http://web.archive.org/web/20110926041025/http://hindini.com/fursatiya/archives/474
ज्ञानजी ब्लागिंग के अखाड़े में उतरने के पहले अंतर्मुखी टाइप के व्यक्ति थे। अंतर्मुखी होने के कारण वे अपने बारे में तमाम विवरण मय फ़ोटो अपने ब्लाग पर ठेलते रहे। इसके बाद इस मुई ब्लागिंग ने उनको कहीं का नहीं छोड़ा और उनका सारा पर्सोना गड़बड़ा गया और उनका ट्रांस्फ़ार्मेशन हो गया। अब जब उनका रूपान्तरण हुआ उनका आवाहन है ब्लागिंग से सबका रूपान्तरण। मतलब एक को खुदा दिखें तो सबको दिखने चाहिये।
इधर ज्ञानजी मौज ने मौज लेने का काम भी हाथ में लिया है। अच्छा चल निकला है काम। दो खेप मौज ले चुके हैं हमसे। हमसे बोले कि मौज का माहौल बरकरार रहना चाहिये इसके लिये चिठेरा-चिठेरी को बुलाया जाये। अब हम चूंकि ज्ञानजी की इज्जत करते हैं (और कर भी क्या सकते हैं।) लिहाजा उनकी मांग का सम्मान करते हुये चिठेरा-चिठेरी को बुलौआ दे के बुलवाये। उनको जब पता चला कि ज्ञानजी ने उनको बुलाया है तो वे भागते हुये और सीधे ज्ञानजी के ब्लाग पर सर झुका के आशीर्वाद लेने गये। झुका हुआ सर जब उठा तो उनके सामनेज्ञानजी की अस्वस्थता वाली अंतर्मुखी पोस्ट थी। फोटो भी थी। फोटो देखते ही उनकी बातचीत शुरू हो गयी। आप सुनिये। ज्ञानजी को बताइयेगा नहीं। वर्ना वे हंसने लगेंगे और उनकी गरदन दुखेगी। उनको सर्वाइकल है न! च्च,च्च,च्च सर्वाइकल!
चिठेरी: हाय ज्ञान भैया ये क्या किया आपने? हमको किसके भरोसे छोड़े गये?
चिठेरा: अरी चुप कर। तू तो धाकड़ टिप्पणीबाज की तरह पोस्ट देखती ही कमेंट करने वालों की तरह रोने लगी। ध्यान से पढ। ज्ञानजी बीमार हैं। उसी की फोटो लगाकर सबको बता रहे हैं।
चिठेरी: बीमार हैं! मैं तो डर गयी थी। न जाने क्या-क्या सोचने लगी थी। न जाने क्या-क्या कहने वाली थी। ज्ञानजी आप कित्ते भले आदमी थी, कित्ते नेक इंसान थे, कित्ते ज्ञानी थी, कित्ते अनुभवी थे, आप क्या-सिखाते रहते थे लेकिन हमने कुछ सीखा नहीं (पल्ले ही नहीं पड़ा) अब हमको कौन् सिखायेगा ये सब ? लेकिन तूने मुझे रुसवा होने से बचा लिया। तू तो घणा समझदार हो गया है रे! चल टिप्पणी कर हिंदी में ‘गेट वेल सून‘ की।
चिठेरा: ‘गेट वेल सून’ को हिंदी में क्या कहेंगे? पता है तेरे को?
चिठेरी: ‘गेट वेल सून’ ही लिख। ज्ञानजी अंग्रेजी पसंद करते हैं।हिंदी पूछेगा तो कोई बता नहीं पायेगा। वहां चिट्ठाकार समूह में एक मुये मोबाइल की हिंदी तो तय नहीं हो पायी है।बना फ़ुटबाल घूम रहा है। तीन शब्द ‘गेट वेल सून’ की कैसे तय होगी?
चिठेरा: एक आइडिया है आयेला है मेरे भेजे में। तू कहे तो बोल दूं?
चिठेरी: बोल न शरमा क्यों रहा है? नेचुरल रह। बेशरम कहीं का।
चिठेरा: ज्ञानजी को और इम्प्रेस करना है तो लिख -’गेट वेल जल्दी’, या फ़िर लिख ‘फ़टाफ़ट गेट वेल’, । ज्ञानजी खिचड़ी के शौकीन हैं। भाषा भी खिचड़ी ही पसंद करते हैं। रायता साथ में हो तो शुभान अल्लाह!
चिठेरी: लेकिन उनके ब्लाग पर कमेंट तो होइच नहीं रहा है। ई कौन सा लफ़ड़ा है?
चिठेरा: वही बात अंतर्मुखी वाली बात है। ज्ञानजी संकोची हैं। वे चाहते नहीं कि लोग उनके लिये सहानुभूति दिखायें।
चिठेरी: तब फ़िर फ़ोटो काये लाने सटायी? का नुमाइश करन चहत हैं वे?
चिठेरा: जा हम पता करिके अबहिं बताउत हैं। तुम हीनै रहौ। ब्लाग पढौ आलतू-फ़ालतू के। इधर-उधर टिपियाओ। आजकल समीरलाल जी भी पस्त हैं। टिप्पणी कम हैं। तुम कुछ कोटा पूरा कर देव।
चिठेरी: तुम तो करमचंद जासूस हो गये यार, कमाल है। ब्लागिंग ने क्या -क्या गुल खिलायें हैं तेरे साथ। जरा जल्दी आना। टीवी के छोटे से कमर्शियल ब्रेक की तरह मत लटकाना।
चिठेरा दौड़ता हुआ गया। भागता हुआ आया। हांफ़ता हुआ बोला
चिठेरी: आओ मेरे जेम्सबांड कुछ सुराग लाये? कुछ पता कर पाये या खाली हाथ आये? अगर खाली हाथ आये हो ये भी जोड़ के सुनो- क्या सोच के आये थे? चिठेरी खुश होगी? शाबासी देगी?
चिठेरा: पक्का तो पता नहीं चला लेकिन कुछ कयास लगे हैं कुछ अफ़वाहें हैं कि ज्ञानजी की इस फ़ोटो के पीछे क्या कारण है?
चिठेरी: बता, बता जल्दी बता। हमें पसीना आ रहा है बोले तो -आयम स्वेटिंग।
चिठेरा: बताता हूं , बताता हूं। हड़बड़ी मती कर। आराम से रह। पता चला है कि ज्ञानजी को किसी ने काम थमा दिया कि वे सुबह पोस्ट लिखने से पहले सारे ब्लागर की कवितायें पढ़ेंगे। उन पर टिपियायेंगे। जिस पर कुछ समझ नहीं आयेगा उस कविता की कोई दो-तीन लाइने नीचे कोट करके लिखेंगे- बहुत खूब! बहुत सुन्दर,लाजबाब। और भी टाइम कम हुआ तो लिखेंगे -वाह! कविता बहुत सुन्दर बन पड़ी है? (हमें आज तक समझ में नहीं आता कि कविता अगर सुन्दर है तो बन के पढ़ी काहे रहती है। ठिकाने काहे नहीं लगती) इसी से ज्ञानजी अवसाद में आ गये और उन्होंने जो किया उसी की यह फोटो।
चिठेरी: कोई भी संवेदनशील व्यक्ति ऐसे में यही करेगा। उस पर ज्ञानजी तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा ओह सारी सोने में सुहागा संवेदनशील होने के साथ चिंतनशील भी हैं। उनको इसका दुख तो होगा ही। लेकिन ज्ञानजी तो खुद कभी -कभी लम्बी कवितायें झेलाते थे। इत्ते से इत्ता दुखी नहीं हुये होंगे। दूसरा कारण जो पता लगा वो बताओ।
चिठेरा: दूसरी अफ़वाह यह है कि ज्ञानजी को किसी ने खबर दी कि मोहल्ले वाले अविनाश उनकी पोस्ट की तारीफ़ अपने मोहल्ले में करना चाहते हैं। साथ ही ज्ञानजी की पोस्ट भी मोहल्ले में छापना चाहते हैं। इससे ज्ञानजी घबड़ा गये और ये अपना ये हाल बना लिया।
चिठेरी: वो तो कोई भी करेगा भाई। लोग ऐसेइच थोड़ी कहते हैं कि जिसको अपनी इज्जत का जुलूस निकलवाना हो वो मोहल्ले से जुड़ जाये। अविनाश से दोस्ती के बाद फ़िर किसी और दुश्मन की दरकार नहीं रहती। आज ही देखो असद जैसी का जुलूस निकाल दिया। इज्जत के साथ। ज्ञानजी के पास ले दे के एक इज्जत ही बची है। वो भी हाथ से निकल जायेगी यह सोचकर डरता तो है आदमी। लेकिन वे इत्ता भी ड्ररपोंक नहीं। जब वे चोखेरवालियों की लानत-मनालत से नहीं डरे नहीं तो अविनाश से क्या डर? और कोई फ़ड़कती हुयी अफ़वाह सुना।
चिठेरा: कुछ अगड़म-बगडम अफ़वाहबाज यह भी कहते पाये गये कि कुछ खुराफ़ातियों की अतिप्रेम के चलते ज्ञानजी का नाम विपाशा, मल्लिका, राखी सावंत से जुड़ा देखकर उनके दफ़्तर में उनके बास ने समझा कि शायद ज्ञानजी उनसे सही में इन लोगों से बतियाते हैं। उनने एक दिन मौका पाकर कहा होगा ज्ञानजी कभी हमको भी इन लोगों से बात कराइये आप अकेले करते हैं वो बोर हो जाती होंगी। ज्ञानजी ब्लागर जनित शरारत का ये परिणाम , अपने बास की व्यक्तिगत मामले में दखलंदाजी और लोग उनसे बोर हो जाते होंगे सोचकर दुखी हो गये और इस अवस्था को प्राप्त हुये।
चिठेरी: सच्ची में बहुत बदमाश हैं ये ब्लागर लोग। अच्छे-भले आदमी को इत्ता परेशान कर दिया। लेकिन ज्ञानजी जैसे शरीफ़ से लगने वाले आदमी का नाम किस शरारती ब्लागर ने विपाशा, मल्लिका से जोड़ा?
चिठेरा: अब ये ही न पूछो। ये सबं आलोक पुराणिक का काम है। हैं अध्यापक लेकिन हरकतें अगड़म-बगड़म करते हैं। बच्चों के बहाने दुनिया भर में तमाम बेसिर पैर की बातें लिखते रहते हैं। जब देखो तब विपाशा, मल्लिका, राखी से बतियाते हैं। घर में जब उनके फोन आते हैं और माता कहती हैं- आलोक, तेरे पास विपाशा के फोन क्यों आते हैं? मल्लिका भी तुमको आलोक डियर कहकर पूछ रही है। देख रही हूं तू बिगड़ रहा है। तब आलोक पुराणिक सिटपिटाके कहते हैं- कुछ नहीं माताजी ये अपना रिजर्वेशन कन्फ़र्म करने के लिये ज्ञानजी से सिफ़ारिश करने के लिये कहती हैं। आजकल चुनाव के टिकट भले मिल जायें लेकिन रेल की बर्थ न मिलती है। ज्ञानजी बड़े भले आदमी हैं वो सबका काम करने का प्रयास करते हैं।
चिठेरी: लेकिन कब तक छुपेगा यह सब। कभी तो सामने आयेगा। आलोक पुराणिक को संभल जाना चाहिये और अगड़म-बगड़म हरकतें विपाशा,मल्लिका च राखी के साथ चाहे भले करें लेकिन ज्ञानजी से उनका नाम नहीं जोड़ना चाहिये। खैर फिर कैसे ठीक हुये ज्ञानजी?
चिठेरा: ऊ फ़ुरसतिया हैं न। उनके ब्लाग पर एक पोस्ट पढ़ी कि जीवन अपने आप में अमूल्य है। उसी से उत्साहित हुये। गरदन की रस्सी पहले ठोंढ़ीं तक लाये। फोटो खिंचवाये और फ़ुरसतिया की तारीफ़ में पोस्ट ठेल दी।
चिठेरी: ई फ़ुरसतिया की तारीफ़ में पोस्ट ठेलने के बावजूद फ़ुरसतिया ऐसा क्यों लिखते हैं कि ज्ञानजी ने उनकी कायदे से तारीफ़ नहीं की?
चिठेरा: इसके पीछे दो कारण हैं:
पहला कारण तो यह कि फ़ुरसतिया जानते हैं कि गोल-मोल तारीफ़ है। ज्ञानजी बड़े अधिकारी हैं। ऐसे लोगों को जब कुछ समझ नहीं आता तो किसी की तारीफ़ करने लगते हैं। कुछ उसी तरह से कि मिश्रा जी शुक्लाजी की इज्जत करते हैं, शुक्लाजी पाण्डेयजी की इज्जत करते हैं, पाण्डेयजी तिवारीजी की इज्जत करते हैं। सब एक दूसरे की इज्जत करते हैं कोई ससुरा काम की बात नहीं करता। उसी तर्ज पर तारीफ़ हो रही है, वो भी संदिग्घ।
दूसरी बात फ़ुरसतिया को पता है कि ज्ञानजी की तबियत अभी ठीक नहीं हैं। लोग बीमारी की हालत में जाने क्या-क्या कह जाते हैं। उसकी बुरा नहीं मानना चाहिये। तबियत ठीक होते ही सब नार्मल हो जाता है।
चिठ्रेरी: लेकिन अपनी अगली पोस्ट में तो ज्ञानजी ने बोल्ड होकर सीन दिया है जी- और लिखा भी है
चिठेरा: हां सही है। लिख तो वे यह भी सकते हैं कि ज्ञानजी आपकी इस तारीफ़ से हमारे मन में भावुकता का ज्वार सड़क पर जमे बरसाती पानी की उमड़ रहा है। पानी उतरने का नाम नहीं ले रहा है। हमारा मन-मयूर बेशरम ,बेलगाम होकर आनन्दनृत्य करना चाहता है लेकिन डरता है कि नृत्यावस्था में ही किसी खुले मेन होल में न समा जाये। इसलिये मन मयूर आपके ब्लाग पर हमारे लिये टिप्पणी की सुविधा सा अपने पैर बन्द किये मन-मोरनी को लाइन मार रहा है और आई लव यू माई डार्लिंग कहते हुये मार्ड्न होने का भ्रम पाल रहा है।
चिठेरी: तुम भी सावन के अन्धे हो रहे हो डियर?
चिठेरा: तुम हमको डियर बोली?
चिठेरी: हां, बोली। हजार बार बोलूंगी! क्या कर लोगे?
चिठेरा: हम क्या कर लेंगे। तुम ही कुछ करो न। एक बार फ़िर बोलो न! अभी नौ सौ निन्यानबे बार बोलना बकाया है।
चिठेरी: चल भाग मुये अनाम ब्लागर कहीं के। बता आगे के हाल सुना। टाइम मत खोटी कर। सुबह सबको पढ कर अपने-अपने काम धंधे से लगना होता है। ये बता ये फ़ुरसतिया चाहता क्या है जी। उसको ब्रिलियेंटेस्ट कह दिया ज्ञानजी ने। दिल से कह दिया। अब और क्या चाहिये उसे?
चिठेरा: फ़ुरसतिया की असल में अंग्रेजी कमजोर है। उन्होंने जब से ज्ञानजी का लिखा पढ़ा कि फुरसतिया हिन्दी ब्लॉगरी के ब्रिलियेण्टेस्ट स्टार हैं! तब से उन्होंने अंग्रेजी की सारी डिक्शनरी पलट डालीं। कहीं ब्रिलियेंटेस्ट न मिला। तो उनको लग रहा है कि ज्ञानजी उनको एक बार फ़िर ब्लागर बना गये। यह मानने का उनका दूसरा लाजिक भी है वो यह कि ज्ञानजी ने यह पोस्ट हास्य-व्यंग्य के अंतर्गत लिखी है। जहां इसके बहाने फ़ुरसतिया उचकने लगेंगें तहां ज्ञानजी कह देंगे कि वो तो हमने मजाक किया था। अब बताओ इसका क्या किया जाये। शक की दवा तो हकीम डा.टंडन के पास भी नहीं है।
चिठेरी: बात तो सही है। लेकिन जब ज्ञानजी कह रहे हैं तो मान लेना चाहिये उसको भी। मजाक में सही, कोई तो उनको ब्रिलियेंट तो कह रहा है। लोग अभी तक उनको कूपमडूक, कूढ़मगज जैसी फ़ंटूश और नेचुरल टाइप की उपाधियां मिलीं इसलिये थोड़ा अटपटा तो लगता है लेकिन अब अगर किसी का मन कुछ दूसरा कहने का हो रहा है तो उस पर ज्यादा नखरे नहीं दिखाना चाहिये। आजकल कहां किसी के पास इत्ती फ़ुरसत है कि कोई किसी के बारे में झूठी ही सही तारीफ़ करे। ज्ञानजी कह रहे हैं तो मान लेने में फ़ुरसतिया की चिरकुटई में कोई कमी न आ जायेगी।
चिठेरा: सही है। चलो अब ज्ञानजी को डिस्टर्ब न करो। सोने दो। वैसे भी उनको नींद कम आती है। यहां तुम चोंचें लडाओगी तो वे और सो न पायेंगे।
चिठेरी: अरे मुये मुझे कहता है चोंचे लड़ा रही हूं। फ़ुरसतिया बना बैठा बातें तू छांट रहा है। जा मैं तेरे से अपना समर्थन वापस लेती हूं।
चिठेरा-चिठेरी समर्थन वापसी पर गिरी हुयी सरकार की तरह पड़े हुये हैं। अवसरवादी नेता कह रहे हैं क्या खूब सरकार गिर पड़ी है। गोया कोई ब्लागर टिपियाता हुआ कहे- क्या खूब कविता बन पड़ी है।
अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
ज्ञानजी हिंदी ब्लागजगत के मार्निंग ब्लागर हैं
ज्ञानजी
ज्ञानजी हिंदी
ब्लाग जगत मार्निंग ब्लागर हैं। इधर सूरज निकला, इधर ब्लाग चढ़ा टाइप। सूरज
भी शायद उनका ब्लाग देखकर निकलता है। कहता होगा- ज्ञानजी की पोस्ट चढ़ गयी
चलो निकला जाये। पढ़के टिपियाया जाये। फ़िर ड्यूटी बजायी जाये। एक दिन बेचारा
इसी ज्ञानजी का ब्लाग ही देखता रह गया और देखता ही रहा। नहीं चढ़ी नई
पोस्ट। वो लम्बी तान के सो गया। सोचिस की शायद अभी सुबह नहीं हुई। बेचारा
शाम तक सोता रहा। शाम को चांद ने उसे कोहनिया के किनारे किया। बोला तुमको
पता नहीं कि आज इतवार है। इतवार को ज्ञानजी भी लम्बी तान के सोते हैं।
बहरहाल!ज्ञानजी ब्लागिंग के अखाड़े में उतरने के पहले अंतर्मुखी टाइप के व्यक्ति थे। अंतर्मुखी होने के कारण वे अपने बारे में तमाम विवरण मय फ़ोटो अपने ब्लाग पर ठेलते रहे। इसके बाद इस मुई ब्लागिंग ने उनको कहीं का नहीं छोड़ा और उनका सारा पर्सोना गड़बड़ा गया और उनका ट्रांस्फ़ार्मेशन हो गया। अब जब उनका रूपान्तरण हुआ उनका आवाहन है ब्लागिंग से सबका रूपान्तरण। मतलब एक को खुदा दिखें तो सबको दिखने चाहिये।
इधर ज्ञानजी मौज ने मौज लेने का काम भी हाथ में लिया है। अच्छा चल निकला है काम। दो खेप मौज ले चुके हैं हमसे। हमसे बोले कि मौज का माहौल बरकरार रहना चाहिये इसके लिये चिठेरा-चिठेरी को बुलाया जाये। अब हम चूंकि ज्ञानजी की इज्जत करते हैं (और कर भी क्या सकते हैं।) लिहाजा उनकी मांग का सम्मान करते हुये चिठेरा-चिठेरी को बुलौआ दे के बुलवाये। उनको जब पता चला कि ज्ञानजी ने उनको बुलाया है तो वे भागते हुये और सीधे ज्ञानजी के ब्लाग पर सर झुका के आशीर्वाद लेने गये। झुका हुआ सर जब उठा तो उनके सामनेज्ञानजी की अस्वस्थता वाली अंतर्मुखी पोस्ट थी। फोटो भी थी। फोटो देखते ही उनकी बातचीत शुरू हो गयी। आप सुनिये। ज्ञानजी को बताइयेगा नहीं। वर्ना वे हंसने लगेंगे और उनकी गरदन दुखेगी। उनको सर्वाइकल है न! च्च,च्च,च्च सर्वाइकल!
ज्ञानजी
चिठेरा: हाय दैया, ई का हुआ चिठेरी? ज्ञानजी की ये क्या दशा हुई?चिठेरी: हाय ज्ञान भैया ये क्या किया आपने? हमको किसके भरोसे छोड़े गये?
चिठेरा: अरी चुप कर। तू तो धाकड़ टिप्पणीबाज की तरह पोस्ट देखती ही कमेंट करने वालों की तरह रोने लगी। ध्यान से पढ। ज्ञानजी बीमार हैं। उसी की फोटो लगाकर सबको बता रहे हैं।
चिठेरी: बीमार हैं! मैं तो डर गयी थी। न जाने क्या-क्या सोचने लगी थी। न जाने क्या-क्या कहने वाली थी। ज्ञानजी आप कित्ते भले आदमी थी, कित्ते नेक इंसान थे, कित्ते ज्ञानी थी, कित्ते अनुभवी थे, आप क्या-सिखाते रहते थे लेकिन हमने कुछ सीखा नहीं (पल्ले ही नहीं पड़ा) अब हमको कौन् सिखायेगा ये सब ? लेकिन तूने मुझे रुसवा होने से बचा लिया। तू तो घणा समझदार हो गया है रे! चल टिप्पणी कर हिंदी में ‘गेट वेल सून‘ की।
चिठेरा: ‘गेट वेल सून’ को हिंदी में क्या कहेंगे? पता है तेरे को?
चिठेरी: ‘गेट वेल सून’ ही लिख। ज्ञानजी अंग्रेजी पसंद करते हैं।हिंदी पूछेगा तो कोई बता नहीं पायेगा। वहां चिट्ठाकार समूह में एक मुये मोबाइल की हिंदी तो तय नहीं हो पायी है।बना फ़ुटबाल घूम रहा है। तीन शब्द ‘गेट वेल सून’ की कैसे तय होगी?
चिठेरा: एक आइडिया है आयेला है मेरे भेजे में। तू कहे तो बोल दूं?
चिठेरी: बोल न शरमा क्यों रहा है? नेचुरल रह। बेशरम कहीं का।
चिठेरा: ज्ञानजी को और इम्प्रेस करना है तो लिख -’गेट वेल जल्दी’, या फ़िर लिख ‘फ़टाफ़ट गेट वेल’, । ज्ञानजी खिचड़ी के शौकीन हैं। भाषा भी खिचड़ी ही पसंद करते हैं। रायता साथ में हो तो शुभान अल्लाह!
चिठेरी: लेकिन उनके ब्लाग पर कमेंट तो होइच नहीं रहा है। ई कौन सा लफ़ड़ा है?
चिठेरा: वही बात अंतर्मुखी वाली बात है। ज्ञानजी संकोची हैं। वे चाहते नहीं कि लोग उनके लिये सहानुभूति दिखायें।
चिठेरी: तब फ़िर फ़ोटो काये लाने सटायी? का नुमाइश करन चहत हैं वे?
चिठेरा: जा हम पता करिके अबहिं बताउत हैं। तुम हीनै रहौ। ब्लाग पढौ आलतू-फ़ालतू के। इधर-उधर टिपियाओ। आजकल समीरलाल जी भी पस्त हैं। टिप्पणी कम हैं। तुम कुछ कोटा पूरा कर देव।
चिठेरी: तुम तो करमचंद जासूस हो गये यार, कमाल है। ब्लागिंग ने क्या -क्या गुल खिलायें हैं तेरे साथ। जरा जल्दी आना। टीवी के छोटे से कमर्शियल ब्रेक की तरह मत लटकाना।
चिठेरा दौड़ता हुआ गया। भागता हुआ आया। हांफ़ता हुआ बोला
चिठेरी: आओ मेरे जेम्सबांड कुछ सुराग लाये? कुछ पता कर पाये या खाली हाथ आये? अगर खाली हाथ आये हो ये भी जोड़ के सुनो- क्या सोच के आये थे? चिठेरी खुश होगी? शाबासी देगी?
चिठेरा: पक्का तो पता नहीं चला लेकिन कुछ कयास लगे हैं कुछ अफ़वाहें हैं कि ज्ञानजी की इस फ़ोटो के पीछे क्या कारण है?
चिठेरी: बता, बता जल्दी बता। हमें पसीना आ रहा है बोले तो -आयम स्वेटिंग।
चिठेरा: बताता हूं , बताता हूं। हड़बड़ी मती कर। आराम से रह। पता चला है कि ज्ञानजी को किसी ने काम थमा दिया कि वे सुबह पोस्ट लिखने से पहले सारे ब्लागर की कवितायें पढ़ेंगे। उन पर टिपियायेंगे। जिस पर कुछ समझ नहीं आयेगा उस कविता की कोई दो-तीन लाइने नीचे कोट करके लिखेंगे- बहुत खूब! बहुत सुन्दर,लाजबाब। और भी टाइम कम हुआ तो लिखेंगे -वाह! कविता बहुत सुन्दर बन पड़ी है? (हमें आज तक समझ में नहीं आता कि कविता अगर सुन्दर है तो बन के पढ़ी काहे रहती है। ठिकाने काहे नहीं लगती) इसी से ज्ञानजी अवसाद में आ गये और उन्होंने जो किया उसी की यह फोटो।
चिठेरी: कोई भी संवेदनशील व्यक्ति ऐसे में यही करेगा। उस पर ज्ञानजी तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा ओह सारी सोने में सुहागा संवेदनशील होने के साथ चिंतनशील भी हैं। उनको इसका दुख तो होगा ही। लेकिन ज्ञानजी तो खुद कभी -कभी लम्बी कवितायें झेलाते थे। इत्ते से इत्ता दुखी नहीं हुये होंगे। दूसरा कारण जो पता लगा वो बताओ।
चिठेरा: दूसरी अफ़वाह यह है कि ज्ञानजी को किसी ने खबर दी कि मोहल्ले वाले अविनाश उनकी पोस्ट की तारीफ़ अपने मोहल्ले में करना चाहते हैं। साथ ही ज्ञानजी की पोस्ट भी मोहल्ले में छापना चाहते हैं। इससे ज्ञानजी घबड़ा गये और ये अपना ये हाल बना लिया।
चिठेरी: वो तो कोई भी करेगा भाई। लोग ऐसेइच थोड़ी कहते हैं कि जिसको अपनी इज्जत का जुलूस निकलवाना हो वो मोहल्ले से जुड़ जाये। अविनाश से दोस्ती के बाद फ़िर किसी और दुश्मन की दरकार नहीं रहती। आज ही देखो असद जैसी का जुलूस निकाल दिया। इज्जत के साथ। ज्ञानजी के पास ले दे के एक इज्जत ही बची है। वो भी हाथ से निकल जायेगी यह सोचकर डरता तो है आदमी। लेकिन वे इत्ता भी ड्ररपोंक नहीं। जब वे चोखेरवालियों की लानत-मनालत से नहीं डरे नहीं तो अविनाश से क्या डर? और कोई फ़ड़कती हुयी अफ़वाह सुना।
चिठेरा: कुछ अगड़म-बगडम अफ़वाहबाज यह भी कहते पाये गये कि कुछ खुराफ़ातियों की अतिप्रेम के चलते ज्ञानजी का नाम विपाशा, मल्लिका, राखी सावंत से जुड़ा देखकर उनके दफ़्तर में उनके बास ने समझा कि शायद ज्ञानजी उनसे सही में इन लोगों से बतियाते हैं। उनने एक दिन मौका पाकर कहा होगा ज्ञानजी कभी हमको भी इन लोगों से बात कराइये आप अकेले करते हैं वो बोर हो जाती होंगी। ज्ञानजी ब्लागर जनित शरारत का ये परिणाम , अपने बास की व्यक्तिगत मामले में दखलंदाजी और लोग उनसे बोर हो जाते होंगे सोचकर दुखी हो गये और इस अवस्था को प्राप्त हुये।
चिठेरी: सच्ची में बहुत बदमाश हैं ये ब्लागर लोग। अच्छे-भले आदमी को इत्ता परेशान कर दिया। लेकिन ज्ञानजी जैसे शरीफ़ से लगने वाले आदमी का नाम किस शरारती ब्लागर ने विपाशा, मल्लिका से जोड़ा?
चिठेरा: अब ये ही न पूछो। ये सबं आलोक पुराणिक का काम है। हैं अध्यापक लेकिन हरकतें अगड़म-बगड़म करते हैं। बच्चों के बहाने दुनिया भर में तमाम बेसिर पैर की बातें लिखते रहते हैं। जब देखो तब विपाशा, मल्लिका, राखी से बतियाते हैं। घर में जब उनके फोन आते हैं और माता कहती हैं- आलोक, तेरे पास विपाशा के फोन क्यों आते हैं? मल्लिका भी तुमको आलोक डियर कहकर पूछ रही है। देख रही हूं तू बिगड़ रहा है। तब आलोक पुराणिक सिटपिटाके कहते हैं- कुछ नहीं माताजी ये अपना रिजर्वेशन कन्फ़र्म करने के लिये ज्ञानजी से सिफ़ारिश करने के लिये कहती हैं। आजकल चुनाव के टिकट भले मिल जायें लेकिन रेल की बर्थ न मिलती है। ज्ञानजी बड़े भले आदमी हैं वो सबका काम करने का प्रयास करते हैं।
चिठेरी: लेकिन कब तक छुपेगा यह सब। कभी तो सामने आयेगा। आलोक पुराणिक को संभल जाना चाहिये और अगड़म-बगड़म हरकतें विपाशा,मल्लिका च राखी के साथ चाहे भले करें लेकिन ज्ञानजी से उनका नाम नहीं जोड़ना चाहिये। खैर फिर कैसे ठीक हुये ज्ञानजी?
चिठेरा: ऊ फ़ुरसतिया हैं न। उनके ब्लाग पर एक पोस्ट पढ़ी कि जीवन अपने आप में अमूल्य है। उसी से उत्साहित हुये। गरदन की रस्सी पहले ठोंढ़ीं तक लाये। फोटो खिंचवाये और फ़ुरसतिया की तारीफ़ में पोस्ट ठेल दी।
चिठेरी: ई फ़ुरसतिया की तारीफ़ में पोस्ट ठेलने के बावजूद फ़ुरसतिया ऐसा क्यों लिखते हैं कि ज्ञानजी ने उनकी कायदे से तारीफ़ नहीं की?
चिठेरा: इसके पीछे दो कारण हैं:
पहला कारण तो यह कि फ़ुरसतिया जानते हैं कि गोल-मोल तारीफ़ है। ज्ञानजी बड़े अधिकारी हैं। ऐसे लोगों को जब कुछ समझ नहीं आता तो किसी की तारीफ़ करने लगते हैं। कुछ उसी तरह से कि मिश्रा जी शुक्लाजी की इज्जत करते हैं, शुक्लाजी पाण्डेयजी की इज्जत करते हैं, पाण्डेयजी तिवारीजी की इज्जत करते हैं। सब एक दूसरे की इज्जत करते हैं कोई ससुरा काम की बात नहीं करता। उसी तर्ज पर तारीफ़ हो रही है, वो भी संदिग्घ।
दूसरी बात फ़ुरसतिया को पता है कि ज्ञानजी की तबियत अभी ठीक नहीं हैं। लोग बीमारी की हालत में जाने क्या-क्या कह जाते हैं। उसकी बुरा नहीं मानना चाहिये। तबियत ठीक होते ही सब नार्मल हो जाता है।
चिठ्रेरी: लेकिन अपनी अगली पोस्ट में तो ज्ञानजी ने बोल्ड होकर सीन दिया है जी- और लिखा भी है
फुरसतिया हिन्दी ब्लॉगरी के ब्रिलियेण्टेस्ट स्टार हैं!
इसके बाद तो फ़ुरसतिया को ज्ञानजी की तारीफ़ सच्ची मानकर विनयावत होकर फ़र्शी सलाम बजाते हुये शुक्रिया अदा करना चाहिये। लिखना चाहिये- आपके प्यार और अपनेपन से मैं अविभूत हूं, मैं तो अदना सा( चिरकुट टू बि मोर प्रसाइज) ब्लागर हूं। आप हमारी चिरकुटई को इत्ता भाव दे रहे हैं यह आपका बड़प्पन है ,जर्रानवाजी है वर्ना कौन हम जैसे चिरकुटों को पूछता है। दुनिया में एक से एक बड़े चिरकुट पड़े हैं।चिठेरा: हां सही है। लिख तो वे यह भी सकते हैं कि ज्ञानजी आपकी इस तारीफ़ से हमारे मन में भावुकता का ज्वार सड़क पर जमे बरसाती पानी की उमड़ रहा है। पानी उतरने का नाम नहीं ले रहा है। हमारा मन-मयूर बेशरम ,बेलगाम होकर आनन्दनृत्य करना चाहता है लेकिन डरता है कि नृत्यावस्था में ही किसी खुले मेन होल में न समा जाये। इसलिये मन मयूर आपके ब्लाग पर हमारे लिये टिप्पणी की सुविधा सा अपने पैर बन्द किये मन-मोरनी को लाइन मार रहा है और आई लव यू माई डार्लिंग कहते हुये मार्ड्न होने का भ्रम पाल रहा है।
चिठेरी: तुम भी सावन के अन्धे हो रहे हो डियर?
चिठेरा: तुम हमको डियर बोली?
चिठेरी: हां, बोली। हजार बार बोलूंगी! क्या कर लोगे?
चिठेरा: हम क्या कर लेंगे। तुम ही कुछ करो न। एक बार फ़िर बोलो न! अभी नौ सौ निन्यानबे बार बोलना बकाया है।
चिठेरी: चल भाग मुये अनाम ब्लागर कहीं के। बता आगे के हाल सुना। टाइम मत खोटी कर। सुबह सबको पढ कर अपने-अपने काम धंधे से लगना होता है। ये बता ये फ़ुरसतिया चाहता क्या है जी। उसको ब्रिलियेंटेस्ट कह दिया ज्ञानजी ने। दिल से कह दिया। अब और क्या चाहिये उसे?
चिठेरा: फ़ुरसतिया की असल में अंग्रेजी कमजोर है। उन्होंने जब से ज्ञानजी का लिखा पढ़ा कि फुरसतिया हिन्दी ब्लॉगरी के ब्रिलियेण्टेस्ट स्टार हैं! तब से उन्होंने अंग्रेजी की सारी डिक्शनरी पलट डालीं। कहीं ब्रिलियेंटेस्ट न मिला। तो उनको लग रहा है कि ज्ञानजी उनको एक बार फ़िर ब्लागर बना गये। यह मानने का उनका दूसरा लाजिक भी है वो यह कि ज्ञानजी ने यह पोस्ट हास्य-व्यंग्य के अंतर्गत लिखी है। जहां इसके बहाने फ़ुरसतिया उचकने लगेंगें तहां ज्ञानजी कह देंगे कि वो तो हमने मजाक किया था। अब बताओ इसका क्या किया जाये। शक की दवा तो हकीम डा.टंडन के पास भी नहीं है।
चिठेरी: बात तो सही है। लेकिन जब ज्ञानजी कह रहे हैं तो मान लेना चाहिये उसको भी। मजाक में सही, कोई तो उनको ब्रिलियेंट तो कह रहा है। लोग अभी तक उनको कूपमडूक, कूढ़मगज जैसी फ़ंटूश और नेचुरल टाइप की उपाधियां मिलीं इसलिये थोड़ा अटपटा तो लगता है लेकिन अब अगर किसी का मन कुछ दूसरा कहने का हो रहा है तो उस पर ज्यादा नखरे नहीं दिखाना चाहिये। आजकल कहां किसी के पास इत्ती फ़ुरसत है कि कोई किसी के बारे में झूठी ही सही तारीफ़ करे। ज्ञानजी कह रहे हैं तो मान लेने में फ़ुरसतिया की चिरकुटई में कोई कमी न आ जायेगी।
चिठेरा: सही है। चलो अब ज्ञानजी को डिस्टर्ब न करो। सोने दो। वैसे भी उनको नींद कम आती है। यहां तुम चोंचें लडाओगी तो वे और सो न पायेंगे।
चिठेरी: अरे मुये मुझे कहता है चोंचे लड़ा रही हूं। फ़ुरसतिया बना बैठा बातें तू छांट रहा है। जा मैं तेरे से अपना समर्थन वापस लेती हूं।
चिठेरा-चिठेरी समर्थन वापसी पर गिरी हुयी सरकार की तरह पड़े हुये हैं। अवसरवादी नेता कह रहे हैं क्या खूब सरकार गिर पड़ी है। गोया कोई ब्लागर टिपियाता हुआ कहे- क्या खूब कविता बन पड़ी है।
मेरी पसन्द
Posted in बस यूं ही | Tagged आलोक पुराणिक, ज्ञानजी, मौज, समीरलाल, हिंदीब्लाग, features | 29 Responses
सुकुल चुपाय बइठे रहें, अउर लोग गावत रहें
….. ऒऎ हॊयॆ माँजैं तोपिया टुपुर टुपुर, ..अइयईय्या सुकुल सुकुल .. अइयईय्या सुकुल सुकुल
हम फिन्से लउट आये, सिरिफ़ ई बताने को…कि हमसे अभिन एक बड़ा अविष्कार हुई गवा है
चिट्ठाकार समूः वालन को सूचना दै दीन जाये कि गेट वेल सून की सुध्ध हिंदी अविष्कार कई लिया गवा है
गेट वेल सून = लाओ कुँआ शीघ्र ही = शीघ्र ही कुँआ लाओ…ठिक्कै बोले न, बिल्कुलै स्वीट एंड सिम्पल……
गेट वेल सून….मतलब फाटक और कुँआ दुन्नो सूना हैं.
भोत टेम लगता है पढ़ने में. बाकि चकाचका.
काफी दिनों बाद पढ़ा आपको इसलिए लंबा भी झेल गए कोई वान्दा नई।
बाकी रही बात ज्ञान जी के मॉर्निंग ब्लॉगर होने की तो एकदम सहमत है भले कभी मॉर्निंग में पढ़ नही सका उनका ब्लॉग, हे हे हे!
“ज्ञानजी बड़े अधिकारी हैं। ऐसे लोगों को जब कुछ समझ नहीं आता तो किसी की तारीफ़ करने लगते हैं। कुछ उसी तरह से कि मिश्रा जी शुक्लाजी की इज्जत करते हैं, शुक्लाजी पाण्डेयजी की इज्जत करते हैं, पाण्डेयजी तिवारीजी की इज्जत करते हैं। सब एक दूसरे की इज्जत करते हैं कोई ससुरा काम की बात नहीं करता।”
“फ़ुरसतिया को पता है कि ज्ञानजी की तबियत अभी ठीक नहीं हैं। लोग बीमारी की हालत में जाने क्या-क्या कह जाते हैं। उसकी बुरा नहीं मानना चाहिये। तबियत ठीक होते ही सब नार्मल हो जाता है।”
जय हो ! बलिहारी !
चिठेरा-चिठेरी बहुत दिन बाद आए . पर क्या खूब आए .
ज्ञान जी तो हिंदी ब्लॉग-संगम के औघड़ हैं . जिसकी तारीफ़ की वह तो तरा ही,जिसको गरिया दिया (हालांकि इस कला में अभी थोड़ा कच्चापन है) उसका भी बेड़ा पार .
हां! इसका फ़ैसला भी आज ही कर दीजिए कि यदि’ज्ञानजी हिंदी ब्लागजगत के मार्निंग ब्लागर हैं’ तो ईवनिंग ब्लॉगर कौन है ?
झाड़े रहिए कलट्टरगंज .
इसे कहते हैं मीठी छुरी से हलाली!
(ऑन रिकार्ड) वाह बहुत बढ़िया लिखा जी।
फुरसतिया बहुत स्वीट हैं। बोले तो हिन्दी ब्लॉगरी की रसमलाई!
नीरज
गुड मार्निंग ब्लॉगर.
ज्ञान नहीं
विज्ञान ब्लॉगर.
सोते हैं देर तक
पर पोस्ट जग जाती है
लग जाती है.
माना है उन्होंने
जाना है सबने
सच है बिल्कुल.
सबके कार्टून बना दिए
अब कीर्तिश जी क्या करेंगे
नैनो बना दिए हैं
अब चैनो बनायेंगे.
चिठेरी: अरे मुये मुझे कहता है चोंचे लड़ा रही हूं। फ़ुरसतिया बना बैठा बातें तू छांट रहा है। जा मैं तेरे से अपना समर्थन वापस लेती हूं।
” ha ha ha ha ha ha ha hahahahaha ha ha ha ha ha ha mind blowing, fatastic, ha ha ha ”
Regards