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आज एक और कविता पढ़वा रहा हूं आपको। यह कविता मुझे बहुत प्रिय लगती
रही। बहुत दिनों तक पूरी याद भी रही। इस बीच डायरी गुम हो गयी थी। अब मिली
तो सोचा आपको यह पढ़ा दें जो हमें अच्छा लगता है। शायद आप भी पसंद करें।
घिर कर उतरती रात से बेखबर ,जिद्दी, थकी एक चिड़िया
अब भी लड़ रही है अपने प्रतिबिम्ब से!
तुम, जो कांच और छाया से जन्मे दर्द को समझते हो
तरस नहीं खाना, न तिरस्कार करना
बस जुड़े रहना इस चिड़िया की जूझन के दृश्य से।
वक्त कुछ कहने का खत्म हो चुका है
जिन्दगी जोड़ है ताने-बाने का लम्बा हिसाब
बुरा भी उतना बुरा नहीं यहां
न भला है एकदम निष्पाप।
अथक सिलसिला है कीचड़ से पानी से
कमल तक जाने का
पाप में उतरता है आदमी फिर पश्चाताप से गुजरता है
मरना आने के पहले हर कोई कई तरह मरता है
यह और बात है कि इस मरणधर्मा संसार में
कोई ही कोई सही मरता है।
कम से कम तुम ठीक तरह मरना।
नदी में पड़ी एक नाव सड़ रही है
और एक लावारिश लाश किसी नाले में
दोनों ही दोनों से चूक गये
यह घोषणा नहीं है, न उलटबांसी,
एक ही नशे के दो नतीजे हैं
तुम नशे में डूबना या न डूबना
डुबे हुओं से मत ऊबना।
कैलाश बाजपेयी
बुरा भी उतना बुरा नहीं यहां
दर्पण पर शाम की धूप पड़ रही है,घिर कर उतरती रात से बेखबर ,जिद्दी, थकी एक चिड़िया
अब भी लड़ रही है अपने प्रतिबिम्ब से!
तुम, जो कांच और छाया से जन्मे दर्द को समझते हो
तरस नहीं खाना, न तिरस्कार करना
बस जुड़े रहना इस चिड़िया की जूझन के दृश्य से।
वक्त कुछ कहने का खत्म हो चुका है
जिन्दगी जोड़ है ताने-बाने का लम्बा हिसाब
बुरा भी उतना बुरा नहीं यहां
न भला है एकदम निष्पाप।
अथक सिलसिला है कीचड़ से पानी से
कमल तक जाने का
पाप में उतरता है आदमी फिर पश्चाताप से गुजरता है
मरना आने के पहले हर कोई कई तरह मरता है
यह और बात है कि इस मरणधर्मा संसार में
कोई ही कोई सही मरता है।
कम से कम तुम ठीक तरह मरना।
नदी में पड़ी एक नाव सड़ रही है
और एक लावारिश लाश किसी नाले में
दोनों ही दोनों से चूक गये
यह घोषणा नहीं है, न उलटबांसी,
एक ही नशे के दो नतीजे हैं
तुम नशे में डूबना या न डूबना
डुबे हुओं से मत ऊबना।
कैलाश बाजपेयी
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डुबे हुओं से मत ऊबना।
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बड़ा कठिन है इसका पालन करना। इतना इम्पल्सिव नेचर है कि….
यह और बात है कि इस मरणधर्मा संसार में
कोई ही कोई सही मरता है।
जबरदस्त कविता है। आखिरी लाइनें भी क्या जानदार है कि तुम नशे में डूबना या न डूबना, डूबे हुओं से मत ऊबना।
कैलाश बाजपेयी की यह कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद।
साधुवाद…
मरना आने के पहले हर कोई कई तरह मरता है”
अच्छी कविता पढवा दी. कुछ पंक्तियां काफी अर्थ छिपायें हैं, एवं दो अनिल ने मुझे से पहले ही पकड लिये हैं, बाकी मैं ने ऊपर लिख दिये हैं.
मरना आने के पहले हर कोई कई तरह मरता है
यह और बात है कि इस मरणधर्मा संसार में
कोई ही कोई सही मरता है।
तुम नशे में डूबना या न डूबना
डुबे हुओं से मत ऊबना।
क्या बात है, इतनी सुन्दर कविता सुनाने के लिए धन्यवाद
न जीना अपने हाथ में
धक्का हम दे सकते हैं
पर गिरना आपके हाथ में
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि मरो तो भली प्रकार मरो, जिओ तो अच्छी तरह पिओ, किसी का रक्त चूसने पर आओ तो, मत सिर्फ चूसकर काम चलाओ, खूब खुलकर, ड्रम भरकर पिओ।
अविनाश वाचस्पति की हालिया प्रविष्टी..रोजगार के आधुनिक मौके : दैनिक जनसंदेश टाइम्स 16 अक्टूबर 2013 के स्तंभ ‘उलटबांसी’ में प्रकाशित