एक दिन दफ़्तर जा जाते हुये कुछ बाबा लोग दिखे। विजय नगर चौराहे के पहले। एक हाथी पर पूरा राज-पाट टाइप लादे चले जा रहे थे। घड़ी देखी। पांच मिनट लेट होने की गुंजाइश थी। आगे निकलकर गाड़ी किनारे की। दरवज्जे का पल्ला खोला। बाहर आकर बाबा लोगों का मय हाथी इंतजार करते रहे।
इन्तजार ऐसे जैसे चौराहे के सिपाही बीच-बीच में चौराहा छोड़कर दुपहिया-चौपहिया वाहन चेक करने लगते हैं। चेक करते हुये वे सरकार की कमाई में बरक्कत तो करते ही हैं। साथ में अपनी भी सब्जी भाजी और गैस के बढे हुई कीमत का दर्द हल्का कर लेते हैं।
इन्तजार का एक और अन्दाज जैसे शहर के नाके से गुजरने वाले मंत्री का उसकी पार्टी के स्वयंसेवक करते हैं। माला और मुंह मुर्झाते रहते हैं नेता जी के आते-आते।
बाबा लोगों के पास आते-आते हम उनको कैमरे में कैद कर चुके थे। पता चला कि वे पनकी मन्दिर के पास रहते हैं। मैहर दर्शन करने जा रहे थे। हमारे लिये इतना बहुत था । हम गाड़ी स्टार्ट करके चल दिये। तब तक एक बाबा ने खर्चा-पानी मांग लिया। लेकिन हम न्यूटन बाबा के जड़त्व के नियम के सम्मान करते हुये चल दिये थे तो चल ही दिये फ़िर।
लेकिन ज्यादा आगे नहीं जा पाये कि हमें यादों ने सालों पीछे धकेल दिया। जब हम साइकिल से भारत दर्शन करने जा रहे थे तो पहला पैडल धरते ही एक दम्पति कार से आये थे। उन्होंने अखबार में हमारी यायावरी की खबर बांची थी। आते ही उन्होंने शुभकामनायें दीं और कुछ पैसे भी रास्ते में खर्चे के दिये।
याद आते ही हमारी गाड़ी अपने आप धीमी हो गयी। हम फ़िर रुके। बाबा लोगों का इन्तजार किया। पास आने पर कुछ पैसे दिये। एक तरह से 34 साल पुराने कर्ज से उबरे तो नहीं लेकिन उसके सुपात्र से बने। हमको किसी ने दिया तो हम भी दे दिये।
पैसे और यादों से हल्के होकर आगे बढने से पहले मन किया कि हम भी गाड़ी यहीं किनारे ठड़िया के निकल लें संग में बाबा लोगों के। यह सोचते ही कई दुविधायें सामने आकर खड़ी हो गयीं:
1. गाड़ी सड़क पर खड़ी रहने से जाम लग जायेगा।
2. दफ़्तर में न पहुंचने पर बिना बताये अनुपस्थिति की नोटिश मिल जायेगी।
3. शाम तक घुमक्कड़ी का भूत न उतरा तो फ़िर कायदे भूत उतारा जायेगा।
2. दफ़्तर में न पहुंचने पर बिना बताये अनुपस्थिति की नोटिश मिल जायेगी।
3. शाम तक घुमक्कड़ी का भूत न उतरा तो फ़िर कायदे भूत उतारा जायेगा।
हम इन्ही सब दुविधाओं के जबाब सोचने लगे। तब तक पीछे की गाड़ियां पिपियाने लगीं। मजबूरी में हमें आगे बढना पड़ा। इसके बाद का किस्सा क्या बतायें। बस समझ लीजिये कि सोचते रहते हैं ऐसा आवारगी के बारे में।
आप भी ऐसा सोचते हैं क्या कभी?
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