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किसी के जैसा होना मुझे पसंद नहीं- शिखा वार्ष्णेय
By फ़ुरसतिया on December 20, 2012
शिखा वार्ष्णेय के बारे में कुछ लिखते हुये सोच रहे हैं कि उनको जानी-पहचानी (लम्बी नाक वाली) ब्लॉगर लेखिका
कहें या कि लोकप्रिय चिट्ठाकार या फ़िर फ़्री लांसर पत्रकार। इंटरप्रेटर या
फ़िर अनुवादक। यह सोचना झमेले का काम है। आप अपना हिसाब आप तय करो हम तो
उनके बारे में अपनी कही बात दोहरा देते हैं:
लंदनवासी शिखाजी की बेटी नवीं में और बेटा सातवें में पढ़ता है। पति साफ़्टवेयर इंजीनियर हैं। शुरुआत में भारत में पढ़ी-लिखी शिखाजी को लंदन की पढ़ाई बहुत अच्छी लगती है क्योंकि वह ’प्रैक्टिकल’ और कायदे की होती है। बच्चों पर बेवजह दबाब नहीं होता। वहां कैरियर के बारे में बात करते हुये उन्होंने बताया – “कैरियर की जहां तक बात है तो सातवीं के बाद बच्चे की अभिरुचि किस विषय में है उससे शुरुआत की जाती है। फ़िर उसकी पूरी जानकारी बच्चे को दी जाती है। स्कूल से ही सभी सुविधायें और गाइडेंस दी जाती हैं। बच्चा उसी मुताबिक अपना कैरियर तय करता है।“
उनकी पहली किताब स्मृतियों में रूस काफ़ी चर्चा में रही। तीन वर्ष की ब्लॉगिंग के दौरान शिखाजी को तमाम नये-नये पाठक/दोस्त मिले तो ऐसे प्यारे दोस्त भी मिले जिन्होंने उन पर खुश होकर उनके बारे में कहानियां भी लिखीं- थोड़ा मेक अप के साथ , जन्मदिन के मौके पर चेहरे पर केक पोतने के रिवाज की तरह!
जब तक उनसे बातचीत नहीं हुई थी तब तक बातचीत करना उधार था। जब बातचीत हो गयी तो पोस्ट करना उधार हो गया। करीब चार महीने पहले हुई बातचीत पोस्ट करना टलता जा रहा था। आज याद आया कि आज के दिन शिखा जी का जन्मदिन पड़ता है तो सारे आलस्य को धता बताकर उनके साथ हुई बातचीत को आपके सामने पेश कर रहा हूं। बातचीत मूलत: ब्लॉगिंग के इर्द-गिर्द सीमित रही। इधर-उधर, दोस्तों सहेलियों के बारे में पूछने पर शिखाजी ने मामला एकदम गोल-मोल कर दिया। इसलिये गोल-मोल बातचीत को हमने भी छांट दिया।
शिखाजी को उनके जन्मदिन के मौके पर शुभकामनाये देते हुये उनसे हुई बातचीत पेश है।
सवाल: ब्लाग के चक्कर में कैसे पड़ी ?
जबाब: ब्लॉग मेरे लिये चक्कर नहीं है जी!
जबाब: अपना तो जीना है यह। मेरा ब्लॉग मेरा सबसे अच्छा मित्र है। जिससे मैं अपने भाव बांटती हूं।
सवाल: सबसे पहले ब्लाग के बारे में कैसे पता चला?
जबाब: ऑरकुट के साइट बार में कुश की कलम के लिंक से।
सवाल: जब ब्लाग लिखना शुरु किया था तब ज्यादातर कवितायें लिखी थीं आपने- छुटकी-छुटकी!
जबाब: हां उसे मैंने एक इलेक्ट्रानिक डायरी समझा था। इसलिये अपने पेपर वाली डायरी सब वहां ट्रांसफ़र कर दिया था।
सवाल: फ़िरगध्य गद्य लेखन में कैसे आयीं? लेख लिखना कैसे शुरु किया?
जबाब: फ़िर जैसे-जैसे थोड़ा इधर-उधर ब्लॉगस में घूमना शुरु किया तो देखा कि लोग हर विधा में ब्लॉग लिखते है तो मैंने भी लिखना शुरु कर दिया।
जबाब: यह पूछिये कि संस्मरण लिखने का विचार कैसे आया? रूस के संस्मरण तो बहुत बाद में आये। लोग ब्लॉग पर संस्मरण लिखते थे पर मुझे लगता था कि किसी के व्यक्तिगत संस्मरण में पाठक की क्या रुचि हो सकती है। फ़िर एक मित्र ने कहा कि लिखा करो। मैंने फ़िर भी टाल दिया। फ़िर कुछ और मित्र कहने लगे कि अगर संस्मरण में जानकारी हो तो बहुत पठनीय होते हैं इसलिये कोशिश करो तो बस एक्सपेरेमेंट के तौर पर शुरु किया जो बाद में रूस के संस्मरण तक पहुंचा।
सवाल हमने पढ़े हैं आपके संस्मरण पठनीय हैं- एक बार में पढ़ जाने लायक।
जबाब: जी! मुझे रूस के संस्मरण लगातार लिखने के लिये उकसाने में आपके कमेंट का भी हाथ है।
सवाल: आपका एक तकिया कलाम ’यार’ है और दूसरा ’जी’ । दोनों में बहुत दूरी है
जबाब: हम्म! क्या फ़र्क पड़ता है! एक दोस्ताना है। दूसरा इज्जतदार। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं!
सवाल: ब्लाग की शुरु की दुनिया कैसी लगती थी?
जबाब: बहुत अच्छी। एक कैम्पस सा लगता था।
सवाल: हां वही बताया जाये।सवाल: उसके मुकाबले अब कैसी लगती है ब्लाग की दुनिया?
जबाब: अब भी ठीक ही है ….हां काफ़ी लिखने वाले कम हुये हैं? यूं अपने काम से काम रखने वालों के लिये तब और अब एक सा ही है।
सवाल: शुरु में कौन कौन से ब्लाग अच्छे लगते थे!
जबाब: बिल्कुल शुरु में तो अब याद नहीं पर किशोर चौधरी और अनिल कांत की कहानियां काफ़ी पढ़ीं। कविता के भी कुछ ब्लॉग अच्छे थे। अभी नाम याद नहीं आ रहे। शेफ़ाली पाण्डेय को भी काफ़ी समय से पढ़ती रही हूं।
जबाब: जी हां –काफ़ी हद तक।
सवाल: एक कैम्पस सी दुनिया में भी अपने काम से काम रखने वाला कैसे भाई?
जबाब: क्यों नहीं ?
सवाल: रूस के ब्लाग पढ़ती हैं कभी? वहां की समस्यायें लोग लिखते होंगे न ब्लाग में!
जबाब: नहीं ! कभी कोई मित्र लिंक दे देता है तो वैसे नहीं। समस्यायें लिखते होंगे … कभी सोचा नहीं।
सवाल: आजकल कैसे ब्लाग पढ़ती हैं?
जबाब: आजकल तो बहुत ब्लॉगस पढ़ती हूं।
सवाल: कौन कौन से ज्यादातर! कविता के या कहानी के ?
जबाब: सब सिवाय उनके जो विवाद या झगड़ा कराने के लिये या साम्प्रदायिकता फ़ैलाने के लिये लिखे गये हों।
सवाल: ब्लॉग जगत के झगड़े वाले ब्लाग कौन से मानती हैं?
जबाब: ऐसे कोई बंधे हुये ब्लॉग नहीं हैं।
सवाल: कुछ पसंदीदा ब्लाग जो अभी अचानक याद रहे हैं?
जबाब: हथकढ़, बिखरे मोती, घुमंतू। और भी बहुत हैं- ऐसे अचानक नाम याद नहीं आते।
सवाल: ब्लागिंग की सबसे अच्छी चीज क्या लगती है?
जबाब: मौलिक अभिव्यक्ति, बिना बनावट के, सहज भाषा।
सवाल: सबसे खराब?
जबाब: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उसका दुरुपयोग।
सवाल: अपने लेखन की सबसे अच्छी बात क्या लगती है?
जबाब: कुछ भी नहीं। मुझे आज भी कुछ लिखती हूं तो पहली बार में कभी अच्छा नहीं लगता।
सवाल: वाह! अपना सब खराब लेखन हम लोगों को पढ़वाती रहती हैं? दूसरी बार पढ़ने में अच्छा लगता है?
जबाब: हा हा हा। फ़िर लगता कि इतना भी बुरा नहीं!
सवाल: लोगों की तारीफ़ से गलतफ़हमी हो जाती है?
जबाब: जी नहीं ऐसी बात नहीं। तारीफ़ में फ़र्क करना आता है मुझे। फ़िर आप जैसे लोग इतनी भी झूठी तारीफ़ नहीं करेंगे।
सवाल: हम तो खिंचाई करते रहते हैं खासकर कविताओं की!
जबाब: चलिये यही सही! खींच-खींचकर ही अच्छी हो जायेंगी!
सवाल: बहुत लोगों की तारीफ़ के बीच खिचाई वाली टिप्पणी कैसी लगती है ?
जबाब: खाने में थोड़ी मिर्ची सी! स्वाद बढ़ जाता है।
सवाल: आपकी टिप्पणियों के साइज हमेशा छोटा परिवार सुखी परिवार टाइप रहते हैं! कभी -कभी रस्मी टाइप की! सही में ऐसा है कि मुझे ही लगता है?
जबाब: देखिये रस्मी टाइप की टिप्पणियां जो करते हैं वो उनका स्वभाव हो सकता है। बाकी छोटी टिप्पणियों में मुझे कोई बुराई नहीं लगती।
सवाल:गागर में सागर टाइप होती हैं आपकी टिप्पणियां ?
जबाब: हां कह सकते हैं। जरूरी नहीं कि किसी चीज को आधे पेज का लिखा जाये तो ही वह अर्थपूर्ण हो।
जबाब: नहीं मेरा स्वभाव वैसे भी टु द प्वाइंट लिखने वाला है। इसलिये पोस्ट पढ़कर जो मुझे लगता है कम शब्दों में कह देती हूं।
सवाल: आपके पापा वाली पोस्ट मुझे याद आ रही है बहुत आत्मीय पोस्ट थी! अपने पापा के व्यतित्व के किस पहलू के नजदीक अपने को पाती हैं?
जबाब: पाजिटिव , टु द प्वाइंट थिंकिग मुझे शायद उनसे ही मिली है।
सवाल: जहां तक मुझे याद है कि पापा के बारे में आपने लिखते हुये लिखा था कि वे बेहद स्वाभिमानी थे! ये ऊंची नाक वाला स्वभाव के पीछे का कारण भी यही है!
जबाब: हां शायद!
सवाल: कभी -कभी इसे अकड़ भी समझा जा सकता है!
जबाब: बिल्कुल समझा जा सकता है। किसी की समझ पर कोई पहरा नहीं है पर मेरा मानना है कि जो मुझे जानते हैं वो मुझे समझते हैं। और जो मुझे जाने बिना मेरे बारे में राय बनाते हैं उनसे मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। वे जो चाहें सोचने के लिये स्वतंत्र हैं।
जबाब: जी! बिल्कुल।
सवाल: किताब में फ़ाइनल डिग्री पाने का किस्सा बताया आपने उसमें अपनी मेहनत पर भरोसा करने वाली लेखिका टीचर को उपहार देने को तैयार हो जाती है। यह क्या विरोधाभास नहीं है व्यक्तित्व का ?
जबाब: जी बिल्कुल नहीं! वो मेहनत के बिना फ़ल पाने का तरीका नहीं था। बल्कि अपनी मेहनत का हक लेना था।
सवाल:उपहार देकर?
जबाब: अगर आप जो ’डिजर्व’ करते हैं उसे देने की शर्त वही है तो वह भी सही। वैसे वो एक अपरिपक्व उमर का रिएकशन था।
सवाल: ये तो बड़ा परिपक्व जबाब हो गया भाई! वैसे आप अपने जीवन से कितना सम्तुष्ट हैं?
जबाब: जितना एक इंसान हो सकता। भगवान का दिया सब कुछ है जिसपर कोई भी रंज कर सकता है।
सवाल: इन्सान तो असंतुष्ट ही रहते हैं ज्यादातर! ये नहीं वो नहीं ये नहीं कर पाये वो नहीं कर पाये, अपनी काबिलियत के हिसाब से काम नहीं मिला, योग्यता का उपयोग नहीं हुआ! आपके साथ भी ऐसा है ?
जबाब: यानी बहुत निकले मेरे अरमान फ़िर भी कम निकले! ये तो हमेशा सबके ही साथ होता होगा। शुरु-शुरु में जब जॉब छोड़ी थी तब कभी-कभी लगता था लेकिन अब लगता है कि जिस काम के लिये जॉब छोड़ी थी वो भी महत्वपूर्ण है।
सवाल: अच्छा ये बताओ वर्तनी की इत्ती गलतियां क्यों करती हैं आप?
जबाब: उसके बहुत से कारण हैं। सबसे पहला कि बहुत जल्दबाज हूं। जल्दी-जल्दी लिख जाती हूं फ़िर उसके बाद जल्दी-जल्दी पढ़ भी जाती हूं तो नजर से बच जाती हैं अशुद्धियां। दूसरा टाइपिंग मिस्टेक होती हैं। मुझे अभी हिंदी टाइपिंग नहीं आती।
सवाल: कैसे करती हैं टाइपिग?
जबाब: गूगल टूल से । रोमन से हिंदी
जबाब: अब तो बस बच्चे अच्छे काबिल निकल जायें
सवाल: किताब छपने पर कैसा लगा?
जबाब:कैसा लगना चाहिये?
सवाल: आप बताओ जी। लेखक हैं आप।
जबाब: जाहिर है अच्छा ही लगा।
सवाल: खाने में क्या पसंद है?
जबाब: चाट, गोलगप्पे।
सवाल: पहनने में ड्रेस क्या पसंदीदा है?
जबाब: वेस्टर्न में इवनिंग ड्रेसेस और भारतीय पहनावे में साड़ी। पर ज्यादातर जींस पहनती हूं।
सवाल: फ़ेवरिट फ़िल्म?
जबाब: अभी हाल में कहानी और पान सिंह तोमर अच्छी लगी। पहली में कभी-कभी बहुत पसन्द थी। थ्री इडियेट भी अच्छी लगी।
सवाल: फ़ेवरिट गाना।
जबाब: जगजीत सिंह का गीत- होंठो से छू लो तुम।
सवाल: गाती हैं कभी?
जबाब: नहीं।
सवाल: गुनगुनाती तो होंगी- कौन सा गुनगुनाती हैं?
जबाब: सभी। जो भी मन में आ जाये। पर न सुर है न ताल न आवाज- हा हा हा!
सवाल: सही है! हीरो/हीरोइन कौन पसंद हैं?
जबाब: कोई नहीं! मतलब जो फ़िल्म अच्छी लगे उसमें जो हो वही पसन्द हो जाती है।
सवाल: अच्छा! नेताओ प्रसिद्ध व्यक्तियों में आदर्श कौन हैं?
जबाब: बाप रे! नेता भी आदर्श हो सकते हैं? मैं किसी आदर्श में विश्वास कम रखती हूं। किसी के जैसा होना मुझे पसंद नहीं।
सवाल: आपके पति आपका ब्लॉग पढ़ते हैं?
जबाब: नहीं! कभी-कभी कोई लेख ही पढ़ते हैं जो मैं जबरदस्ती पढ़ने को कहूं।
सवाल: बड़े समझदार हैं! ब्लागर साथियों के लिये कुछ कहना चाहेंगी ? संदेश टाइप?
जबाब: हम किसी को कहने वाले कौन होते हैं? सब समझदार हैं यहां!
सवाल: नये ब्लॉगरों के लिये कुछ सुझाव?
जबाब: नई पीढ़ी तो और ज्यादा समझदार है।
सवाल: आप बहुत समझदार हैं जी! गोलमोल जबाब देने में उस्ताद!
जबाब: जी नहीं एकदम सीधे जबाब दिये हैं। आपको सीधे जबाब भी टेढ़ा लगे तो हम क्या करें- हा हा हा।
अब यह आप ही तय कीजिये कि शिखाजी जबाब कैसे हैं सीधे या गोल-मोल।
शिखाजी को एक बार फ़िर से जन्मदिन की मंगलकामनायें।
शिखा जी से अपना परिचय एक ब्लॉगर के नाते ही है। हमारे देखते-देखते उन्होंने उन्होंने अपने रूस प्रवास के संस्मरण लिखने शुरु किये। वे अपन को बेइंतहा पसंद आये। किताब में शामिल लगभग सभी लेख पहले ही बांच भी रखे थे पोस्ट में। खूब तारीफ़ भी उन पोस्टों की। क्या करते अगला संस्मरण पढ़ने का लालच जो था।शिखाजी से बात करना बहुत दिन से उधार था। फ़िर एक दिन दोपहर के बाद जब लंदन में बहुत दिन बाद धूप निकली थी और वहां का मौसम सा रे गा मा टाइप हो रहा था और शिखा जी दोपहर को चावल खाने के बाद आने वाली नींद में अलसाई हुयी थी उनसे बात हुई।
खुदा झूठ न बुलाये इसी झांसे में उनकी तमाम कवितायें भी बांच गये। न केवल बांची बल्कि उम्दा/बेहतरीन/बहुत अच्छा भी कह गये उनके बारे में – यह सोचते हुये कि ये निकल जायेंगी तो फ़िर संस्मरण/लेख भी आयेंगे।
लंदनवासी शिखाजी की बेटी नवीं में और बेटा सातवें में पढ़ता है। पति साफ़्टवेयर इंजीनियर हैं। शुरुआत में भारत में पढ़ी-लिखी शिखाजी को लंदन की पढ़ाई बहुत अच्छी लगती है क्योंकि वह ’प्रैक्टिकल’ और कायदे की होती है। बच्चों पर बेवजह दबाब नहीं होता। वहां कैरियर के बारे में बात करते हुये उन्होंने बताया – “कैरियर की जहां तक बात है तो सातवीं के बाद बच्चे की अभिरुचि किस विषय में है उससे शुरुआत की जाती है। फ़िर उसकी पूरी जानकारी बच्चे को दी जाती है। स्कूल से ही सभी सुविधायें और गाइडेंस दी जाती हैं। बच्चा उसी मुताबिक अपना कैरियर तय करता है।“
उनकी पहली किताब स्मृतियों में रूस काफ़ी चर्चा में रही। तीन वर्ष की ब्लॉगिंग के दौरान शिखाजी को तमाम नये-नये पाठक/दोस्त मिले तो ऐसे प्यारे दोस्त भी मिले जिन्होंने उन पर खुश होकर उनके बारे में कहानियां भी लिखीं- थोड़ा मेक अप के साथ , जन्मदिन के मौके पर चेहरे पर केक पोतने के रिवाज की तरह!
जब तक उनसे बातचीत नहीं हुई थी तब तक बातचीत करना उधार था। जब बातचीत हो गयी तो पोस्ट करना उधार हो गया। करीब चार महीने पहले हुई बातचीत पोस्ट करना टलता जा रहा था। आज याद आया कि आज के दिन शिखा जी का जन्मदिन पड़ता है तो सारे आलस्य को धता बताकर उनके साथ हुई बातचीत को आपके सामने पेश कर रहा हूं। बातचीत मूलत: ब्लॉगिंग के इर्द-गिर्द सीमित रही। इधर-उधर, दोस्तों सहेलियों के बारे में पूछने पर शिखाजी ने मामला एकदम गोल-मोल कर दिया। इसलिये गोल-मोल बातचीत को हमने भी छांट दिया।
शिखाजी को उनके जन्मदिन के मौके पर शुभकामनाये देते हुये उनसे हुई बातचीत पेश है।
सवाल: ब्लाग के चक्कर में कैसे पड़ी ?
जबाब: ब्लॉग मेरे लिये चक्कर नहीं है जी!
मेरा ब्लॉग मेरा सबसे अच्छा मित्र है। जिससे मैं अपने भाव बांटती हूं।
सवाल: धनचक्कर है?जबाब: अपना तो जीना है यह। मेरा ब्लॉग मेरा सबसे अच्छा मित्र है। जिससे मैं अपने भाव बांटती हूं।
सवाल: सबसे पहले ब्लाग के बारे में कैसे पता चला?
जबाब: ऑरकुट के साइट बार में कुश की कलम के लिंक से।
सवाल: जब ब्लाग लिखना शुरु किया था तब ज्यादातर कवितायें लिखी थीं आपने- छुटकी-छुटकी!
जबाब: हां उसे मैंने एक इलेक्ट्रानिक डायरी समझा था। इसलिये अपने पेपर वाली डायरी सब वहां ट्रांसफ़र कर दिया था।
सवाल: फ़िर
जबाब: फ़िर जैसे-जैसे थोड़ा इधर-उधर ब्लॉगस में घूमना शुरु किया तो देखा कि लोग हर विधा में ब्लॉग लिखते है तो मैंने भी लिखना शुरु कर दिया।
मौलिक अभिव्यक्ति, बिना बनावट के, सहज भाषा ब्लॉगिंग की सबसे अच्छी चीज है।
सवाल: रूस वाले संस्मरण लिखने का विचार कैसे आया?जबाब: यह पूछिये कि संस्मरण लिखने का विचार कैसे आया? रूस के संस्मरण तो बहुत बाद में आये। लोग ब्लॉग पर संस्मरण लिखते थे पर मुझे लगता था कि किसी के व्यक्तिगत संस्मरण में पाठक की क्या रुचि हो सकती है। फ़िर एक मित्र ने कहा कि लिखा करो। मैंने फ़िर भी टाल दिया। फ़िर कुछ और मित्र कहने लगे कि अगर संस्मरण में जानकारी हो तो बहुत पठनीय होते हैं इसलिये कोशिश करो तो बस एक्सपेरेमेंट के तौर पर शुरु किया जो बाद में रूस के संस्मरण तक पहुंचा।
सवाल हमने पढ़े हैं आपके संस्मरण पठनीय हैं- एक बार में पढ़ जाने लायक।
जबाब: जी! मुझे रूस के संस्मरण लगातार लिखने के लिये उकसाने में आपके कमेंट का भी हाथ है।
सवाल: आपका एक तकिया कलाम ’यार’ है और दूसरा ’जी’ । दोनों में बहुत दूरी है
जबाब: हम्म! क्या फ़र्क पड़ता है! एक दोस्ताना है। दूसरा इज्जतदार। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं!
सवाल: ब्लाग की शुरु की दुनिया कैसी लगती थी?
जबाब: बहुत अच्छी। एक कैम्पस सा लगता था।
सवाल: हां वही बताया जाये।सवाल: उसके मुकाबले अब कैसी लगती है ब्लाग की दुनिया?
जबाब: अब भी ठीक ही है ….हां काफ़ी लिखने वाले कम हुये हैं? यूं अपने काम से काम रखने वालों के लिये तब और अब एक सा ही है।
सवाल: शुरु में कौन कौन से ब्लाग अच्छे लगते थे!
जबाब: बिल्कुल शुरु में तो अब याद नहीं पर किशोर चौधरी और अनिल कांत की कहानियां काफ़ी पढ़ीं। कविता के भी कुछ ब्लॉग अच्छे थे। अभी नाम याद नहीं आ रहे। शेफ़ाली पाण्डेय को भी काफ़ी समय से पढ़ती रही हूं।
रस्मी टाइप की टिप्पणियां जो करते हैं वो उनका स्वभाव हो सकता है। बाकी छोटी टिप्पणियों में मुझे कोई बुराई नहीं लगती।
सवाल: आप अपने को अपने काम से काम रखने वाला ब्लागर समझती हैं?जबाब: जी हां –काफ़ी हद तक।
सवाल: एक कैम्पस सी दुनिया में भी अपने काम से काम रखने वाला कैसे भाई?
जबाब: क्यों नहीं ?
सवाल: रूस के ब्लाग पढ़ती हैं कभी? वहां की समस्यायें लोग लिखते होंगे न ब्लाग में!
जबाब: नहीं ! कभी कोई मित्र लिंक दे देता है तो वैसे नहीं। समस्यायें लिखते होंगे … कभी सोचा नहीं।
सवाल: आजकल कैसे ब्लाग पढ़ती हैं?
जबाब: आजकल तो बहुत ब्लॉगस पढ़ती हूं।
सवाल: कौन कौन से ज्यादातर! कविता के या कहानी के ?
जबाब: सब सिवाय उनके जो विवाद या झगड़ा कराने के लिये या साम्प्रदायिकता फ़ैलाने के लिये लिखे गये हों।
सवाल: ब्लॉग जगत के झगड़े वाले ब्लाग कौन से मानती हैं?
जबाब: ऐसे कोई बंधे हुये ब्लॉग नहीं हैं।
सवाल: कुछ पसंदीदा ब्लाग जो अभी अचानक याद रहे हैं?
जबाब: हथकढ़, बिखरे मोती, घुमंतू। और भी बहुत हैं- ऐसे अचानक नाम याद नहीं आते।
सवाल: ब्लागिंग की सबसे अच्छी चीज क्या लगती है?
जबाब: मौलिक अभिव्यक्ति, बिना बनावट के, सहज भाषा।
सवाल: सबसे खराब?
जबाब: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उसका दुरुपयोग।
सवाल: अपने लेखन की सबसे अच्छी बात क्या लगती है?
जबाब: कुछ भी नहीं। मुझे आज भी कुछ लिखती हूं तो पहली बार में कभी अच्छा नहीं लगता।
सवाल: वाह! अपना सब खराब लेखन हम लोगों को पढ़वाती रहती हैं? दूसरी बार पढ़ने में अच्छा लगता है?
जबाब: हा हा हा। फ़िर लगता कि इतना भी बुरा नहीं!
सवाल: लोगों की तारीफ़ से गलतफ़हमी हो जाती है?
जबाब: जी नहीं ऐसी बात नहीं। तारीफ़ में फ़र्क करना आता है मुझे। फ़िर आप जैसे लोग इतनी भी झूठी तारीफ़ नहीं करेंगे।
सवाल: हम तो खिंचाई करते रहते हैं खासकर कविताओं की!
जबाब: चलिये यही सही! खींच-खींचकर ही अच्छी हो जायेंगी!
सवाल: बहुत लोगों की तारीफ़ के बीच खिचाई वाली टिप्पणी कैसी लगती है ?
जबाब: खाने में थोड़ी मिर्ची सी! स्वाद बढ़ जाता है।
सवाल: आपकी टिप्पणियों के साइज हमेशा छोटा परिवार सुखी परिवार टाइप रहते हैं! कभी -कभी रस्मी टाइप की! सही में ऐसा है कि मुझे ही लगता है?
जबाब: देखिये रस्मी टाइप की टिप्पणियां जो करते हैं वो उनका स्वभाव हो सकता है। बाकी छोटी टिप्पणियों में मुझे कोई बुराई नहीं लगती।
सवाल:गागर में सागर टाइप होती हैं आपकी टिप्पणियां ?
जबाब: हां कह सकते हैं। जरूरी नहीं कि किसी चीज को आधे पेज का लिखा जाये तो ही वह अर्थपूर्ण हो।
मेरा स्वभाव वैसे भी टु द प्वाइंट लिखने वाला है। इसलिये पोस्ट पढ़कर जो मुझे लगता है कम शब्दों में कह देती हूं।
सवाल: मतलब अपने काम से काम रखने वाली टिप्पणियां?जबाब: नहीं मेरा स्वभाव वैसे भी टु द प्वाइंट लिखने वाला है। इसलिये पोस्ट पढ़कर जो मुझे लगता है कम शब्दों में कह देती हूं।
सवाल: आपके पापा वाली पोस्ट मुझे याद आ रही है बहुत आत्मीय पोस्ट थी! अपने पापा के व्यतित्व के किस पहलू के नजदीक अपने को पाती हैं?
जबाब: पाजिटिव , टु द प्वाइंट थिंकिग मुझे शायद उनसे ही मिली है।
सवाल: जहां तक मुझे याद है कि पापा के बारे में आपने लिखते हुये लिखा था कि वे बेहद स्वाभिमानी थे! ये ऊंची नाक वाला स्वभाव के पीछे का कारण भी यही है!
जबाब: हां शायद!
सवाल: कभी -कभी इसे अकड़ भी समझा जा सकता है!
जबाब: बिल्कुल समझा जा सकता है। किसी की समझ पर कोई पहरा नहीं है पर मेरा मानना है कि जो मुझे जानते हैं वो मुझे समझते हैं। और जो मुझे जाने बिना मेरे बारे में राय बनाते हैं उनसे मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। वे जो चाहें सोचने के लिये स्वतंत्र हैं।
जो मुझे जानते हैं वो मुझे समझते हैं। और जो मुझे जाने बिना मेरे बारे में राय बनाते हैं उनसे मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
सवाल: मतलब आपके बारे में सही समझ न रखने वालों के लिये मामला ’हू केयर्स’ टाइप का है आपकी तरफ़ से?जबाब: जी! बिल्कुल।
सवाल: किताब में फ़ाइनल डिग्री पाने का किस्सा बताया आपने उसमें अपनी मेहनत पर भरोसा करने वाली लेखिका टीचर को उपहार देने को तैयार हो जाती है। यह क्या विरोधाभास नहीं है व्यक्तित्व का ?
जबाब: जी बिल्कुल नहीं! वो मेहनत के बिना फ़ल पाने का तरीका नहीं था। बल्कि अपनी मेहनत का हक लेना था।
सवाल:उपहार देकर?
जबाब: अगर आप जो ’डिजर्व’ करते हैं उसे देने की शर्त वही है तो वह भी सही। वैसे वो एक अपरिपक्व उमर का रिएकशन था।
सवाल: ये तो बड़ा परिपक्व जबाब हो गया भाई! वैसे आप अपने जीवन से कितना सम्तुष्ट हैं?
जबाब: जितना एक इंसान हो सकता। भगवान का दिया सब कुछ है जिसपर कोई भी रंज कर सकता है।
सवाल: इन्सान तो असंतुष्ट ही रहते हैं ज्यादातर! ये नहीं वो नहीं ये नहीं कर पाये वो नहीं कर पाये, अपनी काबिलियत के हिसाब से काम नहीं मिला, योग्यता का उपयोग नहीं हुआ! आपके साथ भी ऐसा है ?
जबाब: यानी बहुत निकले मेरे अरमान फ़िर भी कम निकले! ये तो हमेशा सबके ही साथ होता होगा। शुरु-शुरु में जब जॉब छोड़ी थी तब कभी-कभी लगता था लेकिन अब लगता है कि जिस काम के लिये जॉब छोड़ी थी वो भी महत्वपूर्ण है।
सवाल: अच्छा ये बताओ वर्तनी की इत्ती गलतियां क्यों करती हैं आप?
जबाब: उसके बहुत से कारण हैं। सबसे पहला कि बहुत जल्दबाज हूं। जल्दी-जल्दी लिख जाती हूं फ़िर उसके बाद जल्दी-जल्दी पढ़ भी जाती हूं तो नजर से बच जाती हैं अशुद्धियां। दूसरा टाइपिंग मिस्टेक होती हैं। मुझे अभी हिंदी टाइपिंग नहीं आती।
सवाल: कैसे करती हैं टाइपिग?
जबाब: गूगल टूल से । रोमन से हिंदी
मैं किसी आदर्श में विश्वास कम रखती हूं। किसी के जैसा होना मुझे पसंद नहीं।
सवाल: जिन्दगी के कोई अरमान जो पूरे होने बाकी हों?जबाब: अब तो बस बच्चे अच्छे काबिल निकल जायें
सवाल: किताब छपने पर कैसा लगा?
जबाब:कैसा लगना चाहिये?
सवाल: आप बताओ जी। लेखक हैं आप।
जबाब: जाहिर है अच्छा ही लगा।
सवाल: खाने में क्या पसंद है?
जबाब: चाट, गोलगप्पे।
सवाल: पहनने में ड्रेस क्या पसंदीदा है?
जबाब: वेस्टर्न में इवनिंग ड्रेसेस और भारतीय पहनावे में साड़ी। पर ज्यादातर जींस पहनती हूं।
सवाल: फ़ेवरिट फ़िल्म?
जबाब: अभी हाल में कहानी और पान सिंह तोमर अच्छी लगी। पहली में कभी-कभी बहुत पसन्द थी। थ्री इडियेट भी अच्छी लगी।
सवाल: फ़ेवरिट गाना।
जबाब: जगजीत सिंह का गीत- होंठो से छू लो तुम।
सवाल: गाती हैं कभी?
जबाब: नहीं।
सवाल: गुनगुनाती तो होंगी- कौन सा गुनगुनाती हैं?
जबाब: सभी। जो भी मन में आ जाये। पर न सुर है न ताल न आवाज- हा हा हा!
सवाल: सही है! हीरो/हीरोइन कौन पसंद हैं?
जबाब: कोई नहीं! मतलब जो फ़िल्म अच्छी लगे उसमें जो हो वही पसन्द हो जाती है।
सवाल: अच्छा! नेताओ प्रसिद्ध व्यक्तियों में आदर्श कौन हैं?
जबाब: बाप रे! नेता भी आदर्श हो सकते हैं? मैं किसी आदर्श में विश्वास कम रखती हूं। किसी के जैसा होना मुझे पसंद नहीं।
सवाल: आपके पति आपका ब्लॉग पढ़ते हैं?
जबाब: नहीं! कभी-कभी कोई लेख ही पढ़ते हैं जो मैं जबरदस्ती पढ़ने को कहूं।
सवाल: बड़े समझदार हैं! ब्लागर साथियों के लिये कुछ कहना चाहेंगी ? संदेश टाइप?
जबाब: हम किसी को कहने वाले कौन होते हैं? सब समझदार हैं यहां!
सवाल: नये ब्लॉगरों के लिये कुछ सुझाव?
जबाब: नई पीढ़ी तो और ज्यादा समझदार है।
सवाल: आप बहुत समझदार हैं जी! गोलमोल जबाब देने में उस्ताद!
जबाब: जी नहीं एकदम सीधे जबाब दिये हैं। आपको सीधे जबाब भी टेढ़ा लगे तो हम क्या करें- हा हा हा।
अब यह आप ही तय कीजिये कि शिखाजी जबाब कैसे हैं सीधे या गोल-मोल।
शिखाजी को एक बार फ़िर से जन्मदिन की मंगलकामनायें।
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.
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.जन्मदिन की अशेष शुभकामनाएं
विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..आज के अखबार से .. गुजरात सुरक्षित और हमें अब “श्री” न कहो..
उनकी और उनके ब्लॉग की नाक यूं ही लम्बी बनी रही , ऐसी शुभकामना है ,उनके जन्म दिन पर |
amit srivastava की हालिया प्रविष्टी.." कल हो न हो……….."
बातचीत के बारे में ऐसा है कि आपने लाख प्रयास किया पर उन्होने काफी चतुराई से उत्तर दिया। आप मन टटोलने वाले पत्रकार और वे कुशल वक्ता साबित हुईं।
केवल राम की हालिया प्रविष्टी..हो तुम
ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..हे भगवान! मुझे दुनिया का सबकुछ दे दो
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..टिप्पणियाँ भी साहित्य हैं
आप के कुशल साक्षात्कार के द्वारा शिखा जी को जानने का मौका मिला.
आभार .
Alpana की हालिया प्रविष्टी..बरसे मेघ…अहा!
आपका गिफ्ट लाजवाब लगा … जय हो !
सादर !
Shivam Misra की हालिया प्रविष्टी..क्या सच मे किसी को फर्क पड़ता है !!??
आप के बारे में पद कर सुखद अनुभव हुआ.
ranju की हालिया प्रविष्टी..टीस
मुझे पर्सनली शिखा जी पाजिटिव एनर्जी से भरपूर इंसान लगती हैं. उनकी भाषा भे एकदम सीधी-सादी होती है. यहाँ उनसे मिलकर अच्छा लगा.
aradhana की हालिया प्रविष्टी..Musicians Find a Home on WordPress.com
Happy b’day di..
Aryaman Chetas Pandey की हालिया प्रविष्टी..तासीर.. ! ?
फिर किसी ने कहा, क्या लेखिका दिमाग वाली होती है, फिर से मुझे शिखा याद आ गयी…:D
mukesh sinha की हालिया प्रविष्टी..डी.टी.सी. के बस की सवारी
अब यह इंटरव्यू आपने जितना लंबा खीचना चाहा शिखा जी ने उतना ही शार्ट में निपटा दिया ..
लगता तो यह है कि उन्हें आपका इंटरव्यू लेना चाहिए था ….ये कुछ उल्टा पुल्टा हो गया …
गध्य को गद्य कर लें क्योकि सही शब्द गद्य है! अब एकाध मात्रात्मक गलतियां इस इंटरव्यू में लाजिमी भी था
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..वे उधार लेने वाले
और आप सभी का शुभकामनाओं के लिए तहे दिल से आभार.
शिखा जी को जन्म दिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं !!
संगीता पुरी की हालिया प्रविष्टी..क्या करें क्या न करें 20 और 21 दिसंबर 2012 को ??(लग्न राशिफल)
एक वाक्य का अर्थ मेरी समझ में नहीं आया.. स्पष्टीकरण चाहूँगा..
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“भगवान का दिया सब कुछ है जिसपर कोई भी रंज कर सकता है।”
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अंत में मेरी ओर से भी शुभकामनाएँ, जन्म दिन की और आपको इस शानदार इंटरव्यू की!!
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..(कु)सभ्यता
abhi की हालिया प्रविष्टी..गुम हुई मेरी एक डायरी
प्रश्न करने वाले और जवाब देने वाले दोनों बड़े सयाने हैं
ढेर सारी शुभकामनाएँ शिखा को..
अनूप जी आपने शिखा की आवाज़ का ज़िक्र नहीं किया जो बिलकुल बच्चों की तरह है….ज्यादा से ज्यादा टीनएजर लड़की जैसी
शुक्रिया..
अनु
anu की हालिया प्रविष्टी..एक सीली रात के बाद की सुबह……
बड़े ही straight forward और to the points
से जवाब रहे शिखा जी के, जैसा कि उन्हों ने
कहा अपने बारे में। और वे काफी democratic
भी है …अपने काम से काम …एक तरह की
सादगी भी हे उनमें जो पारदर्शी और टची है …
बहुत आश्वस्त है वे अपने जीवन में …आज जैसी
देखी जाए वैसी हिंसक महत्वाकांक्षा उन में नहीं …
इन सारी बातों के अलावा उनका लेखन बिलकुल
भी फ्लेट नहीं। सौंदर्य, गहराई और अपने समय की
पहचान लिए होता है उनका लेखन जो पठनीय
भी होता है।
उन्हें जन्म-दिन की तहे दिल से बधाई और
शुभकामनाएं …
अनूप जी आपका भी धन्यवाद इस साक्षात्कार के
लिए और इतने तुलनात्मक रूप से अच्छे प्रश्न तैयार
करने के लिए भी।
और सच में, जन्मदिन पर साक्षात्कार का आइडिया बढ़िया है।
आप तो पूछने और घेर लेने के उस्ताद हैं। अगर शिखा जी आप से निकल गयीं तो…वाह!
upendra nath की हालिया प्रविष्टी..लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के लिए चंद पंक्तियाँ
सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..हाथी और जंजीरें
shefali की हालिया प्रविष्टी..आओ गुडलक निकालें …….
साक्षात्कार बहुत ही अच्छा और रोचक है।
सादर