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देश किधर जा रहा है
By फ़ुरसतिया on December 4, 2012
दुनिया
भर के बवालों से निपटते हुये कभी सांस लेने की फ़ुरसत मिलती है तो अपन देश
के बारे में सोचने लगते हैं। जब भी सोचते हैं सबसे पहला सवाल उठता है कि
देश है किधर? देश जा किधर रहा है?
अलग-अलग तरह के बयान जारी करते हैं लोग देश के बारे में। कोई कहता है देश प्रगति के पथ पर अग्रसर है। कोई दूसरा प्राणी बयान जारी कर देता है कि देश रसातल में जा रहा है। दोनों बयानियों में वैचारिक मतभेद दिखता है। अगर एका होता तो क्या पता दोनों बयान जारी करते कि देश रसातल की तरफ़ प्रगति के पथ पर अग्रसर है।
कोई बताता है देश बहुत अमीर हो गया है। यूरोप में मंदी है लेकिन अपन सरपट दौड़ रहे हैं। अगला बयान जारी कर देता है कि हम दुनिया के सबसे लस्टम-पस्टम लोगों की मंडली में शामिल हैं।
एक तरफ़ देश में लड़कियां हर तरफ़ आगे आती दिखती हैं। सरकारें उनके लिये हर सुविधा का एलान करती है। साइकिल, दहेज तक के पैसे देती हैं। वे हर जगह टॉप पर दिखती हैं। मर्जी के साथी के साथ रहना आम बात हो गयी है। दूसरी तरफ़ ये खबरें भी आती हैं कि लड़की ने किसी को ’आई लव यू’ नहीं कहा तो अगले ने उसके चेहरे पर तेजाब फ़ेंक दिया, गोली मार दी। बलात्कार हो गया। परिवार की मर्जी के खिलाफ़ जाने पर परिवार का ही कोई उनको निपटा देता है। गोली मार देता है।
सरकारें गरीबों का भला करने पर आमादा हैं। वे किसी भी किसिम से गरीबों का भला करना चाहती हैं। योजनाओं की झमाझम बारिश होती दिखती है। ये योजना वो योजना। किसी न किसी योजना में तो गरीबी को फ़ंसकर मरना ही है। लेकिन दिखता यह है कि गरीबी की गरीबी अपनी जान बचा ही लेती है। समाज की गरीबी संजीवनी पिये है। उसकी जिजीविषा विकट है। अपने खिलाफ़ हर तरह की योजना को बुत्ता देकर बची रहती है। योजना वाले झल्लाकर नयी योजना बना डालते हैं- कब तक बचेगी गरीबी।
देश में आम आदमी के लिये अवसर ही अवसर हैं। जिस भी जगह खड़े हो जाइये आगे बढ़ने के अवसरों का हुजूम दिखता है। हर वैराइटी के अवसर हैं। अवसरों का जाम सा लगा हुआ है। आम आदमी अवसरों के जाम में फ़ंसा हुआ है। आगे बढ़ ही नहीं पाता। अवसरों का जाम आम आदमी के लिये झाम बन गया है।
कहीं से कोई कहता है कि आज देश में आम आदमी का जीना मुश्किल है। अगला कहता हम आम आदमी मरने नहीं देंगे। सब इंतजाम पक्के हैं। सीधे जिन्दगी का इंजेक्शन ठोंक देंगे। देखते हैं कैसे मरता है आम आदमी।
देश में वैज्ञानिक प्रगति का बड़ा हल्ला मचता है। देश चांद पर जा रहा है। इसके बाद मंगल पर जायेगा। इसके बाद और आगे। दूसरी तरफ़ दिल्ली से चली योजनायें बस्तर, विदर्भ , बुंदेलखंड तक नहीं पहुंच पाती। कोई कह रहा था योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये मिसाइल तकनीक का सहारा लेना चाहिये। योजनाओं को मिसाइल में बांधकर भेजना चाहिये ताकि वे सीधे आम आदमी के ऊपर जाकर गिरें। आम आदमी का सीधे कल्याण हो सके। आम आदमी के कल्याण के काम से बिचौलिये हटने चाहिये।
कहते हैं कि
मैकडोनाल्डडॉमीनोज वाले पिज्जा की डिलीवरी आधे घंटे में कर देते हैं। सरकारों को आम आदमी के लिये योजनाओं के अमल में लाने के लिये
मैकडोनाल्ड डॉमीनोज वालों की सेवायें लेनी चाहिये। योजनाओं के लाभ पिज्जा के साथ आम
आदमी के पास भेज देने चाहिये। आधे घंटे में आम आदमी का कल्याण हो जायेगा।
सरकार का भी बवाल कटेगा।
देश के बारे में सोचते हुये कभी-कभी लगता है कि देश एक बहुत बड़ी भीड़ में फ़ंसा हुआ है। भीड़ के रेले में कभी इधर जाता है कभी उधर। किसी धक्के से पांच फ़ुट आगे जाता है तो अगले हल्ले में पचीस फ़ुट पीछे हो जाता है। हर आदमी उसके ऊपर से आगे निकलने की फ़िराक में दिखता है। कहीं -कहीं से उसको सहारा भी मिलता है जिससे वो जिन्दा बचा हुआ है।
काश देश में भी कोई जी.पी.आर.एस. फ़िट होता। फ़िट होता तो जान जाते कि देश असल में जा किधर रहा है। लेकिन लगता है कि उसका जी.पी.आर.एस. भीड़ में ही किसी ने नोच के फ़ेंक दिया है ताकि किसी को पता न लग सके कि देश जा किधर रहा है।
हमको तो पता चल नहीं पाया कि देश किधर जा रहा है। आपको पता चले तो बताइयेगा। हम अभी तो केदार नाथ सिंह की इस कविता के चश्मे से देश को देखने की कोशिश कर रहे हैं:
हिमालय किधर है?
मैंने उस बच्चे से पूछा जो स्कूल के बाहर
पतंग उड़ा रहा था
उधर-उधर – उसने कहा
जिधर उसकी पतंग भागी जा रही थी
मैं स्वीकार करूँ
मैंने पहली बार जाना
हिमालय किधर है!
इस पोस्ट को अगर आप सुनना चाहें तो नीचे इसका आडियो उपलब्ध है:
समय: 5.01 मिनट
आवाज : अनूप शुक्ल
रिकार्ड किया: 27.10.13
यहां सटाया: 27.10.13
शहर: जबलपुर ।
अलग-अलग तरह के बयान जारी करते हैं लोग देश के बारे में। कोई कहता है देश प्रगति के पथ पर अग्रसर है। कोई दूसरा प्राणी बयान जारी कर देता है कि देश रसातल में जा रहा है। दोनों बयानियों में वैचारिक मतभेद दिखता है। अगर एका होता तो क्या पता दोनों बयान जारी करते कि देश रसातल की तरफ़ प्रगति के पथ पर अग्रसर है।
कोई बताता है देश बहुत अमीर हो गया है। यूरोप में मंदी है लेकिन अपन सरपट दौड़ रहे हैं। अगला बयान जारी कर देता है कि हम दुनिया के सबसे लस्टम-पस्टम लोगों की मंडली में शामिल हैं।
एक तरफ़ देश में लड़कियां हर तरफ़ आगे आती दिखती हैं। सरकारें उनके लिये हर सुविधा का एलान करती है। साइकिल, दहेज तक के पैसे देती हैं। वे हर जगह टॉप पर दिखती हैं। मर्जी के साथी के साथ रहना आम बात हो गयी है। दूसरी तरफ़ ये खबरें भी आती हैं कि लड़की ने किसी को ’आई लव यू’ नहीं कहा तो अगले ने उसके चेहरे पर तेजाब फ़ेंक दिया, गोली मार दी। बलात्कार हो गया। परिवार की मर्जी के खिलाफ़ जाने पर परिवार का ही कोई उनको निपटा देता है। गोली मार देता है।
सरकारें गरीबों का भला करने पर आमादा हैं। वे किसी भी किसिम से गरीबों का भला करना चाहती हैं। योजनाओं की झमाझम बारिश होती दिखती है। ये योजना वो योजना। किसी न किसी योजना में तो गरीबी को फ़ंसकर मरना ही है। लेकिन दिखता यह है कि गरीबी की गरीबी अपनी जान बचा ही लेती है। समाज की गरीबी संजीवनी पिये है। उसकी जिजीविषा विकट है। अपने खिलाफ़ हर तरह की योजना को बुत्ता देकर बची रहती है। योजना वाले झल्लाकर नयी योजना बना डालते हैं- कब तक बचेगी गरीबी।
देश में आम आदमी के लिये अवसर ही अवसर हैं। जिस भी जगह खड़े हो जाइये आगे बढ़ने के अवसरों का हुजूम दिखता है। हर वैराइटी के अवसर हैं। अवसरों का जाम सा लगा हुआ है। आम आदमी अवसरों के जाम में फ़ंसा हुआ है। आगे बढ़ ही नहीं पाता। अवसरों का जाम आम आदमी के लिये झाम बन गया है।
कहीं से कोई कहता है कि आज देश में आम आदमी का जीना मुश्किल है। अगला कहता हम आम आदमी मरने नहीं देंगे। सब इंतजाम पक्के हैं। सीधे जिन्दगी का इंजेक्शन ठोंक देंगे। देखते हैं कैसे मरता है आम आदमी।
देश में वैज्ञानिक प्रगति का बड़ा हल्ला मचता है। देश चांद पर जा रहा है। इसके बाद मंगल पर जायेगा। इसके बाद और आगे। दूसरी तरफ़ दिल्ली से चली योजनायें बस्तर, विदर्भ , बुंदेलखंड तक नहीं पहुंच पाती। कोई कह रहा था योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये मिसाइल तकनीक का सहारा लेना चाहिये। योजनाओं को मिसाइल में बांधकर भेजना चाहिये ताकि वे सीधे आम आदमी के ऊपर जाकर गिरें। आम आदमी का सीधे कल्याण हो सके। आम आदमी के कल्याण के काम से बिचौलिये हटने चाहिये।
कहते हैं कि
देश के बारे में सोचते हुये कभी-कभी लगता है कि देश एक बहुत बड़ी भीड़ में फ़ंसा हुआ है। भीड़ के रेले में कभी इधर जाता है कभी उधर। किसी धक्के से पांच फ़ुट आगे जाता है तो अगले हल्ले में पचीस फ़ुट पीछे हो जाता है। हर आदमी उसके ऊपर से आगे निकलने की फ़िराक में दिखता है। कहीं -कहीं से उसको सहारा भी मिलता है जिससे वो जिन्दा बचा हुआ है।
काश देश में भी कोई जी.पी.आर.एस. फ़िट होता। फ़िट होता तो जान जाते कि देश असल में जा किधर रहा है। लेकिन लगता है कि उसका जी.पी.आर.एस. भीड़ में ही किसी ने नोच के फ़ेंक दिया है ताकि किसी को पता न लग सके कि देश जा किधर रहा है।
हमको तो पता चल नहीं पाया कि देश किधर जा रहा है। आपको पता चले तो बताइयेगा। हम अभी तो केदार नाथ सिंह की इस कविता के चश्मे से देश को देखने की कोशिश कर रहे हैं:
हिमालय किधर है?
मैंने उस बच्चे से पूछा जो स्कूल के बाहर
पतंग उड़ा रहा था
उधर-उधर – उसने कहा
जिधर उसकी पतंग भागी जा रही थी
मैं स्वीकार करूँ
मैंने पहली बार जाना
हिमालय किधर है!
इस पोस्ट को अगर आप सुनना चाहें तो नीचे इसका आडियो उपलब्ध है:
समय: 5.01 मिनट
आवाज : अनूप शुक्ल
रिकार्ड किया: 27.10.13
यहां सटाया: 27.10.13
शहर: जबलपुर ।
Posted in बस यूं ही | 20 Responses
आशीष श्रीवास्तव की हालिया प्रविष्टी..हिग्स बोसान मिल ही गया !
Kajal Kumar की हालिया प्रविष्टी..कार्टून :- कमर और कैश सब्सिडी का परस्पर संबंध
कविता के चश्मे से देखना सही है………….
प्रणाम.
जी.पी.आर.एस. की सुविधा इतनी जल्द देश को नहीं मिलेगी..अन्यथा चिंता करने का एक महत्वपूर्ण विषय समाप्त हो जाएगा.
Alpana की हालिया प्रविष्टी..बरसे मेघ…अहा!
हमारे यहाँ बयान देने वालों की और उससे मुकरने वाले दोनों की कमी नहीं है | जब सरकार में होते हैं तो वही काम देश की प्रगति के लिए ज़रूरी होता है , विपक्ष में जाते ही प्रगति की राह का रोड़ा हो जाता है |
और रही बात जनता के कल्याण की, अवसरों की , तो सब गड़बड़ झाला है | भूखे को रोटी ना देकर केवल भरोसा दिलाने वाली बात है| कभी एक के पास जाता है रोटी की आस में कभी दूसरे के पास | पर इस खेल में कईयों का काम चल जाता है |
इस बार आपकी पोस्ट पढ़कर हंसी नहीं, खुद पर तरस आया !!!! पता नहीं कौन दुनिया में जी रहे हैं हम सब !!
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..कहानी कोफ्ते की !!!
सादर
AKASH की हालिया प्रविष्टी..तुम कुछ-कुछ मेरे जैसे हो
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..संस्कृति बुलाती है
ashish rai की हालिया प्रविष्टी..क्यों
विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..नामांकन आपके परिवार के लिये बहुत जरूरी है.. (Nomination is very important for your family)
सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..फेसबुक पर इंटेलेक्चुअल कैसे दिखें