http://web.archive.org/web/20140419220027/http://hindini.com/fursatiya/archives/385
नियमित ब्लागिंग करने के कुछ सुगम उपाय
By फ़ुरसतिया on December 21, 2007
हमारे कुछ दोस्त बहुत अच्छे ब्लागर हैं। बहुत अच्छा लिखते हैं।
लेकिन वे इंसान कहीं ज्यादा अच्छे हैं इसलिये वे नियमित नहीं लिखते। वे एक
अच्छे ब्लागर होने का अपना और हमारा हसीन भ्रम बनाये रखना चाहते हैं। जैसे
कभी-कभी सितम्बर महीने में लोग हिंदीगिरी करने लगते हैं, होली में सब
बुढ़वे देवर लगने लगते हैं, सतर्कता सप्ताह में सब बेइमान लोग ईमानदार बनने
के लिये हुड़कने लगते हैं वैसे ही कभी-कभी अच्छे ब्लागर भी नियमित ब्लागर
बनने के लिये हुड़कने लगते हैं। अपनी इंसानियत की पारी घोषित करके नियमित
ब्लागिंग की शुरू कर देते हैं।
ऐसे ही हमारे एक मित्र बहुत अच्छे ब्लागर हैं। अच्छे इसलिये कि वे बहुत कम लिखते हैं। जब लिखते हैं तो कभी लिंक देकर कमेंट करने की जिद करके कोई पंगा नहीं करते।
ऐसे अच्छे-भले इंसान ने एक दिन हमसे पूछा – यार, नियमित ब्लागिंग करने के कुछ उपाय बताओ।
यार, मैं खुद नियमित नहीं लिख पाता। तुमको कैसे बताऊं?- मैंने रोना रोया।
तुम्हारी तो बात अलग है। तुम तो मूढ़मति हो। सब जानते हैं। तुम्हें कुछ समझ में ही नहीं आता होगा कि क्या लिखो। लेकिन मैं तो इंटेलीजेन्ट हूं। तमाम बातों का ज्ञान रखता हूं। तुम मुझे बताओ कैसे नियमित ब्लाग लिखा जाये? -दोस्त ने पूछा।
जब मैं मूढ़मति हूं। कुछ जानता नहीं। और नियमित ब्लागिंग भी नहीं कर पाता तो तुमको कैसे बताऊं यार! तुम खुद बताऒ? -मैं झल्ला सा गया लेकिन शांत भी। जो झल्लाता है वह अक्सर शांत ही रहता है।
इसलिये कि तुम काफ़ी दिन से ब्लाग जगत के लटके-झटके देखते रहे। अनियमित लिखते हो इसलिये बेहतर तरीके से बता सकते हो कि नियमित कैसे लिखें। (पर उपदेश कुशल बहुतेरे)। मूढमति हो इसलिये काम की बातें कहने से बाज नहीं आओगे। इसलिये मौका दे रहा हूं वर्ना बताने वाले तो बहुतों हैं।- दोस्त से विस्तार से समझाने का प्रयास किया।
इसके बाद चिल्ला-जाड़ा होने के बावजूद हम पानी पर चढ़ गये। हमने अपनी मित्रता का परिचय देते हुये उसको नियमित ब्लागिंग करने के कुछ उपाय बताये। आप भी नजरें
इनायत कर लीजिये। शायद आपके भी काम आये।
१.पुराणिक सिद्धान्त: : जैसे ही स्कूल बंद होने वाले हों वैसे ही आप झोला उठाकर निकल लीजिये। जैसे बंटी और बबली निकल लिये थे। आप घर-घर जाकर सर्वे करिये। कालोनी में जाकर वहां बड़े बच्चों की कापियॊं की रद्दी खरीद लीजिये। केवल हिंदी की लीजिये। इसके बाद उनसे छांट-छांट कर निबन्ध पोस्ट करते जाइये। हर पोस्ट के पहले लिखना न भूलिये कि यह निबन्ध जिस छात्र की कापी से नकल किया गया है उसने परीक्षा में टाप किया था। कौन मार्कशीट लगानी है! ये भी कौन पूछता है कि उसने कहां से टाप किया था? ऊपर से, नीचे से या बीच से? टापर हमेशा टापर ही रहता है चाहे ऊपर से हो नीचे या बीच से। आलोक पुराणिक इस तरकीब का सबसे बेजा इस्तेमाल करते हैं इसलिये यह सिद्धान्त उन्हीं के नाम से बदनाम हो गया।
२.अगड़म-बगड़म सिद्धान्त: आपको कोई भी ऊलजलूल बात ध्यान में आये आप उसको टाइप कर लें। फिर उसके बीच में और किनारे तथा इधर-उधर, अगल-बगल में राखी, मीखा, शाकीरा वगैरह के नाम डाल दें। जगह बची हो तो बुशजी और मुशर्रफ़जी आदि को भी आदर सहित स्थान दें ताकि बात का ऊलजलूल पन बढ़ सके। जैसे किसी खाली पड़े प्लाट पर बाहुबली अपनी बाहों के प्रयोग से अपने नाम की प्लेट लगा लेते हैं वैसे ही इस सर्वहारा तरीके पर भी आलोक पुराणिक नाम के ब्लागबली का कब्जा है। यह उनकी ईमानदारी ही कही जायेगी कि वे न अपने को आरकुटिये कहने में हिचकते हैं न चिरकुटिये। लेकिन उनका लगाव अगड़म-बगड़म टाइप की हरकतों से ही ज्यादा है। इसीलिये यह तरीका भी इसी नाम से प्रचलित हुआ।
३. ज्ञानदत्त का नियमित ब्लागिंग का सिद्धान्त: ये थोड़ा मंहगा सिद्धान्त हैं लेकिन सफ़लता की शर्तिया गारन्टी है इसमें। आप एक कैमरा खरीद लीजिये। फिर जहां मन आये वहां क्लिक करिये। इसमें आपको फोटो खींचना जानने की भी जरूरत नहीं है। जो फोटो आ जाये उसे अपने कम्प्यूटर पर उतार लें। फिर जिसकी फोटो आई है उसके बारे में अपने मन से या नेट से खोज कर लिख मारें। नेट पर न मिले तो भरतलाल से पूछ लीजिये। आप काफ़ी हाउस भी जा सकते हैं। अपने किसी साथी अधिकारी के बारे में लिख सकते हैं। मतलब आप को जो मन में आये वो लिख सकते हैं। जो मन में न आये वो तो पहले लिख सकते हैं। फिलवक्त इस तरीके पर ज्ञानजी का एकाधिकार है।
४.पुरनका ब्लागर सिद्धान्त: इस तकनीक (दुर)उपयोग वे ब्लागर करते हैं जो पहले बहुत लिखते थे। लेकिन अब वे इसी बारे में लिखते हैं कि वे कित्ता लिखते थे। जीतेंद्र और फ़ुरसतिया इस तकनीक का सर्वाधिक दुरुपयोग करते हैं। संजय बेंगाणी भी कभी-कभी ये वाला स्ट्रोक खेल जाते हैं। इस तकनीक का उपयोग करते समय बतायें कि अभी जो हो रहा है पहले उससे भी ज्यादा हो चुका है। एक बार किसी ब्लागर ने कमेंट किया -आजकल भैया बहुत बेफिजूल की और कूड़ा -पोस्ट लिखी जाती हैं। जीतेंन्द्र तुरन्त बोले- यार, इससे बेफ़िजूल की और कूड़ा पोस्टें तो हम लिखते थे। अभी का कूड़ा तो हमारे कूड़े के सामने कुच्छ नहीं।
५.कविता-सविता सिद्धान्त: नियमित कविता लेखन करते हुये आप नियमित ब्लाग लेखन कर सकते हैं। कविता लिखने का एक फ़ायदा यह भी है कि न उसका मतलब न लिखने वाले को समझने की जरूरत जरूरत होती है न पड़ने वाले की। आप कुछ भी लिखिये उसे कविता कहकर पोस्ट कर दीजिये। अगर आप कविता लिखने में बिल्कुल अपाहिज हैं जैसे की फ़ुरसतिया कोई भी कायदे की बात नहीं कर सकते तो आप अपने गद्य को ही खूबसूरत कविता का रूप दे सकते हैं। इसके तरीके यहां बताये गये हैं। इस तरह की पोस्ट आजकल प्रख्यात हिंदी ब्लागर दिलीप भारतीय दीपक भारतदीप इस तकनीक का बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं।
६.जिंदाबाद-मुर्दाबाद सिद्धान्त: आप अगर विचारों से प्रगतिशील हैं और आपके सीने में आग भी भड़कती है तो आपको नियमित ब्लाग लेखन के लिये कुछ अधिक करने की जरूरत नहीं है। आप किसी भी बात का जिक्र करके बस माफ़ियाराज खतम करो, गुंडागर्दी नहीं चलेगी, अलाने जिंदाबाद- फ़लाने मुर्दाबाद जैसे नारे लगाने लगिये। याद रहिये कि यह टाइप करते समय आपकी मुट्ठी बंधी रहे और मुंह बिचका रहे। आप अपने तेवर ऐसे रखें जिससे लोगों को लगे कि अगर उन्होंने जरा सी भी हंसी-मजाक की मतलब हलकी-फ़ुलकी बात कर दी तो हंसने वाले जबड़ों का हुलिया टाइट कर दिया जायेगा। हर प्रचलित और पापुलर होती चीज को आप प्रतिगामी बताते हुये आप शान से अपनी बात सालों तक लिखते रह सकते हैं।
७. टिप्पणी आयी है स्कूल आफ़ थाट: ब्लागिंग के इस सिद्धान्त का प्रतिपादन अभी हाल में ही हुआ है। इसमें एक पोस्ट पर आयी टिप्पणियां बारी-बारी से आप अगली पोस्टों में दिखा सकते हैं। मान लीजिये कि किसी पोस्ट आपको तीन अलग-अलग लोगों ने टिप्पणियां लिखीं और चार टिप्पणियों का अचार आपने खुद डाला (दो अपने फ़र्जी ब्लागनाम से और दो अनाम नाम से) इस तरह आपके पास सात पोस्टों का जुगाड़ हो गया। आप प्रायोजित लेख भी लिख-लिखवा कर नियमित ब्लागिंग करते रह सकते हैं।
८.लिंकन-किंकन-ब्लागिंग-रुन-झुन: आप भाषा में ब्लाग लिखते हैं उस भाषा के किसी भी अखबार को नेट पर देखें। किसी भी खबर का लिंक लगाइये और उसके बारे में दो-तीन लाइने लिखकर पोस्ट कर दें। अगर अखबार यूनीकोड में है तो उस समाचार को भी टीप दें और अपना एक्स्पर्ट कमेंट दे दीजिये। अंग्रेजी के तमाम ब्लागर इसी तरकीब की टिप्पणी खाते हैं। आप देख लीजिये। हिंदी के आदि-चिट्ठाकार इसी तरकीब से अपनी बातें कहते हैं। उनकी टेलीग्राफ़िया पोस्ट का यही राज है।
९.साहित्य सेवा ब्लागिंग सिद्धान्त: आप नेट पर उपलब्ध साहित्यिक सामग्री को उठा-उठाकर अपने ब्लाग पर उड़ेलते रहें और इसी बहाने साहित्य सेवा करते रहें। अगर आपको टाइपिंग आती है तो किसी धांसू च फ़ांसू साहित्यिक सामग्री को नेट पर लाने के लिये उसके अंश पोस्ट करते लगें। यह तरीका अपनाने वाले लोग अक्सर एटीबायटिक दवाओं की तरह अपने डोज पूरे नहीं करते। इससे बीमारी बार-बार उभरती रहती है। बार-बार नियमित ब्लागिंग करने के लिये जी हुड़कने लगता है।
१०. फोटो-शोटो ,लटके-झटके डाट काम : इस तरकीब में लोग ऊटपटांग या मस्त-मस्त फोटो लगाते रहते हैं। पहले प्रतीक पांडेय इस काम को करते थे और मस्त सौंदर्य के फोटो अपने ब्लाग पर लगाते थे। अब लेकिन उनको अपनी इमेज की चिंता होने लगी और उन्होंने यह काम प्रमेन्द्र को दे दिया। प्रमेन्द्र इस काम को बखूबी कर रहे हैं। उनको इमेज की कौनौ चिंता नहीं है। वे कहते भी हैं -जो हमसे टकरायेगा, चूर-चूर हो जायेगा।
११. मुलाकात, संस्मरण ब्लागर -स्लागर मीट : लोगों से मिलते रहिये। मंडलजी की परवाह किये बिना। उनसे अभय तिवारी फ़रिया लेंगे। जब हेल-मेल होगा तो संस्मरण की रेल चलेगी पम-पम-पम। आप एक पोस्ट लिखी मुलाकात का परिचय देने के लिये। दूसरी पोस्ट में लिखिये फोटो लगाकर -(फोटो रह गये थे ) तीसरी पोस्ट लिखिये -अरे, ये बात तो रह ही गयी । यह कारनामा अभी कुछ दिन एक हिंदुस्तानी ने किया।
हमें पता है कि आप अच्छे इंसान हैं और आपमें से कोई नियमित लिखने का काम करना नहीं चाहता। इसके बावजूद हमने यहां लिख मारे। सम्भव है आपका हृदय परिवर्तन हो जाये और आप भी सही-सही इज्जत लुटाकर नियमित ब्लागर बन जायें। तरीके और बहुत हैं लेकिन वे फिर कभी।
तब तक आप बताइये कोई तरीका नियमित ब्लागिंग करने का । लेकिन इसके पहले आप ब्लागिंग के सार्वभौमिक सिद्धान्त दोहराना न भूलें।
ऐसे ही हमारे एक मित्र बहुत अच्छे ब्लागर हैं। अच्छे इसलिये कि वे बहुत कम लिखते हैं। जब लिखते हैं तो कभी लिंक देकर कमेंट करने की जिद करके कोई पंगा नहीं करते।
ऐसे अच्छे-भले इंसान ने एक दिन हमसे पूछा – यार, नियमित ब्लागिंग करने के कुछ उपाय बताओ।
यार, मैं खुद नियमित नहीं लिख पाता। तुमको कैसे बताऊं?- मैंने रोना रोया।
तुम्हारी तो बात अलग है। तुम तो मूढ़मति हो। सब जानते हैं। तुम्हें कुछ समझ में ही नहीं आता होगा कि क्या लिखो। लेकिन मैं तो इंटेलीजेन्ट हूं। तमाम बातों का ज्ञान रखता हूं। तुम मुझे बताओ कैसे नियमित ब्लाग लिखा जाये? -दोस्त ने पूछा।
जब मैं मूढ़मति हूं। कुछ जानता नहीं। और नियमित ब्लागिंग भी नहीं कर पाता तो तुमको कैसे बताऊं यार! तुम खुद बताऒ? -मैं झल्ला सा गया लेकिन शांत भी। जो झल्लाता है वह अक्सर शांत ही रहता है।
इसलिये कि तुम काफ़ी दिन से ब्लाग जगत के लटके-झटके देखते रहे। अनियमित लिखते हो इसलिये बेहतर तरीके से बता सकते हो कि नियमित कैसे लिखें। (पर उपदेश कुशल बहुतेरे)। मूढमति हो इसलिये काम की बातें कहने से बाज नहीं आओगे। इसलिये मौका दे रहा हूं वर्ना बताने वाले तो बहुतों हैं।- दोस्त से विस्तार से समझाने का प्रयास किया।
इसके बाद चिल्ला-जाड़ा होने के बावजूद हम पानी पर चढ़ गये। हमने अपनी मित्रता का परिचय देते हुये उसको नियमित ब्लागिंग करने के कुछ उपाय बताये। आप भी नजरें
इनायत कर लीजिये। शायद आपके भी काम आये।
१.पुराणिक सिद्धान्त: : जैसे ही स्कूल बंद होने वाले हों वैसे ही आप झोला उठाकर निकल लीजिये। जैसे बंटी और बबली निकल लिये थे। आप घर-घर जाकर सर्वे करिये। कालोनी में जाकर वहां बड़े बच्चों की कापियॊं की रद्दी खरीद लीजिये। केवल हिंदी की लीजिये। इसके बाद उनसे छांट-छांट कर निबन्ध पोस्ट करते जाइये। हर पोस्ट के पहले लिखना न भूलिये कि यह निबन्ध जिस छात्र की कापी से नकल किया गया है उसने परीक्षा में टाप किया था। कौन मार्कशीट लगानी है! ये भी कौन पूछता है कि उसने कहां से टाप किया था? ऊपर से, नीचे से या बीच से? टापर हमेशा टापर ही रहता है चाहे ऊपर से हो नीचे या बीच से। आलोक पुराणिक इस तरकीब का सबसे बेजा इस्तेमाल करते हैं इसलिये यह सिद्धान्त उन्हीं के नाम से बदनाम हो गया।
२.अगड़म-बगड़म सिद्धान्त: आपको कोई भी ऊलजलूल बात ध्यान में आये आप उसको टाइप कर लें। फिर उसके बीच में और किनारे तथा इधर-उधर, अगल-बगल में राखी, मीखा, शाकीरा वगैरह के नाम डाल दें। जगह बची हो तो बुशजी और मुशर्रफ़जी आदि को भी आदर सहित स्थान दें ताकि बात का ऊलजलूल पन बढ़ सके। जैसे किसी खाली पड़े प्लाट पर बाहुबली अपनी बाहों के प्रयोग से अपने नाम की प्लेट लगा लेते हैं वैसे ही इस सर्वहारा तरीके पर भी आलोक पुराणिक नाम के ब्लागबली का कब्जा है। यह उनकी ईमानदारी ही कही जायेगी कि वे न अपने को आरकुटिये कहने में हिचकते हैं न चिरकुटिये। लेकिन उनका लगाव अगड़म-बगड़म टाइप की हरकतों से ही ज्यादा है। इसीलिये यह तरीका भी इसी नाम से प्रचलित हुआ।
३. ज्ञानदत्त का नियमित ब्लागिंग का सिद्धान्त: ये थोड़ा मंहगा सिद्धान्त हैं लेकिन सफ़लता की शर्तिया गारन्टी है इसमें। आप एक कैमरा खरीद लीजिये। फिर जहां मन आये वहां क्लिक करिये। इसमें आपको फोटो खींचना जानने की भी जरूरत नहीं है। जो फोटो आ जाये उसे अपने कम्प्यूटर पर उतार लें। फिर जिसकी फोटो आई है उसके बारे में अपने मन से या नेट से खोज कर लिख मारें। नेट पर न मिले तो भरतलाल से पूछ लीजिये। आप काफ़ी हाउस भी जा सकते हैं। अपने किसी साथी अधिकारी के बारे में लिख सकते हैं। मतलब आप को जो मन में आये वो लिख सकते हैं। जो मन में न आये वो तो पहले लिख सकते हैं। फिलवक्त इस तरीके पर ज्ञानजी का एकाधिकार है।
४.पुरनका ब्लागर सिद्धान्त: इस तकनीक (दुर)उपयोग वे ब्लागर करते हैं जो पहले बहुत लिखते थे। लेकिन अब वे इसी बारे में लिखते हैं कि वे कित्ता लिखते थे। जीतेंद्र और फ़ुरसतिया इस तकनीक का सर्वाधिक दुरुपयोग करते हैं। संजय बेंगाणी भी कभी-कभी ये वाला स्ट्रोक खेल जाते हैं। इस तकनीक का उपयोग करते समय बतायें कि अभी जो हो रहा है पहले उससे भी ज्यादा हो चुका है। एक बार किसी ब्लागर ने कमेंट किया -आजकल भैया बहुत बेफिजूल की और कूड़ा -पोस्ट लिखी जाती हैं। जीतेंन्द्र तुरन्त बोले- यार, इससे बेफ़िजूल की और कूड़ा पोस्टें तो हम लिखते थे। अभी का कूड़ा तो हमारे कूड़े के सामने कुच्छ नहीं।
५.कविता-सविता सिद्धान्त: नियमित कविता लेखन करते हुये आप नियमित ब्लाग लेखन कर सकते हैं। कविता लिखने का एक फ़ायदा यह भी है कि न उसका मतलब न लिखने वाले को समझने की जरूरत जरूरत होती है न पड़ने वाले की। आप कुछ भी लिखिये उसे कविता कहकर पोस्ट कर दीजिये। अगर आप कविता लिखने में बिल्कुल अपाहिज हैं जैसे की फ़ुरसतिया कोई भी कायदे की बात नहीं कर सकते तो आप अपने गद्य को ही खूबसूरत कविता का रूप दे सकते हैं। इसके तरीके यहां बताये गये हैं। इस तरह की पोस्ट आजकल प्रख्यात हिंदी ब्लागर
६.जिंदाबाद-मुर्दाबाद सिद्धान्त: आप अगर विचारों से प्रगतिशील हैं और आपके सीने में आग भी भड़कती है तो आपको नियमित ब्लाग लेखन के लिये कुछ अधिक करने की जरूरत नहीं है। आप किसी भी बात का जिक्र करके बस माफ़ियाराज खतम करो, गुंडागर्दी नहीं चलेगी, अलाने जिंदाबाद- फ़लाने मुर्दाबाद जैसे नारे लगाने लगिये। याद रहिये कि यह टाइप करते समय आपकी मुट्ठी बंधी रहे और मुंह बिचका रहे। आप अपने तेवर ऐसे रखें जिससे लोगों को लगे कि अगर उन्होंने जरा सी भी हंसी-मजाक की मतलब हलकी-फ़ुलकी बात कर दी तो हंसने वाले जबड़ों का हुलिया टाइट कर दिया जायेगा। हर प्रचलित और पापुलर होती चीज को आप प्रतिगामी बताते हुये आप शान से अपनी बात सालों तक लिखते रह सकते हैं।
७. टिप्पणी आयी है स्कूल आफ़ थाट: ब्लागिंग के इस सिद्धान्त का प्रतिपादन अभी हाल में ही हुआ है। इसमें एक पोस्ट पर आयी टिप्पणियां बारी-बारी से आप अगली पोस्टों में दिखा सकते हैं। मान लीजिये कि किसी पोस्ट आपको तीन अलग-अलग लोगों ने टिप्पणियां लिखीं और चार टिप्पणियों का अचार आपने खुद डाला (दो अपने फ़र्जी ब्लागनाम से और दो अनाम नाम से) इस तरह आपके पास सात पोस्टों का जुगाड़ हो गया। आप प्रायोजित लेख भी लिख-लिखवा कर नियमित ब्लागिंग करते रह सकते हैं।
८.लिंकन-किंकन-ब्लागिंग-रुन-झुन: आप भाषा में ब्लाग लिखते हैं उस भाषा के किसी भी अखबार को नेट पर देखें। किसी भी खबर का लिंक लगाइये और उसके बारे में दो-तीन लाइने लिखकर पोस्ट कर दें। अगर अखबार यूनीकोड में है तो उस समाचार को भी टीप दें और अपना एक्स्पर्ट कमेंट दे दीजिये। अंग्रेजी के तमाम ब्लागर इसी तरकीब की टिप्पणी खाते हैं। आप देख लीजिये। हिंदी के आदि-चिट्ठाकार इसी तरकीब से अपनी बातें कहते हैं। उनकी टेलीग्राफ़िया पोस्ट का यही राज है।
९.साहित्य सेवा ब्लागिंग सिद्धान्त: आप नेट पर उपलब्ध साहित्यिक सामग्री को उठा-उठाकर अपने ब्लाग पर उड़ेलते रहें और इसी बहाने साहित्य सेवा करते रहें। अगर आपको टाइपिंग आती है तो किसी धांसू च फ़ांसू साहित्यिक सामग्री को नेट पर लाने के लिये उसके अंश पोस्ट करते लगें। यह तरीका अपनाने वाले लोग अक्सर एटीबायटिक दवाओं की तरह अपने डोज पूरे नहीं करते। इससे बीमारी बार-बार उभरती रहती है। बार-बार नियमित ब्लागिंग करने के लिये जी हुड़कने लगता है।
१०. फोटो-शोटो ,लटके-झटके डाट काम : इस तरकीब में लोग ऊटपटांग या मस्त-मस्त फोटो लगाते रहते हैं। पहले प्रतीक पांडेय इस काम को करते थे और मस्त सौंदर्य के फोटो अपने ब्लाग पर लगाते थे। अब लेकिन उनको अपनी इमेज की चिंता होने लगी और उन्होंने यह काम प्रमेन्द्र को दे दिया। प्रमेन्द्र इस काम को बखूबी कर रहे हैं। उनको इमेज की कौनौ चिंता नहीं है। वे कहते भी हैं -जो हमसे टकरायेगा, चूर-चूर हो जायेगा।
११. मुलाकात, संस्मरण ब्लागर -स्लागर मीट : लोगों से मिलते रहिये। मंडलजी की परवाह किये बिना। उनसे अभय तिवारी फ़रिया लेंगे। जब हेल-मेल होगा तो संस्मरण की रेल चलेगी पम-पम-पम। आप एक पोस्ट लिखी मुलाकात का परिचय देने के लिये। दूसरी पोस्ट में लिखिये फोटो लगाकर -(फोटो रह गये थे ) तीसरी पोस्ट लिखिये -अरे, ये बात तो रह ही गयी । यह कारनामा अभी कुछ दिन एक हिंदुस्तानी ने किया।
हमें पता है कि आप अच्छे इंसान हैं और आपमें से कोई नियमित लिखने का काम करना नहीं चाहता। इसके बावजूद हमने यहां लिख मारे। सम्भव है आपका हृदय परिवर्तन हो जाये और आप भी सही-सही इज्जत लुटाकर नियमित ब्लागर बन जायें। तरीके और बहुत हैं लेकिन वे फिर कभी।
तब तक आप बताइये कोई तरीका नियमित ब्लागिंग करने का । लेकिन इसके पहले आप ब्लागिंग के सार्वभौमिक सिद्धान्त दोहराना न भूलें।
Posted in बस यूं ही | 26 Responses
पहले, चौथे और छठवें को छोड़कर अपन सब आजमा सकते हैं [ क्या पता आपकी नज़र में हम आजमा भी चुके हों ]
*********************************************
यह तो सरे आम “स्माइली” की पिस्तौल चला कर इज्जत लूटना हो गया।
फिर अभय ने आपको चैंपियनत्व दिया है ही कि ये ऐसा करो वो ऐसा? इनने ऐसा किया उनने वैसा? एक पगडंडी कनपुरिया, बिलासपुरिया, जयपुरिया टाइप पोस्टों की भी हो सकती है कि हमारे लड्डू, हमारे छुहाड़े, हमारे किशमिश, हमारे भंटे? गुड़, जामुन, तरकारी?
ओह, मन में कैसा उद्वेलन, आलोड़न जगा दिया..
प्राकृत और पाली सिद्धांत
रोज सुबह उठकर कुछ इस किस्म का ठेलिये
रतरतकचा दगहदहै3 यररं,.ल मनचतैह
तकरता जा तलकमलच
रतकरमता हगहा-ही-38 रयचरतओट न
कम से कम पचास कमेंट यही पूछते हुई आयेंगे, क्या लिखा है।
तब बताइए कि ये पाली और प्राकृत में लिखा गया ब्लाग है। सबकी समझ में नहीं आयेगा।
यही तो मैंने कहा था
रोज सबसे पहले दूसरे ब्लागों को देखिये।
फिर पोस्ट चढाइये कि ये बात तो मैंने अनूप शुक्लजी को कही थी, उन्होने अपने नाम से ठेल दी। जैसे ये सारे सिद्धांत मैंने आपको बताये थे, आप ने अपने नाम से ठेल दिये।
yah line ” जो झल्लाता है वह अक्सर शांत ही रहता है।” bahut acchi lagi.
रही बात प्रतीक भाई की तो वे भी दुकान बन्द नही किये है, चल रही धन्धा मन्दा है ढेर सारे शपिग माल आने से।
उनमें और मुझमें एक अन्तर है मेरे चित्रों में 51% से ज्यादा कपडे वाले चित्र होते है जबकि उनके में 49% से कम
रही बात ईमेज की तो ईमेल पोस्ट करने से ईमेल बननेगी भी और बिगडेगी भी
पंच लाईन का उल्लेख अच्छा लगा
झकास पोस्ट। भाया ब्लॉगिंग टैक्नोलॉजी (ब्लॉगोलॉजी) की सारी पोस्ट एक जगह जुगाड कर लो, बहुत सही रहेगा।
दीपक भारतदीप
दीपकजी, नाम में सुधार कर दिया। बताने के लिये शुक्रिया।
– शास्त्री
पुनश्च: गंभीर से गंभीर पाठक/चिंतक के जीवन में भी हास्य का होना जरूरी है. काश कुछ और चिट्ठाकर इस विधा को समझ लें तो रोज कुछ न कुछ “मानसिक ऊर्जा” मिलती रहेगी.
नए साल की अशेष शुभकामनाएं । ईश्वर सारे मनोरथ पूरे करे। यह खुद पर हंसने का भाव बना रहे।
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
shefali की हालिया प्रविष्टी..मामा – मामा भूख लगी……….