Tuesday, November 13, 2007

फिर उदासी तुम्हें घेर बैठी न हो

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फिर उदासी तुम्हें घेर बैठी न हो

कानपुर के गीतकारों में अंसार कंबरी ऐसे गीतकार हैं जिनकी आवाज वर्षों से जस की तस मधुर बनी हुई है। वे कहीं भी कविता पढ़ें उनके चाहने वाले श्रोता उनसे उनके बेहद प्रसिद्ध गीत तुम कुछ कहो तो सही को सुनने के लिये फ़रमाइश अवश्य करते हैं। यह गीत मुझे भी पसंद है परन्तु इसमें मुझे यह लगता है कि गीत के सामन्ती और नारी विरोधी मूल्यों का प्रचार करता है। इस प्रेम गीत में कवि जब कहता है-

एक भी लांक्षन सिद्ध होगा नहीं,
अग्नि में जानकी सी दहो तो सही।

तो ऐसा लगता है कि कवि नायिका को आग में कूदने के लिये उकसा रहा है। :)
अंसार कंबरी और उनकी रचनाओं के बारे में कभी विस्तार से लिखूंगा। उन्होंने गीत भी लिखे हैं, गजलें भी। तरन्नुम में जब वे पढ़ते हैं तो सुनते रहने का ही मन करता है।
उनका एक शेर है-

आप मौत के डर से नाहक परेशान हैं,
आप जिंदा कहां हैं जो मर जायेंगे।
ऐसे ही एक और शेर है-

अब तो बाजार में आ गये ‘कंबरी’
अपनी कीमत को और हम क्या करें?
पिछले साल जब मेरी उनसे मुलाकात हुयी थी तो मैंने उनसे एक कविता का जिक्र किया जो मुझे बहुत पसंद है और जिसे मैंने 1984-85 में सुना था। उसके बाद दुबारा सुनना नहीं हुआ था लेकिन कविता पूरी याद थी। उसके बोल हैं-

फिर उदासी तुम्हें घेर बैठी न हो,
शाम से ही रहा मैं बहुत अनमना।
जब मैंने अंसारजी इस कविता का जिक्र किया तो पता चला कि यह कविता उन्हीं की है। मैंने उनसे शिकायत भी दर्ज करायी कि आप नकारात्मक मूल्यों समर्थन करने वालीकविता पढ़ने की बजाय इसको क्यों नहीं पढ़ते। उन्होंने वायदा किया था कि वे इसे सुनायेंगे। लेकिन उसके बाद ऐसा सुयोग न बन सका कि उनसे कविता सुन सकें।
इस रविवार को हमारे परिवार के घनिष्ठ और हम लोगों से आत्मीयता रखने वाले शतदलजी के यहां जाना हुआ। मुझे पता था कि उनके पास रमानाथ अवस्थी और नीरजजी की कई कविताओं गीतों का संकलन है। मैं खासतौर पर रमानाथजी की कवितायें तलासने गया था। उन्होंने अपना कम्यूटर हमारे हवाले कर दिया और कहा कि जो मन आये ले जाओ। मैंने वे सब कवितायें कापी कर लीं और ले आया। उनमें रमानाथ अवस्थी, नीरज, माहेश्वर तिवारी, प्रमोद तिवारी, उपेन्द्रजी, अंसार कंबरी, वीरेन्द्र मिश्र की कवितायें संकलित हैं। शतदल जी ने हर कविता के बारे में बताया भी कि ये कौन पढ़ रहा है, ये कौन है। एक जगह हमने पूछा तो वे बोले- ये माबदौलत पढ़ रहे हैं। पूरे नशे में।
बहरहाल माबदौलत शतदलजी की कवितायें तो आपको फिर सुनवायेंगे। उन्होंने कुछ बहुत बेहतरीन गीत, कवितायें लिखी हैं। कानपुर के लोगों पर संस्मरणात्मक लेख भी ।
फिलहाल आपको अंसार कम्बरी की वो कविता सुनवाते हैं जो मुझे उनकी सबसे अच्छी कविता लगती है। अंसार कंबरी का परिचय और फोटो आगे जल्दी ही पेश करूंगा। :)

फिर उदासी तुम्हें घेर बैठी न हो

फ़िर उदासी तुम्हें घेर बैठी न हो,
शाम से ही रहा मैं बहुत अनमना।

पूछना हूं स्वयं से कि मैं कौन हूं
किसलिये था मुखर किसलिये मौन हूं
प्रश्न का कोई उत्तर तो आया नहीं,
नीड़ एक आ गया सामने अधबना।
फ़िर उदासी तुम्हें घेर बैठी न हो,
शाम से ही रहा मैं बहुत अनमना।
चित्र उभरे कई किंतु गुम हो गये,
मैं जहां था वहां तुम ही तुम हो गये,
लौट आने की कोशिश बहुत की मगर,
याद से हो गया आमना-सामना।
फ़िर उदासी तुम्हें घेर बैठी न हो,
शाम से ही रहा मैं बहुत अनमना।
पंक्तियां कुछ लिखी पत्र के रूप में,
क्या पता क्या कहा, उसके प्रारूप में,
चाहता तो ये था सिर्फ़ इतना लिखूं
मैं तुम्हें बांच लूं, तुम मुझे बांचना।
फिर उदासी तुम्हें घेर बैठी न हो,
शाम से ही रहा मैं बहुत अनमना।
-अंसार कंबरी

12 responses to “फिर उदासी तुम्हें घेर बैठी न हो”

  1. Tarun
    vah kya khoob kavita hai, ye baat bhi kya khoob kahi hai
    एक भी लांक्षन सिद्ध होगा नहीं,
    अग्नि में जानकी सी दहो तो सही।
  2. लावण्या
    अंसार कंबरी जी की ये कविता सुनकर / पढकर बहुत प्रसन्नता हुई
    स स्नेह,
    – लावण्या
  3. ashaj45
    बहुत ही सुंदर गीत सुनवाया आपने । एसे ही सुनाते रहिये । जितने सुंदर शब्द उतना ही अच्छा प्रस्तुती करण ।
  4. दिनेश्‍राय द्विवेदी
    आप बहुत अच्छे गीतों से रूबरू करवा रहे हैं। साध्‍वाद।
  5. Gyan Dutt Pandey
    ओह, पण्डिज्जी, यह तो बहुत सुन्दर रहा। पॉडकास्टिंग को मैं फालतू फण्ड की चीज मानता था। पर इस काव्य-पाठ ने मेरी सोच बदल दी। आज का दिन वैसे भी विशेष है मेरे लिये और इस काव्य-पाठ को बतौर उपहार ले रहा हूं।
  6. फुरसतिया » ज्ञानजी जन्मदिन मुबारक
    [...] हमारी पाडपोस्ट फिर उदासी तुम्हें घेर बैठी न हो पर अभी-अभी मैंनेज्ञानजी की टिप्पणी पढ़ी। उन्होंने टिपियाया है- ओह, पण्डिज्जी, यह तो बहुत सुन्दर रहा। पॉडकास्टिंग को मैं फालतू फण्ड की चीज मानता था। पर इस काव्य-पाठ ने मेरी सोच बदल दी। आज का दिन वैसे भी विशेष है मेरे लिये और इस काव्य-पाठ को बतौर उपहार ले रहा हूं। [...]
  7. anita kumar
    अनूप जी बहुत ही सुन्दर कविता है और पढ़ने के साथ सुनने का तो मजा ही कुछ और है, आप को बहुत बहुत धन्यवाद, और सुनाएं , रोज सुनाएं ऐसी इल्तजा है। ये ज्ञानद्त्त जी के लिए खास दिन क्य है जी आज, उनका जन्मदिन है क्या? अगर हां तो हमारी शुभकामनाएं
  8. Punit Omar
    पढ़ कर अच्छा लगा. हमारे टू कनपुरिया होने पर लानत है की इत्ती बड़ी शाख्शियत के शेरों को टू पढ़ रखा था पर ये ना पता चल पाया कभी की जनाब कानपुर के हैं. आपको हार्दिक धन्यवाद.
  9. सोचते हैं उदास ही हो जायें
    [...] -अंसार कंबरी [...]
  10. navneet
    बहुत ही सुन्दर कविता है
  11. : ये पीला वासन्तिया चांद
    [...] हमारा। दिन में कई बार फोन करने के बाद अक्सर गुनगुनाते हैं: फिर उदासी तुम्हें घेर बैठी न हो [...]
  12. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176

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