कल सोबरन लाल मिले। सड़क किनारे फ़सक्का मारे बैठे। तसले में वाल पुट्टी घोल रहे थे। घोल रहे थे , मिला रहे थे। वाल पुट्टी दीवार पर लगाई जाएगी। दीवार चिकनी होने के बाद पेंट होगा। इमारत चमकेगी। सोबरन लाल अपने खुरदुरे हाथों से पुट्टी तैयार कर रहे थे। हर चकमती इमारत के पीछे खुरदुरे हाथों की मेहनत लगी होती है।
52 साल के सोबरन ने सालों पहले पुताई, पुट्टी का काम शुरू किया। पहली बार 20 रुपये मिली थी दिहाड़ी। आज 400 रुपये मिलते हैं। लेकिन 20 रुपये की दिहाड़ी की याद ज्यादा खुशनुमा है। उस समय सवा रुपये का पांच किलो गुड़ मिलता था। आज चालीस रुपये किलो है। मतलब मंहगाई बढ़ी 160 गुना जबकि तनख्वाह बढ़ी 20 गुना।
दिहाड़ी और मंहगाई के आंकड़े हो सकता है कुछ गड़बड़ हो लेकिन एक कामगार को अपनी तरह से समय को देखने की आजादी पर कौन अंकुश लगा सकता है।
तीन बेटियों और दो बेटों के पिता सोबरन दो लड़कियों की शादी कर चुके हैं। एक की करनी है। बेटियां मजे में है। बेटे भी काम करते हैं। तीन टिफिन बनते हैं सुबह। सब निकलते हैं काम पर।
'काम की कमी नहीं। काम हमेशा मिल जाता है। मेहनत से काम करने वाले को काम की कमी कभी नहीं होती।'- पुट्टी घोलते हुए बयान जारी किया सोबरन ने।
ऊंचाई पर काम करने के हिसाब से सर पर हेलमेट धारण किये पुट्टी घोल रहे सोबरन लाल ने बताया -'6-7 लड़को को काम सिखाया है। कोई फेल नहीं कर सकता उनको काम में। बहुत मानते हैं हमको। कोई काम को मना नहीं कर सकते।'
साथ में काम करने वाले रामकीरत 28 साल के हैं।
'पिता पल्लेदारी करते थे। बुजुर्ग हो गए तो घर बैठा दिया कि अब आराम करो। हम करेंगे काम।'-बताया रामकीरत ने।
दो भाई हैं रामकीरत के। एक पिता की जगह पल्लेदारी करता है कोल्ड स्टोरेज में। दूसरा टाइलिंग का काम करता है। दिन भर काम करते हैं। आठ घण्टे। काम मिल जाता है। घर चल जाता है। दो बच्चे हैं।
पास के गांव में रहते हैं। जमीन जायदाद कोई नहीं। दोनों के बुजुर्गों ने बताया कि पुराने समय में लिखाने के लिए एक रुपया घूस मांगी थी। जिन्होंने दे दी उनके नाम जमीन लिखा दी। हमारे बुजुर्ग नहीं दे पाए, नहीं लिखा पाये।
खाना घर का लाते हैं। चाय यहीं के लोग पिला देते हैं। कोई मीटिंग होती है तो चाय बनती है। उसी समय मिल जाती है।
दुनिया का कारोबार चलते रहने के लिए काम चलता रहना चाहिए, मीटिंग होती रहनी चाहिए। चाय बनती रहनी चाहिए। पी जाती रहनी चाहिए।
उसी समय उनके मुंशी साइकिल पर आए। उतरकर एड़ी मिलाकर फौजी अंदाज में नमस्ते किया। बताया उनके पिता फैक्ट्री में ही काम करते। नाम बताया। पहचान के रूप में बताया-' कान में कुंडल पहनते थे। उनके बाबा ने पहनाए थे।'
हर इंसान के पास कितना कुछ होता है साझा करने को। सुनने वाले चाहिए।
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