाई
एडसेंस से
और तू हो जाए मालामाल।
फुर से उड़ गया
क्या ब्लॉगिंग ने
एक और परसोना
बदल दिया??????????????????
फ़ुरसतिया के वन लाइनर पे
पुराणिक मसाले में लेफ़्ट का किवाम,
ज्ञान बीड़ी से चलती कबाड़ी की कार, साइकल की रेलम पेल,
छोड़ ये वन लाइनर, थोड़ी फ़ुर्सत निकाल,
पुराणिक का पुराना मसाला निकाल,
लंबी सी पोस्ट में
थोड़ा मल्लिका, थोड़ा राखी को ढाल,
विस्तारित गद्य के बाद कोडीफ़ाइड कविताएं .
अच्छा लगा यह प्रयाणगीत — नित्यक्रिया और नेटक्रिया के पश्चात ऑफ़िस जाने के लिए प्रेरित-उत्तेजित करता प्रयाणगीत . अरे तो अब और कौन सा कुरुक्षेत्र के लिए कूच करना है . अब तो ऑफ़िस ही कुरुक्षेत्र है .
aam bhasha ko bhi kitna mazedar bana dete hai..
yun hi jari rakhiye..
ब्लॉग्स देखे,
कभी मुस्काए,
कभी झुंझलाए,
और
टिपियाए।
मन हुआ तो पोस्टाए भी।
मस्त लिखे हो प्रभो!!
छोटी सी पोस्ट देख, बहुत हर्षाई!
कविता तो है ही खूब,
टिप्पणियाँ भी भाईं!!
सभी को काव्यमय देख,
मैने भी कलम चलाई!!
कोई बात नही
ओर कुछ नही
तौ कमेंट ही सही
पोस्ट मस्त!!
टिप्पणियाँ मस्त!!!
गलती हमारी जो आये लेट
और सारा मसाला भाई लोग गये ठेल!!!!
कुछ कुछ अमर घर चल …..और कुछ कुछ – उसने कहा था में ….वजीरा , ला पानी पिला जैसे संवादों का लुत्फ है इसमें।
सूबेदारनी की धत् वाला पार्ट हम लिख देते हैं…:)
मस्त
(इतनी ही कविता आती है)
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..जुगनू बन जलता हूँ !
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..भारत में बौद्ध धर्म की क्षय – दामोदर धर्मानंद कोसांबी