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परेशान होने का मौसम
By फ़ुरसतिया on August 31, 2009
आजकल परेशान होने का मौसम है। आदमी को और कुछ आये चाहे न आये परेशान
होना आना चाहिये। बिना परेशानी के गुजर नहीं। आज के समय में अगर कोई परेशान
नहीं है तो समझ लो कछु गड़बड़ है।
पहले के जमाने में लोग लोग लुगाइयों से और वाइस वर्सा परेशान होकर जिन्दगी निकाल लेते थे। लेकिन आज इत्ते भर से काम नहीं चल सकता। बहुत परेशान होना पड़ता है। लोग अपने आस पास से , दुनिया जहान से परेशान होते हैं तब कहीं काम चल पाता है।
परेशान होने के लिये बहुत परेशान नहीं होना पड़ता। आपकी इच्छा शक्ति हो घर बैठे परेशान हो सकते हैं। आजकल तो हर चीज की होम डिलीवरी का चलन है तो परेशानी का काहे नहीं होगा। बैठे-बिठाये हो सकते हैं। तरह-तरह के पैकेज हैं परेशानी के।
अडो़स-पड़ोस में परेशानी के तो पुराने तरीके अभी भी चल रहे हैं धड़ल्ले से। पड़ोस में कुछ आ गया तो हमारे यहां भी आये। पड़ोस बरबाद हुआ तो हम कैसे आबाद रहें। हमारा भी तो पलीता लगना चाहिये।
अपने आस पास हम देखते हैं कि लोग लगातार परेशान हो लेते हैं। गजब का स्टेमिना है। काम हो गया तो परेशान, नहीं हुआ तो परेशान। हो रहा है तब तो खैर परेशान हैं ही। काम के दौरान परेशानी की ही तो तन्ख्वाह मिलती है भैये। उ त होना ही पड़ेगा।
अर्दली से साहब के बारे में पूछो -साहब क्या कर रहे हैं?
अर्दली बतायेगा- साहब परेशान हो रहे हैं।
कभी बतायेगा- अभी तो कुछ नहीं कर रहे हैं लेकिन अब बस परेशान होने ही वाले हैं आप तुरंत आ जाइये कोई काम हो तो। एक बार परेशान मोड में चले गये न जाने कब वापस लौटें? कल सुबह किसी बात पर परेशान हुये तो शाम घर जाने तक उसी बात पर परेशान बने रहे।
कभी कहेगा- साहब आज बड़े परेशान हैं साहब। परेशान होने में मन ही नहीं लग रहा है! कई बार परेशान होने की कोशिश कर चुके सुबह से लेकिन कायदे से परेशान हो ही नहीं पा रहे हैं।
परेशान होने की अपनी-अपनी औकात होती है। कुछ लोग केवल देश-दुनिया के लिये परेशान होकर ही जिन्दगी गुजार देते हैं। देश दुनिया के लिये परेशान हो-होकर अपने घर-परिवार-यार-दोस्तों को परेशान करके रख देते हैं।
आम आदमी ज्यादा लफ़ड़ा नहीं करता परेशान होने में। अनुशासित तरीके से परेशान हो लेता है। दफ़्तर में दफ़्तर से परेशान, घर में घर से परेशान। कुछ कुछ इन्नोवेटिव टाइप के परेशान होने वाले परेशानियों का वज्रगुणन कर लेते हैं- घर में दफ़्तर से परेशान होते हैं और दफ़्तर में घर से। कुछ एकपरेशानीव्रता लोग एक ही चीज से परेशान होते हैं। घर और दफ़्तर दोनों में घर से या दफ़्तर से ही परेशान हो लेते हैं। चाहे जित्ते परेशान हो जायें लेकिन दूसरी और किसी परेशानी की तरफ़ नजर उठाकर नहीं देखते। अपनी अकेली परेशानी से ही हलकान हो लेते हैं। परेशानी से बेवफ़ाई नहीं करते।
आम परेशानी वाला आदमी बहुत हुआ तो शौकिया तौर पर वीकेन्ड में समाज, देश , दुनिया के लिये परेशान हो लेते हैं। कुछ-कुछ उसी तरह जैसे आम आदमी हफ़्ते भर घर के खाने-पीने से ऊबकर शौकिया पर हफ़्ते में एक दिन जाकर माल में पैसे उड़ा आता है। ऊंचे दर्जे का खाना खाकर ऊंचे दर्जे की परेशानी इन्ज्वाय कर आता है। दाल, चावल सब्जी रोटी की चिरकुट परेशानियां छोड़कर तबियत से ग्लोबलाइजेशन-ओबलाइजेशन, उपभोक्ता संस्कृति, भुपभोक्ता संस्कृति जैसी ऊंची परेशानियों के बारे में सोच लेते है।
खास लोग खास तरह परेशान होते हैं। आम लोग की तरह परेशान होने की बात सोचते ही वे परेशान हो जाते हैं। अपने लिये खास तरह की परेशानी का जुगाड़ करते हैं तब परेशान होते हैं। ये नहीं कि परेशान होने की गर्ज में झट से कोई भी परेशानी देखी और फ़ट से परेशान हो जायें। वे अपने लिये खास तरह की परेशानी खोजते-खोजते चाहे जित्त परेशान हो जायें , चाहे जित्ते लोगों को परेशान कर लें लेकिन परेशान अपने ही तरीके से होंगे। किसी दूसरे की तरह परेशान होना उन्होंने सीखा ही नहीं।
आप देखते होंगे कि तमाम लोग जरा-जरा सी बात पर परेशान हो जाते हैं। बहुत संवेदनशील परेशानबाज होते हैं। किसी भी बात पर परेशान हो लेते हैं, किसी के भी साथ हो लेते हैं, न कोई मिला तो इकल्ले हो लेते हैं। होने से मतलब है। जहां मौका मिला, हो लिये। न मिला तब भी हो लिये। ससुरा परेशान होने के लिए क्या मौका खोजना।
तमाम लोग काम की अधिकता से परेशान हो लेते हैं। इस कैटेगरी के तमाम लोग यह भी करते हैं कि परेशान होने के लिये खूब सारा काम इकट्ठा कर लेते हैं तब आराम से परेशान होते रहते हैं। इसके उलट ऐसे लोग भी हैं जिनके पास काम नहीं होता तो परेशान हो जाते हैं। ऐसे लोग भी अपने लिये परेशानी जुगाड़ने के लिये फ़टाफ़ट काम खतम कर लेते हैं फ़िर झटपट काम की कमी का रोना रोते हुये परेशान होते हैं आराम से।
बहुत सारे किस्से हैं जी परिशानियों के। ज्यादा क्या बतायें आप बेकार में परेशान हो जायेंगे।
वनवासी सा गाते रोते,
अब पता चला इस दुनिया में,
सोने के हिरन नहीं होते।
संबध सभी ने तोड़ लिये,
चिंता ने कभी नहीं तोड़े,
सब हाथ जोड़ कर चले गये,
पीड़ा ने हाथ नहीं जोड़े।
सूनी घाटी में अपनी ही
प्रतिध्वनियों ने यों छला हमें,
हम समझ गये पाषाणों में,
वाणी,मन,नयन नहीं होते।
मंदिर-मंदिर भटके लेकर
खंडित विश्वासों के टुकड़े,
उसने ही हाथ जलाये-जिस
प्रतिमा के चरण युगल पकड़े।
जग जो कहना चाहे कहले
अविरल द्रग जल धारा बह ले,
पर जले हुये इन हाथों से
हमसे अब हवन नहीं होते।
–कन्हैयालाल बाजपेयी
पहले के जमाने में लोग लोग लुगाइयों से और वाइस वर्सा परेशान होकर जिन्दगी निकाल लेते थे। लेकिन आज इत्ते भर से काम नहीं चल सकता। बहुत परेशान होना पड़ता है। लोग अपने आस पास से , दुनिया जहान से परेशान होते हैं तब कहीं काम चल पाता है।
परेशान होने के लिये बहुत परेशान नहीं होना पड़ता। आपकी इच्छा शक्ति हो घर बैठे परेशान हो सकते हैं। आजकल तो हर चीज की होम डिलीवरी का चलन है तो परेशानी का काहे नहीं होगा। बैठे-बिठाये हो सकते हैं। तरह-तरह के पैकेज हैं परेशानी के।
अडो़स-पड़ोस में परेशानी के तो पुराने तरीके अभी भी चल रहे हैं धड़ल्ले से। पड़ोस में कुछ आ गया तो हमारे यहां भी आये। पड़ोस बरबाद हुआ तो हम कैसे आबाद रहें। हमारा भी तो पलीता लगना चाहिये।
अपने आस पास हम देखते हैं कि लोग लगातार परेशान हो लेते हैं। गजब का स्टेमिना है। काम हो गया तो परेशान, नहीं हुआ तो परेशान। हो रहा है तब तो खैर परेशान हैं ही। काम के दौरान परेशानी की ही तो तन्ख्वाह मिलती है भैये। उ त होना ही पड़ेगा।
अर्दली से साहब के बारे में पूछो -साहब क्या कर रहे हैं?
अर्दली बतायेगा- साहब परेशान हो रहे हैं।
कभी बतायेगा- अभी तो कुछ नहीं कर रहे हैं लेकिन अब बस परेशान होने ही वाले हैं आप तुरंत आ जाइये कोई काम हो तो। एक बार परेशान मोड में चले गये न जाने कब वापस लौटें? कल सुबह किसी बात पर परेशान हुये तो शाम घर जाने तक उसी बात पर परेशान बने रहे।
कभी कहेगा- साहब आज बड़े परेशान हैं साहब। परेशान होने में मन ही नहीं लग रहा है! कई बार परेशान होने की कोशिश कर चुके सुबह से लेकिन कायदे से परेशान हो ही नहीं पा रहे हैं।
परेशान होने की अपनी-अपनी औकात होती है। कुछ लोग केवल देश-दुनिया के लिये परेशान होकर ही जिन्दगी गुजार देते हैं। देश दुनिया के लिये परेशान हो-होकर अपने घर-परिवार-यार-दोस्तों को परेशान करके रख देते हैं।
आम आदमी ज्यादा लफ़ड़ा नहीं करता परेशान होने में। अनुशासित तरीके से परेशान हो लेता है। दफ़्तर में दफ़्तर से परेशान, घर में घर से परेशान। कुछ कुछ इन्नोवेटिव टाइप के परेशान होने वाले परेशानियों का वज्रगुणन कर लेते हैं- घर में दफ़्तर से परेशान होते हैं और दफ़्तर में घर से। कुछ एकपरेशानीव्रता लोग एक ही चीज से परेशान होते हैं। घर और दफ़्तर दोनों में घर से या दफ़्तर से ही परेशान हो लेते हैं। चाहे जित्ते परेशान हो जायें लेकिन दूसरी और किसी परेशानी की तरफ़ नजर उठाकर नहीं देखते। अपनी अकेली परेशानी से ही हलकान हो लेते हैं। परेशानी से बेवफ़ाई नहीं करते।
आम परेशानी वाला आदमी बहुत हुआ तो शौकिया तौर पर वीकेन्ड में समाज, देश , दुनिया के लिये परेशान हो लेते हैं। कुछ-कुछ उसी तरह जैसे आम आदमी हफ़्ते भर घर के खाने-पीने से ऊबकर शौकिया पर हफ़्ते में एक दिन जाकर माल में पैसे उड़ा आता है। ऊंचे दर्जे का खाना खाकर ऊंचे दर्जे की परेशानी इन्ज्वाय कर आता है। दाल, चावल सब्जी रोटी की चिरकुट परेशानियां छोड़कर तबियत से ग्लोबलाइजेशन-ओबलाइजेशन, उपभोक्ता संस्कृति, भुपभोक्ता संस्कृति जैसी ऊंची परेशानियों के बारे में सोच लेते है।
खास लोग खास तरह परेशान होते हैं। आम लोग की तरह परेशान होने की बात सोचते ही वे परेशान हो जाते हैं। अपने लिये खास तरह की परेशानी का जुगाड़ करते हैं तब परेशान होते हैं। ये नहीं कि परेशान होने की गर्ज में झट से कोई भी परेशानी देखी और फ़ट से परेशान हो जायें। वे अपने लिये खास तरह की परेशानी खोजते-खोजते चाहे जित्त परेशान हो जायें , चाहे जित्ते लोगों को परेशान कर लें लेकिन परेशान अपने ही तरीके से होंगे। किसी दूसरे की तरह परेशान होना उन्होंने सीखा ही नहीं।
आप देखते होंगे कि तमाम लोग जरा-जरा सी बात पर परेशान हो जाते हैं। बहुत संवेदनशील परेशानबाज होते हैं। किसी भी बात पर परेशान हो लेते हैं, किसी के भी साथ हो लेते हैं, न कोई मिला तो इकल्ले हो लेते हैं। होने से मतलब है। जहां मौका मिला, हो लिये। न मिला तब भी हो लिये। ससुरा परेशान होने के लिए क्या मौका खोजना।
तमाम लोग काम की अधिकता से परेशान हो लेते हैं। इस कैटेगरी के तमाम लोग यह भी करते हैं कि परेशान होने के लिये खूब सारा काम इकट्ठा कर लेते हैं तब आराम से परेशान होते रहते हैं। इसके उलट ऐसे लोग भी हैं जिनके पास काम नहीं होता तो परेशान हो जाते हैं। ऐसे लोग भी अपने लिये परेशानी जुगाड़ने के लिये फ़टाफ़ट काम खतम कर लेते हैं फ़िर झटपट काम की कमी का रोना रोते हुये परेशान होते हैं आराम से।
बहुत सारे किस्से हैं जी परिशानियों के। ज्यादा क्या बतायें आप बेकार में परेशान हो जायेंगे।
मेरी पसन्द
आधा जीवन जब बीत गयावनवासी सा गाते रोते,
अब पता चला इस दुनिया में,
सोने के हिरन नहीं होते।
संबध सभी ने तोड़ लिये,
चिंता ने कभी नहीं तोड़े,
सब हाथ जोड़ कर चले गये,
पीड़ा ने हाथ नहीं जोड़े।
सूनी घाटी में अपनी ही
प्रतिध्वनियों ने यों छला हमें,
हम समझ गये पाषाणों में,
वाणी,मन,नयन नहीं होते।
मंदिर-मंदिर भटके लेकर
खंडित विश्वासों के टुकड़े,
उसने ही हाथ जलाये-जिस
प्रतिमा के चरण युगल पकड़े।
जग जो कहना चाहे कहले
अविरल द्रग जल धारा बह ले,
पर जले हुये इन हाथों से
हमसे अब हवन नहीं होते।
–कन्हैयालाल बाजपेयी
वैसे फोटो आज भी अच्छी लगायी है.. बिलकुल पोस्ट के सन्दर्भ से मेल खाती हुई
लिपिस्टिक -सीसा ले के फ़ोटू खिंचाने वाली देवी कित्ता परेसानी में हैं साफ़ दिखाई दे रहा है.
उम्दा!
राजा दुखिया परजा दुखिया तपसी के दुख दूना
कहे कबीरा सब जग दुखिया एको घर ना सूना
बाकी यह परेशानी भी है कि इस जबरदस्त पोस्ट को टिपेरों नें कस कर नहीं टिपियाया तो क्या होगा?
और यह भी परेशानी है कि समीरलाल की पोस्ट से ज्यादा टिपेर दिया लोगों ने तो समीरलाल क्या करेंगे!
परेशानी अनन्त, तस कथा अनन्ता!
व्यंग्य का ये अंदाज़ निराला लगता है मुझे।
और पसंद आपकी है या हमारी ये हम हर बार नही समझ पाते…!
(वाक्य पूरा इसलिए नहीं किया क्योंकि हम चाहते थे कि आप यह सोचते हुए परेशान हों कि आगे क्या लिखता ये?)…:-)
फिर क्यों न परेशान हों ?
अब देखिए न,
आप परेशानी से परेशान हैं,
हम यही सोचकर परेशान हैं कि कन्हैयालाल ‘नंदन’ और कन्हैयालाल बाजपेयी एक ही हैं या अलग-अलग !
रामराम.
“आजकल परेशान होने का मौसम है | ” यह तो एक सदाबहार मौसम है | बारहमासी अमरूद के पेड़ की तरह | फलता भी रहता है झाडता भी रहता है |
जब परेशानी नहीं होती तो इस बात का डर की कोई परेशानी न आ जाय |
लोग परेशानी मुक्त महसूस करने से डरते हैं क्योंकि इससे परेशानी आ जाने का भय रहता है | परेशान रहकर परेशानी के लिए मानसिक पूर्वाभ्यास करते रहते हैं |
परेशान हों या न हो लेकिन यह दिखाना जरूरी है की हम परेशान हैं | लोग खर्चे और परेशानी बढाकर दिखाते हैं और आमदनी छिपाकर बताते हैं | सामने वाले के लिए सबसे ज्यादा परेशानी की बात तब होती है जब आप उसकी परेशानी कम करके आंकते हैं | मैंने यदि आपको बताया की मुझे जुकाम है और आपको हार्दिक दुःख नहीं हुआ (प्रर्दशित नहीं किया) तो आप मुझे निहायत गैर जिम्मेदार और असंवेदनशील नजर आयेंगे | कैसे हैं ? का जवाब कभी पूरे मन से नहीं आता |
इससे हमारे सामाजिक महत्व और बौद्धिकता का पता चलता है | जो परेशान नहीं हैं वो या तो निठल्ले परजीवी हैं या मूर्ख | जिन्हें परेशान होने तक की समझ नहीं है |
इस तरह कहा जा सकता है कि सभ्यता का मतलब परेशान होने की काबिलियत विकसित होना है |
प्रोफेसर हैकल के अनुसार “आप यह बता दीजिये की आप किस बात पर परेशान होते हैं, और मैं बता सकता हूँ कि आप क्या हैं |”
कृपया प्रोफेसर हैकल की खोज न की जाय |
“जले हुये इन हाथों से
हमसे अब हवन नहीं होते।”
असली हाल ये है कि हाथ जलाकर भी हवन करने पर उतारू रहते हैं |
नीरज
जब आप लिखे हैं, त सहीए लीखे होंगे ।
अभी त चरचा का लिंक चर के आ रहे हैं, पोस्ट बाद में पढ़ेंगे
तबहिये डाक्टर अमर छाप असली टिप्पणी देंगे ।
आत्मा परेशान कितनी भी रही हो ,मगर कविता की रचना बहुत सुंदर है ।
(स्माइली नहीं लगा रहे लगा देंगे तो टिप्पडी पर “मौज” का लेबल लग जायेगा)
“”"तमाम लोग यह भी करते हैं कि परेशान होने के लिये खूब सारा काम इकट्ठा कर लेते हैं तब आराम से परेशान होते रहते हैं। इसके उलट ऐसे लोग भी हैं जिनके पास काम नहीं होता तो परेशान हो जाते हैं। ऐसे लोग भी अपने लिये परेशानी जुगाड़ने के लिये फ़टाफ़ट काम खतम कर लेते हैं फ़िर झटपट काम की कमी का रोना रोते हुये परेशान होते हैं आराम से।”"”
ये दोनों कटेगरी हम पर फिट बैठती है
वीनस केसरी
परेशानी पर इत्ता उम्दा आप ही लिखते हैं .
- लावण्या
परेशानी की परेशानी यह है कि यह हो तो परेशानी और न हो तो परेशानी… हम तो यह सोच कर परेशान हो गये कि आप बिना परेशानी के यह परेशानी का पुराण लिख गये।
पहले के जमाने में लोग लोग लुगाइयों से और वाइस वर्सा परेशान होकर जिन्दगी निकाल लेते थे। लेकिन आज इत्ते भर से काम नहीं चल सकता। बहुत परेशान होना पड़ता है। लोग अपने आस पास से , दुनिया जहान से परेशान होते हैं तब कहीं काम चल पाता है।
परेशान होने के लिये बहुत परेशान नहीं होना पड़ता। आपकी इच्छा शक्ति हो घर बैठे परेशान हो सकते हैं। आजकल तो हर चीज की होम डिलीवरी का चलन है तो परेशानी का काहे नहीं होगा। बैठे-बिठाये हो सकते हैं। तरह-तरह के पैकेज हैं परेशानी के।