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भैया, एक तमंचा लेन हतो
By फ़ुरसतिया on December 16, 2007
अभी दो दिन पहले गुड़गांव में आठवीं में पढ़ने वाले एक बच्चे ने अपने सहपाठी के सीने में चार गोलियां उतार दीं।
चार खुद उतारीं फिर पांचवी के लिये तमंचा अपने दोस्त को दे दिया- ले तू भी उतार ले।
लोगों का कहना है- भारत भी अमेरिका हो रहा है। अमेरिका में ऐसा होता था। बच्चे अपनी पिस्तौल लेकर स्कूल जाते । वहां धड़धड़ा कर फ़ायरिंग करते। तमाम को निपटाते। फिर खुद भी निपट लेते। अपने भी गोली मार लेते।
भारत में लोग कहते- हाय, कैसे कर लेते हैं ये मासूम बच्चे ऐसा? क्या सिखा रहे हैं अमेरिकी अपने बच्चों को?
अब देखो। बता दिया एक किशोर ने। कैसे किया जाता। ऐसे किया जाता है।
चार गोलियां खुद मारी। पांचवी दोस्त से कहा तू भी मार ले।
जैसे टेस्टी चाकलेट अपने दोस्त को देते हुये कहते हैं तमाम बच्चे। तू भी टेस्ट कर। इट्स टेस्टी।
इसका मनोवैज्ञानिक अध्ययन बुद्धिमान लोग करेंगे। हम आपको इसका दूसरा पहलू दिखाते हैं।
तमाम लोग हमारे यहां रिवाल्वर लेने आते हैं।
पूछते हैं- कै भैया एक तमंचा लेन हतो! कौन वालो अच्छो रहिये। गनफ़ैक्ट्री को या कि एस.ए.एफ़. को?
हम कहते हैं- दोनों एक हैं। एक ही तरीके से बनते हैं। एक ही सामान लगता है। एक ही अंदाज है। कहीं से ले लो।
वे कहते हैं- मुला सुन्त हैं कि एस.ए.एफ़. की बैरल बढ़िया है। जल्दी फ़टत नाईं है।
हम बताते हैं- तो एस.ए.एफ़. से लै लेव।
लेकिन सुन्त हैं हुवां देर बहुत लगत है। हमें जल्दी लेने है। -वे हड़बड़ाते हैं।
तो फ़ील्डगन लै लेव- हम टरकाते हैं।
लेकिन आजकल हुवौं लम्बी लाइन लगत है। दु-दुई महीना मां नम्बर आउत है। कौनौ जुगाड़ नाईं है कि तुरन्तै मिलि जाये? – वे अधीर हो जाते हैं।
जुगाड़ कुछ नहीं। उसके लिये प्रधानमंत्री से लिखवाना पड़ता है। लिखवा लाओ। ले लेव तुरन्त।- हम रास्ता बताते हैं।
अरे, फिरि आपके हुवां होइवे का कौन फ़ायदा? काहे के अफ़सर हौ फिर आप? – वे हमारी नौकरी की ऐसी कर देते हैं। मन हुआ तो तैसी भी कर देते हैं।
कुछ लोग तो ऐसी-तैसी एक साथ कर देते हैं। लेकिन अब आपको क्या बतायें। रहीमदास जी रोक लेते हैं-
रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही रखो गोय।
सुनि अठिलैंहै लोग सब, बांट न लैहे कोय॥
रिवाल्वर लेने तमाम लोग आते हैं। ज्यादातर अमीर किसान, व्यापारी और दो नम्बरी नौकरशाह।
दो नम्बरी नौकरशाह का मतलब उन लोगों से है जिनकी तनख्वाह कम है लेकिन आमदनी ज्यादा है। वे मेहनत करते हैं। नौकरी से पैसा पीटते हैं और पैसा खर्चने के लिये उपाय तलाशते हैं। ऐसे लोग न जाने कितने ऐसे काम करते हैं जो कोई सीधी-साधी तन्ख्वाह वाला करने की सोच भी न पाये। क्या-क्या गिनायें। आप खुदै समझदार हैं।
हम तमंचा-ग्राहकों को समझाते हैं। काहे के लिये पैसा फ़ूंकते हो। ये कोई अच्छी चीज नहीं है। घर में रहेगी तो चलेगी ही। कभी दुर्घटना भी हो सकती है।
वे समझाते हैं। पड़ी रहेगी। कभी काम आयेगी। पांच साल बाद बेच देंगे। दुगने दाम में बिकेगी।
आत्मरक्षा का हथियार पैसा कमाने का साधन हो गया।
बिजली विभाग का एक दोस्त बताता है- यार, गर्मी के मौसम में जरूरी है। लोग सब-स्टेशन घेर लेते हैं। ऐसे में हवाई फ़ायरिंग करके धमकाया जा सकता है। पिछले साल तीन घंटे अंधेरे में बंद रहे। मेज के नीचे।
ठेकेदारों से डील करने वाला एक वीर अफ़सर बताता है- यार, ठेकेदारों से निपटना बड़ा टेढ़ा काम है। पिस्तौल पास रहती है तो साले हड़कते हैं।
ठेकदार बताते हैं- आजकल ठेकदारी में काम कौन देखता है? बिना जलवे के ठेकेदारी करना मुश्किल है। इसलिये ये सब बहुत जरूरी चीजें हैं।
एजेन्सी वाले कहते हैं- लाखों रुपये रहते हैं पास में। कट्टा रहता है तो कोई जल्दी हिम्मत नहीं करता।
लोगों के पास अपने-अपने तर्क हैं साठ-बासठ हजार खर्च करने के। लोग खर्चा करते हैं। रिवाल्वर ले जाते हैं।
अफ़सर वैसे ही पिट रहे हैं, लोग ऐसे ही लुट रहे हैं , ठेकेदार वैसे ही आपसी दुश्मनी में एक दूसरे को निपटा रहे हैं।
ऐसे ही कट्टा खरीदोत्सुक अपने एक मित्र को हम सलाह देते हैं- रिवाल्वर लेने से पहले एक लाकर लो। जिसकी चाभी दो लोगों के पास हो। एक तुम्हारे पास दूसरी पत्नी के पास। रिवाल्वर दोनों की सहमति से ही निकले। एक दूसरे की सहमति से चले।
वे हमारी बात हंसी में उड़ाते हैं- तुम यार हर बात को मजाक में लेते हो।
ऐसा हमारे साथ अक्सर होता है। हमारी हर ज्ञान की बात को लोग हंसी में उड़ा देते हैं।
आपको क्या लगता है? ये हंसी में उड़ाने वाली बात है?
ऐसे ही किसी ने आत्मरक्षार्थ रिवाल्वर लिया होगा। घर में रखा होगा। जिसका उपयोग उनके बच्चे ने किया होगा। अपनी क्लास के बच्चे को उड़ाने के लिये।
स्वामीजी की बात याद आती है। चीजें अपना उपयोग कराती हैं। तमंचा अपवाद नहीं है।
चीजें खरीदने से पहले विचार कर लें। कौनौ हर्जा नहीं है।
चार खुद उतारीं फिर पांचवी के लिये तमंचा अपने दोस्त को दे दिया- ले तू भी उतार ले।
लोगों का कहना है- भारत भी अमेरिका हो रहा है। अमेरिका में ऐसा होता था। बच्चे अपनी पिस्तौल लेकर स्कूल जाते । वहां धड़धड़ा कर फ़ायरिंग करते। तमाम को निपटाते। फिर खुद भी निपट लेते। अपने भी गोली मार लेते।
भारत में लोग कहते- हाय, कैसे कर लेते हैं ये मासूम बच्चे ऐसा? क्या सिखा रहे हैं अमेरिकी अपने बच्चों को?
अब देखो। बता दिया एक किशोर ने। कैसे किया जाता। ऐसे किया जाता है।
चार गोलियां खुद मारी। पांचवी दोस्त से कहा तू भी मार ले।
जैसे टेस्टी चाकलेट अपने दोस्त को देते हुये कहते हैं तमाम बच्चे। तू भी टेस्ट कर। इट्स टेस्टी।
इसका मनोवैज्ञानिक अध्ययन बुद्धिमान लोग करेंगे। हम आपको इसका दूसरा पहलू दिखाते हैं।
तमाम लोग हमारे यहां रिवाल्वर लेने आते हैं।
पूछते हैं- कै भैया एक तमंचा लेन हतो! कौन वालो अच्छो रहिये। गनफ़ैक्ट्री को या कि एस.ए.एफ़. को?
हम कहते हैं- दोनों एक हैं। एक ही तरीके से बनते हैं। एक ही सामान लगता है। एक ही अंदाज है। कहीं से ले लो।
वे कहते हैं- मुला सुन्त हैं कि एस.ए.एफ़. की बैरल बढ़िया है। जल्दी फ़टत नाईं है।
हम बताते हैं- तो एस.ए.एफ़. से लै लेव।
लेकिन सुन्त हैं हुवां देर बहुत लगत है। हमें जल्दी लेने है। -वे हड़बड़ाते हैं।
तो फ़ील्डगन लै लेव- हम टरकाते हैं।
लेकिन आजकल हुवौं लम्बी लाइन लगत है। दु-दुई महीना मां नम्बर आउत है। कौनौ जुगाड़ नाईं है कि तुरन्तै मिलि जाये? – वे अधीर हो जाते हैं।
जुगाड़ कुछ नहीं। उसके लिये प्रधानमंत्री से लिखवाना पड़ता है। लिखवा लाओ। ले लेव तुरन्त।- हम रास्ता बताते हैं।
अरे, फिरि आपके हुवां होइवे का कौन फ़ायदा? काहे के अफ़सर हौ फिर आप? – वे हमारी नौकरी की ऐसी कर देते हैं। मन हुआ तो तैसी भी कर देते हैं।
कुछ लोग तो ऐसी-तैसी एक साथ कर देते हैं। लेकिन अब आपको क्या बतायें। रहीमदास जी रोक लेते हैं-
रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही रखो गोय।
सुनि अठिलैंहै लोग सब, बांट न लैहे कोय॥
रिवाल्वर लेने तमाम लोग आते हैं। ज्यादातर अमीर किसान, व्यापारी और दो नम्बरी नौकरशाह।
दो नम्बरी नौकरशाह का मतलब उन लोगों से है जिनकी तनख्वाह कम है लेकिन आमदनी ज्यादा है। वे मेहनत करते हैं। नौकरी से पैसा पीटते हैं और पैसा खर्चने के लिये उपाय तलाशते हैं। ऐसे लोग न जाने कितने ऐसे काम करते हैं जो कोई सीधी-साधी तन्ख्वाह वाला करने की सोच भी न पाये। क्या-क्या गिनायें। आप खुदै समझदार हैं।
हम तमंचा-ग्राहकों को समझाते हैं। काहे के लिये पैसा फ़ूंकते हो। ये कोई अच्छी चीज नहीं है। घर में रहेगी तो चलेगी ही। कभी दुर्घटना भी हो सकती है।
वे समझाते हैं। पड़ी रहेगी। कभी काम आयेगी। पांच साल बाद बेच देंगे। दुगने दाम में बिकेगी।
आत्मरक्षा का हथियार पैसा कमाने का साधन हो गया।
बिजली विभाग का एक दोस्त बताता है- यार, गर्मी के मौसम में जरूरी है। लोग सब-स्टेशन घेर लेते हैं। ऐसे में हवाई फ़ायरिंग करके धमकाया जा सकता है। पिछले साल तीन घंटे अंधेरे में बंद रहे। मेज के नीचे।
ठेकेदारों से डील करने वाला एक वीर अफ़सर बताता है- यार, ठेकेदारों से निपटना बड़ा टेढ़ा काम है। पिस्तौल पास रहती है तो साले हड़कते हैं।
ठेकदार बताते हैं- आजकल ठेकदारी में काम कौन देखता है? बिना जलवे के ठेकेदारी करना मुश्किल है। इसलिये ये सब बहुत जरूरी चीजें हैं।
एजेन्सी वाले कहते हैं- लाखों रुपये रहते हैं पास में। कट्टा रहता है तो कोई जल्दी हिम्मत नहीं करता।
लोगों के पास अपने-अपने तर्क हैं साठ-बासठ हजार खर्च करने के। लोग खर्चा करते हैं। रिवाल्वर ले जाते हैं।
अफ़सर वैसे ही पिट रहे हैं, लोग ऐसे ही लुट रहे हैं , ठेकेदार वैसे ही आपसी दुश्मनी में एक दूसरे को निपटा रहे हैं।
ऐसे ही कट्टा खरीदोत्सुक अपने एक मित्र को हम सलाह देते हैं- रिवाल्वर लेने से पहले एक लाकर लो। जिसकी चाभी दो लोगों के पास हो। एक तुम्हारे पास दूसरी पत्नी के पास। रिवाल्वर दोनों की सहमति से ही निकले। एक दूसरे की सहमति से चले।
वे हमारी बात हंसी में उड़ाते हैं- तुम यार हर बात को मजाक में लेते हो।
ऐसा हमारे साथ अक्सर होता है। हमारी हर ज्ञान की बात को लोग हंसी में उड़ा देते हैं।
आपको क्या लगता है? ये हंसी में उड़ाने वाली बात है?
ऐसे ही किसी ने आत्मरक्षार्थ रिवाल्वर लिया होगा। घर में रखा होगा। जिसका उपयोग उनके बच्चे ने किया होगा। अपनी क्लास के बच्चे को उड़ाने के लिये।
स्वामीजी की बात याद आती है। चीजें अपना उपयोग कराती हैं। तमंचा अपवाद नहीं है।
चीजें खरीदने से पहले विचार कर लें। कौनौ हर्जा नहीं है।
Posted in बस यूं ही | 21 Responses
बाकी अपना वैष्णवी विचार यह है कि जब तमंचा मुकाबिल हो तो ब्लॉग बनाओ! मन भी लगा रहे और सुकुल छाप ब्लॉगर बन जाओ तो अगला हड़क के भी रहे।
ये तमंचे की फोटो देख के ही भय लगता है!
बहुत ज़बरदस्त पोस्ट.
और बंदूक के व्यापारी?
दुखद यह है कि धीरे-धीरे ऐसी घटनाएं बढ़ेंगी. हिंसा कभी लॉ एण्ड आर्डर की समस्या नहीं होती. हिंसा का जन्म हमारी अर्थव्यव्यवस्था के गर्भ से होता है. थोड़ा विचार करने पर समझ में आ जाता है कि हम जैसी आर्थिक प्रणाली में रहते हैं उसी तरह का सामाजिक परिवेश बनता है.
यूँ गुड़गाँव वाला किस्सा अफ़सोस जनक है पर स्कूल में रहते हुए मुझे भी कई लड़कों को जान से मार डालने का मन हुआ है। ऐसे में कोई बड़ा भाई या माता पिता से बात कर सके तो मामला ठीक रहता है।
अगली ब्लागर मीट में ले आइये सस्ते वाले आठ दस, फिर देखिये अपनी साइट को पचास हजार से कम हिट मिलें तो। क्या धांसू सीन बनेगा-तमंचा ब्लागर ताने पड़ा है-पढ़ और सिर्फ पढ़ ही नहीं, तारीफ भी कर। और सिर्फ तारीफ ही नहीं ऐसी कि सच्ची सी लगे।
तमंचित ब्लागर भी देर सबेर तमंचे की राह पकड़ेगा। आपकी दुकान तो ब्लागरों से चल निकलेगी।
ये
अच्छी
बात
नही
है…….
स्वामी उवाच – चीजें अपना उपयोग कराती हैं। तमंचा अपवाद नहीं है, पसंद आया ।
अमेरिका के विपुल आयुध भंडार ही उससे दुनिया के तमाम देशों में नए-नए युद्ध छेड़ते रहने के लिए उकसाते हैं। यही हाल आतंकवादियों का भी है।