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संदेशो धोनी से कहियो जाय
By फ़ुरसतिया on December 10, 2012
कल इंग्लैंड ने भारत को फ़िर से रगड़ दिया क्रिकेट में। हरा के धर दिया सात विकेट से।
ये अंग्रेज बड़े बेमंटे हैं। मीडिया की मांग पर भारत की टीम अंग्रेजों की टीम की पुंगी बजा रही थी । इस बीच अंग्रेजों ने खेल शुरु कर दिया। धोखे में खूब रन बना डाले। भारत को हरा दिया। बताओ कहीं ऐसा करना चहिये उनको खेल में। चीटर कहीं के ।
ये अंग्रेज लोग पता नहीं काहे जीतने के लिये खेलते रहते है। भारत की क्रिकेट टींम तो सिर्फ़ खेलने के लिये के खेलती है। देश के लोग न जाने क्यों उसके हार जाने पर इत्ता परेशान होते हैं। आखिर खेलभावना भी तो कोई चीज होती है।
भारत के खिलाड़ी दुनिया के सबसे अच्छे खिलाड़ी हैं। एक-एक खिलाड़ी के पास इत्ती-इत्ती क्रिकेट बची है कि दुनिया भर की टीमों के पास क्या होगी। लेकिन भारतीय खिलाड़ी दिखावे में विश्वास नहीं करते कि हर मैच में अपनी क्रिकेट दिखाते रहें। अपनी क्रिकेट गाढ़े समय के लिये बचा के रखते हैं। वे इंग्लैंड के कप्तान कुक की तरह फ़िजूल खर्चा थोड़ी करते हैं कि लगातार खर्चते रहें। जब कभी मौका आयेगा तो दिखा देंगे निकालकर उसके बाद फ़िर धर लेंगे साल भर के लिये।
भारतीय खिलाड़ी अपनी क्रिकेट उसी तरह दिखाते हैं जिस तरह लोग शादी व्याह में फ़ायरिंग करते हैं। जिस तरह अमेरिका दुनिया के किसी देश पर बहाना बनाकर पाकर हथियारों की आतिशबाजी करता है ताकि सबको पता चल जाये कि अगले के पास और कुछ हो न हो लेकिन हथियार बहुत हैं।
जीत-हार से दांये-बायें होकर जब कभी इस खेल के बारे में सोचते हैं तो लगता है क्रिकेट जैसा वाहियात खेल इस दुनिया में नहीं। दुनिया का कोई समझदार देश क्रिकेट के पीछे इत्ता पगलाया नहीं दिखता जित्ता भारतीय उपमहाद्वीप के देश। इत्ता टाइम बरबाद होता है कि पूछो मती। जित्ता टाइम हम क्रिकेट में बरबाद करते हैं उत्ता किसी काम में लगायें तो जाने कित्ते आगे हो जायें लेकिन आगे होने में वो मजा कहां जो क्रिकेट में डूबे हुये फ़िसड्डी बने रहने में है।
हम दुनिया भर से तमाम बातों में फ़िसड्डी हैं उससे कुछ फ़र्क नहीं पड़ता। क्रिकेट में तो सबसे ज्यादा रिकार्ड अपने पास हैं।
हमें तो लगता है कि अंग्रेजों को 1930-35 साल के आसपास ही पता चल गया होगा कि ये भारत को आजाद तो करना ही पड़ेगा। उनको यह भी डर होगा कि आजाद होते ही अगर ये काम-धाम में जुट गये तो दुनिया भर में सबसे आगे हो जायेंगे। उसका इलाज उन्होंने ये सोचा कि भारतीयों को क्रिकेट सिखा दी जाये। उनको पता रहा होगा कि अगर ये कौम क्रिकेट खेलने लगी तो इसी में मस्त रहेगी। इसके अलावा और कुच्छ नहीं सूझेगा। वही हुआ। अंग्रेज हमें क्रिकेट सिखाकर चले गये। हमें अब क्रिकेट के सिवा कुछ नहीं सूझता। क्रिकेट हमारे लिये गिरधर गोपाल हो गया है। हम मीरा हो गये हैं। हमें क्रिकेट के सिवा कुछ नहीं सूझता।
शहरों में माफ़िया लोग छोटे-छोटे बच्चों को चरत की लत लगाकर जिन्दगी भर के लिये नशे का गुलाम बना देते हैं। अपना धंधा चलाते रहते हैं। वही हाल अंग्रेजों ने हमारे साथ किया। हमको क्रिकेट की लत लगा गये। हमें क्रिकेट के सिवाय अगर कुछ सूझता है तो सिर्फ़ क्रिकेट।
जो लोग देश के विभाजन के लिये जिन्नाजी, नेहरूजी, पटेलजी या फ़िर गांधीजी को दोष देते है। उनको सच्चाई का पता नहीं है। ये सब अंग्रेजों की क्रिकेटिया साजिश का हिस्सा है। उन्होंने हमको पहले क्रिकेट की लत लगाई इसके बाद सोचा कि दुनिया का और कोई देश तो इत्ता पगलाकर क्रिकेट खेलता नहीं। जब कोई क्रिकेट खेलेगा नहीं तो ये भी बंद कर देंगे और प्रगति करने लगेंगे। इसीलिये जाते-जाते उन्होंने भारत का विभाजन कर दिया। उनको पता था कि दो टीमें रहेंगी तो क्रिकेट खेलती रहेंगी। आगे चलकर टीम की कमी पड़ी तो भारत और पाकिस्तान ने मिलकर एक टीम और बना ली- बांगलादेश।
देश में घपला है, घोटाला है, जातिवाद है, आनर किलिंग है, पिछड़ापन है, भुखमरी है। ये सब बहुत कष्टदायक है। इस सबको देखकर बहुत खराब लगता है। दुख होता है। इस दुख से उबरने के लिये क्रिकेट रामबाण दवा है। क्रिकेट के भवसागर में गोते लगाकर हमारे सारे दर्द हवा हो जाते हैं।
क्रिकेट की एक चिरकुट उपलब्धि में हमें अपने सारे दुख बौने लगने लगते हैं। क्रिकेट में एक हार हमारी सारी उपलब्धियों पर पानी फ़ेर देती है। अगर क्रिकेट न होता तो अपन कैसे जीते।
अंग्रेज सच में बड़े बेमंटे थे। जित्ते दिन रहे उत्ते दिन हमें हलकान किये रहे। जाते-जाते हमको क्रिकेट के नशे में डुबाकर चले गये। जिससे उबरने की न तो अपन को कोई सूरत नजर आती है न उबरने का कोई खास मन होता है।
कित्ती हंसी उड़वाओगे भाय।
अपने मन की पिच बनवाये,
लटका-झटका ढेर दिखाये,
खेल-वेल सब भूले लला तुम,
बल्ला इधर घुमाये उधर चलाये।
हार -जीत तौ चलत रहत है,
कछू नीको खेल दिखाओ भाय।
सचिन लला की क्रिकेट कितै है,
वाहू के दरशन करवाओ यार।
हम कहां कहत हैं रोजै जीतो
मुला कछु तौ लाज बचावौ यार।
सूटिंग-ऊटिंग सब कहत रहौ तुम
कुछ हियौं पसीना बहाओ आय।
बड़ी बेइज्जती खराब होय गयी,
कछु नीको खेल दिखाओ भाय।
संदेशो धोनी से कहियो जाय,
कित्ती हंसी उड़वाओगे भाय।
ये अंग्रेज बड़े बेमंटे हैं। मीडिया की मांग पर भारत की टीम अंग्रेजों की टीम की पुंगी बजा रही थी । इस बीच अंग्रेजों ने खेल शुरु कर दिया। धोखे में खूब रन बना डाले। भारत को हरा दिया। बताओ कहीं ऐसा करना चहिये उनको खेल में। चीटर कहीं के ।
ये अंग्रेज लोग पता नहीं काहे जीतने के लिये खेलते रहते है। भारत की क्रिकेट टींम तो सिर्फ़ खेलने के लिये के खेलती है। देश के लोग न जाने क्यों उसके हार जाने पर इत्ता परेशान होते हैं। आखिर खेलभावना भी तो कोई चीज होती है।
भारत के खिलाड़ी दुनिया के सबसे अच्छे खिलाड़ी हैं। एक-एक खिलाड़ी के पास इत्ती-इत्ती क्रिकेट बची है कि दुनिया भर की टीमों के पास क्या होगी। लेकिन भारतीय खिलाड़ी दिखावे में विश्वास नहीं करते कि हर मैच में अपनी क्रिकेट दिखाते रहें। अपनी क्रिकेट गाढ़े समय के लिये बचा के रखते हैं। वे इंग्लैंड के कप्तान कुक की तरह फ़िजूल खर्चा थोड़ी करते हैं कि लगातार खर्चते रहें। जब कभी मौका आयेगा तो दिखा देंगे निकालकर उसके बाद फ़िर धर लेंगे साल भर के लिये।
भारतीय खिलाड़ी अपनी क्रिकेट उसी तरह दिखाते हैं जिस तरह लोग शादी व्याह में फ़ायरिंग करते हैं। जिस तरह अमेरिका दुनिया के किसी देश पर बहाना बनाकर पाकर हथियारों की आतिशबाजी करता है ताकि सबको पता चल जाये कि अगले के पास और कुछ हो न हो लेकिन हथियार बहुत हैं।
जीत-हार से दांये-बायें होकर जब कभी इस खेल के बारे में सोचते हैं तो लगता है क्रिकेट जैसा वाहियात खेल इस दुनिया में नहीं। दुनिया का कोई समझदार देश क्रिकेट के पीछे इत्ता पगलाया नहीं दिखता जित्ता भारतीय उपमहाद्वीप के देश। इत्ता टाइम बरबाद होता है कि पूछो मती। जित्ता टाइम हम क्रिकेट में बरबाद करते हैं उत्ता किसी काम में लगायें तो जाने कित्ते आगे हो जायें लेकिन आगे होने में वो मजा कहां जो क्रिकेट में डूबे हुये फ़िसड्डी बने रहने में है।
हम दुनिया भर से तमाम बातों में फ़िसड्डी हैं उससे कुछ फ़र्क नहीं पड़ता। क्रिकेट में तो सबसे ज्यादा रिकार्ड अपने पास हैं।
हमें तो लगता है कि अंग्रेजों को 1930-35 साल के आसपास ही पता चल गया होगा कि ये भारत को आजाद तो करना ही पड़ेगा। उनको यह भी डर होगा कि आजाद होते ही अगर ये काम-धाम में जुट गये तो दुनिया भर में सबसे आगे हो जायेंगे। उसका इलाज उन्होंने ये सोचा कि भारतीयों को क्रिकेट सिखा दी जाये। उनको पता रहा होगा कि अगर ये कौम क्रिकेट खेलने लगी तो इसी में मस्त रहेगी। इसके अलावा और कुच्छ नहीं सूझेगा। वही हुआ। अंग्रेज हमें क्रिकेट सिखाकर चले गये। हमें अब क्रिकेट के सिवा कुछ नहीं सूझता। क्रिकेट हमारे लिये गिरधर गोपाल हो गया है। हम मीरा हो गये हैं। हमें क्रिकेट के सिवा कुछ नहीं सूझता।
शहरों में माफ़िया लोग छोटे-छोटे बच्चों को चरत की लत लगाकर जिन्दगी भर के लिये नशे का गुलाम बना देते हैं। अपना धंधा चलाते रहते हैं। वही हाल अंग्रेजों ने हमारे साथ किया। हमको क्रिकेट की लत लगा गये। हमें क्रिकेट के सिवाय अगर कुछ सूझता है तो सिर्फ़ क्रिकेट।
जो लोग देश के विभाजन के लिये जिन्नाजी, नेहरूजी, पटेलजी या फ़िर गांधीजी को दोष देते है। उनको सच्चाई का पता नहीं है। ये सब अंग्रेजों की क्रिकेटिया साजिश का हिस्सा है। उन्होंने हमको पहले क्रिकेट की लत लगाई इसके बाद सोचा कि दुनिया का और कोई देश तो इत्ता पगलाकर क्रिकेट खेलता नहीं। जब कोई क्रिकेट खेलेगा नहीं तो ये भी बंद कर देंगे और प्रगति करने लगेंगे। इसीलिये जाते-जाते उन्होंने भारत का विभाजन कर दिया। उनको पता था कि दो टीमें रहेंगी तो क्रिकेट खेलती रहेंगी। आगे चलकर टीम की कमी पड़ी तो भारत और पाकिस्तान ने मिलकर एक टीम और बना ली- बांगलादेश।
देश में घपला है, घोटाला है, जातिवाद है, आनर किलिंग है, पिछड़ापन है, भुखमरी है। ये सब बहुत कष्टदायक है। इस सबको देखकर बहुत खराब लगता है। दुख होता है। इस दुख से उबरने के लिये क्रिकेट रामबाण दवा है। क्रिकेट के भवसागर में गोते लगाकर हमारे सारे दर्द हवा हो जाते हैं।
क्रिकेट की एक चिरकुट उपलब्धि में हमें अपने सारे दुख बौने लगने लगते हैं। क्रिकेट में एक हार हमारी सारी उपलब्धियों पर पानी फ़ेर देती है। अगर क्रिकेट न होता तो अपन कैसे जीते।
अंग्रेज सच में बड़े बेमंटे थे। जित्ते दिन रहे उत्ते दिन हमें हलकान किये रहे। जाते-जाते हमको क्रिकेट के नशे में डुबाकर चले गये। जिससे उबरने की न तो अपन को कोई सूरत नजर आती है न उबरने का कोई खास मन होता है।
मेरी पसंद
संदेशो धोनी से कहियो जाय,कित्ती हंसी उड़वाओगे भाय।
अपने मन की पिच बनवाये,
लटका-झटका ढेर दिखाये,
खेल-वेल सब भूले लला तुम,
बल्ला इधर घुमाये उधर चलाये।
हार -जीत तौ चलत रहत है,
कछू नीको खेल दिखाओ भाय।
सचिन लला की क्रिकेट कितै है,
वाहू के दरशन करवाओ यार।
हम कहां कहत हैं रोजै जीतो
मुला कछु तौ लाज बचावौ यार।
सूटिंग-ऊटिंग सब कहत रहौ तुम
कुछ हियौं पसीना बहाओ आय।
बड़ी बेइज्जती खराब होय गयी,
कछु नीको खेल दिखाओ भाय।
संदेशो धोनी से कहियो जाय,
कित्ती हंसी उड़वाओगे भाय।
Posted in सूचना | 12 Responses
लगता है मैच फ़िक्सिंग बंद हो गया है!
रवि की हालिया प्रविष्टी..एमट्यून्स एचडी – भारत का पहला एचडी म्यूज़िक चैनल : देखा क्या?
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..मन है, तनिक ठहर लूँ
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.किसी की दिहाड़ी पै काहे लात मार रए हो लला
सादर
AKASH की हालिया प्रविष्टी..निकुम्भ का इन्तेजार
Kajal Kumar की हालिया प्रविष्टी..कार्टून:- किस्सा कवि के पिछवाड़े का
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मजेदार !
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राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..ब्लागरी का बाइ-प्रोडक्ट
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..टेंगर
बाकी अँगरेज़ बड़े बेमंटे होने के साथ साथ “कृतघ्न” भी हैं , कोइ आपको बुलाये, खाना खिलाये, घुमाये टहलाये और आप उसी को हराकर निकल लो , ये बात तो गलत हुई न | हमारे खिलाड़ी देखो बहार जाते हैं तो “कृतज्ञता” के साथ हार के आते हैं |
धोनी ने कहा है की वो रेस्पोंसिबिलिटी से भागेंगे नहीं, हम भी कहते हैं मत भागो, कर के दिखाओ कुछ | नहीं तो फिर सीधे टीम से जाना |
मैं सचिन का बहुत बड़ा पंखा हूँ, पर अब लगता है उन्हें भी जाना चाहिए | उनके रहते अगर हम ऐसे हार रहे हैं तो ना होते हुए भी इससे बुरा हारे तो भी चलेगा, कल के लिए कोई नया खिलाड़ी तैयार होगा, पर फिर से बड़े लोग हैं, खुद तय करेंगे कब छोड़ना है क्रिकेट | क्या पता आप ही के सुझाये रिकॉर्ड तोड़ने की सोच रहे हों
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..रोते हुए आते हैं सब !!!