आज दोपहर शास्त्री नगर तक गये। पंजाब नेशनल बैंक में भाईसाहब से मिलने। गाड़ी नीचे ही खड़ी कर दी। फ़ुटपाथ पर एक सरदार जी अपनी खराद के कारखाने पर बैठे टिफ़िन खोले रोटी खा रहे थे। बात करने की मंशा से मैंने उनसे कहा -गाड़ी खड़ी है देखे रहियेगा।
’हां, ठीक।’ - कहकर वे रोटी खाने में मशगूल हो गये।
लौटकर आने पर देखा कि वे सरदार जी खराद की मशीन पर लोहा छील रहे रहे थे। कोई जॉब बना रहे रहे। शायद रिपेयर का काम। जॉब नापने के लिये स्क्रूगेज बगल में धरा था।
बात की तो पता चला कि 1967-68 में कानपुर आये थे। पंजाब से। चालीस साल से अधिक हुये शास्त्री नगर के इस मकान में रहते हुये। दो बेटियों की शादी कर चुके। एक बेटा है वह चण्डीगढ में काम करता है। पत्नी यहां साथ में है। खराद की मशीन पर काम करके अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं।
खराद मशीन के बारे में पूछने पर बताने लगे-’सन 1984 में खरीदी थी यह मशीन। दस हजार में मिली थी। उसके पहले जो मशीन थी उसे दंगाई लूट् के गये थे। और भी सामान ले गये थे।’
33 साल पहले की दंगे की बात एक सहज खबर की तरह बता रहे थे। हमने पूछा -’इत्ती भारी मशीन कैसे लूट ले गये।’
’अरे टन टन भर वजनी सामान ले गये थे।’- उन्होंने बताया।
73 साल के कर्मवीर की जिजीविषा और काम करने की लगन की तारीफ़ की तो बोले-’काम नहीं करेंगे तो खायेंगे क्या? कौन हमको पेंशन मिलती है कोई?’
अपने से ही बताने लगे-’ सब कागज भरा के ले गये कई बार पेंशन के। लेकिन कोई नहीं मिली। न वृद्धा न समाजवादी पेंशन।’
पता चला कि जहां दुकान है वो मकान किसी दूसरे ने किराये पर खरीद लिया है।
बोले- ’हरामजादे मकान मालिक ने नोटिस दिया है। कोर्ट में केस चल रहा है। कागज मेरे सब चौरासी के दंगे में लूट ले गये।’
फ़िर आगे बोले-’ सब जगह तो पैसे का जोर है। जज भी सब क्रप्ट हैं।’
हम न्यायपालिका के सम्मान में क्या कुछ कहते। चुप रहे।
दोनों आंखों में ज्यादा पावर का चश्मा। एक में पास और दूर दोनों की नजर वाला। फ़ोटो दिखाया तो बहुत हल्के से मुस्कराये। बोले -अच्छा है।
हमने सोचा हालिया चुनाव के नतीजे के बारे में उनकी राय जानें। लेकिन नहीं पूछा। हिम्मत नहीं पड़ी। नमस्ते करके चले आये। कर्मवीर भी में जुट गये।
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wakai Bhai saheb 1984 ke dango main Desh ka bhut nuksan hua ....
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